अनिल कुमार यादव अनुराग

Romance Tragedy

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अनिल कुमार यादव अनुराग

Romance Tragedy

सुनैना एक अधूरी मुहब्बत

सुनैना एक अधूरी मुहब्बत

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       साल का आखिरी दिन यानी कि 31 दिसंबर था और नया साल नई उम्मीदों के साथ आने वाला था। सुबह जल्दी उठकर मैंने मोबाइल खोला और फेसबुक देखने लगा, तभी मेरी नजर एक पोस्ट पर पड़ी, तो देखा कि कल रात देहरादून के एक इंजीनियरिंग कॉलेज के परिसर में भारी गुंडागर्दी हुई। प्रेम प्रस्ताव ठुकराने पर अमीर बाप की एक बिगड़ी औलाद, रघु ने सुनैना नाम की लड़की को गोली मार दी!

     सुनैना का नाम पढ़ते ही मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई और सिर में जैसे भूचाल सा आ गया। चेहरा भी गुस्से में एकदम लाल पीला हो गया। मैंने अपना मोबाइल दूर फेंक दिया और अपना हाथ सिर पर रखकर दीवार के सहारे जमीन पर बैठ गया। मेरी आंखों से आंसू बहे जा रहे थे और मैं अपने प्यार को याद किए जा रहा था।

      कुछ समय बाद मैंने अपने आप को संभालते हुए फोन उठाया और सुनैना की सहेली श्रुति को फोन लगाया। मैं इस तरफ से रोए जा रहा था और उस तरफ से वो रोए जा रही थी। मेरे मुख से शब्द नहीं निकल रहे थे। थोड़ी देर बाद श्रुति ने बताया कि रघु काफी समय से सुनैना को परेशान करता था। कई बार उससे प्रेम का इजहार भी कर चुका था। लेकिन सुनैना ने मना कर दिया था।

      श्रुति ने बताया कि कल शाम को जब हम कॉलेज से छुट्टी के बाद हॉस्टल के लिए निकल रहे थे, तब रघु ने फिर से सुनैना को परेशान करते हुए उसका हाथ पकड़ लिया और शादी करने के लिए कहने लगा। जब सुनैना ने मना कर दिया, तो रघु ने गुस्से में ये कहते हुए बंदूक निकाली कि जो मेरी नहीं हो सकती, मैं उसको किसी और की भी नहीं होने दूंगा। इतना कहकर रघु ने सुनैना के सीने में गोली मार दी!... और कॉलेज के परिसर में ही सुनैना ने तड़पते हुए अपनी जान दे दी।

      रघु को पुलिस पकड़ कर ले गई और सुनैना की लाश पोस्टमार्टम के बाद उसके घरवालों के हवाले कर दी गई। मेरे आंखों से आंसू बहे जा रहे थे और मैं निःशब्द श्रुति की बातें सुनते - सुनते ख्यालों में खो गया।

      कहते हैं किसी की मोहब्बत अधूरी हो सकती है मगर कभी ख़त्म नहीं हो सकती।

      सुनैना मेरी मुहब्बत, मेरी जिंदगी और मेरे दिल की धड़कन थी। सुनैना को मैंने पहली बार पिछले ही साल 16 अगस्त 2018 को लखनऊ रेलवे स्टेशन पर देखा था।

      ठंडी- ठंडी हवाएं चल रही थी। मौसम सुहाना था। आकाश में काले बादल छाए हुए थे और घनघोर बारिश होने की संभावना दिख रही थी। मै अपनी सीट पर बैठा, ट्रेन छूटने का इंतजार करते हुए खिड़की से बाहर का नजारा देख रहा था।

    अचानक! भारी गड़गड़ाहट के साथ बादलों को चीरती हुई बिजली चमकी और डर के मारे मेरी आंखें बंद हो गई। थोड़ी देर बाद धीरे - धीरे मैंने अपनी आंखें खोली, तो देखा कि बिजली अब भी चमक रही थी और एक खूबसूरत लड़की ट्रेन की तरफ आ रही थी। हल्की वर्षा की बूंदें गिरने लगी थी और ट्रेन भी हॉर्न बजाते हुए आगे बढ़ने लगी। उसको देखकर मेरे दिल की धड़कनें तेज हो गईं और मैं व्याकुल मन से विनती करने लगा कि हे भगवान! ये लड़की आराम से ट्रेन में चढ़ जाए। प्रभु कृपा करो! 

     मैं खिड़की से झांक रहा था और मेरी सांसें जोर-जोर से चल रही थी। जैसे - जैसे ट्रेन की रफ्तार बढ़ रही थी, वैसे - वैसे मेरी धड़कनें बढ़ती जा रही थी। मन में अजीब - अजीब तरह के ख्याल आ रहे थे।  

    आखिरकार दौड़कर वह ट्रेन में चढ़ ही गई और मैं बहुत खुश हुआ।

    कुछ समय बाद वह अपनी सीट खोजती हुई मेरी सीट के बगल आकर खड़ी हो गई और इधर - उधर देखने लगी। उसका कपड़ा बारिश में हल्का भीग गया था और बदन ठंड की वजह से कांप रहा था। तभी उसने मेरी तरफ देखकर अपने भीगे बालों को चेहरे से हटाते हुए बोली, " क्या ये सीट आपकी है?" मैं उसके सुंदर चेहरे को एकटक देख रहा था, क्या खूबसूरत चेहरा था! गुलाबी होंठ और परियों सी मुस्कान थी। हड़बड़ाते हुए मैंने कहा जी हां!

    उसने पूछा, " क्या आप हमारी मदद कर सकते हैं?"

    "हां क्यों नहीं जरूर!" तपाक से मैंने कहा बताइए। उसने कहा, " मेरी सीट नहीं मिल रही है। " तब मैंने उसका टिकट देखकर उसकी सीट खोजी, जो कि मेरे ऊपर थी। क्योंकि स्लीपर डिब्बों में तीन सीट होती है, एक ऊपर, नीचे और एक बीच में। उसकी बीच वाली सीट थी। सामान ऊपर रखकर हम दोनों नीचे वाली सीट पर बैठ गए और मैंने अपने थैले से निकालकर तौलिया देते हुए उससे कहा, "अगर आप चाहें तो अपने सिर का पानी पोछ लीजिए, नहीं तो आपको सर्दी लग जाएगी। " उसने अपना सिर पोंछा और हम धीरे - धीरे एक दूसरे के बारे में बातें करने लगे।

    ट्रेन अपनी तेज रफ्तार से छोटे स्टेशनों को पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ती जा रही थी और धीरे - धीरे शाम से रात हो गई। रात के 10 बज गए थे और हम दोनों बातें करते - करते इतने करीब कैसे आ गए! पता ही नहीं चला। मेरी मुलाकात एक अजनबी से हुई थी, लेकिन मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे हम दोनों एक दूसरे को बहुत सालों से जानते हों। सारे यात्री अपना रात का खाना खाकर सोने लगे। सुनैना ने अपने थैले से कुछ फल निकाल कर मुझे खाने को दिए और खुद भी खाए।

    मैं अपनी सीट उसको देकर ऊपर वाली सीट पर सोने चला गया। लेकिन ठंड के मारे नींद नहीं आ रही थी, तब मैंने अपना थैला खोलकर चादर निकाली और ओढ़ के सोने जा रहा था, तो देखा की सुनैना अपनी सीट पर उलट - पलट रही है और ठंड से उसके होंठ कांप रहे हैं। मैंने अपनी चादर उसके ऊपर डाल दी और मैं अपनी सीट पर ऐसे ही लेटकर उसके ख्यालों में खो गया। मुझे कब नींद आ गई, पता भी नहीं चला!

    सुबह जब मेरी आंख खुली, तो देखा कि वह लड़की वैसे ही सीट पर सिमटी हुई सो रही थी और मैं चादर ओढ़े हुए था। अभी तक तो सिर्फ मुझे ही प्यार का एहसास हो रहा था! लेकिन इसके बाद तो उसको भी मुझसे प्यार हो गया था। ऐसा लग रहा था, जैसे मुझे मेरा सच्चा प्यार मिलने वाला था।

    उस समय मेरे चेहरे की खुशी देखने लायक थी। मैं खुश होकर अपनी सीट से नीचे उतरा और देखा कि मेरा पर्स, मोबाइल और थैला गायब था। मैं बहुत परेशान हो गया। इधर - उधर अपना सामान ढूंढने लगा, लेकिन कहीं नहीं मिला। मेरे अंदर की सारी खुशी पल भर में समाप्त हो गई! मैं उदास होकर बैठ गया।

    जब सुनैना को पता चला तो वह भी उदास हो गई! मैं अपने एक रिश्तेदार को देखने जा रहा था, जोकि देहरादून के एक निजी अस्पताल में भर्ती थे और उनका ऑपरेशन होने वाला था। उनकी मदद के खातिर मुझे घर से 10000/- रुपए मिले थे। वो सारे रुपए भी गायब थे। अब मैं करता तो क्या करता? कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। ट्रेन भी देहरादून रेलवे स्टेशन पर पहुंचने वाली थी।

    स्टेशन पर जब ट्रेन रुकी, तब सारे यात्री उतर गए। उसके बाद दुखी मन से मैं भी सुनैना के साथ नीचे उतर गया। सुनैना ने मुझे अपने पर्स से 5000/- रुपए दिए और अपना मोबाइल भी मुझे दे दिया। उसने कहा मैं शाम को कॉल करूंगी। मेरे मना करने के बावजूद भी उसने जबरदस्ती करते हुए कहा कि रख लो मुझे भी अपना ही समझो।      

    उसने मेरे हाथों के ऊपर अपना हाथ रखा और एक प्यारी सी मुस्कान के साथ बोली कि चलिए अब चलते हैं, जो कुछ भी हुआ उसे भूल जाइए। अपनेपन का एहसास कराते हुए उसने, जिस तरह से मेरा साथ दिया, उसकी सारी बातें मेरे दिल को छू गई। शायद ही उसके जैसे कोई लड़की इस दुनिया में हो और उसके अंदर इतनी इंसानियत हो।

    स्टेशन के बाहर आकर मैंने सुनैना को ऑटो में बैठाकर उसके हॉस्टल भेज दिया और मैं हॉस्पिटल की तरफ चला गया।

    शाम को जब सुनैना ने कॉल किया और अपने दिल की बात कही, तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा और मैंने भी उससे अपने प्यार के बारे में बता दिया।

    तब से लेकर आज तक हम दोनों संपर्क में थे और एक दूसरे से प्रेम करते थे। उसने अपने मम्मी और पापा को मना लिया था और हम दोनों पढ़ाई समाप्त होने के पश्चात शादी भी करने वाले थे।

    परन्तु एक मनचले दरिंदे कि वजह से मेरी मोहब्बत मुझसे दूर हो गई और हमने मिलकर जो सपने संजोए थे, वो सब अधूरे रह गए।

    सुना है अगर किसी चीज को दिल से चाहो, तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने के लिए कोशिश में लग जाती है। हमारा प्यार एकदम सच्चा था और मैं तो सुनैना को दिल से भी चाहता था। लेकिन कायनात ने शायद कोशिश नहीं की या फिर किस्मत ने मेरा साथ नहीं दिया।

    हमारा प्यार अधूरा रह गया और खुदा को भी शायद यही मंजूर था। 'एक अधूरी मुहब्बत' के साथ जिंदगी ने मुझे जीने पर मजबूर कर दिया।

    आज भी मैं हर सुबह इसी उम्मीद और विश्वास के साथ उठता हूं कि इस जन्म में हम एक दूसरे के नहीं हो पाए तो क्या हुआ, अगले जन्म में हम जरूर मिलेंगे और जिंदगी का हर एक लम्हा साथ रहकर खुशी - खुशी जीएंगे।

    मुझे पता है सुनैना! तुम कहीं नहीं गई हो, तुम यहीं हो! मेरे पास, मेरे दिल में और मेरी यादों में.....



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