सरहद।

सरहद।

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वह अपने घर जाने की तैयारी कर रहा था। उसे इस बात की कितनी खुशी थी कि वह इतने दिनों बाद अपने परिवार के साथ होगा। उसकी पत्नी और माँ उसके लिए छप्पन भोग की थाली तैयार करेगी। उसके पिता अपने जीवन के अनुभव उससे कहेंगे।

गाँव वाले उसे एक भगवान की भांति अपनी समस्या बताने के साथ ही उसके समाधान की आशा करेंगे। उसकी डेढ़ साल की बेटी अपनी तोतली आवाज़ में उसे ‘पापा' कहने की कोशिश करेगी।


अगले ही पल वह यह सोच कर उदास हो गया कि इस सब ख़ुशियाँ उसके पास सिर्फ एक महीने तक ही है और अगर कहीं बीच में ही उसे वापस लौटना पड़ा तो ये दिन और कम हो जाएगे। तब क्या वह इस सुकून के लालच में कमजोर पड़ जाएगा।


वह अभी आत्म मंथन कर ही रहा था कि तभी उसे यह सूचना मिली कि दुश्मन ने सरहद पर फिर से हमला कर दिया है और इस वजह से वह अपने घर नहीं जा सकता। उसे तुरंत ही दुश्मन का सामना करना होगा।


दुश्मन का नाम सुनते ही उसके शरीर में बिजली दौड़ गई। उसके खून में उबाल आने लगा। उसकी भृकुटी तन गई। अब वह अपना घर, गाँव , परिवार सब भूल चुका था। उसे याद था तो सिर्फ इतना ही कि उसका दुश्मन उसके घर की सरहद पार करने की कोशिश कर रहा है और वह ऐसा होने नहीं देगा। उसे अपने देश रूपी घर और उस घर के प्रत्येक सदस्य की रक्षा करनी होगी।



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