सपने
सपने
युवावस्था आए, और सपनों की फसल न उगे, ऐसा संभव नहीं, युवावस्था यानी की आंखों में सपने, और कुछ कर जाने की तमन्ना।
माता-पिता के सपनों को पूरा करने और कुछ बन जाने की आकांक्षा पाले युवक युवतियां कहने को तो बेफिक्र और जिंदादिल नजर आते हैं, मगर इसके पीछे कहीं थोड़ा सा डर भी छिपा रहता है, कहीं सफलता छुपमछुपाई खेलने लगे यानी सपने पूरे न हो सके तो...
हमारे जमाने में तो जो माता-पिता कह देते थे, वही होता था...पर आज की पीढ़ी तौबा...तौबा...नाक पर मक्खी तक नहीं बैठने देती। हम कितनी मेहनत करते थे, तब जाकर कुछ बने। ये बच्चे हैं कि मेहनत करना ही नहीं चाहते,
मैं पढ़ाई में तेज थी इसीलिए मैं आईएएस बनना चाहती थी, लेकिन गरीब घर से होने के कारण मेरे पिताजी ने, इंटर तक पढ़ाकर मेरी शादी तय कर दी , बिना यह पूछे कि मेरी क्या मर्जी है।
शादी करके मैं ससुराल आ गई, हर लड़कियों की तरह अनेकों सपने लिए हुए, यहां आकर मैंने ग्रेजुएशन में एडमिशन ले लिया।
उसी बीच शादी के 2 साल बाद मैं एक बच्चे की मां बन गई, अब मेरे ऊपर जिम्मेदारियां भी बढ़ गई, पढ़ाई, घर की जिम्मेदारियां, बच्चे की जिम्मेदारी।
अभी मैं ग्रेजुएशन फाइनल ईयर में हूं, पर मुझे नहीं लगता कि मैं अपने सपने पूरा कर पाऊंगी।
गरीब परिवार से होने के कारण, न मैं अपने सपने पूरा कर पाई, और ना ही अपनी खुली जिंदगी जी पाई।
लगता है मेरा यह सपना सपना ही रह जाएगा, जिंदगी का सबसे ऊर्जावान समय है उम्र का यह पड़ाव। उमंगों से भर हंसना...खिलखिलाना और बहुत-कुछ करने की तमन्ना। पुरानी पीढ़ी अक्सर शिकायत करती नजर आती है कि युवा पीढ़ी का मिजाज काफी बदल गया है।
सखियों मेरा मार्गदर्शन करें मैं सपना पूरा कर पाऊंगी या नहीं।
