सपने सच हुये
सपने सच हुये


सपनों की दुनिया अजब गजब और निराली होती है मनोवैज्ञानिकों ने इसे विभिन्न तरह से परिभाषित किया है,मैंने मनोविज्ञान में आर्नस किया है, जहां स्वपनों के विभिन्न स्वरूप और इसे क्यो देखते हैं जैसे प्रश्नो के उतर मिल जाते हैं। महान मनोवैज्ञानिक फ्रायड ने तो यहां तक कह डाला है कि हमारी अतृप्त इच्छाएं जो समाज और नैतिकता के डर से दबी रह जाती है,वहीं स्वपन बनकर हमारे सामने आती है और हम अपनी लंबी इच्छाओं की पूर्ति इन स्वपनों के माध्यम से कर लेते है, कुछ मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि हमारे द्वारा दिन भर किया गया क्रीड़ा कलाप कभी उसी रूप में तो कभी छंद्म रूप में सपनों के माध्यम से आते हैं।
परन्तु इन सब से परे सपनो का एक सच ये भी है कि हमें भविष्य में होने वाली घटनाओं की जानकारी भी मिली जाती है।आज मैं आप सबके सामने अपने सच्चे स्वपन का वर्णन करूँगी। वैसे तो मैं बचपन से ही जो भी स्वपन देखती हूँ,अक्सर पूरे हो जाते है। ये बिल्कुल सच्ची घटना है,बात उस समय की है जब मैं नवीं कक्षा की छात्रा थी,मेरे पिताजी बहुत बीमार हुये और चल बसे, मेरी बोर्ड परीक्षा सर पर थी और इतनी बड़ी घटना से मैं टूट ही गई, मेरे अंदर एक अनजाना भय समा गया था। मैं हर पल माँ के साथ ही रहती,अभी तक मुझे मौत, बीमारी इन सब बातों से कोई मतलब नहीं था क्योंकि मुझे लगता था कि मेरा परिवार इन सब बातों से सुरक्षित है और मेरे परिवार में इन सब बातों का कोई स्थान नहीं है।
पिताजी के देहांत के बाद मेरे अंदर एक अनजाना भय समा गया था और मैं परेशान रहने लगी,और ठीक एक साल बाद मेरी माँ भी भयंकर रूप से बीमार पड़ गई,की डाक्टर को दिखाया गया, परन्तु उनकी तबीयत बिगड़ती चली गई, पाँव और पेट में सूजन बढ़ गया था,आने जाने वाले अब दबी जुबान बातें करने लगे कि अब ये शायद नहीं बच पाएगी,अब तो मैं बिल्कुल घबरा उठी, माँ चली जायेगी ? भला मैं माँ के बिना कैसे जीवित रह पाऊँगी, हालांकि मैं नौ भाई बहनों में सबसे छोटी व दुलारी थी, लेकिन माँ के बिना जीवन की कल्पना भयावह था,और मैं रोते-रोते वहीं माँ से चिपक कर सो गई जैसे माँ और मैं दोनों एक दूसरे को सुरक्षित कर लिये हो।रात में मुझे सपना आया"तेरी माँ अभी नहीं जायेगी,आज से सातवें बर्ष जब पूरा होगा तेरी माँ चली जायेगी।"मैं हड़बड़ा कर उठ बैठी और माँ से चिपक गई लेकिन मुझे तसल्ली हुई कि कम से कम सात साल तक और माँ मेरे पास रहेगी। आपको जानकर हैरानी होगी कि ठीक सात साल बाद मुझे डोली में बिठाये बिना ही इस दुनिया से चली गई और मैं कुछ भी नहीं कर सकी।
ऐसे ही अनगिनत उदारहरण है जो भविष्य में होने वाली घटनाओं से मैं पहले ही अवगत हो जाती हूँ अच्छे बुरे हर तरह की घटनाओं से। मेरे परिवार वाले ये बात जानते हैं , लेकिन मैं भगवान से यही प्रार्थना करती हूँ कि जब मैं अनहोनी घटनाओं को रोक नहीं सकती ,तो मुझे उससे अवगत भी नहीं कराये।