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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Tragedy

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Tragedy

संगत का असर : भाग -3

संगत का असर : भाग -3

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लाला जीवन लाल को फोन पर सूचना मिली कि उसके बेटे शुभम को मोटरसाइकिल चोरी के आरोप में पुलिस उठाकर थाने ले गयी है तो वे बहुत बेचैन हुये और घबराये से पुलिस थाने पहुंचे । वहां पर उनके परिचित श्याम सुंदर जी मिले ।

अब आगे 


जीवन लाल जी और श्याम सुदर जी दोनों ही थानेदार से मिले । थानेदार बहुत कड़क था । मिलना ही नहीं चाहता था । अर्दली से कहला दिया कि इस समय वे व्यस्त हैं । जीवन लाल और श्याम सुंदर दोनों ने बहुत मिन्नतें की , ईश्वर की दुहाई दी मगर थानेदार ने कोई दरियादिली नहीं दिखाई । आजकल शायद संवेदनाएं मर गई हैं लोकसेवकों की । लोगों को पुलिस थाने में जाते हुए डर लगता है कि पता नहीं पुलिस उन्हीं को अपराधी घोषित नहीं कर दे । अस्पतालों में जाने से डर लगता है कि कहीं डॉक्टर बिना वजह पचास जांचें करवा कर उसकी जेब काट ले , अनाप शनाप दवाई देकर और बीमार ना कर दे । और तो और , ऑपरेशन के नाम पर शरीर का कोई अंग ना निकाल ले । बच्चियों को स्कूल भेजने में डर लगता है कि पता नहीं कोई शिक्षक ही उसके साथ दुष्कर्म करके हत्या ना कर दे । लगता है कि डर का साम्राज्य है चारों तरफ । एक आम आदमी इसी डर के साए में ही जी रहा है । 


बड़ी मुश्किल से थानेदार मिलने को तैयार हुआ । कहने लगा "तुम्हारे लड़के ने मोटरसाइकिल चुराई है । दूसरा लड़का कह रहा है । इसलिए इसे थाने में ही रहना होगा । कल कोर्ट में पेश करेंगे , वहां से जमानत करा लेना । अब जाओ और मुझे अपना काम करने दो" । 


"साहब, मेरा बेटा चोर नहीं है । वह लड़का झूठ बोल रहा है । अपनी चोरी उस पर डाल रहा है । मैं दावे से कह सकता हूँ कि शुभम चोर नहीं है । और अगर उसने चोरी की है तो मैं उसे कभी नहीं छुड़वाऊंगा" । जीवन लाल ने दृढ़ विश्वास से यह बात कही । 


थानेदार उसकी खिल्ली उड़ाते हुए बोला "हर मां बाप को अपना बेटा श्रवण कुमार लगता है जबकि होता वह दुर्योधन है । हमारा तो रोज रोज ऐसे ही वास्ता 'श्रवण कुमारों' से होता है । अभी जब दस पांच 'फटाके' पड़ेंगे इसको , तो यह सारा जुर्म कबूल कर लेगा । अब भागो यहां से" । इतना कहकर थानेदार ने अर्दली को इशारा किया और अर्दली ने उन्हें धक्का मारकर बाहर कर दिया । 


इतनी बेइज्जती कभी नहीं हुई थी लाला जीवन लाल की । क्या थाने लोगों को जलील करने के केंद्र बन गये हैं ? मगर करें तो क्या करें ? बेटे की जिंदगी का सवाल था । औलाद के आगे आदमी कितना कमजोर और मजबूर हो जाता है । 


अचानक श्याम सुदर जी को याद आया कि उनके एक रिश्तेदार अतिरिक्त पुलिस आयुक्त हैं । उन्होंने झटपट उन्हें फोन लगाया और सारी बातें बता दी । थोड़ी देर में उनका फोन वापस आया और उन्होंने बताया कि थानेदार तो कह रहा है कि चोरी उसने ही की है इसलिए वह उसे छोड़ नहीं सकता है । 


श्याम सुंदर जी का यह प्रयास निष्फल चला गया । जीवन लाल ने कहा कि क्यों नहीं डिप्टी कमिश्नर से मिला जाये ? तीनों जने फटाफट डिप्टी कमिश्नर के कार्यालय में आ गये । वहां मालूम चला कि साहब तो घर चले गये हैं । रात के दस बज चुके थे । बात तो सही थी । दिन की ड्यूटी होती है रात की नहीं । जीवन लाल ने उनसे घर पर मिलने की ठानी । एक कांस्टेबल से घर का पता लेकर वे घर चले गये । 


डिप्टी कमिश्नर भले आदमी थे इसलिए रात के ग्यारह बजे भी उनसे मिल लिये । उनकी बात सुनकर उसने थानेदार से बात की । थानेदार ने पता नहीं क्या कहा कि डिप्टी कमिश्नर ने कहा "थानेदार कह रहा है कि सौ प्रतिशत गाड़ी उसने ही चुराई है इसलिए वह कुछ नहीं कर सकते हैं" । 


इस प्रकार हताश निराश तीनों जने श्याम सुंदर जी के घर आ गये । जीवन लाल को भी लगने लगा था कि शुभम ने शायद चोरी की होगी तभी तो थानेदार इतने विश्वास से कह रहा है । क्या समझा था शुभम को क्या निकला ? 


जीवन लाल की आंखों से गंगा जमना बह निकली । इतनी देर से इस बांध को संभाल कर रखा था मगर एक झटके में पाल तोड़कर बह निकला । श्याम सुंदर जी ने बहुत ढ़ांढस बंधाया मगर भावनाएं आंखों के रास्ते बह निकलीं । अब क्या कहेगें वो शोभा को ? लवी को कैसे शांत करेंगे वो ? दुनिया को कैसे मुंह दिखायेंगे वे ? उनकी आंखों से नींद कोसों दूर थी । अगर बेटा थाने में बंद हो तो किस बाप को नींद आयेगी ? 


 ये रात कितनी लंबी हो गई है । खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है । बड़े लोगों ने सच ही कहा है कि सुख के दिन छोटे और गमों की रातें लंबी होती है । जीवन लाल सोचने लगे कि क्या इस रात की भी कोई भोर होगी ? दूर दूर से आशा की कोई किरण नजर नहीं आ रही थी । 


लेकिन कोई भी रात भोर होने से रोक नहीं सकती है । उन्हें याद आया कि उनके एक परिचित जयपुर में नामी वकील हैं । अब उन्हीं का सहारा लेना पड़ेगा । वैसे तो लोग वकीलों से दूर ही रहना चाहते हैं । एक विचित्र प्रजाति होती है वकीलों की । दिन को रात और रात को दिन साबित कर देते हैं ये वकील लोग । न्याय की देवी तो अंधी है । उसे तो ये वकील जो भी कुछ सुनाते हैं उसी के आधार पर फैसला करती है । न्यायालय में वकीलों की धाक जमी हुई है । वकील ही जज बनते हैं और जज तो कुछ भी फैसला कर सकता है । यह सोचकर जीवन लाल को कुछ उम्मीद हुई। 


अगले दिन जीवन लाल और श्याम सुंदर दोनों वकील के पास पहुंच गये । उनके घर पर बहुत भीड़ थी मगर उन्होंने जीवन लाल को पूरी तवज्जो दी । उनकी बात ध्यान से सुनी और अपना एक जूनियर वकील उनके साथ थाने भेज दिया । 


थाने में उस समय थानेदार नहीं था । जांच अधिकारी ने उनको शुभम से मिलने की इजाजत दे दी । शुभम को देखकर जीवन लाल रो पड़े । उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की कि उनका बेटा थाने में बंद मिलेगा । उन्होंने शुभम से सारा किस्सा बताने को कहा । शुभम ने कहना शुरू किया 


"पापा , मैं और साहिल दोनों फास्ट फ्रेंड थे । एक ही क्लास में पढ़ते हैं इसलिए ज्यादातर साथ में ही रहते हैं । थोड़े दिन पहले साहिल मेरे कमरे पर आया । उसके साथ ये रौनक भी था । हम लोग कॉलेज की बातें करते रहे । लगभग घंटे भर बाद वे दोनों चले गये । फिर कल वे दोनों मेरे कमरे पर आये । हमें कुछ किताबें खरीदनी थी इसलिए बाजार जाकर किताबें खरीदने का प्लान बनाया । तब रौनक ने कहा कि मोटरसाइकिल से चलते हैं । मैंने कहा भी कि मोटरसाइकिल कहाँ से आई तो वह कहने लगा कि नई खरीदी है । मैंने उस पर विश्वास कर लिया । मुझे नहीं पता था कि वह मोटरसाइकिल उसने चुरायी थी । कल ही पता चला कि उसने तो एक मोबाइल भी चुराया था । हम लोग बाजार चले गये । किताबें खरीदी । फिर रौनक को कोई काम याद आ गया और फिर हम लोग गौरव टॉवर चले गये । रौनक ने मोटरसाइकिल पार्किंग में खड़ी की और हम लोग गौरव टॉवर के अंदर चले गये । मुझे थोड़ी जल्दी थी तो मैं वहां से ऑटो करके अपने कमरे पर आ गया । लगभग दो घंटे बाद दो पुलिस वाले मेरे पी जी में आये और मुझे जबरदस्ती थाने ले आये । वहां पर पता चला कि जैसे ही रौनक मोटरसाइकिल के पास पहुंचा पुलिस ने उसे धर दबोचा । उससे पूछताछ की तो उसने कह दिया कि मोटरसाइकिल मेरी है । मैंने पुलिस वालों से बहुत कहा कि मोटरसाइकिल मेरी नहीं है , मगर पुलिस मान ही नहीं रही है । गौरव टॉवर के सीसीटीवी में मैं मोटरसाइकिल की पिछली सीट पर बैठा दिख रहा हूँ । बस, उसी को साक्ष्य समझकर थानेदार यह कह रहा है कि मोटरसाइकिल मैंने खरीदी है जबकि मेरा उस मोटरसाइकिल से कोई लेना देना नहीं है । मगर मेरी बात कोई सुनने को तैयार ही नहीं है" । शुभम के चेहरे पर ग्लानि , क्षोभ, आक्रोश एवं अपमान के भाव एक साथ आ जा रहे थे । 


जूनियर वकील ने जांच अधिकारी से इस बारे में बात की तो जांच अधिकारी ने कहा "इसकी बातों से , हाव भाव से लगता है कि यह सही बात कह रहा है और वह दुष्ट रौनक झूठ बोल रहा है । मगर इसे छोड़ने का काम तो थानेदार जी ही करेंगे ना । मैं क्या कर सकता हूँ" ? 


थानेदार अभी तक आया नहीं था । जूनियर वकील ने अपने बॉस को सारी बात बताई तो बॉस ने उसे वापस बुला लिया और जीवन लाल को कह दिया कि यदि थानेदार छोड़ दे तो ठीक है नहीं तो कोर्ट से जमानत करवा लेंगे । 


जीवन लाल जी को समझ में आ गयी सारी राम कहानी । एक गलत लड़के के साथ ने बिना किसी अपराध के शुभम को हवालात में बंद करवा दिया । उसे लगभग 20 घंटे हो गये थे हवालात में । हलकी मार पिटाई भी हुई थी उसके साथ । इतना अपमान कभी नहीं हुआ था उसका जितना कल से हो रहा है । अपनी खुद की नजरों में गिर गया था शुभम । संगत का असर कैसा होता है , यह समझ में आ रहा था । जीवन लाल ने अपने बच्चों को बहुत कहा था कि लोगों को भलीभांति पहचान कर उनसे दोस्ती करो । पीठ में छुरा भौंकने वाले अधिकतर अपने ही लोग होते हैं । जिंदगी की कुछ कड़वी हकीकतें हैं उनका सबको ध्यान रखना चाहिए मगर यह नई पीढ़ी बिना अनुभव के कुछ मानती ही नहीं । आज शुभम को महसूस हो रहा था कि रौनक के बारे में बिना कुछ भी जाने वह उसके साथ मोटरसाइकिल पर बैठकर चला गया । यही उसकी सबसे बड़ी गलती थी । 


थोड़ी देर में थानेदार आ गया । जीवन लाल ने उसे सारा वाकिया कह सुनाया मगर वह टस से मस नहीं हुआ और उनको बाहर निकलवा दिया । वे लोग थाने के बाहर निढाल से खड़े रहे । 


इतने में दो तीन पुलिस की गाड़ी थाने में दनदनाती घुसीं । थाने के गेट बंद कर दिये गये । किसी को अंदर नहीं जाने दिया गया । लगभग दो घंटे बाद वे गाडियां वापस चली गई तब ये लोग थाने के अंदर गये । पता चला कि अभी अभी भ्रष्टाचार निरोधक विभाग की कार्रवाई हुई थी जिसमें एक हैड कांस्टेबल को दस हजार रुपये की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया था । थानेदार की भूमिका भी संदिग्ध बताई जा रही थी । जीवन लाल और श्याम सुंदर दोनों को अब महसूस होने लगा कि थानेदार उनसे भी शायद कुछ पैसे ऐंठना चाहता था इसलिए ये सब नौटंकी कर रहा था । 


वे कुछ और सोचते इतने में एक अर्दली उनके पास आया और कहने लगा कि थानेदार जी उन्हें बुला रहे हैं । थानेदार ने उन्हें बुलाकर कहा कि वह उनकी बात पर यकीन करके शुभम को छोड़ रहा है । एक कागज पर लिखकर देना होगा कि जब जरूरत होगी शुभम को लेकर थाने आ जायेंगे । जीवन लाल जी ने लिखकर दे दिया और श्याम सुंदर जी ने गवाह के तौर पर हस्ताक्षर कर दिये । यह उनका मुकद्दर था कि भ्रष्टाचार निरोधक विभाग की कार्रवाई से डरकर थानेदार शुभम को छोड़ रहा था । 


लगभग एक घंटे बाद शुभम पुलिस थाने से बाहर निकला । पर अब वह अकेला नहीं था । थाने का अनुभव भी उसके साथ था । उसे पता चल चुका था कि एक गलत संगत का असर क्या होता है । 


जीवन लाल जी ने यह शुभ समाचार शोभा और लवी को सुनाया तो वे दोनों लिपटकर रो पड़ीं । 



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