समय
समय
"आज बाईस तारीख हो गई, अभी तक तुम्हारा किराया नहीं पँहुचा है। क्या मुझे सेक्रेटरी रखा है जो मैं हर महीने फोन कर कर के याद कराऊँगी ? अगर पैसे नहीं हैं तो कमरा खाली क्यों नहीं कर देतीं ?
मकान मालकिन रोहिणी जी फोन पर इतनी जोर जोर से चीख रही थीं कि सरिता ने घबरा कर फोन काट दिया। अब क्या करेगी वह ? इस महीने की उसकी पूरी तनख्वाह तो पहले ही बेेटे सनी की बीमारी पर खर्च हो चुकी है। इस बार का राशन, दूध, गैस... सनी की फीस.. पति अंकित की डेथ के बाद अब सब कुछ उसको अकेले सँभालना है....मगर कैसे ? समझ में ही नहीं आता कि कैसे होगा सब कुछ...मगर जो भी हो, रोहिणी जी के पैसे तो पहुँचाने ही पड़ेंगें अन्यथा वो कहीं उसे बीमार बेटे और सामान के साथ सड़क पर ही न ला पटके।
हाथ जोड़ कर, रो रो कर....बड़ी मुश्किल से अपने साथ काम करने वाली रमा से पैसे उधार ले कर शाम को रोहिणी जी के घर पहुँची थी सरिता। बाहर में कई गाड़ियाँ लगी हुई थीं और माहौल में गहमा गहमी थी। अंदर जाने पर पता चला कि वे अपनी सहेलियों के साथ ताश पार्टी में व्यस्त हैं। सकुचाते शर्माते वहीं जाना पड़ा था सरिता को.... पैसे हाथों में पकड़ते हुए रोहिणी जी ने उसे कड़ी नजरों से घूरा और गुर्राईं...."आगे से दस तारीख पार नहीं होनी चाहिये" और फिर अपनी सहेलियों की तरफ घूम कर मुस्कुराते हुए बोलीं "और ये छ हजार की चाल मेरी तरफ से"...... सरिता के दिये हुए रूपयों को उन्होंने टेबल के बीच में लगे नोटों के ढेर में फेंंक दिया था।