समझौता
समझौता


कनक अपने पति के साथ रह तो रही थी, पर एक सामान की तरह । हर सुबह बस सबका काम करो और अपनेसपने , अपनी बात कहने का जैसे कुछ अधिकार नहीं था। राहुल अपनी बात को ऐसे करता , कि कनक को अगर वह बात पसंद नहीं है तो भी वह कुछ ना कहे, क्योंकि राहुल के हिसाब से पत्नी को सहनशील होना चाहिए।
शादी के १० साल हो चुके थे अब तो कनक को आदत हो चुकी थी।'' कनक, जल्दी से खाना दे दो , मुझे काम पर जाना है।" राहुल चिल्लाते हुए बोला। कनक ने कहा कि -'' उससे पहले एक काम कर दो, आप अमित को फोन कर के पूछो ना, कि अमृता से पूछ कर बताएं कि आज सब्जी वाला आया था ,क्या?। बस फिर क्या था , राहुल ने बोलना शुरू कर दिया । ''तुम पागल तो हो, पर क्या मूर्ख भी हो, तुम नहीं बात कर सकतीं ,बस घर में बैठी रहेगी"। कनक को बहुत बुरा लगा , उसने कहा भी-'' कि ऐसा क्या कहा, जो इतना बोल रहे हो"। पर राहुल तो जैसे पागल सा हो गया था, जो उसके मुंह में आ रहा था , वह कहे जा रहा था। इधर कनक भी कहे जा रही थी। बहस इतनी बढ़ गई कि राहुल अचानक जोर से चिल्लाया -'' तू अपने आप में है क्या? ,या तो कुछ अपने आप कमा, या चुपचाप रह , मुंह बंद कर रहा कर"। कनक को कुछ समझ नहीं आ रहा था , कि वह क्या करे , क्यों कि राहुल उसे हमेशा यही धमकी देता था, और वह एक ही जवाब देती कि -'' कहां जाऊं, आज मेरे बच्चें हैं, मैं कुछ कमाती भी नहीं हूं, सिर्फ इसलिए आप मुझे बार-बार यही धमकी देते रहते हो "। इसी में राहुल अपने आप को बड़ा समझता और कनक अपने आप को कमजोर समझ कर अपने आत्मसम्मान को कुचलकर समझौता कर लेती।