जिन्दगी का सबक
जिन्दगी का सबक


रात में ज़ोर से बारिश आ रही थी। एक तूफान आकाश में तो एक तूफान मन में चल रहा था। अपने आप को संभालते हुए रवि तेजी से अस्पताल की तरफ भागे जा रहा था।
'' रवि-- रवि, तुम आ गए, कहां हो तुम ? कहते-कहते श्रुति बार - बार बेहोश हो जाती। डॉ. माधवी जोर से चिल्लाती हुई बाहर जाती हैं -'' नर्स--, जल्दी से डॉक्टर पुरोहित को बुला कर लाओ, it's emergency."
पीछे से आवाज़ आती है ,''डॉक्टर, श्रुति कैसी है ?" माधवी पीछे मुड़कर देखती है, तो रवि खड़ा था। डॉक्टर माधवी रवि को सांत्वना देते हुए कहती हैं -'' अभी कुछ कह नहीं सकते, तुमने पैसों का इंतज़ाम कर लिया, क्योंकि डॉक्टर पुरोहित कल ही श्रुति का आपरेशन करना चाहते हैं। " कहते हुए डॉक्टर माधवी चली जाती हैं। रवि कुछ बोले बिना ही वहां से चला गया। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। जहां देखो वहां अंधेरा दिखाई दे रहा था।
आज से एक साल पहले तक रवि बहुत बड़ा Business man था। पैसा मानो जैसे उसके हाथ लगते ही आता था, परन्तु आज वही रवि भिखारियों की तरह उनसे मदद मांग रहा था, जिनकी कभी उसने मदद की थी। पर आज सब उसे बस बहाने दे रहे थे। उसे आज श्रुति की एक - एक बात याद आ रही थी।
'' रवि, तुम जिनकी आज मदद कर रहे हो, वह आगे जाकर कभी यदि तुम्हारे काम ना आए तो---।" रवि मुस्करा कर रह जाता और कहता -''मेरी जान, तुम इतना ना सोचा करो, हमारे पास सब कुछ है तो हमें किसी की मदद की क्या ज़रूरत है। तुम चिन्ता मत किया करो, ok! Good by , darling."
समय बीतता गया। सब कुछ सही था। पर कहते हैं ना, समय का कुछ पता नहीं है, रवि का Business घाटे में चला गया। सब तरफ से हारकर वह अपने खास दोस्त विजय के पास गया था, जिसकी उसने तब मदद की थी, जब खुद रवि डूबा हुआ था। कितना समझाया था श्रुति ने। रवि जैसे ही विजय के घर पहुंचा उसने देखा कि वह सफल बन गया था। उसे एक उम्मीद जगी कि विजय उसकी मदद ज़रुर करेगा।
''अरे ! रवि , तुम कैसे आए? बैठो " विजय बोला। रवि हिचकिचाते हुए बोला कि -''श्रुति की तबीयत बहुत खराब है, उसका आपरेशन होना है, मुझे २,०००,०० रुपए की सख़्त जरूरत है, please! मेरी मदद करो"। ''अरे! यार, तुम भी ना, तुम तो अच्छी तरह से जानते हो, कि Business में कैसा उतार - चढ़ाव आता रहता है, अगर मेरे पास होते तो मैं ज़रूर मदद करता।" विजय ने कहते हुए अपनी पत्नी को 50, 000 का चैक दिया। रवि समझ गया था कि विजय की नियत ठीक नहीं थी। फिर भी उसने दोबारा अपने वह 1,000,00 मांगने की हिम्मत की जो उसने विजय को उधार दिए थे। पर विजय तो उल्टा ही उसे कहने लगा कि-'' तुम मुझे बेईमान समझ रहे हो ? तुमने मदद ही क्यों की थी अगर एहसान दिखाना था। और जरूरी तो नहीं कि तुम मदद करो तो दूसरा भी करे। मेरे पास अभी पैसे नहीं है, जब होंगे तब मैं खुद दे दूँगा।" विजय के शब्द उसे अंदर तक तीर के जैसे चुभ रहे थे।
रवि चुपचाप वहां से चला गया। पर उसे आज श्रुति की कहीं एक-एक बात याद आ रही थी। सोचते हुए बदहवासी में वह कब अस्पताल पहुंच गया, उसे पता ही नहीं चला। अगले दिन सुबह श्रुति का आपरेशन होना था। उसके सामने तो जैसे अंधेरा था। अचानक उसे अपने कंधे पर हाथ का अहसास हुआ , उसने देखा कि श्रुति की खास सहेली अपने पति के साथ उसे देखने आई है। रवि जोर- जोर से रोने लगा। उसके पूछने पर उसे रवि ने सब बातें बता दीं । वह कहने लगी कि -'' श्रुति , तुम्हें कितना समझाती थी, पर तुम तो उसे ही समझा देते थे। पर तुम्हारी गलती की सज़ा श्रुति क्यों भुगते ? हम तुम्हारी मदद करेंगे, पर तुम्हारे लिए नहीं उस श्रुति के लिए जो तुम्हारी ग़लतियों को भोग रही है। रवि तो बस यही सोच रहा था कि शायद उसके अच्छे कर्मों का फल है जो उसे मिल रहा था ।
श्रुति को आपरेशन थियेटर ले जा रहे थे। कुछ समय बाद डॉक्टर पुरोहित ने आकर रवि को कहा कि-'' operation is successful. सब ठीक है, कुछ समय बाद श्रुति को होश आ जाएगा, तब आप मिल सकते हैं।" श्रुति के होश में आ जाने के बाद रवि और उसकी सहेली बहुत खुश हुए।
कुछ समय बाद डॉक्टर ने श्रुति को घर भेज दिया। रवि , श्रुति के साथ जिन्दगी का बहुत बड़ा सबक लेकर नए तरीके से गृह प्रवेश कर रहा था कि मदद अपने आप को कष्ट में रख कर ना करें और जो आपके कठिन समय में साथ दे, उसे कभी ना भूलें ।