Sonam Gupta

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समानता - एक प्राकृतिक अवस्था

समानता - एक प्राकृतिक अवस्था

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यदि हम प्राकृतिक अवस्था कि बात करे तो ज्ञात होता है “ समानता ” यदि मानव प्राकृतिक अवस्था से समान था तो समाज में असमानता का प्रभुत्व कैसे स्थापित हुआ ? एक स्त्री असमानता की बेड़ियो में कैसे जकड़ी गई ? प्रसिद्ध विचारक जॉन स्टुआर्ट मिल अपनी पुरस्तक “ स्त्रियों की पारधीनता ” के अंतर्गत यह तर्क दिया की स्त्री - पुरुष का संबंध मैत्री पर आधारित होना चाहिए। परंतु आज का समाज असमानता का जीता जागता उदाहरण है, समाज मे स्त्रियों को एक ऐसे “ संसाधन " के रूप में देखा जाता है जहा उनकी मृत्यु तक उनका दोहन किया जाता है ! समाज में स्त्रियों को वो स्थान प्राप्त नही हुआ है जहा स्त्रियां पुरुषो के समान मुक्त होकर अपने को स्थापित कर पाए। पितृस्तात्मक वयवस्था का उभार दर्शाता है की समाज में समानता स्थापित कर पाना एक ऐसी अवस्था है जिसको शायद ही प्राप्त किया जा सकता है।

‌भारत में राजा राम मोहन राय, स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा अनेक ऐसे प्रयास किए गए जिनके द्वारा स्त्रियों की स्तिथि को सुधारा जा सके तथा स्त्रीय एक मुक्त जीवन व्यतीत कर सके।

‌स्त्री प्राधिनता का एक मुख्य कारण है स्त्रियों का स्वयं जागरूक न होना। भारत में विवाह के पश्चात स्त्रियों को अपना माता पिता का घर छोड़कर अपने पति के साथ रहना पड़ता है जहा स्त्रियों को उनके मातापिता के संपति से बेदखल कर दिया जाता था, वही पति की मृत्यु के पश्चात स्त्रियों को पति की संपति से भी बेदखल कर दिया करते थे परंतु 2005 में स्त्रियों को अधिकार दिया गया की उनका समान अधिकार होगा पिता की संपति पर, परंतु समस्या यही समापत नही होती है स्त्रियों को सामाजिक दबाव डालकर इन अधिकारों से भी वंचित कर दिया जाता है। जिन स्त्रियों द्वारा पिता की संपति पर अपना समान अधिकार जताया उन स्त्रियों को सामाजिक दबाव का सामना कारण पडा रहा है इसके लिए आवश्यक है की माता पिता स्वयं समानता का भाव उत्पन करे  तथा स्वयं प्रमुख हो उनको अधिकार प्रदान करे। ‌

‌यह तो केवल एक चुनौती थी जिनको स्त्रियों को सामना करना पड़ा एक और जटिल समय है विवाह के पश्चात बलात्कार। भारतीय संस्कृति में पुरुषो को परमेश्वर की संज्ञा दी गई है परंतु क्या कोई परमेश्वर स्त्री मोह में बलात्कार करता है ? या अपना आधिपत्य स्त्रियों के शरीर पर दर्शाता है ? वास्तविकता यह है की आरंभ से ही स्त्रियों को संभोग की वस्तु के रूप में उपयोग किया गया है यदि एक पुरुष परमेश्वर का स्थान रखता है तो स्त्रियां उनकी वास्तविकता का बोधक होती है किसी भी स्त्री के बिना किसी भी पुरुष का जन्म संभव नहीं है। भारतीय समाज मे देखा जा रहा है की स्त्रियों के साथ विवाह के पश्चात संभोग की वस्तु के रूप में उपयोग किया जा रहा है, उनके शरीर को अपने उपयोगिता अनुसार कुचला जाता है, क्या यही संबंध होता है विवाह के पश्चात एक स्त्री पुरुष का ? जहा स्त्रियों को शादी के पश्चात झकझोर दिया जाता हो ! वास्त्त्विकता यह हे की मनुष्य को यह ज्ञान दिया जाए की अर्धनरेश्वर भी स्त्रीपुरुष का एक संतुलन है जो बोध कराता है की स्त्रीपुरूष समान है, स्त्री के बिना एक पुरुष का जीवन संभव नहीं और एक स्त्री का जीवन पुरुष की बिना अधूरा है। ‌

स्त्रियों को शादी के पश्चात अनेक चिन्हों को धारण करना पड़ता है मंगलसूत्र, सिंदूर, चूड़ियां, बिछिया, बिंदी इत्यादि एक विवाहिता स्त्री की पहचान हो जाती है परंतु विवाह के पश्चात एक विवाहित पुरुष की क्या पहचान होगी ? क्या वो अनेक साज स्जाओ से सुशोभित होता है ? आखिर किस प्रकार इस बात का बोध किया जाए की यह पुरुष विवाहित है ! इस प्रकार के प्रश्न कभी कोई समाज नही उठता है इसका मुख्य कारण है स्त्रियों का मस्तिष्क जहा समाज में स्त्रियों को घर के कार्यों तक सीमित कर दिया जाता है वही पुरुष अपना आधिपत्य दर्शाते हुए इन नियमों का पालना करवाता है कि। उनके अनुपस्थिति में कोई अन्य पुरुष से वह अवगत ना हो परंतु एक पुरुष का क्या ? क्या अपनी संगनी से वह यह दावा कर सकता है की वह किसी अन्य स्त्री से अवगत नही हुआ ? वास्तविकता यह है की इन चिन्हों द्वारा स्त्रियों को बेड़ियों में जकड़ा गया है उनके मस्तिष्को को प्रगति का अवसर नही प्रदान

किया गया है जिसके कारण स्त्री स्वयं एक स्त्री की दुश्मन बन बैठी है वह समाज के डर के रूप में अपना प्रभुत्व दर्शाती है तथा स्त्रीत्व का मार्ग अंधकार से सुशोभित हो जाता है

आज समाज में अनेक परिवर्तन हो गए है शहरी स्त्रियों की स्तिथि में उत्थान हुआ है जिसका मुख्य कारण रहा है शिक्षा तथा पुरुष का जागरूक होना साथ ही साथ स्त्रियों का अपने अधिकारों से अवगत होना। अनेक ऐसे पुरुष सामने आए जिन्होंने स्त्रियों को अपने एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में देखा तथा उनको अवसर प्रदान किया ताकि वह अपना विकास भी कर सके, सरकार द्वारा देश की प्रगति पर स्त्री श्रम पर परजोर दिया गया जिसे स्त्रियों को अनेक अवसर प्रदान किया गया तथा पुरुषो के समान अधिकार प्रदान किया गया, परंतु ग्रामीण स्त्रियों की स्तिथि अभी भी समान है उनको वो अवसर नही प्रदान किया जा रहा जिसे वो अपना विकास कर सके यदि उनको कोई पद प्रदान भी किया जाता है तो उसपे पुरुष नेत्रित्व कायम रहता है ! स्त्रियों को वो स्थान नही प्रदान किया जाता जो एक पुरुष को प्रदान किया जाता है, साझ होते ही उन्हें चूल्हा चौका करने के लिए जुटना पड़ता है उनके उनके मुद्रा श्रोत को पुरुष के मुकाबले कम आका जाता है, उनके श्रम को पुरुषत्व प्राप्त नही है

सयुक्त राष्ट्र महिला सद्भावना राजदूत एम्मा वाटसन द्वारा “ पुरुष द्वारा नारी, नारी द्वारा पुरुष ” अभियान के लिए विशेष कार्यकर्म में भाषण दिया गया था अमेरिका के सयुक्त राष्ट्र मुख्यालय “ न्यूयॉर्क ” 20 सितंबर 2014 में, अपने भाषण के दौरान इन्होने इस बात की घोषणा की कि अभी तक ऐसा कोई देश नहीं जो इस बात का दावा करे के नारी पुरुष समान है। इसे जाहिर होता हे की अभी तक ऐसा कोई देश जहा स्त्रियों को समनाता प्राप्त हो इन्होने अपने भाषण के दौरान कहा की स्त्रियों को स्वयं आगे आ अपने अधिकारों का दावा करना होगा तथा पुरुषों को सहयोग केवल इसी के द्वारा समानता स्थापित की जा सकती है।


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