वैश्विक संस्थानों की प्रासंगिक
वैश्विक संस्थानों की प्रासंगिक
वैश्विक महामारी के दौर में अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की भूमिका और भी बढ़ जाती है। विश्व युद्ध के पश्चात अंतरराष्ट्रीय संगठन का निर्माण अत्यधिक महत्वपूर्ण कार्यों में से एक रहा था जिसके निर्माण के पश्चात अनेक वैश्विक समस्या का सामना विश्व ग्राम के सदस्यों ने
मिलकर किया , इन्हीं में से एक वास्तविक व अत्यधिक संवेदनशील समस्या है, कोविड -19 जिसके वैश्विक संक्रमण के परिणाम बीते वर्षों में देखे गए । समय के साथ अनेक देशों ने विकास तो हासिल किया परंतु इसके साथ अनेक समस्या भी अस्तित्व में आएं , इसी आधुनिकता के परिणाम के रूप में माना जा सकता है कोरोना वायरस की उत्पत्ति ।
आज प्रत्येक देश अपने नागरिकों के लिए वे सभी सुविधाएँ चाहता है जिससे महामारी से छुटकारा पा सके इसमें सहयोग G -7 के मध्यम से किया गया , इसके अंतर्गत हर उस छोटे से छोटे देश को सहायता प्रदान किया जा रहा है जो देश वैश्विक संगठन के सहयोगी रहे है । महामारी के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को सुधारा जा सके, बढ़ती गरीबी को कम किया जा सके तथा ILO के अंतर्गत स्थितियों को संभाला का सके । आज प्रत्येक देश इस सभी समस्याओं का सामना कर रहा है। इस महामारी के कारण WHO के अंतर्गत प्रत्येक देश को सुविधाएँ प्रदान करने का प्रयास किया जा रहा है तथा इन संस्थाओं के उपयोगिता समय के साथ बढ़ती ही जा रही है। WTO के माध्यम से प्रत्येक देश मुक्त रूप से व्यापार करने मे सक्षम रहा है जिसका उदाहरण महामारी के समय देखा जा सकता है जिसमें अनेक समान का आयात व निर्यात किया गया। साथ ही साथ अन्य महत्वपूर्ण अंगों की भी भूमिका बढ़ी है जिनका उद्देश्य समाज कल्याण , बढ़ती जनसंख्या , ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन , गरीबी , आतंकवाद , बीमारी जैसे मुद्दों पर सक्षम रूप से कार्य करना है। इन संगठनों ने विश्व को एकता के सूत्र में पिरोने का कार्य करते हुए आपस में बंधुत्व , स्वतंत्र , समानता को बढ़ावा दिया है। जिसके परिणाम स्वरूप कहा जा सकता है की विश्व ग्राम की स्थापना में इन संगठनों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद 1929 में राष्ट्र संघ का गठन किया गया था। राष्ट्र संघ बहुत हद तक प्रभावहीन था और संयुक्त राष्ट्र का उसकी जगह होने का यह बहुत बड़ा लाभ है कि संयुक्त राष्ट्र अपने सदस्य देशों की सेनाओं को शान्ति संभालने के लिए तैनात कर सकता है। संयुक्त राष्ट्र के बारे में विचार पहली बार द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उभरे थे। द्वितीय विश्व युद्ध में विजयी होने वाले देशों ने मिलकर प्रयास किया कि वे इस संस्था की संरचना,सदस्यता आदि के बारे में कुछ निर्णय कर पायें ।
24 अप्रैल 1945 को, द्वितीय विश्वयुद्ध के समाप्त होने के बाद, अमेरिका में अन्तराष्ट्रीय संस्थाओं की संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन हुई और यहाँ सारे 40 उपस्थित देशों ने संयुक्त राष्ट्र संविधा पर हस्ताक्षर किया। पोलैण्ड इस सम्मेलन में उपस्थित तो नहीं था, पर उसके हस्ताक्षर के लिए विशेष स्थान रखा गया था और बाद में पोलैण्ड ने भी हस्ताक्षर कर दिया। सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी देशों के हस्ताक्षर के बाद संयुक्त राष्ट्र अस्तित्व में आया तथा उसके अन्य संगठनों ने विश्व शांति को बनाए रखने में भूमिका निभाई।
यदि देखा जाए तो इन संगठनों की भूमिका बढ़ती ही जा रही है , समय के साथ इन संगठनों ने अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर अनेक कदम उठाए थे , आज पूरा विश्व वैश्विक महामारी से जूझ रहा है इस महामारी से निजात पाने के लिए आवश्यक है की यह संगठन पुनः महत्वपूर्ण कदम उठाए व वैश्विक संगठन होने के नाते अपने दायित्व को समझे अन्य देखा के लिए आवश्यक है की वह इन संगठनों द्वारा सुझाए गए रास्तों को अपनाए ।