समाज की कशमकश
समाज की कशमकश


पाठक जी के घर से बाहर निकलते हुए सुजाता ने कहा, "सही कह रही हो सुषमा, वैदेही ने बिल्कुल ग़लत किया, उसे ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए था। अरे! अब अगर उसका पति कुकर्मी निकला तो इसमें उस बिचारी का क्या दोष.........."
"और वैदेही, वो तो इतनी पढ़ी लिखी भी थी! अगर बात इतनी बिगड़ गई थी कि साथ रहना संभव नहीं था तो तलाक दे देती ना कुणाल को, अपने मम्मी पापा के साथ रहती। आत्म हत्या करने की क्या जरूरत थी! देखी नहीं कैसी हालत हो गई है पाठक जी की, बिचारे की तबीयत तो पहले भी ठीक नहीं रहती थी और ऐसे में वैदेही का चले जाना,........ सुषमा की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि विभा बोल पड़ी, " और नहीं तो क्या! लोग बेटी को इतना पढ़ाते- लिखाते इसलिए हीं हैं क्या कि अगर ससुराल में ना बने या पति सही ना मिले तो आत्महत्या कर ले!"
"नौकरी कर लेती, आकर अपने मम्मी पापा के साथ आकर रहती। कम-से-कम इस बिन बुलाए बुढ़ापे और बीमारी में पाठक जी का सहारा तो बनती। लेकिन आजकल के बच्चों को कौन समझाए! ज़रा सी परेशानी क्या आती है ज़िंदगी में कि आत्महत्या को ही एकमात्र समाधान मान लेते हैं।"
इस वाकए को बीते 7 महीने हो चुके है।
"सुषमा, सुना तुने! अरे वो द्विवेदी जी की बेटी है ना, अरे अपने वकील बाबू की बेटी, प्रियंका। पता है, वो महीने भर से यहीं मायके में ही रह रही हैं। पता नहीं क्या गुल खिला कर आई है ससुराल में, जो इतने दिन हो गए उसके आए हुए और अब तक उसे लेने कोई नहीं आया। कुछ लोग तो कह रहे थे कि उसके पति ने उसे छोड़ दिया है........."
"हां हां, कल ही तो वैदेही की मां मिली थी, वो बता रही थी कि बिचारी हमारी प्रियंका की भी क़िस्मत फूटी निकली। अरे! तुझे मालूम नहीं है ना कुछ इसलिए तू ऐसे बोल रही है, दरसल, उसके पति गौतम का बहुत सारी लड़कियों के साथ अफेयर था। शराब और सिगरेट में तो पहले से ही डूबा रहता था ऊपर से उसकी अय्याशियां भी बहुत बढ़ गई थी। और तो और वो तो किसी लड़की को लेकर नर्सिंग होम भी जाता था, गर्भपात कराने, और वहां के रजिस्टर में उस लड़की का नाम प्रियंका और रिश्ते में पत्नी दर्ज कराता था। वो तो संयोग कहो या दुर्योग कि उसी नर्सिंग होम की एक डाॅक्टर प्रियंका को जानती थी, इस बारी उस डाॅक्टर ने देख लिया गौतम को उसे लड़की के साथ, सो उसने प्रियंका को सबकुछ बता दिया। बिचारी प्रियंका, वो तो पहले से ही अपनी शादी बचाने के लिए काफ़ी मशक्कत कर रही थी, लेकिन इस गर्भपात वाली बात ने बात उसे अंदर तक तोड़ दिया। तभी तो उसने अपने पति को तलाक़ देने का फैसला ले लिया। और करती भी तो क्या वो बिचारी, जब उसके पति को उसके होने या ना होने से फर्क़ हीं नहीं पड़ता है तो ऐसे आदमी के साथ रहकर करती भी क्या! पढ़ी लिखी है, अच्छी नौकरी करती है, किसी पर बोझ बनकर भी नहीं हीं रहेगी। यहां कम से कम अपने मम्मी पापा के पास तो रहेगी।" कहकर सुषमा ने एक लम्बी सांस ली।
इतने में सुजाता बोल पड़ी, "राम जाने क्या हुआ है और किसने किसे छोड़ा है! वैसे भी कोई अपनी दही को खट्टा कहता है भला! और हम तो वही समझेंगे ना जो ये लोग हमें कहेंगे, लेकिन सच क्या है, ये तो प्रियंका ही जानती है या वो लोग ही जानेंगे।"
"हां, और विमला जी (वकील बाबू की पत्नी उर्फ़ प्रियंका की मां) तो बड़े शान से कहती थीं कि वो अपनी बेटियों की पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ती, और प्रियंका को तो उन्होनें पढ़ाई के नाम पर अकेले ही बाहर भी भेज दिया था। सब उसी का नतीजा है, और चढ़ा लें बेटी को सिर पर।"
विभा भी कहां चुप रहने वालों में से थी सो वो भी बोल पड़ी,
"और नहीं तो क्या हमारी भी तो बेटियां हैं, रह रहीं हैं कि नहीं अपने ससुराल में। अरे थोड़ी बहुत अनबन तो हर परिवार में होती है और मर्द जात तो होते हीं ऐसे हैं, थोड़ा बहुत बहक हीं जाते हैं। पर इसका मतलब ये तो नहीं है कि पति को छोड़ कर मायके ही आ जाएं और तलाक़ ले ले। पर आजकल की इन पढ़ी लिखी लड़कियों को सामंजस्य बिठाना भला कौन सिखाए!"
"बिचारे वकील बाबू! उनका इतना नाम है शहर भर में, और प्रियंका ने उनके इतने सालों की कमाई इज़्ज़त मिट्टी में मिला दिया।"
बात समेटते हुए सुजाता ने कहा, "ख़ैर छोड़ो जिनकी बेटी है उन्हें फर्क़ नहीं पड़ता तो हमारा क्या जाता है!"
खिड़की के पास चुपचाप खड़ी प्रियंका के मुंह से इतना ही निकल सका, "वैदेही ने बिल्कुल सही किया था।"