Shuvranshu Sekhar Sahoo

Inspirational Others

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Shuvranshu Sekhar Sahoo

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सितारों से आगे

सितारों से आगे

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कुछ नया करने को लगन और उत्साह हो तो लक्ष्य तक पहुँचने से कोई रोक नहीं सकता। बचपन से ही सितारों की सैर का सपना देखने वाली कल्पना अंतरिक्ष यात्रा के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के बाद चाँद पर उतरना चाहती थी। बचपन से हो उसके मन में अंतरिक्ष यात्री बनने को धुन सवार थी। एक बातचीत में कल्पना ने कहा था-"मैं बचपन से जिस क्षेत्र में जाना चाहती थी, वहाँ पहुँचने के लिए मैंने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया।"


कल्पना चावला का जन्म सन् 1961 में हरियाणा के करनाल शहर में एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। उसके पिता का नाम श्री बनारसी लाल चावला तथा माता का नाम संन्योति था। वह अपने परिवार के चार भाई-बहनों में सबसे छोटी थी घर में सब उसे प्यार से 'मोटू' कहते थे।


परिश्रम करने से कभी हानि नहीं होती, यह उसके परिवार का मूलमंत्र था। कल्पना ने भी इसे आत्मसात किया। कल्पना की प्रारंभिक पढ़ाई-लिखाई टैगोर बाल निकेतन' में हुई।


कल्पना जब आठवीं कक्षा में पहुंची तो उसने इंजीनियर बनने की इच्छा प्रकट की। उसकी माँ ने अपनी बेटी की भावनाओं को समझा और आगे बढ़ने में मदद की। रूढ़ियों को तोड़ने के कल्पना के प्रयास, किसी-न-किसी रूप में, परिवार में विवाद खड़े कर देते थे। अपने गुरुजनों के प्रति कल्पना के मन में जो सम्मान था, उसकी अभिव्यक्ति उसके ही शब्दों में "जो व्यक्ति कुछ करते रहने के लिए उत्साहित तथा तत्पर रहता है, उसी से मुझे प्रोत्साहन और प्रेरणा मिलती है। मेरे अध्यापक जितना परिश्रम अपने पाठ्यक्रम पूरा करने में लगाते हैं, जो अतिरिक्त समय हमारे प्रयोगात्मक कार्य को पूरा करने के लिए देते हैं, तथा छात्रों को नए विचार, नए प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं उन्हें याद कर सोचती हूँ कि उन्हें यह सब करने के लिए कितना धैर्य रखना पड़ता था।"


कल्पना का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण गुण था-उसकी लगन और जुझारू प्रवृत्ति। प्रफुल्ल स्वभाव तथा बढ़ते अनुभव के साथ कल्पना न तो काम करने में आलसी थी और न ही असफलता से पवराने वाली थी। धीरे-धीरे निश्चयपूर्वक युवती कल्पना ने स्त्री-पुरुष के भेदभाव से ऊपर उठकर काम किया तथा कक्षा में अकेली छात्रा होने पर भी उसने अपनी अलग छाप छोड़ी। दृढ़ संकल्प वाली कल्पना अन्य लड़कियों की तरह स्नातक के बाद वैवाहिक संस्कार तथा अच्छी नौकरी के विषय में न सोचकर कुछ अलग सोचती थी। इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम के कठोर एवं व्यस्त समय के बावजूद वह महाविद्यालय की सांस्कृतिक गतिविधियों, खेलकूद आदि में पूरा सहयोग देती थी।


अपनी उच्च शिक्षा के लिए कल्पना ने अमेरिका जाने का मन बना लिया। उसने सदा अपनी महत्वाकांक्षा को मन में संजोए रखा। शैक्षणिक कार्यक्रम में आनंदानुभूति करते हुए उसे अपना ध्येय पूरा करने में आसानी हो गई। उसने 27 नवंबर, 2002 को टेक्सास विश्वविद्यालय में एक समाचार पत्र को बताया, "मुझे कक्षा में जाना और उड़ान क्षेत्र के विषय में सीखने व प्रश्नों के उत्तर पाने में बहुत आनंद आता था।"


अमेरिका पहुँचने पर उसकी पहली भेट लंबे कद के एक अमेरिकी व्यक्ति जीन पिपरे हैरिसन से हुई। कल्पना ने हैरिसन के निवास के निकट ही एक अपार्टमेंट में अपना आवास बनाया इससे विदेशी परिवेश में दलने में कल्पना को कोई कठिनाई नहीं हुई। कक्षा में ईरानी सहपाठी इराज कलखोरण उसका मित्र बना। ईरानी मित्र ने कक्षा के परिवेश तथा उससे उत्पन्न समस्या को भाँप लिया और उसे वहाँ के तौर-तरीके समझाने लगा। कल्पना शर्मीले स्वभाव की होते हुए भी एक अच्छी श्रोता थी।


पहले सत्र में उसने परिवार के वातावरण के बारे में सब कुछ जान लिया था। उसका पूरा सप्ताह कक्षा तथा पुस्तकालय में ही बीतता। वह रोज पुराने भवन में बनी अपनी प्रयोगशाला में जाती थी।वातानुकूलित न होते हुए भी वहाँ वह घंटों प्रयोग करती रहती थी। प्रयोगशाला में उसका साथ देने के लिए तकनीशियन रहता था। कल्पना एक अन्य भारतीय लड़की के साथ रहती थी। चाय की चुस्कियों के बीच वह अपने साथियों से अनेक विषयों पर परिचर्चा करती थी। ऐसे ही क्षणों में एक दिन कल्पना ने अंतरिक्ष में उड़ान भरने की अपनी इच्छा व्यक्त की थी।


जीन पियरे से कल्पना की भेंट धीरे-धीरे मित्रता में बदल गई। विश्वविद्यालय परिसर में ही 'फ्लाइंग क्लब' होने से कल्पना वहाँ प्राय: जाने लगी थी। फ्लाइंग का छात्र होने के साथ-साथ जीन पियरे अच्छा गोताखोर भी था। समय बीतने के साथ-साथ जीन पियरे व कल्पना के बीच संबंध प्रगाढ़ होते गए। एक साल बाद, 1983 में एक सामान्य समारोह में दोनों विवाह सूत्र में बंध गए। यह कल्पना का एक साहसिक कदम था।


मास्टर की डिग्री प्राप्त करने तक कल्पना ने कोलोरेडो जाने का मन बना लिया। मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डॉक्टरेट करने के लिए उसने कोलोरेडो के नगर बॉर्डर के विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया।


सन् 1983 में कल्पना कैलिफोर्निया की 'सिलिकॉन ओनर सेट मैथड्स इन्फो' में उपाध्यक्ष एवं शोध वैज्ञानिक के रूप में जुड़ गई, जिसका दायित्व एयरो-डायनामिक्स के अधिकाधिक प्रयोग की तकनीक तैयार करना और उसे लागू करना था। अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण में कमी के कारण मानव शरीर के सभी अंग स्वतः क्रियाशील होने लगते हैं। कल्पना को उन क्रियाओं का अनुसरण कर उनका अध्ययन करना था। इसमें भी कल्पना व जीन पियरे की टोली सबसे अच्छी रही, जिसने सबको आश्चर्य में डाल दिया।


नासा के अंतरिक्ष अभियान कार्यक्रम में भाग लेने की इच्छा रखने वालों की कमी नहीं थी बल्कि सुयोग्य, सुशिक्षित अभ्यर्थियों का चयन करना एक समस्या थी। ह्यूस्टन के स्थानीय पार्षद माइकल बेरी ने एक आम सभा को संबोधित करते हुए कहा, "नासा द्वारा अंतरिक्ष यात्रा के लिए जाने का गौरव विरले ही लोगों के भाग्य में होता है और कल्पना ने इसे प्राप्त किया।" 6 मार्च, 1995 को कल्पना ने एक-वर्षीय प्रशिक्षण प्रारंभ किया था। वह दस चालकों के दल में सम्मिलित होने वाले नौ अभियान विशेषज्ञों में से एक थी। शीघ्र ही नवंबर 1996 में अंतर: वह सब कुछ समझ गई, जब उसे अभियान विशेषज्ञ तथा रोबोट संचालक का कार्य सौंपा गया। तब तक कल्पना नासा में सामान्यत: के.सी. के नाम से विख्यात हो गई थी। वह नासा द्वारा चुने गए अंतरिक्ष यात्रियों के पंद्रहवें दल के सदस्य के रूप में प्रशिक्षण में सम्मिलित हो गई।


पहली बार अंतरिक्ष यात्रा का स्वप्न 19 नवंबर, 1997 को भारतीय समय के अनुसार लगभग 2 बजे एस.टी.एस.-87 अंतरिक्ष यान के द्वारा पूरा हुआ। इस उड़ान के चालक दल में कुछ पुराने अनुभव एवं कुछ पहली बार सम्मिलित यात्री थे। कल्पना इसमें पहली बार सम्मिलित हो रही थी। इस यात्रा में कल्पना अभियान विशेषज्ञ के तौर पर शामिल हुई थी। कल्पना के लिए यह अनुभव स्वयं में विनम्रता व जागरूकता लिए हुए था कि किस प्रकार पृथ्वी के नैसर्गिक सौंदर्य एवं उसमें उपलब्ध धरोहरों को संजोए रखा जा सकता है।


नासा ने पुनः कल्पना को अंतरिक्ष यात्रा के लिए चुना। जनवरी 1998 में उसे शटल यान के चालक दल का प्रतिनिधि घोषित किया गया और शटल सेशन फ्लाइट क्रू के साज-सामान का उत्तरदायित्व दिया गया। बाद में वह चालक दल प्रणाली तथा आवासीय विभाग की प्रमुख नियुक्त की गई। सन् 2000 में उसे एस.टी.एस.-107 के चालक दल में सम्मिलित किया गया। अंतरिक्ष यान का नाम 'कोलंबिया' रखा गया तथा प्रक्षेपण की तिथि 16 जनवरी, 2003 निश्चित की गई।


एस.टी.एस.-107 अभियान वैज्ञानिक खोज पर केंद्रित था। प्रतिदिन सोलह घंटे से अधिक कार्य करने पर अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी संबंधी वैज्ञानिक अंतरिक्ष-विज्ञान तथा जीव-विज्ञान पर प्रयोग करते रहे। सभी तरह के अनुसंधान तथा विचार-विमर्श के उपरांत वापसी के समय पृथ्वी के वायुमंडल में अंतरिक्ष यान के प्रवेश के समय जिस तरह की भयंकर घटना घटी वह अब इतिहास की बात हो गई। नासा तथा संपूर्ण विश्व के लिए यह एक दर्दनाक घटना थी। कोलंबिया अंतरिक्ष यान पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश करते ही टूटकर बिखर गया और कल्पना सहित उसके छह साथियों की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु से चारों ओर सन्नाटा छा गया। इन सात अंतरिक्ष यात्रियों की आत्मा, जो फरवरी, 2003 की मनहूस सुबह को शून्य में विलीन हुई, सदैव संसार में विद्यमान रहेगी। करनाल से अंतरिक्ष तक की कल्पना की यात्रा सदा हमारे साथ रहेगी।



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