सिंदूर का पुल
सिंदूर का पुल
एक बार की बात है, कई सौ साल पहले, कई कोस दूर एक छोटा सा राज्य था, खुश हाल लोग, हरे भरे खेत, अच्छा खास काम, लोग सुकून से रहते थे, क्यों की उनका राजा भला मानस था। वो कहते हैं ना, अगर नींव मज़बूत हो तो इमारत भी काफी अच्छी रहेगी, वही बात थी।
समय बीतता गया, और समय के साथ राजा की उमर भी ढलती गयी, अब उसकी एक ही चिंता थी। कहने को तो उसके चार हट्टे कट्टे बेटे थे, और चारों पर ही राजा को बहुत ही गर्व, लेकिन राजा थोड़ा से सोच में था, अपना उत्तराधिकारी किसे चुने वो! क्या है ना, वो आधुनिक राजा था, सिर्फ जन्म के कारण बड़े बेटे को राजा बना कर अपने काम से खानापूर्ती करना नहीं चाहता था, वो चाहता था राजा वो बने जो सबसे काबिल हो राजा बनने का।
सोचने विचारने के बाद उसने अपने चारों बेटों को बुलाया और उनको अलग अलग हज़ार मुद्राएं दी, और बोले, "तुम चारों, इसी वक़्त, ये अपनी अपनी मुद्राओं की पोटलियाँ लो, और अभी से एक महीने तक तुम राजकुमार नहीं साधारण इनसान हो। जाओ जहाँ भी जाना हो, अब जब तुम एक महीने बाद वापस आओगे और इस एक हज़ार मुद्राओं के बदले जो भी लाओगे, उस आधार पर मैं अपना उत्तराधिकारी चुनूँगा! आशीर्वाद!"
चल दिए चारों राजकुमार, राज्य के सीमा पर पहुँच कर उन्होंने तय किया की चारों अलग अलग दिशाओं में अकेले अकेले अपनी किस्मत परखेंगे। छोटे राजकुमार थोड़ा घबरा गए, कभी अकेले कहीं निकले नहीं, उन्हें पता ही नहीं था को उन्हें करना क्या है, उनसे उम्मीद क्या किया जा रहा है। उसने अपने बड़े भाइयों से कहा, "मुझे साथ ले चलो, मैं अकेला कहाँ कैसे जा पाऊंगा!" पर बड़े भाइयों ने उसकी सुनी नहीं, राजा तो सबको बनना था, अब उस पर छोटे की ज़िम्मेदारी कौन ले! मना कर दिया और चल दिए अपने अपने रास्ते। रह गया छोटा! क्या ही करता, निकल पड़ा वह भी मन मसोस कर, जिधर रास्ता चला, उधर वह भी। कई दिन बीते, वो चलता रहा, भूख लगती, पेड़ो से फल खाता और नींद आती, उन्हीं पेड़ो के नीचे सो जाता। एक दिन अपनी प्यास बुझाने वो एक गाँव के किनारे बहती नदी के पास पहुँचा और उसे एक उन्मादी भीड़ की आवाज़ आयी। कई लोग गुस्से में पत्थर और लकड़ियां उठा कर नदी के किनारे रेत पर फेंक रहे थे, वह भीड़ को चीरता आगे तक पहुँचा और देखा एक छोटा घड़ियाल का बच्चा लहूलुहान पड़ा है, बेचारा जानवर हिल भी नहीं पा रहा था। छोटे राजकुमार को दया आ गयी, उसने गाँव वालों से मान मुनव्वल करने को कोशिश की वो नहीं माने, आखिरकार इसने अपने पोटली से ढाई सौ मुद्राओं के बदले घड़ियाल की जान मांग ली। पैसों को कौन ही मना करता, गाँव वाले मान गए पर उनकी एक शर्त थी, वह चाहते थे की ये अनजान आदमी पैसों के बदले इस घड़ियाल के बच्चे को भी साथ ले जाए। क्या ही करते राजकुमार, घड़ियाल के गले में एक रस्सी बांधी और चल दिए। जिधर रास्ता चला, उधर वह भी और घड़ियाल भी।
कई दिन बीते और राजकुमार एक गाँव पहुचे, वहाँ उन्हें एक आदमी दिखा जो एक बिल्ली के छोटे बच्चे को लातों लात मारे जा रहा था। राजकुमार से उस बिल्ली की चीख सुनी नहीं गयी, उसने उस कठोर आदमी से पूछा की "वो ऐसे क्यों जल्लाद बना जा रहा है?" इस आदमी ने कहा, "भाई देखो, मैं ठहरा ग़रीब आदमी, ये बिल्ली मेरी बच्ची के हिस्से का दूध पी जाता है, वो भूखी रह जाती है!"
राजकुमार ने सोचा क्या घड़ियाल, क्या बिल्ली और उस आदमी को ढाई सौ मुद्राएं दे कर बिल्ली ख़रीद ली। अब वो और आगे बढ़ा। जिधर रास्ता चला, उधर वह भी। और साथ ही साथ घड़ियाल और बिल्ली भी। इसी तरह चलते चलते उसे एक पिल्ला भी मिला, उस छोटे से बेजुबान को कुछ शैतान बच्चे तंग कर रहे थे, उसकी छोटी सी पुंछ पर पटाखे की लड़ियाँ बांध कर उसे डरा रहे थे। उसने उस कुत्ते को भी ढाई सौ मुद्राएं दे कर ख़रीद लिया और चल पड़ा। जिधर रास्ता चला, उधर वह भी। और साथ साथ एक घड़ियाल, एक बिल्ली और एक पिल्ला।
एक महीने खत्म होने में सिर्फ एक हफ्ता बचा था और राजकुमार ने अब तक कुछ भी नहीं कमाया था, सिवाय इन तीन जानवरों के। आगे उसे सबसे पहले वाला नज़ारा दिखा। एक भीड़ एक सांप के बच्चे को लाठी से कुचले जा रही थी। उसने उन्हें रोकने की कोशिश की, पर लोगों का गुस्सा इतना था की वो रुक ही नहीं रहे थे, छोटे राजकुमार ने पूछा, "क्या इस सांप ने किसी को काटा?" एक आदमी बोला, " ऐसा वैसा सांप नहीं साहब, नाग का बच्चा है ये, सबसे ज़हरीला। अभी नहीं तो कल काट ही लेगा! इससे अच्छा मार ही डालो इसको!" राजकुमार का दिल और मन दोनों ही छोटे हो गए, उसे बाद कष्ट हुआ की एक जानवर के बच्चे को उसके करने की नहीं , उसके होने की सज़ा मिल रही है। किसी तरह समझा बुझा कर, भीड़ से मिन्नतें कर के राजकुमार ने आखिरी ढाई सौ मुद्राएँ उस भीड़ को सौंप कर उस सांप की जान बचा ली।
जब भीड़ छट गयी तब वो सांप छोटे राजकुमार को तरफ मुड़ा और बोला, "मेरी जान बचाने के लिए धन्यवाद!" राजकुमार अकचकाया, भला एक सांप इंसानी भाषा कैसे बोल सकता है! लेकिन वो सांप इसकी परवाह किये बिना लगातार बोलता रहा, "मेरे पीछे आओ, मैं सिर्फ सांप नहीं , मैं उनका युवराज हूँ, आपने मेरी जान बचाई, मेरे पिता आपसे मिलना चाहेंगे। मेरे पीछे आओ!" कह कर सांप रेंगने लगा। अनायास ही छोटे राजकुमार, उस सांप के पीछे खीचते चले गए और वीराने में एक बड़े से बिल के पास आ कर रुके।
राजकुमार थोड़ा हिचकिचाया पर सांप के पीछे अंदर गया। वहाँ नागों के राजा ने बड़े एहसानमंद हो कर उसका स्वगत किया और उसे कई तोहफे देने का वादा किया, लेकिन हमारे छोटे राजकुमार ने कुछ भी लेने से मना कर दिया। नागराजा ऐसे थोड़े न मानते, उन्होंने उसे कहा, "अब जब तुम्हें कुछ नहीं ही चाहिये तो जो अब में दूंगा वो है तो छोटी सी चीज, लेकिन बड़ी मूल्यवान! इसे तुम मना नहीं कर सकते, ये है नागमणि। इसे मना करना, इसका अनादर होगा। जब भी, जो भी तुम्हें चाहिये होगा, प्राकृतिक, अप्राकृतिक, सच, मिथ्या, मानवीय, अमानवीय सब तुम्हें मिलेगा, बस इसको अपने सामने रख कर, इसको पूजा कर, तुम्हें कहना होगा, 'हे नागमणि, अगर तुम असल नाग की देन हो तो मेरी फलाना इच्छा पूरी हो।' बस तुम्हारा काम बन जाएगा।" नागों के राजा ने वो मणि छोटे राजकुमार के हाथ रख कर उसे विदा किया।
राजकुमार अपने तीनों जानवर साथियों के साथ आने राज्य की तरफ चल दिए। थोड़े ही दिनों में अपने महल के सामने आ गए, अपने परिवार से मिलने को खुशी में उसके कदम हवा में थे। जब वो राजसभा पहुँचा तो उसने देखा की उसके तीनों बड़े भी वहां पहले से ही हैं। वो तीनों छोटे राजकुमार के पीछे एक घड़ियाल, एक कुत्ता और एक बिल्ली देख कर ठठा कर हँस पड़े। राजा ने उन्हें घूर कर देखा और अपने छोटे बेटे से बोला, "सबसे बड़े ने हज़ार के दस हज़ार मुद्राएं बनाई, उसके छोटे ने हज़ार के बदले एक राजकुमारी से ब्याह कर हमारे राज्य की ताकत बढ़ाई, और तीसरे ने हज़ार से एक ही महीने में एक छोटा व्यापार बनाया और कई लोगो को रोज़गार दिया, तुम क्या लाये?"
छोटे राजकुमार ने अपने पिता के पैर छू कर अपने एक महीने की कहानी बताई और बोला, "मैंने दोस्त कमाए, ये तीन अबोले जानवर और ये एक नागमणि!" राजा बहुत ही खुश हुआ, उनके सबसे छोटे बेटे ने ये दिखाया के उसके लिए पैसों और ताकत से बढ़ कर मानवता है, और उसकी उसी मानवता ने उसे नागमणि जैसा अमोल तोहफ़ा दिया। राजा ने उसी वक़्त अपना मुकुट छोटे राजकुमार के सर पर रखा और उसे नया राजा घोषित कर दिया।
आप सोच रहे होंगे की कहानी खत्म, पर अभी कहाँ! दिन बीतते गए, नया राजा अपने पिता और बड़े भाइयों से राज्य चलाने का हुनर सीखता रहा और सबकी कसौटियों पर खरा उतरता रहा। नागमणि का इस्तेमाल वो कम से कम करता, और तभी करता जब कोई और चारा बचता ही नहीं था।
एक और राज्य था, हमारे कहानी के इस राज्य से कहीं बड़ा, कहीं ज़्यादा ताकतवर। उसके राजा को सिर्फ एक ही संतान थी, एक बेटी। जैसा घमंडी वह राजा, वैसी ही नकचढ़ी वह राजकुमारी। कहा जाए तो नकचढ़ी से ज़्यादा अल्हड़ थी, अपनी मनमानी करती थी, लेकिन वह अपने पिता से बहुत ज़्यादा डरती थी। उस राजकुमारी को एक लड़के से प्यार था, वो लड़का महल में फकीर के वेश में बेरोकटोक आता जाता रहता था और किसी को कानों कान खबर नहीं होती थी।
धीरे धीरे राजा को अपने राज्य और अपनी बेटी की फिकर हुई, उसने सोचा की वह ऐसी जगह राजकुमारी की शादी करे जो उसके राज्य को भी संभाल सके। उसने अपनी बेटी से पूछा की क्या किया जाए, वो घबरा गयी। वह तो शादी करना चाहती ही नहीं थी। उसने घबराहट में कह दिया, "जो भी अपने महल से मेरे महल तक सिंदूर का पुल बनाएगा, मैं उसी से शादी करूँगी।" राजा खूब हँसा, और उसने सोचा की ये शर्त उतनी बुरी भी नहीं। इधर राजकुमारी भी खुश, भला कोई कभी सिंदूर का पुल बना भी पायेगा!
सारे राज्यों में ऐलान हो गया राजकुमारी की शर्त का। उसमें से हमारे छोटे राजकुमार का राज्य भी था। उसने सोचा की एक तीर के निशाने, अगर उस राज्य की तक इस राज्य में मिल जाए, और राजकुमारी जैसी खूबसूरत पत्नी मिल जाए तो क्या ही हर्जा! उसने निकाली अपनी नागमणि और उसकी पूजा शुरू कर के उसने कहा, "हे नागमणि, अगर तुम असल नाग की देन हो तो मेरे लिए मेरे से महल से ले कर उस राजकुमारी के महल तक एक सिंदूर का पुल बना दो!"
जब अगली सुबह लोग जागे तो उन्होंने वो देखा जो शायद कभी किसी ने न देखा होगा, न ही देखेगा। एक लाल जगमगाता आलीशान सिंदूर का पुल, राजकुमार के घर से लेकर आसमान में बादलों को चीरता हुआ, शहरों, गाँवों, राज्यों को भेदता हुआ सीधे उस राजकुमारी के महल के सामने तक था। किसी को भी अपने आंखों पर यकीन ही नहीं हो रहा था,की ये असंभव काम हो कैसे गया। खैर अब तो हो ही गया था, और शर्त के मुताबिक राजकुमारी के सामने और कोई चारा नहीं था, अपने पिता को सच्चाई बताने के बजाय उसने चुपचाप शादी कर लेना ही सही समझा।
धूमधाम से हुई शादी। बारात उसी सिंदूर के पुल से हो कर गयी और दुल्हन की डोली भी उसी पुल से आयी।
नहीं , कहानी यहाँ भी खत्म नहीं होती!
अब राजकुमारी ने सोचा की सिंदूर का पुल बनाना किसी इंसान का काम तो है नहीं , रातों रात तो बिल्कुल नहीं। पर इसने बना दिया, कोई न कोई बात तो है ज़रूर। उसने अपनी सुंदरता का जादू चलाया और राजकुमार से सच उगलवा ही लिया। राजकुमार ने उससे कहा, "तुम मेरी पत्नी, मेरा आधा, मेरा पूरा। तुमसे क्या छुपाना, जो मेरा वो तुम्हारा। मेरे पास एक नागमणि है।"
राजमकुमार ने अपनी सारी कहानी उसे बता दी, और लगे हाथ ये भी बता दिया की उसे अपनी इच्छाएं पुरी करने के लिए कर्मा क्या है। नई रानी ने पूछा की वो रखता कहाँ है उस नागमणि को, भोले राजकुमार ने बात दिया उसे, "हां तुम्हारा ये जानना ज़रूरी है, क्या पता कल को ज़रूरत पड़ जाए मैं इसे अपने इस पोटली में रखता हूँ!" उसने अपनी पत्नी को वह पोटली दिखा दी।
बस फिर क्या होना था, अगली सुबह जब राजकुमार जगा तो देखा को राजकुमारी ग़ायब। जब अपनी पोटली देखा, तो वो भी खाली। उसने अपना सर पीट लिया। उसके साथ तगड़ा धोखा हुआ। ये बात तो सबको पता चलनी ही थी, चली। राजकुमारी के ताकतवर पिता को भी चली, और तिलमिलाहट में उसने इस राज्य पर हमला कर दिया, हमारे राजकुमार को हरा कर उसे उसी के महल में कैदी बना दिया। राजकुमार के ससुर ने उससे कहा,"अगर कल तक मेरी बेटी का पता नहीं बताया, ये नहीं बताया की तुमने उसके साथ क्या किया, वो ज़िंदा है या उसे मार दिया, तो तुम्हें मैं तुम्हारे उसी सिंदूर के पुल पर सभी के सामने फाँसी दूंगा!"
राजकुमार तो बिना मणि के असहाय था। अपने तीनों जानवर मित्रों के सामने रो रहा था। जब रोते रोते थक गया, और उसकी आँख लग गयी तो कुत्ते में बिल्ली और घड़ियाल की तरफ देखा और कहा, "मुझे पता है की वो लड़की कहाँ गयी। मैने उसे मणि निकालते देखा, उसे पूजते देखा, वो तीन नदियाँ पार कर एक वीराने द्वीप पर है किसी के साथ। सांप ने तो अपने एहसान का बदला उसी वक़्त चुका दिया, अब हमारी बारी है, चलो अब हम राजकुमार की जान बचाते हैं और अपने ऋण से छुटकारा पाते हैं।"
चल दिए तीनों जानवर, घड़ियाल ने अपने पीठ पर बिल्ली और कुत्ते को बिठाया और तीन विशाल नदियों को पार कराया। जब द्वीप पर पहुँचे तो उन्हें कोई नज़र ही न आये। तभी बिल्ली को दिखी एक चुहिया, झपट कर उसने उसे पकड़ा और उसे धमकी दी, "मैं चाहूँ तो इसी वक़्त तुम्हें खा जाऊँ, अगर बचना है तो बता की आजकल में कोई नया इस द्वीप पर आया क्या?"
डरी कांपती चुहिया ने बोला की एक जोड़ा आया और न जाने कैसे ज़मीन के अंदर घर बनाया, अभी भी वही हैं। बिल्ली ने चुहिया को आदेश दिया की सारे चूहों को इकट्ठा करे और बिल बनाये उस जोड़े के घर तक। पलक झपकते ही कई सौ चूहे बिल खोदने लगे, देखते ही देखते एक अच्छा खासा दरवाज़ा सा तैयार हो गया। बिल्ली और कुत्ता घुसे अंदर और देखा की राजकुमारी और एक फकीर से आदमी गहरी नींद में, बेखबर सोये हैं। बिल्ली को तेज़ गुस्सा आया, पर कुत्ते ने उसे रोक लिया और दोनों मिल कर मणि ढूंढने लगे। कहीं नहीं मिला, थक कर उन्होंने सोते जोड़े को देखा और देखा को राजकुमारी का एक गाल काफी बड़ा लग रहा है, समझ गए की उसने मणि अपने मुँह में छुपा रखा है। कुत्ते ने धीरे से उसकी नाक पर अपनी पुंछ को फेरा, और राजकुमारी ज़ोर से छींकी। मणि बाहर! बिल्ली ने मणि अपने मुँह में डाला और दोनों दौड़ कर घड़ियाल के पास आ गए, सुबह होने ही वाली थी और राजकुमार को फाँसी भी लगने ही वाली थी। फटाफट तीनों जानवर वापस महल की ओर आये और दुखी राजकुमार के सामने मणि रख दी।
राजकुमार की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, तीनों के गले लग कर उसने धन्यवाद कहा और महल से बाहर आया, पुल पर चढ़ कर फाँसी वाली जगह पर खड़ा हुआ। सभी इंतज़ार कर रहे थे उसका। उसके ससुर ने गुस्से मे उससे पूछा की वो राजकुमारी का पता बताये, और हमारे छोटे राजकुमार ने कहा की वो ना सिर्फ पता बताएंगे, बल्कि वो राजकुमारी को यहीं ला कर दिखाएंगे। और मणि निकाल कर कहा, "हे नागमणि, अगर तुम असल नाग की देन हो तो राजकुमारी जहाँ भी जिस भी हालत में, जिसके भी साथ है वो इसी वक़्त उसी अवस्था में यहाँ आ जाए।"
उसका इतना कहना था की उस द्वीप से वो पलंग जिस पर राजकुमारी और फकीर सोये हुए थे, वो उड़ता उड़ता सीधे उस सिंदूर के पुल पर सबके सामने आ लगा। राजकुमारी के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था, उसके पिता बगले झांक रहे थे। तुरंत फाँसी का फैसला रद्द किया और छोटे राजकुमार से माफ़ी मांगी साथ ही साथ अपना राज्य भी उसे दे दिया।
राजकुमार ने राजकुमारी से संबंध ख़तम किये और ये सबक सीख लिया की सिंदूर के पुल बना लेना ही किसी भी शादी की शर्त नहीं हो सकती। अपने लिए ऐसी कोई ढूंढा जिसके लिए उसने पुल दिल से दिल तक बनाया। अपने तीन साथियों और अपनी पत्नी के साथ हँसी ख़ुशी अपने दोनों राज्यों को संभाला।
उसकी पहली पत्नी भी फकीर के साथ चली गयी। खुश थी या नहीं, ये तो नहीं पता, लेकिन वो कहते हैं न, अंत भला तो सब भला।