औकात
औकात
आज मुनिया तड़के उठ के बैठ गयी, इतना उमंग था उसमें की उसकी प्यारी नींद भी उसे मोह नहीं पायी। उसने बाबा के तस्वीर की तरफ देखा, आज बाबा बहुत खुश से दिखे उसे।
अम्मा को ढूंढते ढूंढते, चौके तक गयी। खीर की खुशबू से उसके बासी मुँह में पानी भर आया। दौड़ कर अम्मा को उसने पीछे से पकड़ लिया, उनके पसीने से तरबतर पीठ पर अपना गाल टेक दिया और एक लंबी सांस ली। खीर, चूल्हा, और अम्मा की अपनी एक अलग महक से उसका मासूम सा मन भर आया। थकी अम्मा ने उसको हल्का सा धक्का दिया, पर साथ ही साथ उसके माथे पर हाथ भी फेर दिया।
एक लोहे को छोटी बाल्टी ले कर मुनिया खुद ही चापाकल के पास चली गयी। आज तो जल्दी नहा लेगी। उसकी छोटी सी ज़िन्दगी का बड़ा सा दिन है आज तो ! आज अम्मा का काम निबटने के पहले ही तैयार हो जाएगी।
नहा कर उसने अपनी अम्मा का संदूक उसने उथल पुथल कर दिया। पिछली दीवाली वाला चटक गुलाबी घाघरा, उसे अब छोटे होने लगा था, पिडलूओं तक ही आता था, पर ये तो उसकी सबसे सुंदर पोशाक थी। खुशी खुशी पहन लिया। अम्मा की मोती वाली लड़ियां भी। बालों में चमेली के तेल लगा कर अम्मा से चोटी गूँथवाने गयी, लेकिन अम्मा ने डपट दिया।
"ये क्या पेहेन रखा है? जो तू सोच रही है वो ना होने वाला ! बित्ते भर की छोरी और सपने बड़े बड़े। खबरदार जो तूने उधर देखा भी तो !"
मुनिया मानती क्या ! रोज रोज थोड़े आता है ऐसा दिन ! अम्मा कुछ भी बोलती है। ये बड़े भी न, कभी कभी नासमझी वाली बात करते हैं।
भगवान के आगे से थाली ले कर उसने बड़े प्यार से उसमें सब सजाया, एक सुंदर चमकीली राखी, थोड़ा अक्षत, थोड़ा चंदन और थोड़ा गुड़ रख कर, फुदकते फुदकते वो अपनी छोटी चाची के कमरे की तरफ भागी। आज उसके लिए पहला रक्षाबंधन था, उसका अब तक कोई भाई नहीं था ना, अब जब मुन्ना आ गया तो अब उसकी राखी भी आ गयी !
छोटा मुन्ना अपनी मुट्ठी को अपने मुँह में भर कर, अपनी पांवों को हवा में उछाल उछाल कर किलकारियाँ कर रहा था, चाँद से उसके माथे पर चाची ने एक टेढ़ा नजरबट्टू टीका लगा रखा था।
'ऐ लड़की, मेरे बेटे को अपनी मनहूस हाथ से राखी बांधी तो हाथ ऐंठ दूंगी ! पैदा होते ही बाप को खा गई, आई बड़ा मेरे बेटे को राखी बांधने ! पीछे हट। तेरी औकात नहीं मेरे बेटे को राखी बांधने की।"
उसकी राखी की थाली कब झटक कर जमीन पर गिराया गया उसे पता भी न चला। मुन्ना किलकारियां मारता अब भी उसे देख कर अधगीली हँसी हँस रहा था।
अपने घिसटते कदमों से मुनिया चौके में आई। अपनी अम्मा को देख कर उसके गले से ज़ोर की रुलाई फूट पड़ी, बिना शब्द के उसकी अम्मा ने उसे पसीने से सने आँचल में छुपा लिया।
आज छः साल की मुनिया को अपनी औकात का पता चला।