दूध
दूध
रुक्मिणी ने अपने गोद में लेटे हुए मासूम को देखा और मुस्कुरा दिया। इस नन्हे से बालक की वजह से तो उसे खाना नसीब हुआ करेगा....
अभी अभी कुछ दिन पहले ही मां बनी थी वो। चालीस दिन भी न हुए थे, सूतक भी कल ही खतम हुआ। भगवान की अनुकंपा इतनी थी की दूध खूब हुआ उसको। बैठे बैठे उसका आँचल भीग जाता।
सास ने कल ही बताया की हवेली की छोटी मालकिन भी माँ बनी, उसे भी अभी कुछ ही दिन हुए। छोटे राजकुमार हुए थे तो काफी स्वस्थ, लेकिन भूखे रहते, जच्चे को दूध नहीx उतरा। किस्मत देखिये, जिस घर में किसी चीज की कमी नही वहाँ नवजात शिशु भूखा सोता। सास ने फरमान सुनाया की कल से उसे वहीं काम पर जाना है, सूतक खत्म।
अगले ही दिन, रुक्मिणी ने बालों में चमेली के तेल चुपड़ा, एक मोटी धार सिंदूर की लगाई, कंघी कर, अपनी सूती साड़ी को कमर पर बाँधा, अपने बच्चे को एक ओढ़नी से पीठ पर टांगा, और चल दी।
हवेली में हुकुम सुना दिया गया, उसका एक ही काम, राजकुमार रोने न पाए, उनका पेट भरा रहना चाहए। रुक्मिणी के दूध में कमी न आये, उसे हर सुबह मेथी और मेवे के लड्डू दिए जाएंगे, और महीने के आखिर में तीन हजार रुपये।
रुक्मिणी ने अपने गोद में लेटे हुए मासूम को देखा और मुस्कुरा दिया। इस नन्हे से बालक की वजह से तो उसे खाना नसीब हुआ करेगा। उसे उसने जैसे ही अपने सीने से लगाया, उसे दूध ही न आये ! ऐसे में तो राजकुमार भूखे रहेंगे, रोएंगे, उसकी पगार का क्या होगा ? उसका घर कैसे चलेगा ? उसकी सास, उसका पति क्या बोलेगा ?
तभी गुदड़ी पर लेटा उसका मुन्ना रो पड़ा, शायद वह भी भूखा था। बच्चे की रुलाई से उसकी दूध की धार फूट पड़ी। राजकुमार शांत हुए, उनकी भूख शांत हुई, लेकिन रुक्मिणी के मन को कौन शांत करे।
बच्चा उसका, दूध उसकी, दूध पर पहला नाम किसी और का। बच्चा उसका, आंसू उसके, आंसू के कारण फूट पड़ा दूध किसी और का। आज से उसकी छाती के दूध पर पहला हक उसके बच्चे का नहीं, पेट क्या न कराये।
