श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार देश में ही नहीं पूरे विश्व में धूमधाम से मनाया जाता है। श्री कृष्णा के अजीबो ग़रीब कारनामों ने सबको अपने प्रेम में झक झोरकर रख दिया है। एक ही कृष्ण हुआ जिसने पूरे विश्व को अपने आगोश में ले कर ज्ञान का अमृत पिलाया, कहते हैं श्रीकृष्ण के एक एक शब्दों का अर्थ बड़े-बड़े ग्रंथों में परिवर्तित हुआ है। और इस एक ग्रंथ को धर्मग्रंथ की मान्यता मिली है। इसमे ज्ञान का अथाह सागर समाया है ऐसे कृष्णा में कुछ तो बात होगी, लाखों की संख्या में संतों ने इसे पठनिय वंदनीय बताया है, दीवानगी की हद तक कृष्णा प्रेम में पागल हुए है।
श्री कृष्ण का जन्म द्वापर युग में भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि रोहिणी नक्षत्रपर मथुरा नगरी में भरी बरसात में रात 12:00 बजे हुआ था।यमुना जी से उस पार वृंदावन में जाते वक्त यमुना जी से होकर गुजरना पड़ा यमुना जी के पानी में पाँव रखा यमुना जी काफी सहज थी लेकिन जैसे ही वासुदेव जी ने बालकृष्ण को अपने सर पर टोकरी में रखा था तब यमुना जी तेज गती से उफनकर बालकृष्ण के निकट आकर स्पर्श करके लौट गई। यह उल्लेखनिय बात है ।
ऐसी क्या बात थी क्रिष्णा में जो ब्रह्मांड के धरती,अंबर, सूरज, चाँद,सितारे ,कृष्ण को एक नजर देखने के लिए लिए लालायित रहते थे। सागर,सरिता,झरने पहाड़ी, गुफाएं, कंदराए सभी को कृष्णजी की एक एक झलक का इंतजार होता था, वृक्ष,पेड़,फूलों को ,जानवर हो या पशु पक्षी सभी को गोपाल कृष्ण से अप्रतिम लगाव तथा प्रेम था। मनुष्य जाती मे संतों की साहित्यकारों की गुजरिया सभी की दुनिया कृष्ण प्रेम में शुरू होती है। गीतों में भजनों में कीर्तन में पूरी तरह विलीन होकर रच बस गए हैं। यह बालकृष्ण की जादूगरी जगत की अनहोनी आश्चर्यचकित होने वाली घटनाएँ थी। जो देखता बस वही मंत्रमुग्ध होकर रह जाता कृष्णा में सम्मोहन शक्ति का प्रखर तेज था या कुछ और शक्ति थी सचमुच मनुष्य की सुदबुद ही खो जाती थी ऐसे श्रीकृष्ण को बाहर नहीं तो दिल में पनाह मिलती है। यह बाल गोपाल अंतरंग में झरने की तरह झर झरकर आनंदोत्सव में परावर्तित करता है। हमे हमारे घर में बालकों में क्रिष्णा दिखाई देता है।
श्रीकृष्ण एक अवतारी पुरुष थे उन्होंने अपने कार्य से दुनिया को दिखा दिया कि एक पुरुष धरती पर जन्म लेकर ईश्वरीय शक्ति कैसे प्राप्त कर परिपूर्ण हो सकता है और यह मनुष्य अतुलित बलशाली तथा अपार गुणों का खजाना है। हम प्रबुद्ध मानव नहीं समझ पाते हैं। यह सब हमारे मानव के लिए ही तो किया है संसार के अनंत महासागर में डूबना तैरना सिखाया है। उनकी हर लहज़े में अक्षय साधना छिपी हुई है और कितने लोगों ने कृष्ण प्रेम में अपना संसार त्याग दिया है। जटिल से जटिल प्रश्नों का उत्तर आपको श्री भगवत गीताजी में मिलता है।
हम श्रीकृष्ण के चरित्र को दृष्टि से ना देखकर मन की आंखों से ज़रूर देखें श्री कृष्ण के शरीर के हर एक अंग को दिव्य लक्षण का एहसास होगा कृष्णा की बाँसुरी ,गले की वैजयंती माला, पितांबर ,मुकुट और मोर पंख हर एक चीज की अलग अलग कहानी है। इसे हम शब्दों में बखान नहीं कर सकते।श्री बाल गोपाल ने सारे विश्व को अपनी अगाध लीला से मुग्ध मोहित कर अथाह लीला का परिचय दिया है।
श्री कृष्ण का नाता सभी से रहा है चाहे वह ग़रीब हो या अमीर, पापी हो या पुण्य वान ,क्रोधी हो या कोमल ब्रह्मचारी हो या भोगी हो, रिश्तेदार हो या दुश्मन हो, व्यापारी हो या व्यभिचारी हो समाज सेवा में सबसे निराले और सबसे आगे जब जब जनता पर मुसीबत आई उन्होंने मदत करने में देर नही की करते हुए तुरंत उस आपत्तीका विनाश किया और अपने जनता को सकुशल बचाया।इसलिए वह युगपुरुष परावर्ती राजा कहलवाया।
जब कालिया नाग से सब डरे हुए थे तभी छोटे से बालक क्रिष्णा ने उसे मार गिराया था। कहते हैं जब इंद्र की कुदृष्टि से पूरा वृंदावन धाम जलमग्न हुआ था तब गोवर्धन पर्वत अपने उंगली पर उठाकर उसके नीचे सभी परिवार समाज को सुरक्षित किया था। श्री कृष्णा अनंत शक्ति का एक जीता जागता अद्वितीय,करिश्मा था। श्री कृष्णा जैसा ना कोई हुआ ना कभी होगा।
जब अनेक राक्षसों का उपद्रव जब हुआ तब श्री कृष्णा नेजनता को तात्काल बचाया। भरी सभा मे द्रोपदी की लाज बचाई ग़रीब सुदामा को गले लगाया।कंस मामा के अत्याचार और दुराचार को मिटाया।
राधा का तो वह शाम कहलाया, मीरा का वह नटवर नागर ,ग्वालों का गिरिधर गोपाल , कहलाया यशोदा का कान्हा, नंदका नंदलाला यह साधारण दिखने वाला बालक सभी के दिल में ह्रदय में जा बैठा ,5 से 6 हजार वर्षों बाद भी छोटे से बड़े तक आज भी वैसे ही याद करते हैं जैसे उस युग में चाहते थे और आज भी करोड़ों के तादाद में मनुष्यों ने अपने सांसों में बसा रखा है।खाते, पीते , सोते बैठते,बोलते जहां देखो वहां कृष्णा का सुमिरन करते है। है ना कमाल की बात कितनी अजीबो ग़रीब दास्तान है इस कृष्ण नाम की , कितनी श्रद्धा ,भक्ति समाई है इतनी ज्यादा लोकप्रियता आजतक किसी को भी नहीं मिली होगी।
कहते हैं जब बाल कृष्ण अपने छोटे से बालरूप में बहुत नटखट थे। सब को लुभाते थे। सबसे ज्यादा राधा के करीब होने की वजह से बाकी गुजरिया जलन की शिकार थी। मगर वह भी कृष्ण को बहुत ज्यादा प्यार करती थी।आज समाज में कृष्ण लीला को विभस्य रूप दिखा कर गुमराह किया जा रहा है। छोटे से कान्हा जब बड़ी युवती राधा के साथ रास रचाते,खेलते प्यार करते वह पवित्र निर्मल भाव था वहां वासना नही थी।लेकिन यह बात हम मनुष्य नहीं समझ पाते और तरह-तरह की चित्रों में, नाटकों में या फिल्मोंमें लव स्टोरी ऐसे दिखाते हैं की आज की जनता वही सच मानकर वैसा ही करना चाहती है यह बेहद जिल्लत वाली बात है।
कोमल भावनाओं से परिपूर्ण कृष्ण का हर एक कार्यक्षेत्र में तालमेल होता था वह कोई भी क्षेत्र हो का हर दिन नया संघर्ष किया। अतुलित बलशाली कंस को कृष्णाने अपने चतुराई से धराशाई कर पाप का विनाश करने का सामर्थ्य दिखाया था। महाभारत में कौरव पांडवों के युद्ध में कुरुक्षेत्र में अर्जुन के सारथी बने कभी अहंकार नही किया कभी किसी का अहित नही किया निर्भय बन सारे संसार पर छाए रहे। जीवात्मा को शांती भरा जीवन दिया था।
सम्मान प्रतिष्ठा या किसी बात का गर्व उन्हें नही था।सदा , निरंकारी बने रहे।धर्म युद्ध के बीच कई प्रकार दुश्मनों के कटु वचन सुन कर भी अनदेखा किया, समग्र निष्ठा को लेकर ज्ञान के पथ पर चलकर नीति नियम, धर्माचरण सिखाया। तभी परमात्मा कहलाए। उन्होंने स्वयं अपने जीवन के हर छवी को उसकी शक्ती के निर्विकार रूप के साथ स्वीकार किया तथा मनुष्य को सर्वधर्म सम भाव से जीने की राह दिखाई। दुष्ट आत्माओं से मुक्त किया और अर्जुन का सारथ्य कर कर मानवता को सन्मार्ग दिखाया।