शिल्पकार
शिल्पकार
एक बार एक शिल्पकार रास्ते से गुजर रहा था, उसने देखा एक संगमरमर के पत्थर की दुकान के पास एक बड़ा संगमरमर का पत्थर पड़ा हुआ देखा ।
दुकानदार किसी से कह रहा था " अरे इस पत्थर को कोई उठा भी नही ले जाता मुसीबत हो गया है,।
यह सुन उस शिल्पकार ने दुकानदार से पूछा कि और सब पत्थर सम्भाल के भीतर रखे गए हैं।तो इस पत्थर को बाहर क्यों डाला है ??
दुकानदार ने कहा ये पत्थर बेकार है। इसे कोई शिल्पकार खरीदने को तैयार ही नहीं है। आपकी इसमें उत्सुकता है ??
शिल्पकार कहता है, " हर पत्थर में मेरी उत्सुकता है।
यह सुन दुकानदार ने कहा, "आप इसको मुफ्त ले जाएँ। ये मुसीबत टले यहाँ से तो जगह खाली हो जाए,बस इतना ही काफी है कि ये टल जाए यहाँ से। ये पत्थर आज दस वर्ष से यहाँ पड़ा है। कोई लेनदार ही नहीं मिलता। आप ले जाओ एक भी पैसे देने की जरूरत नहीं है। अगर आप चाहो तो आपके घर तक पहुँचवाने का काम भी मैं कर देता हूँ।
कुछ वर्ष बाद शिल्पकार ने उस पत्थर के दुकानदार को अपने घर आमंत्रित किया उस से कहा, " मैंने एक मूर्ति बनाई है। तुम्हें दिखाना चाहूँगा।
दुकानदार तो उस पत्थर की बात भूल ही गया था।
शिल्पकार उसे एक मूर्ति दिखाता है, मूर्ति देख के दुकानदार तो दंग रह गया ऐसी मूर्ति शायद कभी बनाई नहीं गई थी। और ना ही उसने देखा था। भगवान श्री कृष्ण का बाल रूप बाल गोपाल उस शिल्पकार ने तराशा था। मईया यशोदा श्री कृष्ण को गोद में खिला रही हैं। इतनी जीवंत कि उसे भरोसा नहीं आया।
दुकानदार ने आश्चर्य से कहा ये पत्थर तुम कहाँ से लाए ? इतना अद्भुत पत्थर तुम्हें कहाँ मिला !?
उसकी बात सुन शिल्पकार हँसने लगा उसने कहा " भाई ये वही पत्थर है। जो तुमने व्यर्थ समझ कर दुकान के बाहर फेंक दिया था और मुझे मुफ्त में दे दिया था। इतना ही नहीं। मेरे घर तक पहुँचवा दिया था।
यह वही पत्थर है ।"
दुकानदार को तो अपने कानो पर भरोसा ही नहीं आया।
उसने कहा "तुम मजाक करते हो। उसको तो कोई लेने को भी तैयार नहीं था। दो पैसा देने को कोई तैयार नहीं था। तुमने उस पत्थर को इतना महिमा रूप, इतना लावण्य दे दिया। इसे जीवंत कर दिया!:तुम्हें पता कैसे चला कि इस पत्थर से इतनी सुन्दर प्रतिमा बन सकता है ??
उस शिल्पकार ने कहा " उसके लिए आँखें चाहिए, साधारण नहीं पत्थरों के भीतर देखने वाली आँख चाहिए,।
मैंने कुछ किया नहीं है। मैं जब रास्ते से निकला था। इस पत्थर के भीतर से भगवान ने मुझे पुकारा। उनकी आवाज़ सुनके ही मैं इस पत्थर को ले आया। मैंने कुछ किया नहीं है, सिर्फ भगवान के आस-पास जो व्यर्थ के पत्थर थे। वो छाँट दिए हैं। भगवान प्रगट हो गए हैं।
अधिकतर लोगों के जीवन भी उसी पत्थर की तरह रह जाते हैं। दो कौड़ी उनका मूल्य होता है। मगर वो तुम्हारे ही कारण। तुमने कभी इसके बारे में सोचा ही नहीं। तुमने कभी छैनी नहीं उठाई। तुमने कभी अपने को गढ़ा नहीं। तुमने कभी इसकी फिकर न की कि ये मेरा जीवन जो अभी अनगढ़ पत्थर है एक सुन्दर मूर्ति बन सकती है। इसके भीतर छिपा हुआ भगवान प्रगट हो सकता है। इसके भीतर छिपा हुआ ईश्वर प्रगट हो सकता है।
हर इंसान परमात्मा को अपने भीतर लिए बैठा है। बस थोड़े से पत्थर छाँटने हैं। थोड़ी छैनी उठानी है। उस छैनी उठाने का नाम ही भक्ति है और भक्ति में ही वो शक्ति है जो इंसान को एक सुंदर रूप दे सकता है।
