सहारा प्यार का

सहारा प्यार का

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कहते है कभी कभी इंसान को खुद ही नहीं पता होता वो क्या कर रहा है, क्यों कर रहा है किसके साथ कर रहा है। एक मासुम के सिने में इतना दर्द ह़ोगा मैंने सोचा भी नहीं था।

एक बारह साल की बच्ची जो हमेशा मुस्कान लिए आती थी और इस्तरी के कपड़ें लेकर चली जाती थी। एक दिन उसकी ये मुस्कान हमेशा के लिए खामोश हो जाएगी सोचा नहीं था।

रोज वो आती उसका नाम प्रियंका था। हमेशा हँसती आती"दीदी कपड़ें हैं क्या"बहुत मिठी आवाज थी उसकी ! तीन चार दिन हो गए थे वो नहीं आई ! मैंने सोचा शायद वो बिमार होगी ! मैंने फोन किया तो उसकी मां ने फोन उठाया और मेरी आवाज सुनते ही वो रोने लगी।

दीदी वो अब कभी नहीं आएगी ! "हमसब अब गांव जा रहें और कभी वापस नहीं आएंगे दीदी"। क्यो ? मैंने पुछा। दीदी नहीं बता सकती बस शाम को पैसे लेने आऊगीं। मैंने फोन रख दिया ! पर मन बहुत बैचेन रहा क्या बात हो गई ? जो प्रियंका कभी नहीं आएंगी ?

किसी तरह शाम हुई और प्रियंका की मां आई। क्या हुआ बता तो ! मैंने दरवाजा बंद किया उसे पुछा क्यों जा रही तु ? ऐसा क्या हो गया। उसने जो कहा मैं दंग रह गई सुनकर।

दीदी क्या बताऊं.. चार दिन पहले जब वो कपड़ें लेने आई तो थोड़ा शाम हो गई थी ! और सबके घर से लेते लेते आठ बज गए ! आखिरी में एक घर में गई तो,..दीदी क्या बोलूं उसके साथ जो हुआ उसकी तो जिंदगी बरबाद हो गई। मैं सांस रोके सब सुन रही थी।

दीदी जब वो घर पे गई तो दरवाजा खुला था उसने पुछा "भैया कपड़ें हैं क्या"। हाँ अंदर रखा है,बांंधकर ले ले। दीदी मेरी बेटी जैसे ही कपड़ें लेने अंदर गई उसने दरवाजा बंद कर दिया ! और उसकी जिंदगी बरबाद कर दी। वो कहीं की नहीं रही दीदी।

क्या ? हाँ दीदी वो रोते घर आई जब हम सब वहाँ गए तो वो भाग गया था। "तुने लड़कों के पास उसे क्यों भेजा कपड़ें लेने"तुझे नहीं पता जमाना खराब है ! मैंने उसे डाँटा। नहीं दीदी वहाँ तो सब लोग रहतें थे ! उस दिन कोई नहीं था ! सब गांव चले गए थे।

प्रियंका कैसी है ? मैंने पुछा । कैसी होगी दीदी जिसकी जिंदगी बरबाद हो गई वो क्या रहेगी ठीक । चार दिन से उसने कुछ खाया ही नहीं है। आजु -बाजू वाले को तो आप जानती ही हो नमक छीड़कना अच्छे से आता है। इस लिये अब गांव जा रही हूँ।

यहाँँ न तो वो रह पाएगी न हम सब। गांव जाकर सब भुल जाएगी धीरे -धीरे। वो तो चली गईं पैसे लेकर। पर मैं उस रात नहीं सो पायी। बार बार उस मासूम बच्ची का चेहरा आँँखो के सामने घुम रहा था। उस बच्ची का क्या कसूर था ? क्या गांव जाकर वो भुल जाएगी ? नहीं ये जख्म उसे हमेशा याद रहेगा।

रात को मैं उससे मिलने गई,पर वो तो पहचान में ही नहीं आयी। कितना हँसने वाली वो बच्ची चुप चाप कोने में बैठी थी। मुझे देखते ही वो रो पड़ी। मैं क्या बोलती उससे और क्या समझाती कुछ था ही नहीं बोलने को। थोड़ी देर बाद मैं घर तो आ गई लेकिन मन वहीं छोड़ आई थी।

कैसी हो गई थी, इन चार दिनों में। जब वो चार साल की थी तभी से देख रही थी। कितना दर्द वो झेलेगी, तन का तो मिट जाएगा,पर मन का क्या वो भुल पाएगी ? पाप करनेवाले पाप करके भाग गए और दर्द उम्रभर बेचारी ये बच्ची सहेगी।

इतना हँसता चेहरा पल भर में हमेशा के लिए खामोश हो गया, उसकी मासुमियत हमेशा के लिए खो गई।

मुझे कुछ करना ही होगा कुछ न कुछ सोचना होगा मैं उसे इस हाल में नहीं छोड़ सकती। क्या करूं....ओह बहुत मुश्किल है ऐसे लोगों को समाज में इज्जत से रहना लोग जिने नहीं देते आसानी से। बार बार घाव कुरेदते रहेंगे। मैं ऐसे हाल में छोड़ भी नहीं सकती उसे। प्रियंका को मैं अगर अपने पास रख लूं तो हाँ ये सही रहेगा। बच्ची को नयी जिंदगी मिल जाएगी और मुझे एक साथी भी। हाँ सचमुच मैं एक कदम बढ़ाकर इसे आगे जीने का रास्ता दिखा सकती हूँ । आँ मुझे आगे बढ़ना होगा मैं इसे अपने पास रख कर पढ़ाने में मदद भी कर दुंगी और ये यहां बिजी भेजती रहेगी सब धीरे धीरे ठीक हो जाएगा। हाँ कल ही उसकी माँ से बात करती हूँ वो जरूर राजी हो जाएगी। मेरे एक कदम से वो उँचाई पर जा सकती है नयी जींदगी मिल जाएगी ओह सुखद अनुभूति मेरे लिए। कल का सवेरा प्रियंका के लिए नया होगा नयी मंजिल की तरफ बढ़ने की शुरूआत। सहारा प्यार का पाकर वो शायद अपनेआप को आगे बढ़ाकर नयी राहें तलाश ही ले। कोशिश मैं करती रहूंगी। हाँ उसे मंजिल तलाशना ही होगा घुट घुटकर नहीं जीने दूंगी। गलती जिसने की वो जाने इसे सजा नहीं मिलेगी। ये मेरा वादा है।


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