शादी मे दुल्हन से प्यार
शादी मे दुल्हन से प्यार
राज एकदम मस्तमौला, शरारती और काफी स्मार्ट 17-18 साल का नौजवान, जब एक शादी में जाता है तो उसे दुल्हन से ही प्यार हो जाता है। और हो भी क्यों न वो नई नवेली 19 साल की दुल्हन केवल शादी के जोड़े में ही नहीं बल्कि असल में दुल्हन थी, शायद उसे शादी के मायने पता नहीं थे पर परीवार के दबाव में वो शादी के मंडप तक तो पहुंच चुकी थी पर केवल शारीरीक रूप से, शायद उसकी मनःस्थिती इस शादी से इंकार करने की थी।
जयमाल का माहौल था। दूल्हे के सेहरे से कैमरे के लाईट्स रिफ्लेक्ट कर रहे थे और वहीं दुल्हन के चेहरे के भाव जैसे भोर की कली जब शाम तक मुरझा जाती है उस तरह के प्रतीत हो रहे थे। दूल्हे और दुल्हन के पीछे पंगत मे खड़े होकर कुछ रिश्तेदार एक हाथ से पेट सहलाते और दूसरे को दूल्हे और दुल्हन के सिर के ऊपर रख आशीर्वाद देने की रस्म निभा रहे थे कि दीक्षा की नजर उसके सामने, आंखों मे डूबा देने वाला संमदर लिए, खड़े एक लड़के पर पड़ी, जो बेहद प्यार से अपने नीचे के होंठ को अपने दातों से काटते हूए ऊपर के होंठ से छिपाते, उसे अपनी गाढ़ी आंखों की पुतलियों से निहार रहा था।
मानों जैसे चाँद को आश्चर्य भरी नजरों से कोई 4-5 साल का बच्चा अपनी छत से घूर रहा हो। दीक्षा को असहज पाते ही राज एकाएक अपनी नजरों का ढलान अपने शर्ट के तीसरी बटन की ओर पाया। अब अगले कुछ घंटो तक दीक्षा की नजरें राज को दूर तक तलाश रही थी की थोड़ी देर में जयमाल की प्रक्रिया समाप्त हो गई। राज एक जिद्दी लड़का भी था, ये बात तब सिद्ध हो जाती है, जब दीक्षा कमरें मे कुछ मिनटों के लिए अकेली थी। राज उसके कमरे मे घुस जाता है और ये कहते हुए की 'दिल आ गया आप पर'...टीसू पेपर का एक टुकड़ा कमरे में छोड़कर खुद भी कमरा, शादी का लाॅन और दीक्षा के माथे पर आश्चर्य की एक पतली रेखा छोड़ जाता है।
कुछ दिनों बाद जब दीक्षा अपने ससुराल में ठीक तरीके से खुद को सम्मिलित कर लेती है तो उसके जेहन में राज का ख्याल आता है। यूँ तो दीक्षा अपनी शादी की रात से अब तक राज की हरकतों को अपनी यादों की पटल से मिटा नहीं पाई थी और ना ही उस टीसू पेपर पर लिखे मोबाइल नम्बर को।
'मुझे पुरी उम्मीद थी की आपका काॅल आयेगा ही (ही पर जोर देकर) पर इतने वक्त बाद इसका अंदाजा नहीं था' राज, दीक्षा का फोन उठाकर अंजान लड़की के लफ़्ज सुनते ही।
आपका नाम क्या है....? दीक्षा पूछती है।
राज, राज यादव और आपका...? वैसे मैं जानता हूँ, फिर भी आपसे सुनना चाहता हूँ...? राज अपना नाम बताते हुए।
और क्या जानते हैं आप मेरे बारे में....,
सब कुछ। राज दीक्षा की बात काटते हुए।
सब कुछ जैसे..?
जैसे की आपका नाम दीक्षा है, आपका घर दुर्गापुर मे हैं और शादी पी.एस.सी. बाजार में हुई है, आपके हसबैंड का नाम 'राजा' है जो की गाँव के रिश्ते से मेरे मुहबोले दूर (दूर पर जोर देकर) के मामा लगते हैं, पर उम्र में मुझसे 3-4 साल ही बड़े हैं....
इस लिहाज से तो मैं आपकी मामी हुई ? इस बार दीक्षा झट से राज की बात काटते हुए।
जी नहीं, ये सिर्फ मान्यताएँ है और वैसे भी वो मेरे मामा नहीं है, गाँव के किसी रिश्ते से गाँव के सारे लड़के उन्हें मामा कहते हैं।
जो भी हो।
एक बात कहनी थी आपसे..? राज दीक्षा से।
हाँ कहिए..?
आप बहुत खूबसूरत है।
थैंक्यू
योर् वेलकम
ओह्के मैं जा रही हूँ।
अरे इतनी जल्दी....? (आशा भरे लफ़्जो में)
हाँ और अब दुबारा काॅल भी नही करूँगी।
अरे ऐसा कैसे....(राज की बात खत्म होने से पहले ही फोन कट जाता है)
निःसंदेह दीक्षा का फिर से काॅल आता है, राज और दीक्षा एक हो जाते हैं पर दीक्षा अपने पति, बच्चे और परीवार से दूर न हो सकी। न चाहते हुए बचपन और जवानी के बीच ही परीवार के दबाव में दीक्षा शादी तो कर ली पर अपने बचपन और जवानी के आनंद को ठीक ढंग से न भोग पाई। शायद इसिलिए, दीक्षा आज भी राज के साथ ज्यादा खुश रहती है अपने पति की तुलना में। कुछ लोग गलत भी ठहराते शादी के बाद भी किसी और से प्यार करने को, पर इसमे दीक्षा की क्या गलती है उसे तो वक्त ही नहीं दिया गया प्यार को समझने के लिए और जब सही वक्त आया तो वो उसकी शादी की रात थी।
ये थी राज और दीक्षा की पहली मोहब्बत जो अब भी बरकरार है, पर सिर्फ दिली मोहब्बत तक क्योंकि दोनों मजबूर है।