लव आजकल
लव आजकल
"यार सामने वाली लड़की लाइन देती है मुझे शायद...!"
"क्या बात कर रहा है भाई? क्या सच में?"
सोहेल के ऐसा कहने पर हर्ष ने जानबूझकर सोहेल की मस्ती करते हुए उसकी टांग खिंचाई की और हर्ष की नवनिर्मित क्रॉकरी की दुकान पर बैठे उसके लफंगे दोस्तों के कंठ से हंसी का बिगुल बज उठा।
इन दिनों कौशिक, राहुल, सोहेल और कई बार प्रकाश भी हर्ष की दुकान पर घंटों बैठकर मस्ती किया करते थे। सामने की किराना स्टोर पर एक बूढ़ा आदमी अपने जबड़ों को बिना कुछ चबाए ही तकलीफ़ देता बैठा रहता था। उस किराने स्टोर के ऊपर वाले तल पर एक खिड़की थी जिसमे दो जवान लड़कियां अक्सर दिख जाया करती थी खिड़की से बाहर झांकते हुए। और सामने अक्सर बैठे हर्ष और उसकी मंडली को लगता था कि उन दोनों बहनों में से छोटी वाली उन्ही को देख रही है या फ़िर उनकी भाषा में कहें तो लाइन मार रही थी। अक्सर इस मामले में कौशिक और प्रकाश ख़ामोश रहते थे। क्यूंकि दोनों जानते थे कि चक्कर कुछ और ही है। हर्ष और उसकी मंडली को हर रोज़ ये भ्रम होता था कि यार मामला सेट है, और हर रोज वो एक दूसरे की खिंचाई करते थे और खिंचाई करने में कौशिक सबसे आगे था।
"वहां अपने घर के बारजे से तुम मुझे ही देखा करती थी ना..?"
"पता हैं तो फ़िर पूछ क्यों रहे हों?"
(कौशिक के सवाल का जवाब प्रिया सवाल में ही देती है।)
"तुम्हें पता है मेरे सारे दोस्तों को लगता है कि तुम उन्हें देखती हो।"
"हाँ उन्हे सही लगता है बस जाकर उनकी एक कन्फ्यूजन दूर कर देना की उनके डर्टी लुक देने पर मै उन्हें घूरती हूं। पास में होते तो दो झापड़ भी लगाती।"
"तुम मेरे कहने पर सिर्फ़ मुझसे मिलने घर वालों से छिपकर यहां इस मॉल में हों कोई देख लिया तो..?"
"मुझे भी डर लग रहा है मै चलती हूं, कल मिलूंगी।"
"ओके बाय...".
कौशिक बिना पूछे की कल कब और कहां मिलोगी प्रिया को बाय इसलिए बोलता हैं क्योंकि वो दोनों तब मिल रहे थें जब उन दोनों की हाईस्कूल की बोर्ड की परीक्षा चल रही थी। कौशिक और प्रिया दोनों अलग अलग स्कूल से थे और परीक्षा देने के लिए दोनों का सेंटर भी अलग अलग ही था पर उन दोनों का सुबह 6 बजे वाला रास्ता एक ही था। कौशिक अपने दोस्त प्रकाश के साथ अपनी बाईक से परीक्षा देने जाता था और प्रिया अपनी साइकिल से अकेले। घर से तो वो अकेली निकलती थी पर रास्ते में उसकी साइकिल के समांतर में एक बाईक भी चलती थीं और उस साईकिल और बाईक के बीच बातें भी ख़ूब होती थी।
"शायद अब तुम्हें मुझे अपना नंबर दे देना चाहिए।"
"तुम अपना नंबर दे दो... में कॉल करूंगी।
"लिखो"
"कहां लिखूं?"
फ़ोन में
"मेरे पास फ़ोन नहीं हैं।"
"ओके तो किसी कागज़ पर लिख लो।"
"अब मैं कागज़ कहां से लाऊं..?"
"एडमिट कार्ड पर लिख लो।"
(कौशिक सोच ही रहा था कि किस कागज़ पर नंबर लिख कर दूं तब तक कौशिक की बाईक पर पीछे बैठा प्रकाश बोल पड़ा)
"मै इंतज़ार करूंगा तुम्हारे कॉल का।"
"हां...पर रात के 12 बजे।"
"क्यों..?"
"अब रात को ही फ़ोन पर बताऊंगी, चलती हूं बाय।"
(उसी रात)
"इतना धीरे क्यों बोल रही हों? और ये तुमने अपने दादा के पी. सी. ओ. से क्यों कॉल किया है?"
"फ़ोन नहीं हैं मेरे पास, ज्यादा बात नहीं हो पाएगी पी.सी. ओ. का शटर बंद हैं पिछे के गेट से चोरी से अंदर आकर तुम्हें फ़ोन किया है मैंने।"
"यार तुम पागल हो इतनी रात को ऐसा रिस्क....किसी ने देख लिया तो?"
"इसीलिए तो कह रहीं हूं ज्यादा बात नहीं होगी।"
दो बार 'ज्यादा बात नहीं होगी' बोलकर भी प्रिया ने कौशिक ने आधे घंटे तक उस रात बात की
(अगले दिन सुबह)
"ये क्या हैं?"
"वो मैम, मेरे छोटे भाई ने गलती से एडमिट कार्ड पर किसी का नंबर लिख दिया।"
प्रकाश के दिए सुझाव ने प्रिया की लगभग क्लास लगा दी
तुम्हें पता है ना एडमिट कार्ड पर कुछ नहीं लिखना होता। तुम्हें बैच परीक्षा से बाहर भी कर सकती है।
"येस...मैम आगे से ऐसा नहीं होगा। सॉरी..."
"तुम्हारा लक...की बैच ना आए पूरे परीक्षा पीरियड में।"
(परीक्षा के बाद उसी दिन)
रास्ते में बाईक और साइकिल की लगभग समांतर स्तिथि में,
"क्या हुआ चेहरा क्यों लटका है तुम्हारा आज? आगे पीछे होकर मुझे देख भी नहीं रही हो तुम?"
"यार एडमिट कार्ड पर नंबर लिखने से मैम की डांट पड़ी।"
"ओह सॉरी...रुको साइड में कहीं तुम्हारे लिए कुछ है।"
"क्या..?"
( सड़क के किनारे बाईक और साईकिल रुक कर)
"ये लो.."
(बाइक साइकिल को कुछ देता है)
"यार मैं फ़ोन नहीं ले सकती?"
"क्यों..?"
"कहां रखूंगी मै इसे? घर पर रहतीं हूं यार मैं..."
तुम फ़ोन स्विचऑफ करके छिपा कर रखना और जब भी तुम्हें टाइम मिले मुझे कॉल करना। मैं हमेशा फ़ोन उठाऊंगा तुम्हारा कभी भी कॉल करो।
ओके...( कुछ देर सोचने के बाद)
प्रिया और कौशिक का रिश्ता लगभग अब जम गया था वो दोनों समझ गए थे कि उन्हें एक दूसरे से प्यार है। अब ये प्यार था या फ़िर बचपना ये उन दोनों के रिश्ते के बढ़ते उम्र के साथ पता चलता।
कौशिक और हर्ष उस वक्त बेस्ट फ्रेंड थे और प्रिया हर्ष के घर और क्रॉकरी शॉप के ठीक सामने रहती थी तो कौशिक का हर्ष के घर आना जाना लगा ही रहता था। हर्ष कौशिक का सबसे अच्छा दोस्त था इसलिए वो प्रिया के भी काफी क़रीब आ गया था। प्रिया और कौशिक का मिलना जुलना लगा रहता था और हर बार हर्ष भी साथ रहता था। धीरे धीरे वक्त गुजरता गया बचपना जवानी में तब्दील हो गई और वो वक्त आ गया जब मोहब्बत क्या होता है ये बात थोड़ी बहुत प्रिया, कौशिक और हर्ष तीनों को समझ में आने लगी। इसी बीच हर्ष की भी प्रिया जैसी ही एक लड़की जान्हवी से शायद प्यार जैसा कोई रिश्ता हो गया था पर वो भी बचपन की गलतियों के भेंट चढ़ गया। तीनों इंटरमीडिएट में आ गए थे और इसी बीच पहली बार कौशिक को किसी लड़की से सच्चे प्यार जैसा कुछ हुआ। पर लाख़ कोशिशों के बावजूद भी कौशिक दिव्यांशी को अपने सच्चे प्यार की कीमत ना समझा सका और दिव्यांशी को पाना कौशिक के लिए एक सपने जैसा रह गया। और इस सपने के पीछे की हकीकत में धीरे धीरे प्रिया और कौशिक का रिश्ता भी धूमिल होते हुए एक दिन धुआं बनकर उड़ गया। और इस धुएं की वज़ह वो आग थी जो कौशिक ने दिव्यांशी के चाहत में लगाई थी। इस आग कि लपटे प्रिया से भी अछूता नहीं रहीं और एक रात,
"तुम्हें पता है हर्ष...दरअसल अपने घर के बारजे से मै कौशिक को नहीं बल्कि तुम्हें देखा करती थी। पर कौशिक ने पहल कर दी और उस वक्त जल्दी जल्दी में मैंने कौशिक को हां कह दिया।"
( रात के क़रीब 1 बजे जब हर्ष और प्रिया फ़ोन पर बातें कर रहे थे)
"तो तुमने मुझे कभी बताया क्यों नहीं..?"
"कैसे बताती तुम कौशिक के बेस्ट फ्रेंड जो ठहरे..".
धीरे धीरे बातें बढ़ती गई हर्ष और प्रिया बेहद क़रीब हो गए घड़ी की सुई के साथ साथ दोनों की बातें भी एक नया आयाम ले रही थी और क़रीब 3:15 बजे जब घड़ी की दो मुख्य सुई सीधे एक मेल हुई उसी वक्त
"आई लव यू टू"
(प्रिया हर्ष के प्रपोजल का जवाब देती है)
और घड़ी की दोनों सुइयों की तरह हर्ष और प्रिया भी एक हो गए।
पर हर्ष और कौशिक की दोस्ती सच्ची थी शायद इसीलिए कुछ वक्त बाद हर्ष ने कौशिक को अपनी और उसकी एक्स के नए रिश्ते का ब्यौरा दे दिया।
बेशक कौशिक की भावनाएं आहत हुई यह जानकर पर गलतियां तो कौशिक ने भी की थी। कौशिक की नाराज़गी हर्ष को नागवार गुजरी और उसने प्रिया से बात करना बंद कर दिया। फ़िर से थोड़ा वक्त गुजरा कौशिक के ग्रेजुएशन के पायदान पर पहला कदम रखते ही
तुम हर्ष से अलग हो, वो मुझे कभी समझ ही नही सका....
(रात के 2 बजे हॉस्टल के कमरे में लेटे कौशिक के कानों में फ़ोन के जरिए जान्हवी (हर्ष की एक्स) क की बातें।)
कौशिक बातें अच्छी कर लेता था और शायद इसीलिए कौशिक की बातों में अक्सर कई लड़कियां फंस जाती थी और हर्ष से ब्रेकअप के बाद जान्हवी भी कौशिक की बातों में फंस चुकी थी। पूरी रात फ़ोन पर रोमांचित कर देने वाली बातें चलती रही।कौशिक के दिल में भी उसकी हर्ष से दोस्ती की मशाल जल रही थी इसलिए उसने भी हर्ष को सारी बात बता दी। हर्ष भी गलत था और जान्हवी भी। अब ना तो हर्ष की बात जान्हवी या प्रिया से होती थी और ना ही कौशिक की। पर इन सब के बीच आज भी दिव्यांशी कौशिक के दिल में बरकरार थी। और फ़िर एक वक्त गुजरा अब हर्ष, कौशिक, जान्हवी, प्रिया सबके सब मैच्योर हो चुके थे और फ़िर इसी मैच्योरिटी में हर्ष को सच्चा प्यार हुआ एक लड़की प्रीती से।अब वो दोनो बेहद क़रीब है और उनका रिश्ता भी पाक और सच्चा है। इसी बीच कौशिक को भी एक लड़की से इश्क़ होता है पर दिव्यांशी की तरह अमिता भी दिल के किसी कोने में दफ़न हो जाती है और एक लड़की थी जिसे कौशिक से प्यार हो जाता है। दिल में दिव्यांशी और अमिता को किसी कोने में एक छोटा सा जगह देकर कौशिक उस लड़की के साथ आगे बढ़ जाता है जिस लड़की को कौशिक से प्यार हो जाता है। श्रेया के निश्चल प्रेम को पाकर कौशिक भी श्रेया को उतना ही या फिर उस से ज्यादा प्यार देने लगता है जितना की दिव्यांशी और अमीता को।
ये थी आजकल की चलती फिरती मोहब्बत की संक्षिप्त कहानी। मोहब्बत जब तक जवां होती है तब तक आशिक या तो मजबुर हो चुका होता है या फिर इश्क का गला घोंट चुका होता है।

