सेफ्टी वाल्व
सेफ्टी वाल्व
छोटी गोल, बड़ी गोल करते करते आठवीं पास होने तक, मैं गांव के प्राइमरी पाठशाला और जूनियर हाई स्कूल में पढ़ता रहा। प्राइमरी पाठशाला में पटिया, नरकट की कलम, दूधिया की दवात तथा किताब लेकर जाता था।यह माना जाता था कि निब वाली पेन से लिखने में, हैंडराइटिंग खराब हो जाती है। इसलिये मैं पाठशाला में कभी निब वाला पेन लेकर नहीं गया। प्राइमरी पाठशाला के हर क्लास का मैं टापर था। प्राइमरी पाठशाला के हेडमास्टर साहब ने क्लास डकाने के लिये, बाबूजी से कई बार कहा था लेकिन बाबूजी का कहना
था -
-बिना मजबूत नींव के, इमारत अच्छी नहीं बनती है।
इसलिये, उन्होंने मुझे क्लास नहीं डकाया। फिर उस समय क्लास पांच में बोर्ड परीक्षा होती थी। यू पी बोर्ड नहीं, जिले वाला बोर्ड। मैं क्लास 5 में ब्लॉक के सभी प्राइमरी पाठशालाओं में टॉप किया।
जूनियर हाई स्कूल में बैठने के लिये बोरा नहीं ले जाना पड़ता था। वहाँ पर टाट मिलती थी। पाटिया, नरकट की कलम से पीछा छूटा। अब निब वाली पेन, स्याही वाली दावत, कॉपी, लेकर जाना होता था। इन सभी को बस्ता कहा जाता था। आठवीं में भी स्कूल टॉप किया। खुशी में घर वाले लड्डू बाटे।
बाबूजी मेरी पढ़ाई से खुश थे। वो मुझे डिप्टी कलक्टर बनाना चाहते थे। सोच विचार कर मुझे नवी में पढ़ने के लिये, पास के कस्बे में नहीं , दूर के शहर में भी नहीं ,बल्कि बहुत दूर के, बहुत बड़े शहर में भेजा गया।
बड़े शहर में खर्चा बहुत पड़ता, इसलिये तय किया गया कि मैं स्कूल व बस अड्डे के पास, किराये का क्वार्टर ले लूँ। गांव से, रोज एक बस, सुबह इस बड़े शहर आती और शाम को गांव लौट जाती। इसी बस से सब्जी आदि हर दूसरे तीसरे दिन आ जाया करेगा।
गांव के एक चाचा, जो पट्टीदारी में थे, का, इस बड़े शहर में बस अड्डे के पास मकान खाली पड़ा था। उन्होंने बाबूजी से कहा -
-अपने बेटे को मेरे मकान में रख दो, उसका किराया बच जाएगा और मुझे घर को रखाने के लिये, किसी को रखना नहीं पड़ेगा।
सभी के लिये यह फायदे मंद था। मैं बड़े शहर में, पट्टीदार के मकान के एक कमरे में जम गया। गांव से आटा, चावल, दाल, तेल तो मैं ही लाता था।हर तीसरे दिन, साइकिल से, बस अड्डे जाकर, गांव की हरी सब्जी और कभी कभार दूध दही भी लाता था, जो बाबूजी से बस के ड्राइवर चाचा के हाथ से भेजते थे। 12 से 5 बजे तक स्कूल चलता अर्थात दूसरी पाली का स्कूल था।
धीरे धीरे मैं बड़े शहर व पढ़ाई में रम रहा था। एक दिन जब सब्जी लेने बस अड्डे पहुँचा तो बस ड्राइवर चाचा ने कहा,
- तुम्हारे बाबू जी ने कहा कि कोई पेट का डॉक्टर पता कर लो। बालेन्द्र की दुल्हन को दिखाना है।
बालेन्द्र मेरा भाई था और मुझसे बड़ा था। मैंने दो तीन दिन तक साइकिल से घूम घूम कर डॉक्टर का नाम पता किया। सोमवार को गांव वाली बस से बालेन्द्र भइया व भाभी आये। मैं साइकिल से बस अड्डे पहुंच था। मैंने बताया,
- डॉक्टर दोपहर और शाम को देखते है। सुबह 10 से डेढ़ और फिर शाम को 4 से 8 बजे तक।
- यहाँ से कितनी दूर है ?
बालेंदु भइया पूछे।
- रिक्शे से करीब आधा पौन घंटा लगेगा।
मैंने बताया।
-इस समय साढ़े 10 बज रहे हैं। पहुंचते पहुँचते साढ़े ग्यारह बजेंगे। ... यह बस पकड़ने के लिये, सुबह 5 बजे से जगे है। बीच मे .. स्टेशन पर, एक एक प्याली चाय ही पियें है। और तुम्हारी भाभी भी वही चाय पी है।
भइया बोले।
- बस अड्डे पर कैंटीन है। आप मेरे साथ चलकर कुछ खा लीजिये। भाभी के लिये, वही से नाश्ता लेते आएंगे, या हम तीनों कैंटीन चलते हैं, वही नाश्ता कर लेंगे।
मैंने निदान बताया।
भाभी पहली बार रिएक्ट करते हुए, भइया की ओर देखी।
- तुम तो जानते हो, इस बस से गांव के बहुत से लोग आते हैं। अगर उन्होंने तुम्हारे भाभी को कैंटीन या शेड में खाते देख लिया, तो गांव में जाकर बात का बतंगड़ बनाएंगे।
भइया ठंडेपन से बोले।
- यह बात तो सही है।... तो क्या भाभी को भूखे ही दिखाने ले चलना है।
मैं ने पूछा।
भइया कुछ पल सोचते रहे। फिर बोले,
- तुम्हारे कमरे चलते हैं। ... वही कुछ खा लिया जाएगा और तुम्हारी भाभी भी कमर सीधी कर लेंगी। फिर डॉक्टर को दिखाएंगे।
- अच्छी बात है ... आप लोग रिक्शे पर बैठे। मैं साइकिल से आगे आगे चलता हूं।
मैं बोला।
रिक्शे में भइया, भाभी और उनका समान रखा गया। रिक्शे के आगे आगे मैं साइकिल चला रहा था। आधे घंटे में हम लोग, मेरे क्वार्टर पर पहुँचे। समान भीतर रखकर बगल की दुकान पर जाकर इमरती, समोसा, चाय लाया।
- कुँवर साहब, इतना कुछ बेकार में लाये। परेशान हुए। ... अभी आपके भइया जाते तो ले आते।
पहली बार भाभी बोली।
- आप पहली बार यहाँ आई है।
मैं बोला।
फिर भाभी मेरा हाल चाल पूछने लगी। जैसे ही मैंने बताया कि मेरे क्लास 12 बजे से है।
भाभी बोली,
- आप स्कूल जाइये ...कुँवर साहब की पढ़ाई का नुकसान न हो, हम लोग शाम को डॉक्टर को दिखा लेंगे।
मैंने पास का खाने वाला होटल, भइया को दिखा दिया, और होटल वाले से कह दिया कि टिफिन भिजवा देना।
शाम को क्वार्टर पर लौटने पर देखा, तो भइया भाभी घर वाले ड्रेस में, आराम से बातें कर रहे थे। मैंने पूछा,
- अभी तक आप लोग तैयार नहीं हुए ... डॉक्टर को दिखाने चलना है न?
भइया सोचते हुए, भाभी से बोले,
- यह स्कूल से थका हारा आया है...कुछ खिलाओ।
- डॉक्टर 7 बजे उठ जाएगा। आज दिखाना है .. तो आप लोग जल्दी तैयार हो जाओ।
मैं बोला।
- 6 घण्टे से आप बिना कुछ खाये पियें है। पहले आप कुछ खा लिजिये..... अगर आज देरी हो गयी है, कल दिखा लेंगे। कौन हम लोग सड़क पर है ?हम लोग तो कुँवर साहब के क्वार्टर पर है।
भाभी बोली।
भाभी ने मेरे लिये, शाम को भइया द्वारा लाये गए समोसे में से 2 बचा कर रखे थे, जो मुझे दिए। नाश्ते करने के बाद क्या किया जाय - यह हम लोग विचार विमर्श कर रहे थे कि, भाभी बोली,
- अब, इस समय डॉक्टर को तो दिखाना नहीं है, फिर घूम ही लेते हैं।
भइया और मैंने सहमति जताई। फिर हम तीनों रिक्शे में बैठकर बाजार घूम आये।
रात में तय हुआ कि अगले दिन जल्दी उठकर,
डॉक्टर को दिखाने चलेंगे। लेकिन रात में देर तक इधर उधर की बाते हुई- रिश्तेदारों की, गांव की, भाभी के मायके की, मेरे यहाँ रहने की । लगभग 3 बजे सब लोग सोये तो सबेरे उठते उठते 9 बज गया।
- भइया ! आप लोग जल्दी तैयार हो लीजिये, डॉक्टर को दिखा दिया जाये।
मैंने कहा।
- तुमने सिनेमा कब देखा था?
भइया पूछें।
मैं समझ नहीं पाया, यहां सिनेमा की बात कहां से आ गयी। जवाब तो देना ही था।
- दो महीने पहले।
- तुम्हारी भाभी भी शादी होने के बाद से, कोई पिक्चर नहीं देखी है... न कही घूमने गयी, .. तुम भी पिक्चर नहीं देखे हो।
भइया, हम दोनों की ओर देखकर बोले,
- आज, तीनों साथ सिनेमा देखेंगे, होटल में खाना खाएंगे।
फिर हम तीनों रिक्शे पर बैठकर सिनेमा देखने गए और खाना भी होटल में खाये। बाजार घूमें। भाभी के लिये खरीददारी हुई। शाम तक क्वार्टर पर, हम लोग लौटे।
अगले दिन गांव वाली बस से सब्जी, दूध आना था । भइया ने अनुमान लगाया कि डॉक्टर को दिखाकर अभी तक, गांव न लौटने पर पूछ ताछ संभव है। इसलिए भइया ने कहा,
- यदि बस वाले ड्राइवर चाचा पूछे कि क्यों हम लोग डॉक्टर को दिखा कर, गांव नहीं लौटे ? तो क्या बताओगे ?
- जो, बताइये।
मैं बोला।
-तुम कहना कि, डॉक्टर के यहाँ बड़ी भीड़ थी, दिखाने का समय ही नहीं मिला। आज डॉक्टर साहब से समय मिला है। डॉक्टर को दिखा कर कल तक लौट आएंगे।
भइया के सिखाये - बताये पर मैंने हामी भरी।
अगले दिन बस अड्डे पर पर, गांव वाली बस के ड्राइवर चाचा ने दूध सब्जी देते हुए पूछा,
-तुम्हारे भइया भाभी डॉक्टर को दिखा कर गांव काहे नहीं लौटे।.... तुम्हारे बाबूजी पूछ रहे थे।
- डॉक्टर के यहाँ बड़ी भीड़ थी। नम्बर नहीं लग रहा था। आज दिखा कर, भइया भाभी कल तक गांव पहुँच जाएंगे।
मैंने जबाब दिया।
शाम को भाभी को डॉक्टर को दिखाया गया। डॉक्टर ने दवाइयां लिखी और दो महीने बाद फिर चेकअप के लिये बुलाया। अगले दिन, दिन में शहर के मंदिर में, भइया भाभी ने दर्शन किये, और शाम वाली बस से, वापस गांव लौट गए।
यह चार दिन मेरे पढ़ाई के लिहाज से खराब थे। मैंने केवल एक दिन, स्कूल अटेंड किया, बाकी दिन भइया भाभी के साथ सिनेमा देखा, कुल्फी खाई, चाट खाया, नॉन वेज खाया, बाजार घूमा -, ऐश ही ऐश। भइया भाभी के जाने के बाद मन लगा कर फिर पढ़ाई में जुट गया।
एक महीना बीता होगा कि, एक दिन बस अड्डे पर, ड्राइवर चाचा बोले,
- तुम्हारे बाबूजी ने कहा है कि इंद्रजीत (यह हमारे सगे पट्टीदार थे, हमारे चाचा लगते थे। इनके पिताजी और हमारे बाबा एक ही थे )के बहू को दिखाना है। बढ़िया डॉक्टर पता कर लेना तथा एक ठीक ठाक होटल भी रुकने के लिये देख लेना।
- मेरे क्वार्टर पर नहीं रुकेंगे क्या ?
मैंने पूछा।
ड्राइवर चाचा बोले,
- तुम्हारे बाबूजी जो कहे थे, बता दिये। परसो इसी बस से दोनों लोग आएंगे।। पता कर लेना। मैंने उसी दिन डॉक्टर और होटल के बारे में पता कर लिया।
परसो दोनो लोग -,चचेरे भाई व भाभी, आए। रिक्शे में बैठकर होटल गए। उनके रिक्शे के आगे आगे साइकिल से मैं रास्ता दिखाता रहा। जब होटल के रूम में समान रख गया तो मैंने भइया से पूछा,
- कब डॉक्टर को दिखाने चलना है।
भइया बोले,
- आज,तो .... हम लोग थक गए है। कल चलेंगे। ..... लेकिन .. आज शाम को जब तुम स्कूल से छूटना, तो इधर ही आना। .. साथ मे बाजार चलेंगे, शहर घूमेंगे। .. देखेंगे।
-ठीक है।
बोलकर मैं क्वार्टर पर चला आया।
क्वार्टर से स्कूल गया और शाम को स्कूल से लौटकर, मैं होटल पहुँचा। फिर हम तीनों बाजार निकले। भाभी ने खरीदारी की और हम लोग खाते हुए होटल लौटे। तय हुआ कि अगले दिन शाम को डॉक्टर को दिखाना है। रात्रि 10 बजे होटल से अपने रूम पर पहुँचा।
शाम को भाभी को डॉक्टर को दिखाना था, अतः मैं कालेज नहीं गया। शाम को भइया के साथ भाभी को डॉक्टर को दिखाया गया। डॉक्टर ने बताया, डेढ़ माह बाद, फिर आना है।
अगले दिन शाम को भइया भाभी को गांव वाली बस में छोड़कर क्वार्टर आ गया। जाते जाते दोनों ने उसकी बहुत तारीफ की। इस बार उतनी ऐश तो नहीं हुई, लेकिन दो बार मुर्गा खाने,दो बार चटपटा खाने को मिला और 2 दिन का क्लास छुटा।
फिर मैंने पढ़ाई में मन लगाया। डेढ़ दो माह बाद, फिर मेरे ममेरे भाई, भाभी आये। उन लोगों ने बताया कि उन दोनों लोगों को डॉक्टर को दिखाना है। मैंने पूछा,
-भइया, आपको क्या रोग हुआ है ?
भइया बोले,
-तबीयत ठीक नहीं रहती है।
भाभी बोली,
- चाहे यह जो, खा ले, इनके शरीर को लगता नहीं ।
फिर वही हुआ, जो पहले भी हुआ था। ममेरे भाई भाभी 4 दिन रहे। मैंने इन लोगों के साथ पिक्चर देखा, नॉन वेज खाया, घूमा आदि।
उनके लौटने के बाद, मैंने पढ़ाई में मन लगाया।
इस बार मेरा 4 दिन क्लास छूटा।
मुझे एक बात, अब, परेशान करने लगी थी कि हम लोगो के परिवार में इतनी बीमारियां क्यों है? सारे भइया भाभी युवा है, फिर इतनी बीमारियां क्यो? क्या खान पान में गड़बड़ी है या रहन सहन में या कोई अन्य बात? लेकिन किससे पुछूँ? जो जवाब भी दे दे और बुरा भी न माने। उसने जब नज़र दौड़ाई तो सगी भाभी नज़र आई, जो उसकी बात, पूरे ढंग से सुनती है और उसका उत्तर भी देती है, सुलझे ढंग से देती है।
अगली बार की छुट्टी में, जब मैं घर गया तो इस ताक में रहता था कि खुशनुमा माहौल में भाभी से बीमारी वाली यह बात पूछ पाऊँ। एक दिन अवसर मिल गया। दोपहर में भाभी खाना परोस रही थी, उस दिन बाकी लोग किसी काम से बिलंब से खाने वाले थे।
मैंने पूछा,
- भाभी ! एक बात पूछूँ, नाराज तो नहीं होंगी?
- पूछिये।
भाभी बोली।
- मुझे शहर में रहते करीब 10 महीने हुआ। इस बीच करीब 6 लोग डॉक्टर को दिखाने शहर आये। ... मुझे लगता है कि हम लोग के खान पान में गड़बड़ी है ...या रहन सहन में ...,। क्या कारण है?
मैंने पूछा।
- लगता है, हम लोगों का आना, आपके यहाँ रुकना, आपको अच्छा नहीं लगा?
भाभी ने मुस्कराते हुए पूछा।
- ऐसी बात नहीं है। इसीलिये मैं किसी से यह नहीं पूछ नहीं रहा था।... नहीं बताना है तो छोड़िए।
मैंने कहा।
- छोड़ ही दीजिये। ... जब बीमार होता है, तभी दिखाने शहर जाता है। .. खाना जल्दी खत्म करिये। अभी बहुत काम है। अभी घर के आधे से अधिक लोगों को खिलाना है। फिर, रात के खाने के लिये आटा चावल दाल सब्जी सब निकालना है...
बोलते हुए भाभी ने अधूरे स्थल पर बात खत्म कर दी।
मुझे उत्तर तो नहीं मिला, लेकिन मालूम नहीं क्यों मेरे मन में यह आशंका हो गयी कि मेरे प्रश्न से कहीं भाभी को ऐसा तो नहीं लगा कि मुझे, भइया भाभी का शहर के मेरे क्वार्टर पर आना, रुकना मुझे बुरा लगा। इसलिये, भाभी को ऑब्जर्व करने लगा कि जब भी अवसर मिले, मैं अपनी स्थिति साफ कर दूं कि केवल जिज्ञासा वश मैंने यह प्रश्न पूछा था, मेरा अन्य कोई मकसद नहीं था।
ऑब्जरवेशन करने पर, मुझे मालूम हुआ कि, भाभी की दिनचर्या अत्यन्त कठिन व दुरूह है। भाभी सुबह 4 बजे उठती है , जब बैलो को खिलाने वाले खली और चोकर लेने घर के बड़े लोग भीतर आते और रात में सबको खाना खिलाकर, जब घर का दरवाजा बंद करती तो रात के 11 बज रहे होते। सुबह से उठने के बाद, दिन भर वह आराम नहीं कर पाती। दिन भर कुछ न कुछ काम रहता। संयुक्त परिवार के सभी सदस्यों को चारों टाइम खाना, नाश्ता, खरमेटाव परोसना, उसकी तैयारी कराना, कपड़ों का हिसाब रखना, बच्चो से खेलना, अम्मा चाची के सिर में तेल लगाना, गांव के लोगों से यथोचित व्यवहार करना, नेवता का हिसाब रखना, और न जाने क्या क्या। जब जब मौका मिला, मैंने भाभी से अपनी बात कही। और शहर आते आते, मैं भाभी से यह आश्वासन ले आया कि वे नाराज नहीं है और जब भी अगली बार डॉक्टर को दिखाने, भइया के साथ आएंगी, मेरे क्वार्टर पर ही रुकेंगी।
गांव से लौटकर, मैं अपनी दिनचर्या में लग गया। एक माह बाद, भइया भाभी आये, डॉक्टर को दिखाने। इस बार भइया ने बस अड्डे पर बुलाया नहीं । सीधे भइया भाभी क्वार्टर आये। गांव की घटना से, मैंने अपने को थोड़ा और समेट लिया। मुझे लगा कि मुझे नहीं पूछना चाहिये कि कब दिखाना है? जब भइया कहेंगे, तब मैं डॉक्टर का अपॉइंटमेंट लूंगा।
फिर पहले की भांति घूमना, पिक्चर देखना, खाना शुरू हुआ। भइया को तो नहीं लगा, लेकिन भाभी को यह जरूर लगा कि इस बार, मैं संभल कर बोल रहा हूँ।
जब भइया बाथरुम गए तो भाभी ने पूछा,
- कुँवर साहब कुछ कम नहीं बोल रहे हैं?,
- नहीं भाभी। ऐसी बात नहीं है।
मैंने उत्तर दिया।
बात खत्म हो गयी। तीसरे दिन हम लोग, भाभी को डॉक्टर को दिखा लाये। चौथे दिन सुबह भइया को, शहर में ही किसी से मिलना था, इसलिये वह निकल गए।
भाभी ने फिर पूछा,
- लगता है, कुँवर साहब को बीमार पड़ने वाली वही बात खाये जा रही है, इसलिये संभल कर बोल रहे हैं।
- भाभी, आपको गलतफहमी है।.. ऐसी बात नहीं है। उस समय मन में एक प्रश्न उठा तो पूछ लिया। और आपसे इसलिये पूछ लिया कि क्योंकि आप सबसे सुलझी है।
मैंने उत्तर दिया।
- जब आपकी शादी हो जाएगी और,.. . आपकी बीबी गांव के घर आ जायेगी, तब पता चल जाएगा कि क्यों हम लोगों के क्षेत्र में बीमारियाँ ज्यादा है?
भाभी ने बात को समझाने की कोशिश की।
- जी।
मैं बोला।
- अच्छा, कुँवर जी, बताइये। इस बार तो, आपने ध्यान से देखा। गांव में, मेरी दिनचर्या क्या रहती है?
भाभी ने पूछा।
- आपकी दिनचर्या बहुत कठोर है। सुबह 4 बजे से रात 11 बजे तक, आप घर के कार्यों में लगी रहती है। वो भी घूंघट निकालकर। कहने को तो बर्तन माजने के लिये भी कामवाली है, सब्जी काटने के लिये भी कामवाली है - फिर भी आप 15- 16 घंटे चूल्हे चौके में लगी रहती है। अनाज रखवाना, कपड़ों का काम, और न जाने कितने काम करने की आपकी दिनचर्या थी। कितने लोगों को अटेंड करती है। मेहमानों की खातिरदारी में भी लगी रहती है। संयुक्त परिवार के सभी बच्चों, महिलाओं का ध्यान रखना।
मैंने अपना ऑब्जरवेशन बताया।
- अब बताओ, ऐसे दिनचर्या में आराम कहाँ है, फुर्सत कहाँ है, मनोरंजन कहाँ है, कब है?
भाभी ने पूछते हुए, बात आगे बढ़ाई,
- आराम मिलता नहीं ।इसका असर शरीर पर, तो पड़ता ही है ।मनोरंजन के नाम पर, घूमने के नाम पर क्या घर वाले छुट्टी देंगे?, ..... इसीलिये, हम डॉक्टर को दिखाने के निमित्त पति पत्नी निकलते हैं। डॉक्टर के नाम पर छुट्टी मिल जाती है। .., तभी हम लोग जब यहाँ आते हैं तो डॉक्टर को दिखाने के साथ साथ, दो तीन दिन घूमते, टहलते, खाते, पिक्चर देखते है खरीददारी करते हैं। तुम्हारे लिए, हो सकता है यह गैर जरूरी हो या न समझ आ रहा हो ,लेकिन मेरे लिये, और मेरे जैसे अन्य लोगों के लिये यह तनाव का सेफ्टी वाल्व है।
