STORYMIRROR

सब कुछ तो है!

सब कुछ तो है!

2 mins
29.7K


मेरी शिकायतें सरकारी दफ़्तरों में आने वाले शिकायती पत्रों जैसी बन चुकी थीं। इनकी तादाद बहुत थीं। मेहनत के बाद भी जब कुछ हासिल नहीं हो पाता था तब हताश और जलन आकर घेर लेती थीं। ऐसा लगता था कि कुछ बहुत बड़ा खो बैठी हूँ। दुबकी हुई चुहिया सी महसूस करती थी। उसी दौरान वह बूढ़ा पर ज़िंदादिल आदमी रोज़ बस में टकरा जाता था। अजनबियों से बात न करने की हिदायतें दिमाग में भरी हुई थीं पर मैंने हिचकते हुए बातें शुरू कीं। धीरे-धीरे रोज़ाना के सफ़र के दौरान मेरी रोज़मर्रा में वह एक जरूरी दस्तक बन गया था। बहुत कुछ साझा कर लेती थी। और जो साझा नहीं भी करती थी वह भी उनको मालूम पड़ जाता था। ऐसे ही एक रोज़ फिर हार के दर्द ने मेरे कंधे झुका दिये थे। तब उन्होने मुझे घूरकर देखा और पूछा- "तुम्हारी आँखें, नाक, कान, त्वचा और मुंह अच्छे से काम कर रहे हैं?"

मैंने कहा- "हाँ!"

उन्होने फिर पूछा- "हाथ पैर सही हैं? इनमें कोई खराबी तो नहीं? ज़बान स्वाद का पता बता देती है?"

मैंने कहा- "हाँ!"

फिर अगला सवाल- "दिमाग ठीक से काम करता है? जमा घटा कर पाती हो? दुकान पर जाकर आसानी से सौदा खरीद पाती हो?"

मैंने सिर नीचे करते हुए जवाब दिया- "सब कर लेती हूँ। ये सब काम तो रोज़ ही करने होते हैं।"

वे सौम्य हंसी हंसे और आँखों में आंखे डालकर बोले- "अब तुम्हें और क्या चाहिए!"

...मैं शांत हो चुकी थी।

अब मेरा सफ़र दूसरे रूट पर है। मुलाक़ात नहीं होती। नहीं पाता वे कहाँ है। पर इस संवाद से मैं इतना जान पा रही हूँ की हमारे पास सब कुछ है और बहुत से लोग अजनबी होकर भी ज़िंदगी में कुछ बेहतरीन मूल्य जोड़ जाते हैं।

अब भी शिकायतें हैं पर बेहद कम और ज़िन्दगी को देखने के नज़रिये में बदलाव कर पा रही हूँ।#postiveindia


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational