हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Inspirational

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

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सौतेला : भाग 43

सौतेला : भाग 43

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कामिनी ने आखिर दिखा ही दिया कि सौतेली मां कैसी होती है । जिस तरह अयोध्या में केकैयी ने अपना सौतेला अवतार दिखाया था उसी तरह कामिनी ने भी अपना वही रूप यहां प्रकट कर लिया था । सौतेलेपन की परंपरा का निर्वाह होना ही चाहिए वरना लोग इस परंपरा को भूल जायेंगे । नई मां और चांदनी इस परंपरा को मिटाने में लग रहे हैं लेकिन भला हो कामिनी जैसी औरतों का जिन्होंने इतनी पुरानी परंपरा को अभी तक कायम रखा हुआ है । ऐसा नहीं है कि सौतेलेपन की परंपरा की खोज केकैयी ने की थी, ध्रुव की सौतेली मां सुरुचि शायद पहली सौतेली मां होगी जिसने इस परंपरा की नींव रखी थी । सौतेलेपन की जब भी कोई बात चलती है तो सुरुचि और केकैयी दोनों का नाम बड़े आदर के साथ लिये जाते हैं । इस सूची में कामिनी ने भी अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखवा लिया था । 


रंग में भंग पड़ गया था । हर्षोल्लास का वातावरण गमी में बदल गया था । अभी थोड़ी देर पहले तक जिस घर में हंसी खिलखिलाहट गूंज रही थी वहां अब मुर्दनी छा गई थी । हर चेहरे से रौनक गायब हो गई थी और उस पर शोक की लहर ने कब्जा जमा लिया था । पूरे घर में जैसे कर्फ्यू लगा गया हो । सन्नाटा पसर गया था घर में । सोनू , नेहा और चांदनी के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे । आज मेंहदी की रस्म होनी थी लेकिन ऐसे माहौल में कोई भी स्त्री मेंहदी लगाने को तैयार नहीं थी । 

नई मां ने खाना तैयार कर दिया था लेकिन उसे खाने को कोई तैयार नहीं था । मर्दों ने जैसे तैसे करके खाना खाया और बच्चों को खिलाया । रोते रोते औरतों का हाल बहुत बुरा हो गया था । उनके आंसू सूख चुके थे और गले भी बैठ गये थे इसलिए उन्होंने रोना बंद कर दिया था । लेकिन सब लोग चुपचाप बैठे हुए थे । 

इतने में बाहर कुछ हलचल सी हुई । सोनू के ससुराल से कोई आया था । सचिन की बहन , सचिन का बहनोई और सचिन का एक दोस्त आये थे । सचिन की बहन पूजा का कहना था कि उनके यहां यह रस्म है कि दुल्हन की मेंहदी दूल्हे की ओर से लगाई जाती है । इसलिए वे मेंहदी लेकर आये हैं । दुल्हन को शगुन की मेंहदी लगाकर ही जायेंगे । 

घर का माहौल बड़ा खराब था । ऐसे में वर पक्ष के लोगों का आगमन बड़ा विचित्र लग रहा था । वर पक्ष को सब कुछ नॉर्मल होने का दिखावा करने के लिए सबको जबरदस्ती मुस्कुराना पड़ रहा था । मेहमाननवाजी शुरू हो गई । जब तक मनुहार ना हो तो कैसी मेहमाननवाजी ? मेहमानों को भोजन परोसा गया और मिन्नतें कर करके उन्हें भोजन कराया गया । एक तरह से मेहमानों का आना अच्छा ही रहा । इससे गम का कोहरा जिसने घर की खुशियों को ढंक लिया था, छंटने लगा था । धीरे धीरे कृत्रिम हंसी स्वाभाविक हंसी में तब्दील होने लगी थी । 

सचिन के जीजाजी और सचिन का दोस्त दोनों ही बड़े मजाकिया थे । सचिन का दोस्त रवि लगभग 40 साल की उम्र का था । सबको बड़ा आश्चर्य हो रहा था कि सचिन तो 25 साल के थे मगर उनका दोस्त 40 साल का । यह कैसे हो सकता है ? लोगों के चेहरे पढ़कर रवि खुद ही बोल पड़ा । 

"हमारी दोस्ती कोई बचपन की नहीं है । हमारी दोस्ती तो स्कूल में हुई थी" । 

रवि की बातों से मामला और भी पेचीदा हो गया था । रवि कह रहा था कि उनकी दोस्ती बचपन में नहीं हुई मगर वह यह भी कह रहा है कि दोस्ती स्कूल में हुई । इसमें क्या रहस्य है ? 

रहस्य से पर्दा उठाते हुए रवि ने कहा "अजी , दोस्ती स्कूल में जरूर हुई है पर यह स्कूल वह नहीं है जहां हम पढ़े थे बल्कि यह स्कूल वह है जहां हम दोनों पढ़ाते हैं । अब समझे" ? और रवि खिलखिलाकर हंस पड़ा । जब सबको यह बात समझ में आई तो सब लोग भी हंस पड़ें । 

"और हां, एक बात और । मेरी उम्र 50 साल है 40 नहीं" । 


एक बार सबको बड़ा आश्चर्य हुआ । लोग तो अपनी उम्र कम बताते हैं , ये बंदा ऐसा है जो अपनी उम्र अधिक बता रहा है । लगता है कि सत्यवादी हरिश्चंद्र के बाद सत्य बोलने वाला यही बंदा पैदा हुआ है । लोग उसकी स्पष्टवादिता से बहुत प्रभावित हुए । बातों बातों में सब लोग अनौपचारिक होते चले गए । 


अब मेंहदी की रस्म की बारी थी । औरतों में उत्साह की कमी नजर आ रही थी । सोनू को तैयार किया जा रहा था लेकिन वह बहुत उदास थी । उसका मन बिल्कुल नहीं था लेकिन उसे तैयार तो करना ही था । रवि ने शिवम और रत्नेश जी से कहकर डी जे का इंतजाम कर लिया था । माहौल बदलने के लिए चौक में महफ़िल सजाई गई और डेक बजा दिया गया । एक तरफ औरतें और दूसरी तरफ मर्द बैठ गये थे । डेक बज रहा था मगर कोई भी आदमी और औरत नाचने के लिए खड़ा नहीं हुआ । तब रवि उठकर खड़ा हुआ और उसने "अपनी तो जैसे तैसे, थोड़ी ऐसे या वैसे कट जायेगी, आपका क्या होगा जनाबे आली" पर डांस करना शुरू कर दिया । उसके डांस स्टेप्स कमाल के थे । पचास की उम्र में भी शरीर में इतनी लचक देखकर सब लोग अपने दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हो गए । रवि का साथ देने के लिए रत्नेश जी, शिवम, आर्यन और दूसरे लोग भी आ गये । सब लोगों के चेहरे फिर से खिल उठे थे । बहारों का मौसम फिर से आ गया था । 


सुमन का ध्यान अब रवि की ओर गया । एक आदमी ने कैसे माहौल बदल दिया था । रवि के व्यक्तित्व में कुछ खास था जो सबको अपनी ओर आकृष्ट कर रहा था । उसका हंसता हुआ चेहरा , थिरकते कदम , बलखाती कमर , फिटनेस और आकर्षक व्यक्तित्व । पचास का होने के बावजूद वह चालीस से अधिक नहीं लग रहा था । वह मस्ती से डांस कर रहा था और एक एक करके लोग उसके साथ डांस करने लगे थे । गाना खत्म हो गया था । 

रवि ने घोषित कर दिया कि अब औरतों की ओर से डांस किया जायेगा । औरतों में कानाफूसी शुरू हो गई । पहले कौन ? मेहमानों के सामने डांस करने में शुरू में थोड़ी झिझक होती है ना ! लेकिन रवि तो रवि है , उसने नेहा को पकड़ लिया और उसे डांस फ्लोर तक ले आया । नेहा तो डांस की दीवानी थी झट तैयार हो गई । उसने अपने पसंदीदा गीत "कजरारे कजरारे मेरे कारे कारे नैना" बजवा दिया । उसने रवि से इस गीत पर साथ में डांस करने का आग्रह किया । दोनों ने मस्त डांस किया । तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा चौक गूंज गया । वातावरण में फिर से बसंत की महक घुल गई थी । सोनू का चेहरा भी अब चमकने लगा था । 

सोनू की एक उंगली में शगुन की मेंहदी पूजा ने लगा दी थी । इस तरह मेंहदी की रस्म हो गई थी । अब सबको मेंहदी लगवानी थी । दौलत ने दो लड़कियां मेंहदी लगाने के लिए बुलवा ली थीं । उधर नाच गाना चल रहा था इधर मेंहदी लगाने का काम चलता रहा । बीच बीच में हंसी मजाक भी चलते रहे । औरतें मेहमानों को "गारी" गाने लगीं थीं । 

"सचिन की बहनिया ऐसी छिनरिया नौ नौ खसम करावै, रंग बरसैगो" 

एक खसम वा धोबी को छोरा जापे कपड़े सब धुलवावै, रंग बरसैगो

दूजो खसम वा तेली को छोरा जा से मालिश खूब करावै, रंग बरसैगो

तीजा खसम एक हलवाई को छोरा खाना वा से बनवावै, रंग बरसैगो

चौथा खसम एक जाट को छोरा जा से अपने पैर दबवावै, रंग बरसैगो" 

और इस तरह उसके नौ नौ खसम (पति) का वर्णन किया गया । गारी गीतों की यही विशेषता होती है कि सामने वाले का हंसते हंसते कचूमर निकालना होता है । पूजा भी गारी सुनकर हंसती रही । औरतों ने फिर पूजा के पति राघव के लिए गारी गाई । उसके बाद रवि का नंबर आया । रवि इसका भी आनंद लेने लगा । रवि को गारी सुनाने के बाद औरतों ने गारी गाना बंद कर दिया तो रवि ने कहा 

"अब हमारी बारी" 

पूजा ने रवि की ओर देखा और आंखों ही आंखों में कहा कि उसे नहीं आती हैं गारियां । लेकिन रवि ने उधर देखा ही नहीं और उसने गारी गाना शुरू कर दिया 

"गंगा कैसी बहे री मोय देखवे कौ चाव - 2 

सोनू की मम्मी नहाने चाली संग लिये दो यार 

गंगा कैसी बहे री मोय देखवे कौ चाव । 

नेहा की मम्मी बाजार चाली संग लिये दो यार 

गंगा कैसी बहे री मोय देखवे कौ चाव 

शिवम की बुआ पार्लर चाली संग लिए दो यार 

गंगा कैसी बहे री मोय देखवे कौ चाव" 

इसी तरह वह गाता रहा । जब रवि ने शिवम की बुआ का जिक्र किया तो सुमन हंस पड़ी । जब गारी में किसी का जिक्र होता है तो उसे बड़ा आनंद आता है । सुमन को भी बड़ा आनंद आ रहा था । इस गारी कार्यक्रम से उसका मूड भी फ्रेश हो गया था । 

इस प्रकार घर का माहौल फिर से शादी वाला हो गया था । अब सबको मजा आने लगा था । 

मेहमानों को जाना था इसलिए उन्होंने विदा मांगी । औरतों ने उनसे आग्रह किया कि आप तो आज यहीं रुक जाओ । ऐसा कैसे हो सकता था । फिर दोनों ओर से मान मनौव्वल का दौर चलता रहा । अंत में पूजा ने कह दिया कि रवि को छोड़कर जा रहे हैं हम लोग । ये अकेले ही पूरी महफ़िल के बराबर हैं । बेचारा रवि ? पूजा ने उसे फंसा दिया । 


क्रमशः 



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