साथी हाथ बढ़ाना
साथी हाथ बढ़ाना
"किसकी चिट्ठी है श्री ?" वेद ने अंदर से ही पूछा।
"चिट्ठी नहीं जी, आमंत्रण पत्र है, अपने ही गाँव से आया है, कोई सत्तू लिखा है,
सत्तू यानी सत्यदेव, उसका आमंत्रण पत्र था, लिखा था उसकी बेटी के जन्मोत्सव था पंद्रह दिन बाद। वेद के मष्तिक में विचारों का चलचित्र चल पड़ा। आज बीस साल हो गए थे गाँव छोड़े, आना जाना भी नहीं होता.. हाँ माँ जाती थी कुलदेवी पूजन को कभी कभार, अब तो यादें भी धुंधली हो गई थी।
"श्री! चलते हैं गाँव बहुत दिन हुए, जब पिताजी की शहर में नौकरी हुई तो मैं पांचवी में था और हम गाँव छोड़ आए, ये सत्तू मेरा बहुत अच्छा दोस्त था, साथ स्कूल जाते थे। उनका परिवार बहुत अभाव में जीवन व्यापन करता था, आज इतने प्यार से बुलाया है.. वैसे पता कहाँ से मिला होगा"। प्रश्नो के उधेड़बुन के बीच वो तय समय पर गाँव पहुंचे।
दिए हुए पते पर गए तो आँखे फटी रह गई। बड़ा सा मकान, गाय, भैंस का तबेला, दरवाजे पर दो दो ट्रैक्टर खड़े थे। उसने दरबान से कहला भेजा अपने आने की खबर। सत्तू और उसकी पत्नी अंदर से भागते हुए आए और पैर छुए," अरे ये क्या.." वेद सकपका गया।
"वेद! तुम तो कृष्ण हो मेरे अपने सुदामा का जीवन संवार दिया"
"मैंने? कैसे दोस्त.. मैं तो बरसों से मिला तक नहीं"
"जब मेरे पास स्कूल जाने की क्षमता ना थी तो तुम मुझे जबरदस्ती ले जाते थे, तुम्हारे पिताजी ने पढ़ने का हमेशा खर्च उठाया और बिना जाने मेरे दसवीं तक की पढ़ाई की व्यवस्था कर दी, बाद में मैंने ट्यूशन दे कर आगे की पढ़ाई की। अपनी शिक्षा को खेतीबाड़ी मे उपयोग किया तो धरती सोना उगलने लगी। ".. भगवान तुम जैसा दोस्त सबको दे जो जीवन सुफल कर देते हैं। मैंने तुम्हारा पता खोजा और चाहता था मेरी खुशियो में तुम शामिल हो जाओ।
वेद को याद था कैसे सज धज के वो सत्तू को बुलाने जाता था स्कूल के लिए, और वो अपना झोला लिए आ जाता था कंधे से कंधा मिलाए। कहने पर भी कभी उसने वेद से बस्ता नहीं लिया, सत्तू के पिताजी ने कहा था आदतें मत खराब करो.. कल को बाबू लोग मदद नहीं करेंगे तो कहां से आएगा। सत्तू तो बस पढ़ने का भूखा था, वेद के आने से पहले तय्यार रहता था।
वेद खुशी भरें आंसू लेकर सत्तू के कंधे से कंधा मिलाकर अंदर वैसे ही गया जैसे दोनों कभी स्कूल जाया करते थे।
आज उन्हें स्कूल में पढ़ी मुहावरा याद आया की कैसे एक और एक ग्यारह हो सकते हैं, एक दूसरे की मदद करके उन्हें उपर उठने को प्रोत्साहित करके। सत्यदेव को जहां एक उज्जवल भविष्य मिला वहीं वेद को सुदामा जैसा मित्र जो इस मतलबी दुनिया में उसके दिए गए सहायता को दिल में बसाये घूम रहा है।