साहब और नीशू
साहब और नीशू
मास्टरजी तुरन्त ही सरोजिनी और जमींदार को बुलाते हैं। थोड़ी देर बाद सरोजिनी और जमींदार आ पहुँचते हैं, उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था, वो जाकर निशा से मिलते हैं। तो निशा उनको घर चलने का कहती है? तभी जमींदार और सरोजिनी उसे ले कर बहार आते हैं। तब ये सब देखकर मास्टरजी चुप चाप खड़े हुए थे। पर निशा ने उनकी ओर एक बार भी नहीं देखा, वह सोचते हैं कि इन चार सालो में कभी भी देखने तक नहीं आए, आज अपनी बेटी को साथ ले जा रहे हैं। पर फिर भी मास्टरजी कुछ नहीं कहते क्यों कि उनको पता था, कि निशा की सारी यादें मिट गई है।
कुछ समय के बाद निशा के घर में उसे शादी की बात करते हैं। पर निशा पढ़ना चाहती थी, इसलिए उसे दसवीं कक्षा की छात्रा बना कर पाठशाला में दाखिल किया गया । वहाँ उसने वापस मास्टरजी को देखा, तो उसे वहाँ देखकर चौक उठी, कि ये इंसान यहाँ? उसने अपनी आसपास की लड़कियों को पूछा, तो पता चला कि ये मास्टरजी है। और निशा के पति भी, तो वो एकदम दंग हो कर वहाँ से उठ कर चली गई अपने घर की और, घर जाने पर उसने सरोजिनी से पूछा कि सब कहते हैं मास्टरजी मेरे पति है? क्या ये बात सच है ? पर सरोजिनी चुप रही, उसकी इस तरह चुप रहने की वजह से उसे ये बात अंदर ही अंदर से खाने लगी। वह उसी बात को लेकर चिंतित होने लगी, कि ये कैसे हो सकता है? इसी वजह से उसके दिमाग पर जोर पड़ने पर एकदम से वहीं गिर पड़ी, फिर वापस खड़ी हुई और अपने कमरे में जाकर खुद को बंद कर दिया। अगले दिन वह उठी तभी उसका सर दर्द से भारी भारी लगने लगा कि मानो किसी ने सर पर जोर से कुछ मारा हो। फिर भी वह तैयार हो कर पाठशाला गई। वहाँ वापस मास्टरजी को देख कर वह वापस चिंतन करने लगी। तो वापस चक्कर आने लगे और वहीं गिर पड़ी, तभी मास्टरजी तुरंत उसे लेकर चिकित्सालय गए। वहां चिकित्सालय में उसके पास एक लड़की को बिठा कर पाठशाला आ गए। और जमींदार तक खबर पहुंचाते हैं।
वहाँ चिकित्सालय में सरोजिनी और जमींदार आ पहुँचते हैं। वह सुनते हैं कि निशा बेहोशी की हालत में साहब साहब पुकार रही थी। वहीं सब सुन कर सरोजिनी समझ जाती है, कि उसे सब याद आ रहा है। सरोजिनी निशा के पास जाकर सर पर हाथ रखकर कहती हैं, कि क्या हुआ निशा बेटा होश में आओ तब चिकित्सक वहाँ आ पहुंचे उन्होंने कहा कि उसने अपने दिमाग पर जोर देने की वजह से अपनी पुरानी यादें वापस आ रही है। उतनी ही देर में निशा होश में आती है उसे घर ले जाते है।
घर पहुंचे की वहाँ वो अपने बड़े पापा को देखते हैं, और जोरों से चिल्लाने लगती है। चिल्लाते चिल्लाते कह रही थी कि ये इंसान बुरा है। उसे दूर ले जाओ, उसे मुझसे दूर रखो, तभी जमींदार कहते हैं, निशा ये तुम्हारे बड़े पापा हे। ऐसे बर्ताव मत करो उनके साथ पर निशा तो बहुत डरी हुई थी, वो जो हाथ में आए वो अपने बड़े पापा पर फेंक रही थी। जमींदार को गुस्सा आता है, वहीं निशा को जोर से चांटा लगा देते हैं। निशा बेहोश हो जाती है, और जमींदार वहाँ से चले जाते हैं उसके पीछे सरोजिनी भी जाती है। उनको समझाती है, कि ऐसा ना करे वह अभी अभी ठीक हुई है। रात को अपने कमरे में वैसी ही हालत में पड़ी रहती है।
