Yogendra Soni

Drama Romance Crime

4.0  

Yogendra Soni

Drama Romance Crime

साधु का श्राप।

साधु का श्राप।

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 पार्ट -1

         चंदेरी गांव में एक ऐसा तालाब है जो हर किसी को अपने पास बुलाता है। उस तालाब के पानी की सुंगध हर किसी को अपनी तरफ आकर्षित करके खींची लेे आती है। तालाब बिल्कुल चौकोर सा बना है कोई इसकी देखभाल नहीं करता तब भी ये हमेशा नया लगता है। ऐसा लगता है मानो किसी ने फुर्सत में बैठकर चारों ओर से चौकोर तालाब बनाया हो। कहने को ये तालाब है लेकिन ये किसी झील से कम नहीं।

                   तालाब काफी बड़ा है हर कोई दंग है। इस चौकोर तालाब में पानी हमेशा स्वच्छ बना रहता है। ये करीब दो नदियों के बीच बना है इन दोनों नदियों के बीच की दूरी तलाब के एक ओर से 5 किलोमीटर और दूसरी ओर से करीब 8 किलोमीटर है इतनी दूर नदियों के होने पर भी तालाब का भरा रहना रहस्यमई था।

                   जब से गांव बसा है कोई नहीं जानता ये तालाब कब, कैसे और किसने बनवाया। पुराने गांव के लोगों का मानना है कि यह ईश्वरीय देन है। तालाब के बगल में 2 पेड़ भी लगे हैं जिसके बारे में कोई कुछ नहीं जानता। लोगों को लगता है कि यह पेड़ ही तलाब की रक्षा करता हैं। स्वर्ग सा सुंदर दिखने वाला तालाब अब गांव वालों के लिए बन्द पड़ा है क्यूंकि यहां अनेकों बच्चे, बूढ़े, स्त्रियां जो भी इसमें आनंद लेने गया वो मारा गया या डूबकर मर गया।

          हाल ही में शिवा नाम का लड़का पतंग लूटते लूटते उस तालाब की ओर जा पहुंचा। साथ में अमन भी था। अमन ने कहा भाई शिवा इस तालाब की ओर मत चलो उधर कोई आत्मा है। हम लोगों को मार देगी और अगर घर वालो को पता चला तो भी मारे जाएंगे । शिवा कहता है पागल हो क्या तुम? घर वालो को कौन बताएगा? कहता है अपनी पतंग ले के हम लोग भाग आयेंगे, और कहो राजू ओर श्याम की भी पतंग हमें मिल जाए। वो भी इधर आई थी।

         

     शिवा, अमन के साथ चल देता है पतंग के पीछे पीछे। पतंग तालाब में गिर जाती है लेकिन भीगती नहीं है। अमन कहता है पतंग पानी में गिरी भीगी नहीं। शिवा कहता है हमसे क्या और तालाब में पतंग लेने कुदता है अमन दूर खड़ा देखता है शिवा अपनी पतंग उठा लेता है तभी देखता है 2 पतंग और है, आगे बढ़ता है उन्हें भी उठा लेता है और शिवा अमन से कहता है तुम लोग फर्जी में परेशान होते हो। तभी और 2 पतंग तालाब में दिखती है शिवा उन्हें भी उठाने बढ़ता है तभी अमन कहता है भाई बस करो 3 पतंगे हो गई है। अब आगे मत बढ़ो, आगे गहरा पानी है और पानी तुम्हारे कानों तक आ गया है । शिवा कहता है बस यार यह दो पतंग, और बस चलता हूं शिवा आगे बढ़ता है। अब शिवा पानी के अंदर चला जाता है और दिखाई नहीं दे रहा होता है। अमन शिवा शिवा आवाज देने लगता है तभी शिवा का सिर बाहर आता है और कहता है भाई यह देखो 5 पतंग हो गई। तुम खामखा डर रहे थे।

        

           शिवा तालाब से बाहर निकलने लगता है वैसे ही कोई शिवा की टांग पकड़ कर अंदर खींचने लगता है। शिवा चिल्लाने लगता है बचाओ बचाओ। अमन यह देखकर गांव वालों को बुलाने लिए भागता है और चिल्लाता हुआ गांव की ओर भागता है। बचाओ मेरे दोस्त को, शिवा डूब रहा है तभी गांव के मुखिया और सभी लोग तालाब की ओर भागते हैं। सभी लोग तालाब के पास पहुंचकर देखते है कि शिवा की लाश पानी में तौर रही है। उस दिन से ना अमन कभी उस तालाब की ओर देखता है और ना ही गांव का कोई सदस्य उस तालाब की ओर देखता है। इसलिए गांव के मुखिया ने उस तालाब की ओर जाने वाली रास्ते में एक दरवाजा लगा दिया है जिससे कोई उधर ना जा सके।

                  गांव के मुखिया का नाम रामचंद्र है। रामचंद्र की शादी को 5 साल हो गए और उन्हें आज जाकर एक लड़का हुआ है। आज पूरे गांव में खुशी का माहौल छाया हुआ है। आज मुखिया ने हर घर में लड्डू बटवाए हैं और एक बहुत बड़ी दावत भी शाम को रखी है। मुखिया की पत्नी राम किशोरी कहती है, सुनिए जाइए पंडित जी को बुला लीजिए, अपने बच्चे का भविष्य भी वह देख लेंगे। और 10 पंडित जी और बुला लीजिएगा। 11 पंडितों को भोजन करा देंगे। मुखिया रामचंद्र कहता है तुम इतना परेशान मत हो। मैं अभी नौकर को भेज देता हूं तभी पत्नी रामकिशोरी कहती है ऐसे खुशी के समय में नौकर को नहीं आपको जाना चाहिए । और उनके खाने का भी प्रबंध करना है जाइए जल्दी कहके आइए। रामचंद्र कहता है हां जाता हूं जाता हूं इतना कहकर रामचंद्र पंडित जी से कहने चला जाता है।

        रामचंद्र, पंडित जी से कहकर जैसे ही लौटता है इधर बारिश बहुत तेज होने लगती है। रामचंद्र सोचता है यह क्या हो गया शाम को दावत है और पानी भी गिरने लगा कैसे दावत होगी। पानी और जोर पकड़ लेता है और बिजली की चहचहाहट के साथ पानी बंद नहीं होता। किसी तरह रामचंद्र अपने घर पहुंचता है। राम किशोरी कहती है आप भीग गए हैं जाइए कपड़े बदल लीजिए। रामचंद्र यह कहते हुए कमरे में चला जाता है कि ना जाने पानी कब बंद होगा। पत्नी राम किशोरी कहती है आप परेशान ना हो पानी बंद हो जाएगा। आज हमारे घर में खुशी का समय है इसलिए बारिश तो होगी ही। कुछ समय बाद पानी धीमा हो जाता है और 11 पंडित रामचंद्र के घर आ जाते हैं।

           रामचंद्र और राम किशोरी सभी 11 पंडितों के चरण धोते हैं और आसान ग्रहण कराते है। रामचंद्र नौकर से कहता है जाओ देखो किचन में भोजन तैयार हो गया है कि नहीं। नौकर कहता है हां मालिक भोजन तैयार है। रामचंद्र कहते हैं जाओ फिर लेकर आओ।

             नौकर भोजन लेकर आ जाते हैं। रामचंद्र और रामकिशोरी पंडितों को भोजन कराते हैं। सभी पंडितों का भोजन हो जाने के बाद। रामकिशोरी अपने बेटे को लेकर पंडितो की सभा में लेके आती है और कहती है पंडित जी आप मेरे बच्चे का भविष्य देख कर बताओ कि उसका आने वाला कल कैसा होगा। और ये भी बताएं कि हम अपने बेटे का क्या नाम रखें।

       

     पंडित रवि शंकर शास्त्री इन 11 पंडितों में सबसे महान होते हैं और सभी के गुरु भी होते हैं । रवि शंकर शास्त्री बच्चे को हाथ में लेते हैं और बच्चे की मुख की ओर देखते हैं और काफी सोच में डूब जाते हैं रामकिशोरी कहती है क्या हुआ पंडित जी, आप कुछ बोल क्यों नहीं रहे।

          पंडित जी कहते है बेटा मैंने अब तक हजारों बच्चों के भविष्य को देखा है लेकिन यह बालक तो बिल्कुल अद्भुत है यह एक दिव्य आत्मा है इसका जन्म तो किसी उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए ही हुआ है। तेरा बालक बहुत ही बुद्धिमान और होनहार होगा। और यह आगे चलकर एक महान राजा भी बनेगा। यह इस पूरे गांव का उद्धार करेगा। तभी किशोरी कहती है कि मेरे बालक के जीवन में कोई खतरा तो नहीं आएगा। पंडित जी कहते हैं हर व्यक्ति के जीवन में खतरा आता है और चला भी जाता है। और रही तुम्हारे बेटे की बात तो इसे ईश्वर स्वयं बचाएगा। इसका कोई कुछ नहीं कर सकता। और अब तुम्हारे कोई बालक भी नहीं होगा। यही तुम्हारा पहला और अंतिम बालक होगा। और नक्षत्रों को देखते हुए तुम्हारे बालक का नाम सैवीर होगा।

    रामचंद्र और रामकिशोरी अपने बच्चे का भविष्य जानकर काफी खुश हो जाते है। और धूमधाम से शाम की दावत भी करते हैं ।

                   सैवीर धीरे-धीरे बड़ा होने लगा है और मां से कई तरह के प्रश्न भी करने लगा है।

        

 पार्ट -2 

    एक दिन सैवीर मां से पूछता है कि मां मेरी जांघ पर यह सिंहासन कैसा बना हुआ है मां कहती है देखे बेटा, मां कहती है यह कब बना। पहले तो नहीं था। हां मां कल तक तो नहीं था मैं आज सुबह नहाने के लिए गया, तब मैंने देखा कि ये सिंहासन मेरे जांग पर बना है।

         और मां मैंने कल सपने में देखा कि एक परी मुझे अपने पास बुला रही है और कह रही है कितने साल हो गए? तुम अभी तक कहां थे?

   रामकिशोरी बड़ी व्याकुल हो जाती है और राम किशोरी अपने बेटे को लेकर पंडित जी के यहां जाती है पंडित जी से बताती है पंडित जी मेरे बेटे ने कल एक सपना देखा है कि एक परी इसे बुला रही है और आज सुबह इसकी टांग पर यह सिंहासन बना हुआ है या कैसे हुआ। बचपन में तो केवल एक काला सा निशान था।

                  पंडित जी देखते हैं और कहते है बेटा रामकिशोरी, जब यह पैदा हुआ था तब ही मैंने कहा था कि या कोई दैवीय अवतार है। तुम मानो या ना मानो तुम्हारा बेटा किसी उद्देश्य के लिए ही यहां आया है। राम किशोरी कहती है कैसा उद्देश्य पंडित जी? पंडित जी कहते हैं " विधि के विधान को कोई बदल नहीं सकता। और ईश्वर की लिखी हर बात को कोई जान नहीं सकता"।

    इसलिए तुम घर जाओ और समय का इंतजार करो। क्योंकि इसके आगे का तुम्हें जानने का, अभी समय नहीं आया है। बस इतना जान लो तुम्हारा बेटा जिस उद्देश्य के लिए आया है वह समय चक्र अब शुरू हो चुका है।

                       रामकिशोरी बड़ी उदास मन से अपने बेटे को लेकर घर चली आती है।

      दो दिन बाद आज सैवीर का 18वा जन्मदिन है। रामचंद्र और रामकिशोरी अपने बेटे के जन्मदिवस को बहुत ही धूमधाम से मनाते हैं और गांव के कई लोगों को आमंत्रित करते है।

         अपना जन्म दिवस मनाते हुए सैवीर केक काट रहा है तभी उसकी नजर एक लड़की पर पड़ती है जिसके रेशम जैसे कमर तक बाल, आंखों में हल्का काजल, चेहरे पर मंद-मंद हंसी, चहरा ऐसा की जैसे धरती पर उतरा चांद, और उसके गालों पर सूरज जैसी चमक। सैवीर उसे देखता ही रह जाता है तभी वो लड़की इशारा करती है कि केक तो काट लीजिए।

       सैवीर केक काटकर अपने मां-बाप को खिलाता है। और कमरे में "हैप्पी बर्थडे सैवीर" की आवाज गूंज पड़ती है।

            फिर सभी लोग नाश्ता पानी करने में लग जाते हैं। लेकिन सैवीर की आंखे उस लड़की को ढूंढने में लग जाती हैं। वो लड़की एक ओर खड़ी, सैवीर को देख रही होती है। सैवीर, उसे ढूंढ लेता है और उसके पास जाता है। सैवीर उस लड़की से कहता है आप कैसी हैं? क्या नाम है आपका? कहती है हम तो ठीक हैं आप बताइए। मेरा नाम

शिवांगी है। और दोनों में वार्तालाप आगे बढ़ती है _

सैवीर- हमने आपको पहले कभी नहीं देखा। क्या आप इसी गांव की है।

शिवांगी - हमने भी कभी आपको नहीं देखा , नहीं मै इस गांव की नहीं बल्कि बगल वाले तिरस्कर गांव की हूं। मेरे पापा उस गांव के मुखिया है।

सैवीर- अच्छा आप सोनभद्र जी की बेटी है। उन्हें कौन नहीं जानता। अक्सर मेरे पापा उनकी बात घर में किया करते हैं।

शिवांगी - हां मेरे पापा भी आपके पापा की बात करते हैं कि आपके पिताजी बहुत ही ईमानदार और कर्मठ मुखिया है।

सैवीर - आपसे एक बात बोलें।

शिवांगी - बोलिए ।

सैवीर - आप बहुत खूबसूरत हैं मैं आपको देख कर होश खो बैठा और आपको देखता ही रहा।

शिवांगी - हंसती हुई अच्छा। वैसे आप भी बहुत सुंदर हैं।

सैवीर- आपने कुछ खाया।

शिवांगी - नहीं।

सैवीर- आइए कुछ खाते हैं।

और दोनों लोग खाते हुए वार्तालाप करते जाते हैं। और दोनों लोग बहुत देर तक ढेर सारी बातें करते हैं। तभी सैवीर की मां आवाज देते हुए पीछे से आ रही होती है। सैविर, शिवांगी से कहता है कि कल मैं तलाब वाले गेट के पास शाम को 4 बजे आऊंगा। क्या आप मुझसे मिलने आ सकोगी। ठीक है, समय निकाल कर आऊंगी। तभी सैवीर अपने मां की तरफ चला जाता है।

             राम किशोरी बेटा कहां चले गए थे तुम। कहीं नहीं मां बस दोस्तों के साथ एंजॉयमेंट कर रहा था। और आप और पिताजी ने खाना खा लिया। बेटा तुम्हारे बिना कैसे खाएंगे। तुम भी मां! मैंने तो खा लिया। ठीक है तो हम भी अब खा लेंगे।

और कार्यक्रम समाप्त हो जाता है।

            सैवीर के पिताजी शिवांगी के पापा को बाहर छोड़ने जाते है। सैवीर भी पीछे पीछे शिवांगी को देखता हुआ चला आता है और दोनों एक दूसरे को देखते है तभी सोनभद्र, रामचन्द्र से हाथ मिलाते है और वो लोग गाड़ी में बैठकर निकल जाते है। सैवीर की आंखे शिवांगी से कल को मिलने के इंतजार में व्याकुल रहती है।

     आज सैवीर को नींद नहीं आ रही है शायद कल का इंतजार उसे सोने नहीं दे रहा। सैवीर की मां बेटा तुम इतना थक गए हो तब भी तुम्हें नींद नहीं आ रही। पता नहीं क्यों मां। चलो मैं तुम्हे लोरी सुना दूं। क्या मां? मै कोई छोटा बच्चा नहीं रहा अब। बड़ा हो गया हूं। हां हां पता है।

   मां, मै कल से अपने दोस्त बलराम के साथ घूमने बाहर चला जाया करूँ, थोड़ी देर के लिए। कहां जाओगे मेरे लाल। कहीं नहीं बस अपने गांव को थोड़ा जान तो लूं वैसे भी पिताजी गांव के मुखिया हैं मुझे कोई जानता ही नहीं है। ठीक है चला जा थोड़ी देर के लिए। लेकिन तालाब की ओर भूलकर भी कभी मत जाना। हां मां उधर नहीं जाऊंगा, तूने बताया है ना उधर भूत है। हां बेटा सो जा।

     सैवीर सो जाता है रात में सैवीर को एक डरावना सपना आता है देखता है एक परी उसे उठाकर ले जा रही है। सैवीर बचाओ बचाओ कह रहा है लेकिन वह परी उसे नहीं छोड़ती है। तभी सैवीर की आंखें खुल जाती हैं। देखता है उसकी मां बगल में लेटी है। समझ जाता है यह डरावना सपना था। और सैवीर अपने माथे का पसीना पोछ कर सो जाता है। सुबह जब उठता है तो अपनी मां को सपने के बारे में नहीं बताता है सोचता है मां को बताऊंगा। तो मां खामखा डर जाएगी और फिर पंडित के पास मुझे लेकर जाएगी।

        

                         सैवीर अपने दोस्त बलराम से बताता है कि उसे एक लड़की से प्रेम हो रहा है और सारी बात बता देता है। बलराम उसका बचपन का दोस्त है। बलराम ने उसकी शैतानियो में भी उसका साथ दिया है। बलराम कहता है तभी मैं कहूं मेरे दोस्त ने जन्मदिन पर भी मुझसे मिलना ठीक नहीं समझा। सैवीर कहता है नहीं भाई। ऐसा नहीं है जन्मदिन पर मैंने तुम्हें देखा तो था। लेकिन मैं उस लड़की को देखकर मैं किसी से नहीं मिल पाया और उसी से बात करता रहा। बलराम कहता है लड़की कौन है? सैवीर उसे पूरी बात बता देता है।

         शाम को 4 बजने में कुछ ही समय शेष रहता है सैवीर तालाब के गेट पर पहुंच जाता है। तभी उसे कुछ आवाजें आती हैं और तालाब की महक उस दरवाजे तक होते हुए उसके नाक में पहुंचती है। सैवीर मन में सोचता है कि यह महक तो बहुत अच्छी आ रही है क्यों ना यह दरवाजा तोड़कर अंदर चला जाए। और तभी शिवांगी आ जाती है। सैवीर उस तालाब को भूल कर शिवांगी में ही खो जाता है।

  शिवांगी कहती है तुमने कहा था और मैं आ गई। मैं पहली बार घर में झूठ बोल कर आई हूं कि मैं अपनी दोस्त के यहां जा रही हूं। सैवीर भी कहता है कि मैं भी यही बात बोल कर आया हूं।

  

         शिवांगी कहती है यहां दरवाजे पर मत खड़े हो कोई हम लोगों को देख लेगा। क्यों ना हम लोग इस दरवाजे के अंदर चले। सैवीर कहता है इधर कोई नहीं आता है। अच्छा क्या है इस दरवाजे के अंदर सैवीर। सैवीर कहता है कि गांव के सभी लोग कहते हैं कि इस दरवाजे को मत खोलना और इस दरवाजे के अंदर से गई रास्ता किसी तालाब के पास पहुंचती है। और यह तालाब कई लोगों की जान ले चुका है।

    शिवांगी कहती है तुम भी इन कहानियों से डरते हो आओ चलो देखते हैं क्या है। शिवांगी और सैवीर उस तालाब के रास्ते की ओर बढ़ चलते हैं। लेकिन दरवाजे पर ताला पड़ा होता है दरवाजा काफी लंबा और चौड़ा होता है। सैवीर उस दरवाजे के ताले को तोड़ने की कोशिश करता है लेकिन ताला तोड़ नहीं पाता है और दरवाजे पर चढ़ना आसान नहीं होता है। सैवीर कहता है कल हम लोग फिर इसी समय आएंगे। और कल इस तालाब की ओर चलेंगे मेरे पिताजी के पास इस दरवाजे की चाभी है यह दरवाजा उन्होंने ही लगवाया था।

         शिवांगी कहती है ठीक है आज हम लोग यहीं बैठ कर बातें करते हैं। शिवांगी और सैवीर दोनों पास में पड़ी बैंच पर बैठ कर बातें करते रहते हैं और कब रात हो जाती है पता ही नहीं चलता।

   और दोनों का एक दूसरे को छोड़कर जाने की इच्छा नहीं होती। सैवीर कहता है शिवांगी मुझे तुमसे इतना प्रेम कैसे हो गया? मुझे पता ही नहीं चला । तुम बहुत अच्छी हो और हम दोनों के ख्याल काफी एक दूसरे से मिलते हैं। शिवांगी कहती है मुझे भी तुमसे बहुत प्यार हो गया है। तुम्हें छोड़कर दिल नहीं करता घर को जाने को। सैवीर, तुम मुझे छोड़ कर कभी मत जाना। सैवीर कहता है, हां हम लोग एक दूसरे के लिए ही बने हैं। शिवांगी कहती है अब चलना होगा। और दोनों लोग अपने- अपने घर की तरफ चल पड़ते हैं।

           सैवीर अगले दिन उस दरवाजे पर 4:00 बजे शिवांगी के इंतजार में पहुंच जाता है और साथ में किसी तरह अपने घर से उस दरवाजे की चाभी को छुपाता हुआ ले आता है। शिवांगी आज पहले ही आ चुकी होती है। सैवीर कहता है शिवांगी आज तो तुम मुझसे पहले ही आ गई। शिवांगी कहती है हां मां बगल वाली पड़ोसन के यहां जन्मदिन में गई है इसीलिए मैं जल्दी भाग आई। मां ने मुझसे कहा तुम भी चलो लेकिन मैंने तबीयत खराब का नाटक किया। देखो तुम्हारे इश्क में और क्या-क्या करना पड़े। और दोनों लोग जोर जोर से हंसने लगते हैं।

    

साधु का श्राप। ( पार्ट - 3)

                सैवीर हंसता हुआ बेंच पर बैठ जाता है। शिवांगी भी उसके बगल में बैठ जाती है तभी शिवांगी और सैवीर को दरवाजे के उस पार से मंद-मंद आवाजें सुनाई देती हैं जैसे कोई धीमी आवाज में बुला रहा हो। आओ..... आओ......

             सैवीर उस दरवाजे की ओर देखते हुए कहता है शिवांगी तुम्हे कोई आवाज सुनाई दे रही है। हां मुझे भी कुछ ऐसा लग रहा है और जैसे मंत्रमुग्ध करने वाली सुगंध भी आ रही है। और क्या तुम दरवाजे की चाभी लाए हो? सैवीर कहता है, हां मैं लाया हूं। तो फिर खोलिए दरवाजा। देखा जाए क्या है उस पार। सैवीर कहता है उस पार मत चलो। गांव का कोई भी इसमे नहीं जाता हैं। आखिरी बार शिवा नाम का लड़का इधर आया था जो जीवित नहीं बचा।

     

             शिवांगी क्या सैवीर? तुम्हारा नाम सैवीर है.... सै........वीर...... और आप डरते हो? सैवीर कहता है नहीं शिवांगी। मुझे किसी चीज से डर नहीं लगता और ना ही मैं डरपोक हूं। बल्कि डर इस बात का है कि मुझे कुछ हो गया तो मेरी मां का क्या होगा, वह तो मर जाएगी। शिवांगी कहती है ऐसा क्यों कहते हो ? क्या मैं तुम्हारे बिना रह सकूंगी? अच्छा ठीक है मत चलो ।

      सैवीर कहता है नहीं चलो तुम्हारी खुशी में ही मेरी खुशी है तुम्हारा मन मारकर मुझे अच्छा नहीं लगेगा। आज देखते भी हैं क्या है उस पार? मैं भी जाना चाहता हूं। और आज तो, तुम भी मेरे साथ हो।

           सैवीर, शिवांगी का हाथ पकड़कर दरवाजे की ओर ले जाता है। सैवीर दरवाजे का ताला खोल देता है और जैसे ही दरवाजे को पीछे की ओर धक्का देता है, बहुत ही सुंदर दृश्य उसे दिखाई पड़ता है। शिवांगी कहती है तुम तो कहते थे कि इसमें आत्माएं हैं, लेकिन यहां तो बहुत ही सुंदर दृश्य देखने को मिल रहा है। चारों ओर पेड़ की लटाएं दिखाई दे रही है और सामने एक रास्ता जा रहा है और ऐसा लग रहा है जैसे मानो हम स्वर्ग में कदम रखे हो। भला ऐसी सुंदर जगह पर कोई आत्मा किसी का क्या बुरा करेगी। सैवीर कहता है तुम सही कह रही हो। रुको दरवाजा तो बंद कर दे, नहीं तो किसी ने देख लिया तो पूरे गांव में हल्ला हो जाएगा। और सैवीर दरवाजा बंद कर देता है अब दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़कर मटकते हुए चल देते है। शिवांगी कहती है ये पेड़ कितने खूबसूरत है मानो ऐसा लग रहा है कि इन्हें स्वर्ग से लाकर यहां लगाया गया हो। और ये पुष्प तो बिल्कुल सूर्य के तेज की तरह चमक रहे हैं। सैवीर कहता है सही कह रही हो बहुत ही अद्भुत दृश्य है। फूलों को मत तोड़ो, मैं तोड़ता हूं रुक जाओ, तुम नहीं पहुंच पाओगी। और सैवीर कई पुष्प तोड़कर शिवांगी को दे देता है। शिवांगी कहती है कि इस पुष्प की महक तो बहुत ही अलग है ऐसा लग रहा है मानो हजारों पुष्पो की महक एक एक पुष्प में डाल दी गई हो। क्या विचित्र नजारा है सैवीर। और बातें करते हुए दोनों लोग तालाब के पास पहुंच जाते हैं।

         सैवीर सारा नजारा देखता रहता है और तभी उसके सिर में कुछ दर्द सी उठती है। शिवांगी कहती है मुझे लगता है तुम्हारे पापा इसीलिए दरवाजे को बंद कर दिए हैं ताकि यहां कोई भी ना आए। क्योंकि यहां का दृश्य बहुत सुंदर है अगर कोई आएगा तो सब बरबाद कर देगा। क्या हुआ सैवीर। कुछ नहीं बस सिर में दर्द सी है। शिवांगी कहती है तुम्हारा दर्द अभी 2 मिनट में ठीक हो जाएगा। यह देखो कितना विशाल तालाब है और कितना मनमोहक भी है और यह दो वृक्ष ऐसे लग रहे हैं जैसे हजारों वर्षों से खड़े हो। तालाब का पानी तो बिल्कुल ताजा और साफ है। सैवीर आओ इस तालाब के पानी को पीके देखे कैसा स्वाद है सैवीर जैसे ही उस तालाब के पानी में अपना एक पैर रखता है तलाब में बहुत तेज लहरें उठने लगती हैं। सैवीर , यह क्या हो रहा है कहते हुए दूसरा कदम भी रख देता है और दूसरे कदम के रखते ही तालाब की लहरें शांत हो जाती है। शिवांगी कहती है कि पानी जितना स्वच्छ और साफ है उतना ही विचित्र भी है और शिवांगी भी उस तालाब में आ जाती है सैवीर जैसे ही तालाब का पानी पीता है उसका सिर का दर्द गायब हो जाता है। और शिवांगी भी उस तालाब के पानी को पीती है।

     शिवांगी को बहुत मज़ा आ रहा होता है और सैवीर भी उसकी खुशी को देखकर मन ही मन प्रसन्न हो रहा होता है तभी शिवांगी पानी की कुछ झीटे सैवीर पर मारती है। सैवीर हाथ से झींटो को रोकते हुए कहता है ऐसा ना करो शिवांगी। मैं भीग जाऊंगा और घर भी तो जाना है। शिवांगी कहती है कल मैं कपड़े लेकर आऊंगी और तुम भी लेकर आना, हम दोनों यही नहाएंगे।

      सैवीर कहता है ठीक है अब तो मत फेको, मेरे ऊपर पानी। और तभी दोनों लोग तालाब से बाहर निकलते हैं एक दूसरे का हाथ पकड़कर।

            तालाब से बाहर निकलने के बाद शिवांगी कहती है मेरे गले में पता नहीं क्या हो रहा है सैवीर कहता है मुझे तो ऐसा कुछ नहीं हो रहा है।

     शिवांगी के गले का दर्द बढ़ जाता है वह सैवीर से कहती है पता नहीं मुझे क्या हो रहा है और वह जमीन पर गिर पड़ती है और देखते ही देखते दम तोड़ देती है। सैवीर..... तुम्हें कुछ नहीं हो सकता है शिवांगी, उठो, बोलो, कुछ तो बोलो। तुम्हें कुछ नहीं होगा और तेज तेज सैवीर चिल्लाने लगता है सैवीर रोते हुए शिवांगी को अपने गले लगा लेता है। कहता है अगर तुम्हें कुछ हो गया तो मैं इस पूरे तालाब को सुखा दूंगा और यहां की हर चीज उजाड़ फेकूंगा। तुम्हें कोई मुझसे नहीं छीन सकता।

सैवीर, शिवांगी को जमीन पर लेटा देता है और फिर गुस्से में अपना आपा खोकर तालाब के पास के सभी फूल और पेड़ों को उखाड़ने लगता है।      

             तभी एक सुंदर सी परी कहती है रुक जाओ सैवीर। ये तुम क्या कर रहे हो। तुम्ही ने तो वादा किया था 1 दिन यहां लौट कर आने को।

सैवीर- मैंने तुमसे कोई वादा नहीं किया और अगर मेरी शिवांगी को कुछ हो गया तो मैं इस तुम्हारे पूरे उपवन और तालाब को उखाड़ दूंगा और सब को जलाकर राख कर दूंगा।

परी- ठीक है रुक जाओ मैं शिवांगी को जिंदा कर देती हूं। तभी शिवांगी ठीक हो कर खड़ी हो जाती है।

सैवीर - तुम ठीक हो गई.... आज तुम्हें कुछ हो जाता तो मैं भी जिंदा ना रहता। और खुशी से शिवांगी को गले लगा लेता है। शिवांगी कहती है तुम्हारे होते हुए कोई मेरा क्या कर सकेगा।

शिवांगी- यह कौन है?

सैवीर - मुझे नहीं पता। बस इन्होंने ही तुम्हारी जान बचाई है।

शिवांगी - तुम कौन हैं और तुम इस तालाब के ऊपर कैसे खड़ी हैं?

परी - बहुत लंबी कहानी है मैं इस पूरे उपवन की देखभाल करती हूं और मैं इसी तालाब में रहती हूं।

सैवीर - क्या तुम ही सब की जान लेती हो? और तुमने ही गांव के कई लोगो को मारा है जिसमें शिवा नाम का व्यक्ति भी है।

परी - हां। लेकिन इसके पीछे बहुत लंबी कहानी है।

शिवांगी - क्या है ऐसा बताओ। जो तुम सबकी जान ले रही हो।

परी - आज से हजारों वर्ष पूर्व यहां एक बहुत बड़ा राजदरबार हुआ करता था..........

   

 साधु का श्राप। (पार्ट - 4)

               आज से हजारों वर्ष पूर्व यहां एक बहुत बड़ा दरबार हुआ करता था जिसके राजा चंदेरसिंह हुआ करते थे। वैसे तो सभी राजाओं की हजारों रानियां होती थी लेकिन चंदेरसिंह की एक ही रानी थी जिनका नाम देवी माया था। और राजा ने कसम भी खाई थी कि वह दूसरा कोई विवाह नहीं करेंगे।

         समय का चक्र बीतता गया और राजा की शादी को 10 वर्ष बीत गए। लेकिन उनके कोई भी संतान नहीं थी। तब राजा ने आसपास के पंडितों को बुलाया और उनसे पूछा ऐसा क्या कारण है कि मुझे कोई भी पुत्र नहीं है तो सभी पंडितों ने बताया कि उनकी मदद केवल इंद्रदेव ही कर सकते हैं चंदेरसिंह ने कहा इंद्रदेव के पास कैसे पहुंचा जाए तो पंडितों ने कहा, आपको एक यज्ञ कराना होगा तभी इंद्रदेव यहां प्रकट होंगे। वो ही रास्ता बताएंगे।

   

             चंदेरसिंह ने कहा ठीक है शुभ कार्य में कैसी देर की जाए। आप जैसा भी उचित समझे अनुष्ठान बताएं और किस प्रकार यज्ञ होगा कृपया बताएं।      

     पंडित जी कहते हैं यह यज्ञ 3 दिन भी चल सकता है और 51 दिन भी। इंद्रदेव जब भी प्रसन्न हो जाएंगे वह खुद ही यहां प्रकट होंगे। और आपकी समस्या का निवारण अवश्य करेंगे। इस यज्ञ का उचित समय कल प्रातः 7:00 बजे होगा। इतना कहकर सभी पंडित चले जाते हैं।

        इधर राजा कल के इंतजार में सारी तैयारियां शुरू कर देते हैं और यज्ञ सुबह 7:00 बजे शुरू हो जाता है जिसमें राजा और रानी भी यज्ञ में बैठते हैं यज्ञ कई दिनों तक चलता रहता है। आज यज्ञ को 8 दिन बीत गए हैं लेकिन कोई भी शुभ समाचार की घड़ी नहीं आई है। राजा अपने मन में सोचते हैं क्या इन्द्र देव हमसे रुष्ट है। क्या जो अभी तक दर्शन नहीं दे रहे हैं?.......... इसी तरह 2 दिन और बीत जाते हैं।...... और राजा काफी उदास यज्ञ में लिप्त रहते हैं। तभी एक तीव्र प्रकाश यज्ञ के ऊपर चमकता है और इंद्रदेव प्रकट होते हैं इंद्रदेव कहते हैं, हे राजन! तुम्हें क्या समस्याएं आन खड़ी है। जो तुमने मेरे लिए यज्ञ किया। राजा हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हैं और इंद्रदेव से कहते हैं, हे इंद्रदेव! आप तो सब कुछ जानते हैं मेरे पास किसी भी चीज की कमी नहीं है धन-धान्य साम्राज्य हर कुछ मेरे पास है, आपकी कृपा से। लेकिन इसे चलाने वाला भविष्य में कोई नहीं है मुझे 1 पुत्र की प्राप्ति चाहिए।

                इंद्रदेव कहते हैं यह तो कर्मों का फल होता है कि किसे क्या मिलेगा और किसे क्या नहीं....... हे राजन! यदि तुम पुत्र प्राप्ति चाहते हो तो तुम्हें अपनी पत्नी को 51 दिनों तक गंगा और सरस्वती के जल में स्नान कराना होगा, और 51 दिनों के बाद तुम्हारी पत्नी का गर्भधारण होगा। और यदि 51 दिनों में 1भी दिन का नागा किया तो तुम्हारी पत्नी कभी मां नहीं बन सकेगी। इसके लिए मैं एक अ़फसरा तुम्हें देता हूं याद रखना यह परी तभी तक तुम्हारे साथ रहेगी जब तक तुम्हारी पत्नी गर्भधारण नहीं कर लेती वही तुम्हारी पत्नी की रक्षा करेगी। और यदि गर्भधारण के बाद तुमने परी को रखा, तो या तुम्हारे लिए घातक होगा। इतना कहकर इंद्रदेव गायब हो जाते हैं।

   

         राजा चंदेरसिंह सोचते हैं कि गंगा और सरस्वती की यहां से दूरी काफी है और दोनों अलग-अलग है एक पूर्व में है तो एक पश्चिम में। मेरी पत्नी कैसे दोनों जल से एक साथ स्नान करेगी। पंडित जी कहते है दोनों नदियों के तट को काटकर यहां पर एक बड़ा तालाब बना दिया जाए तो दोनों नदियों का पानी इसमें आने लगेगा। और गंगा और सरस्वती के पानी का संगम बन जाएगा। राजा कहते है हां पंडित जी आप सही कह रहे हैं। लेकिन इसे बनाने में काफी समय लगेगा। और इस पानी के वेग को कौन संभालेगा। पंडित जी कहते हैं यह परी आपकी मदद करेगी और इस तालाब में आने वाले, पानी के वेग को संभाल लेगी।

            राजा हवेली के पीछे एक बहुत बड़ा तालाब खुदवाना शुरू करता है। जिसे 10000 मजदूर और 2000 मिस्त्री लगते है और कुछ ही दिनों में तालाब बहुत बड़ा रूप ले लेता है तालाब बिल्कुल चौकोर बना होता है पूरी तरह से गड्ढा खुद जाने के बाद उसे संगमरमर से चारों ओर अंदर से जड़वा दिया जाता है। अब तालाब के ओर 5 किलोमीटर की दूरी पर गंगा और दूसरी ओर 13 किलोमीटर की दूरी पर सरस्वती का जल प्रवाह है तालाब के दोनों और खुदाई शुरू होती है और तालाब से खुदाई होते हुए नदी की ओर जाती है और नदी में वह मिला दी जाती है। अब नदियों का वेग इतना तेज होता है कि उस कटाव से नदियों का बहाव, तालाब की ओर आना सुरु हो जाता है। तभी पंडित जी मुझसे आग्रह करते हैं कि हे अप्सरा अब आपको अपने कर्तव्य का निर्वहन करना है और इस तालाब के अंदर प्रवेश कीजिए और पानी के वेग को संभालिए।

परी - जैसी आपकी आज्ञा।

       इतना कहकर मै उस तालाब में चली जाती हूं और दोनों ओर से आने वाले पानी के वेग को अपनी शक्तियों से रोक लेती हूं

               पंडितजी कहते है हे राजन! अब रानी देवी माया , इसमें प्रतिदिन स्नान कर सकेंगी। और यह परी उनकी रक्षा भी करेगी। परी कहती है मेरी एक शर्त होगी अगर इसमें देवी माया के अतिरिक्त कोई और स्नान करेगा तो मैं उसकी कोई रक्षा नहीं करूंगी। और उसे मार दूंगी। क्योंकि जिस जल में मैं रहती हूं उस जल में किसी दूसरे को नहीं आने दूंगी। मुझे केवल रानी की रक्षा करने का ही वचन मिला है। तभी राजा कहते हैं ठीक है ऐसा ही होगा।

       समय का चक्र आगे बढ़ता है। और रानी देवी माया प्रतिदिन इसमें स्नान करने आती है और इस तरह स्नान करते हुए 50 दिन बीत चुके हैं कल 51वा दिन है।

               आज रात किसी को नींद नहीं आ रही है। राजा चंदेरसिंह अपनी रानी के साथ लेटे हुए हैं राजा अपनी रानी से कहते हैं कल 51वा दिन है केवल एक रात की बात है और इस बार तुम गर्भधारण कर सकोगी। इस राजमहल को एक नया राजकुमार या राजकुमारी मिल जाएगा। जिससे हमारा वंश आगे बढ़ सकेगा। और मैं पिता और तुम मां बन सकोगी। रानी कहती है हां खुशी तो बहुत है लेकिन खुशी के आने से पहले ज्यादा खुशी नहीं करनी चाहिए। और दोनों लोग शारीरिकभोग में लिप्त होकर सो जाते हैं।

             

                  51वे दिन सूरज की किरण, आज कुछ अलग-सी है, रानी यह बात परी से कहती हुई जल स्नान करने लगती है। जल स्नान करके रानी जब बाहर निकलती है। तभी परी कहती है मैं आपके पेट में देख पा रही हूं कि आप गर्भ को धारण कर चुकी हैं और सूर्य की रोशनी के समान 1 तीव्र प्रकाश आपके गर्भ में पल रहा है। रानी यह बात सुनकर बहुत प्रसन्न होती हैं तभी रानी कहती है बताओ तुम्हें क्या चाहिए? आज तुम जो कुछ मांगोगी मैं अपनी जान देकर भी दूंगी, मैं बहुत प्रसन्न हूं। तभी परी कहती है क्या आप अपनी संतान को मुझे खिलाने का सौभाग्य दोगी। रानी कहती है इसमें कोई पूछने या मांगने वाली बात है जितना मैं इस पुत्र की मां का हक रखती हूं उतना तुम भी हक रखती हो।

            परी कहती है इंद्रदेव ने कहा था कि जब आप गर्भधारण कर ले तो मुझे उनके पास भेज दिया जाए नहीं तो वो आप सबके लिए घातक होगा। तभी माया देवी कहती है तुम इतनी सुंदर परी हो, स्वच्छ मन वाली और तुम हम सब लोगों का क्या आहत करोगी। परी यह बात सुनकर बहुत खुश हो जाती है। और दोनों लोग महल की ओर चल देते है।

       तभी रानी दौड़ी-दौड़ी यह खुशखबरी राजा को बताती है कि उसका गर्भधारण हो गया है राजा यह बात सुनकर मानो पागल सा हो जाता है और अपने सिंहासन से उतरकर झूमने लगता है तभी राजा ऐलान कर देता है कि आज ही पूरे गांव के हर परिवार के लोगों को एक-एक किलो चांदी व आभूषण दिए जाएं। और पूरे गांव में चांदी व आभूषण बांट दिए जाते हैं।

            रानी कहती है, अब यह परी कहीं नहीं जाएगी और यह हम लोगों के साथ ही रहेगी इसका भी हमारे पुत्र पर उतना ही अधिकार है जितना हमारा है। राजा कहते हैं यह कैसे हो सकता है इंद्रदेव ने कहा था अगर यह परी, गर्भधारण के बाद भी इस पृथ्वी लोक पर रुकेगी, तो यह हम और हमारे साम्राज्य के लिए घातक होगा। तभी रानी कहती है यह परी हम और हमारे साम्राज्य के लिए कैसे घातक होगी। यह एक नेक और सच्चे दिल की है। और मैं परी को वचन भी दे चुकी हूं। राजा कहते हैं जब आपने वचन दे ही दिया है तो अब कहने और सुनने को कुछ नहीं बचा है। ठीक है अब परी यही रहेगी।

       समय का चक्र चलता है और आज रानी को एक पुत्र की प्राप्ति होती है पुत्र काफी तेजस्वी और विद्यमान होगा, पंडित राम गोपाल दास कहते है इस पुत्र का जन्म तो किसी महान उद्देश्य के लिए ही हुआ था लेकिन पुत्र की उम्र ज्यादा लंबी नहीं है।

              और एक समय आएगा जब यह पूरा साम्राज्य मिट जाएगा। इसमें इस बालक की कोई गलती नहीं है तभी राजा और रानी रोने लगते हैं और कहते हैं इतनी मान और कठिनाई के बाद हमें पुत्र की प्राप्ति हुई है ऐसा ना बताएं पंडित जी हम लोग तो जिंदा ही मर जाएंगे।

      तभी परी पंडित जी से कहती है पंडित जी आप जो कुछ भी कहे, लेकिन इस पुत्र को कुछ भी नहीं हो सकता। पंडित जी कहते हैं काश ऐसा ही हो और भोजन ग्रहण करके सभी पंडित चले जाते हैं।

      

साधु का श्राप (पार्ट - 5)

              धीरे-धीरे राजकुमार बड़ा होने लगा है, रानी देवी माया से ज्यादा परी ही राज कुमार को इधर-उधर घुमाती है और लोरिया सुनाती है।

       एक दिन राजकुमार जमीन पर गिर जाते हैं तो उनके पैर में कुछ चोट लग जाती है परी दौड़ी-दौड़ी उनकी चोट को अपनी शक्तियों से ठीक कर देती है। रानी देवी माया यह देखकर अपने पति से कहती हैं... मां तो मैं हूं..... लेकिन असली मां का कर्तव्य तो ये निभा रही है राजा कहते हैं परी हमारे बच्चे से कितना प्रेम करती हैं।

            एक दिन राजा के महल में राज्यसभा लगी होती है तभी दूसरे राज्य के राजा खड़कसिंह का राजदूत राजमहल की सभा में आता है। और कहता है हे राजन! मै सिंध राज्य से आया हूं मेरे राजा ने एक समाचार भेजा है राजा चंदेरसिंह कहते हैं कैसा समाचार? हम तो किसी भी ऐसे राजा खड़कसिंह को नहीं जानते। तभी राजा का मुख्यमंत्री बताता है यह वही खड़कसिंह राजा हैं जिन्होंने कई राज्यों को हड़प लिया है। हरिसिंह, उधमसिंह, राजा कैनीवाल और अन्य भी छोटे राज्य।....... राजा कहते हैं तुमने पहले कभी क्यों ऐसा नहीं बताया। माफी चाहेंगे महाराज लेकिन यह राज्य यहां से काफी दूर है इसलिए बताना उचित नहीं समझा।

           राजा कहते हैं हे राजदूत! बोलो तुम अपने राजा का क्या समाचार लाए हो। राजदूत कहता है राजा खड़क सिंह ने कहा है कि यह राज्य आप खाली कर दें या फिर उनके अधीन रहकर कार्य करें। इसमें ही चंदेरी राज्य का भला होगा। राजा हंसते हुए कहते हैं अब यह तुम्हारा राजा बताएगा कि मेरी किसमें भलाई है और किसमें नुकसान।

        

       जाओ अपने राजा से कह देना। जिन छोटे-मोटे राज्यों को हड़प कर वह बहुत खुश हो रहा है, वह कभी इस राज्य की ओर आंख उठाने की भी जरूरत ना करें और अगर मित्रता की बात करता है। तो मित्रता कबूल कर लेंगे, लेकिन अगर कोई दुश्मनी की बात करता है तो उसके लिए हमारी तलवार तैयार रहती है जाओ अपने राजा से कह देना।

              राजदूत कहता है राजा खड़कसिंह ने कहा था की अगर राजा चंदेरसिंह नहीं झुकते हैं तो उनसे कह देना 7 दिन बाद युद्ध के लिए तैयार रहें। चंदेरसिंह कहते है जाओ कह दो अपने राजा से हम 7 दिन का इंतजार नहीं कर सकते, आज ही तैयार है। इतनी बात सुनकर राजदूत चला जाता है

   

    तभी राज्य का मुख्यमंत्री कहता है हे राजन! खड़क सिंह बहुत ही क्रूर शासक है और उसने छल बल हर तरह से दूसरे अनेक राज्यों को हथिया लिया है। हमें उस पर विश्वास नहीं करना चाहिए। उसने 7 दिन बोला है लेकिन वह युद्ध के लिए अपनी सेना को तैयार रखे होगा। और सभी सभागण मुख्यमंत्री की बात का समर्थन करते है। और फिर राजा राज्य में युद्ध का ऐलान कर देते हैं। आस पड़ोस के राज्यों में आने जाने वाले सभी रास्तों को बंद कर देते हैं केवल एक मुख्य रास्ते को छोड़कर, जहां से युद्ध किया का सके।

       अगले 2 दिनों बाद खड़कसिंह की सेना चंदेरसिंह के राजमहल पर आक्रमण के लिए आ रही होती है। गुप्तचरो के माध्यम से पता चलता है कि खड़क सिंह के पास करीब 10 लाख की सेना है। राज्यसभा आज भी लगी होती है तभी राज्य के मुख्यमंत्री राजा से कहते हैं हमारे पास तो केवल 2 लाख की ही सेना है हम युद्ध कैसे जीतेंगे। राजा कहते हैं हमें अपने आप पर विश्वास होना चाहिए, हम युद्ध अवश्य जीतेंगे। और वैसे भी खड़कसिंह को क्या पता हमारे पास दो लाख की सेना है या 10 लाख की। इसलिए कायर पुरुष की भांति विलाप मत करो, बल्कि वीर पुरुष की भांति जयकारा लगाओ। सत्य हमारे साथ है। तभी मुख्यमंत्री कहते है हे राजा! आप मुझे कायर मत कह आप तो जानते हैं बाजी के युद्ध में मैंने अकेले 10 वीर योद्धाओं को हराया था। राजा कहते हैं तो फिर सोचिए हम कैसे खड़कसिंह से हार सकते हैं जाइए और सेना को तैयार करिए।

          

        आज युद्ध का पहला दिन आ ही जाता है दोनों राजा आमने सामने है और तभी युद्ध के लिए शंखनाद होता है। और युद्ध काफी भीषण चलता है। और आज राजा चंदेरसिंह की 50 हजार सेना वीरगति को प्राप्त होती है। और खड़क सिंह की 2 लाख सेना मारी जाती है।

               राजा चंदेरसिंह इतनी लाशें देखकर काफी दुखी हो जाते हैं। परी राजा को इस हालत में देख कर बहुत व्याकुल हो जाती है और परी को कहीं ना कहीं राजा चंदेरसिंह से प्रेम हो जाता है। परी राजा के पास जाती है और कहती है हे राजा आप व्याकुल ना हो और अगर आप चाहे तो मै इस युद्ध में खड़क सिंह को मार दूंगी। राजा चंदेरसिंह कहते हैं नहीं परी, तुम खड़क सिंह को नहीं मारोगी। उस दुष्ट खड़क सिंह को मेरे हाथों ही मरना होगा। मुझे दुख बस इस बात का है कि इतनी सेनाए वीर गति को प्राप्त हो गई उस दुष्ट राजा के कारण।

      परी कहती है कि युद्ध में सैनिक मरते ही हैं। हे राजा यदि आप आज्ञा दे तो मै आपकी हर तीर पर विराजमान होकर दुष्ट खड़क सिंह के सामने आने वाले सैनिकों को मार दूंगी और आप खड़कसिंह तक पहुंच जाओगे। और फिर आप उसका अंत कर देना। अन्यथा अन्य लाखो वीरों को मरना होगा।

         परी के काफी समझाने पर राजा मान जाते हैं। और अगले दिन युद्ध में, जब राजा एक तीर छोड़ते हैं तो खड़कसिंह की रक्षा में सामने खड़े 100 सैनिक, 1 तीर से मारे जाते हैं। और पल भर में राजा चंदेरसिंह, खड़कसिंह के सामने पहुंच जाते हैं अब दोनों राजाओं में युद्ध शुरू हो जाता है। कभी लगता है खड़क सिंह जीत जाएगा तो कभी लगता है राजा चंदेरसिंह । और काफी देर युद्ध चलने के बाद राजा चंदेरसिंह, खड़कसिंह के सिर पर तलवार मारते हैं और खड़क सिंह का शरीर बीच से दो टुकड़ों में बंट जाता है। और उनकी सेना को बन्दी ना बनाकर बल्कि छोड़ देते है।

        इधर राजा चंदेरसिंह काफी घायल हो जाते हैं परी उनको लेकर राजमहल पहुंचती है और उनका उपचार करती है। रानी देवी माया भी आ जाती है। आप परेशान ना हो रानी, राजा अब ठीक हैं। और राजा चंदेरसिंह से परी का प्रेम बढ़ने लगता है।

    राजा के कुछ ही दिनो में ठीक होने के बाद परी उनके कक्ष में आती है राजा कहते हैं यह बताओ तुम्हें क्या चाहिए तुम ने तो युद्ध में हमारी रक्षा करी है और हमारे राजमहल को भी तुमने ही बचाया है। परी कहती है मैं जो मांगूंगी क्या आप मुझे दोगे? राजा कहते हैं मैं क्षत्रिय वीर हूं मैं अपनी जान देकर भी तुम्हारी कामना पूर्ण करूंगा।

   परी कहती है हे राजा! मुझे कुछ नहीं केवल आप चाहिए। क्या आप मुझे एक पत्नी का सुख देंगे।

 राजा कहते हैं हे परी! यह तुम क्या मांग रही हो? तुम्हें तो पता है, मैंने तो कसम खाई है कि मैं रानी देवी माया के अतिरिक्त किसी और स्त्री को उस नजर से देख भी नहीं सकता। तुम कुछ और मांग लो। परी कहती है मैंने पहले ही आपसे कहा था मुझे और कुछ नहीं चाहिए।

 

   राजा कहते हैं ठीक है मैं अगला जन्म लूंगा और मैं तुम्हें अपनी पत्नी का स्थान जरूर दूंगा। परी कहती है हे राजा मुझे आपसे प्यार हो गया है इसलिए मैं आपका अगले जन्म का इंतजार करूंगी।

     इसी घटना के 2 दिन बाद, एक साधु हवेली की ओर आता है और राजमहल के सैनिकों से कहता है। मैं बहुत थक गया हूं,....... यहां कोई तालाब या झील है।.... जहां मैं जाकर स्नान करके आराम कर सकूं।.... 2 सैनिकों में से एक बोल पड़ता है हां राजमहल के पीछे तालाब है। तभी दूसरा सैनिक इशारों से मना करने लगता है। इतना सुनकर साधु राजमहल के पीछे तालाब की ओर चले जाते हैं। और तालाब पर पहुंचकर मन में सोचते हैं यह तो बड़ा विचित्र तालाब है और साधु तालाब में स्नान करने लगते है। तभी परी राजमहल से तालाब की ओर आती है और साधु को स्नान करता देख क्रोधित हो जाती है। परी सोचती है मैं इस व्यक्ति को जरूर मजा चखाऊंगी, जिसने मेरी आज्ञा के बिना मेरे तालाब में स्नान करने की हिम्मत की है।

            और परी तालाब के अंदर चली जाती है और साधु स्नान करके जैसे बाहर निकलने लगता है, वह परी साधु की धोती पकड़कर खींचने लगती है। इस विचित्र हरकत देख कर साधु जोर से बोलता है कौन हो तुम पापी जो यह नीचता वाली हरकत कर रहे हो।

    तभी वह सामने आती है और साधु को देखकर मोहित हो जाती है और कहती है मैं परी हूं और यह तालाब मेरा है आपने मेरी आज्ञा के बिना इस तालाब में स्नान किया है।

    साधु कहता है इस धरती पर पानी, हवा पर किसी का कोई अधिकार नहीं है यह स्वतंत्र है इस पर कोई अपना अधिकार स्थापित नहीं कर सकता। परी कहती है मैं इस तालाब की रक्षा करती हूं और स्वयं इंद्रदेव ने मुझे इस तालाब की रक्षा करने की आज्ञा दी है। परी उस सुंदर साधु को देखकर कहती है मैं आपको तभी माफ कर सकती हूं जब आप मुझे अपनी पत्नी बना ले। तभी साधु क्रोधित होकर परी से कहता है मैं एक वैरागी साधु हूं और तेरा मेरे लिए ऐसा सोचना भी पाप है।

            

        परी कहती है एक से एक वैरागी साधु मैंने देखे लेकिन वह मेरे आगे नतमस्तक हो गए। इस जन्म में, तुम मेरे हो जाओ। और अगले जन्म में तो राजा चंदेरसिंह मेरे होंगे। इतना सब सुनकर क्रोधित साधु जल को हाथ में लेकर परी को श्राप देते हुए कहते हैं, हे निर्लज्ज! तेरी कोई गलती नहीं है तू परी है तेरा ना कोई पति होता है और न ही पुत्र। इसलिए मैं तुझे माफ भी कर दूं। लेकिन तूने मेरा बार-बार अपमान किया है मैं तुझे श्राप देता हूं कि अब तू इस तालाब से तभी निकल सकेगी जब राजा चंदेरसिंह तेरे साथ संभोग करेंगे। यह संभोग की लालसा ही तुझे इस धरती से मुक्ति नहीं लेने देगी।

           तभी राजा चंदेरसिंह चिल्लाने की आवाज सुनते हुए तालाब की ओर आते हैं अभी वह देखते हैं कि परी साधु से माफी मांग रही है और कह रही है यह श्राप वापस ले लीजिए। परी को ऐसा करता देख राजा, साधु पर क्रोधित हो जाते हैं और साधु से कहते हैं आप कैसे दुष्ट साधु हैं जिसने इतनी प्यारी परी को श्राप दे दिया। और क्रोधित साधु राजा को भी श्राप देते हुए कहता है तुझे अपने राज्य का बहुत घमंड है और बिना कुछ जाने तू मुझे दुष्ट कह रहा है। जा तेरा यह राज महल अमावस्या की काली रात को इसी स्थान में समा जाएगा । इतना कहकर साधु चला जाता है।

   परी राजा से कहती है हे राजन यह आपने क्या किया। अब मुझे आपके अगले जन्म का इंतजार रहेगा और जब आप मेरे साथ पत्नी का प्रेम करोगे तभी मुझे इस धरती से मुक्ति मिलेगी।

    और अमावस्या की काली रात को राजा और उनका पूरा साम्राज्य इसी स्थान पर जमींदोज हो जाता है। रानी और पुत्र इसी दोनों पेड़ में चले जाते हैं।

   और मैं ही वह परी हूं जो आपका तबसे इंतजार कर रही हूं सैवीर.....

और मैं इसलिए सबको मार देती हूं क्योंकि मैंने प्रण लिया था। तुमको इसलिए नहीं मार सकती क्योंकि तुम ही मुझको मुक्ति दिलाओगे और मैं तुमसे प्रेम भी करती हूं।

इतना सब सुनकर सैवीर जोर-जोर से हंसने लगता है और कहता है अच्छी कहानी बनाई है।

परी - ये कोई कहानी नहीं है बल्कि एक सच्ची घटना है। तुम्हारी जांघ पर इसीलिए एक राज सिंहासन बना हुआ है। तुम पंडित रवि शंकर शास्त्री से जाकर पूछ लो वह बहुत विद्वान हैं। और पिछले जन्म में उन्होंने ही मुझे श्राप दिया था।

सैवीर- मुझे किसी से कुछ नहीं पूछना। शिवांगी चलो , अब हमें यहां नहीं रुकना।

सैवीर शिवांगी का हाथ पकड़कर दरवाजे की ओर जाने लगता है....

  

 साधु का श्राप। (पार्ट - 6)

         परी पीछे से कहती है मैं चाहूं तो तुम दोनो को बंदी बना लूं और इसी उपवन में रख लूं। लेकिन सैवीर मैंने आपसे प्रेम किया है और मैं ऐसा कुछ नहीं कर सकती, जिससे आपको कष्ट हो।

           सैवीर कहता है मैं पिछले जन्म की कोई भी बात नहीं मानता हूं और ना ही मैं पिछले जन्म की किसी भी बात को जानता हूं। इसलिए मैं यहां से जा रहा हूं।...

          तभी वह परी शिवांगी को बंदी बना देती है और उसे तालाब के पास खींच लाती है। सैवीर कहता है हे परी! तुम ऐसा कुछ भी नहीं करोगी जिससे शिवांगी को कुछ हो। तुम शिवांगी को छोड़ दो। शिवांगी से तुम्हारा कोई लेना देना नहीं है। परी कहती है जब तक तुम मुझे अपना नहीं बनाते हो, मैं शिवांगी को नहीं छोडूंगी। मैं तुम्हें कष्ट नहीं पहुंचा सकती हूं लेकिन इस लड़की को पहुंचा सकती हूं।

                 सैवीर कहता है अगर शिवांगी को कुछ हुआ तो कष्ट मुझे ही पहुंचेगा। इसलिए उसे छोड़ दो तभी परी शिवांगी को छोड़ देती है और सैवीर से कहती है तुम्हें मेरी बात पर विश्वास नहीं हो रहा है तो तुम इन दो पेड़ों को छुओ। यह दोनों पेड़ तुम्हारे छूते ही एक तुम्हारी पत्नी में और दूसरा तुम्हारे बेटे के रूप में बदल जाएगा। शिवांगी, सैवीर से कहती है यह परी इतना जिद कर रही है तो, क्यों ना तुम इन पेड़ों को छू कर देख लो पता चल जाएगा।

               सैवीर तुम भी शिवांगी, ठीक है मै छूता हूं। और सैवीर जैसे ही दोनों पेड़ो को एक साथ छूता है वह कुछ देर तक पेड़ो को पकड़े रहता है। जैसे मानो उन पेड़ो ने उसे चिपका लिया हो और सैवीर को पिछले जन्म की हर बात याद आ जाती है। वह तुरंत दोनों पेड़ो से हाथ हटा लेता है सैवीर कहता है हे परी! मुझे अपने पुनर्जन्म की हर बात याद आ गई है तुम सही कह रही हो। और तभी दोनों पेड़ इंसान के रूप में बदल जाते हैं जिसमें से एक पेड़ देवी माया और दूसरा पेड़ राजा के पुत्र भरत के रूप में बदल जाता है। तभी देवी माया और उनका पुत्र उनके चरण स्पर्श करते है सैवीर दोनों को अपने गले लगा लेता है और उन्हें मुक्ति मिल जाती है और वह आत्माएं भगवान में लीन हो जाती है।

            सैवीर कहते हैं मुझे सब याद आ गया है तुमने मेरे और मेरे राज्य के लिए बहुत कुछ किया था। अगर मेरी पत्नी देवी माया इंद्र देव की बात मान लेती और तुम्हें इस राज महल में ना रखती, जो आज जमींदोज हो गया है।........... तो आज इतनी समस्याएं ना उत्पन्न होती। हे परी! मैंने जो वादा किया था आज मैं उसी में फंस गया हूं एक और तुम हो और एक और शिवांगी है। एक ओर तुम्हारी मुक्ति है और एक ओर मेरा प्रेम है।

          

             सैवीर कहता है अब हमें जाने दो मैं कल जरूर आऊंगा अगर आज हम घर सही समय नहीं पहुंचे तो मां चिंतित होगी काफी समय हो गया है। कही मेरी मां मुझे ढूंढने ना निकल पड़े। वर्ना पूरे गांव में हल्ला हो जाएगा और शिवांगी के घर पर उसकी मां भी पहुंच चुकी होगी। मैं तुमसे वादा करता हूं मैं कल जरूर आऊंगा। परी कहती है अगर कल तुम नहीं आए तो यह शिवांगी कल रात होते ही मर जाएगी। सैवीर कहता है ऐसा तुम कुछ नहीं करोगी मै कल जरूर आऊंगा।

              सैवीर ओर शिवांगी दोनों उस स्थान से बाहर निकल आते है और सैवीर उस तालाब की ओर जाने वाले दरवाजे को बंद कर देता है।

सैवीर- देखा तुमने अंदर कितना बड़ा राज दफन था।

शिवांगी- आंखों में आंसू लिए यह सब मेरी वजह से हुआ है अगर मैं ना जिद करती तो यह सब ना होता।

सैवीर - मत रो यह सब विधाता का रच्चा खेल है। तुम मुझे भूल जाओ क्योंकि मुझे परी को मुक्ति दिलाना है।

शिवांगी - मैं आपको नहीं भूल सकती। मैं मर जाऊंगी। मैं आपको बहुत प्रेम करती हूं। अब आपके बिना नहीं रह सकती।

सैवीर - मुझे परी के साथ एक पत्नी का संबंध स्थापित करना है तभी उसे मुक्ति मिलेगी और वह यहां से जाएगी। क्या तुम यह सब बर्दाश्त कर सकती हो कि जिसे तुम चाहती हो वह किसी और से संबंध बनाएं। तुम मुझे भूल जाओ शिवांगी।

शिवांगी - तुम साफ-साफ ये क्यों नहीं कहते कि तुम्हें परी मुझसे ज्यादा अच्छी लगने लगी है इसलिए तुम मुझसे दूर जाना चाहते हो।

सैवीर - कैसी बात कर रही हो मैं तो तुम्हारे सिवा किसी को देखता भी नहीं। कल मैं अगर यहां नहीं आया तो तुम्हें कुछ भी हो सकता है और अगर तुम्हें कुछ हो गया तो मैं मर जाऊंगा। मैं नहीं चाहता की मैं तुम्हे दूसरी पत्नी का दर्जा दूं। इसलिए तुम मुझे भूल जाओ।

शिवांगी - तुम्हारा प्यार एक दिखावा था मैं आज समझ गई । जाओ अब तुम परी के साथ ही रहो।

               इतना कहकर शिवांगी वहां से चल देती है और सैवीर उसे आवाज देता रहता है लेकिन शिवांगी पलट कर नहीं देखती। सैवीर अपनी आंखों में आंसू लिए हुए घर की ओर चल देता है। सैवीर पागलों की तरह सोचते हुए घर आता है कि किस तरह है इन समस्याओं को खत्म किया जाए। एक ओर उसका वादा है और दूसरी ओर उसकी जिंदगी शिवांगी।

    उधर शिवांगी का रो रो कर बुरा हाल है। आज सैवीर और शिवांगी दोनों बिना खाना खाए बिस्तर पर पेट के भल लेटे सिसकियां भर रहे है। सैवीर उम्मीद करते हुए सो जाता है कि शायद कल की सुबह कुछ शुभ समाचार लाए।

               सुबह होने को आ जाती है चिड़िया चहचहाना शुरु कर देती है। मुर्गे आवाज निकालना शुरू कर देते है।

        

साधु का श्राप। (पार्ट -7)

                     रात भर दोनों को नींद नहीं आती है। सुबह के 5 बजे है सैवीर घर से बाहर निकलकर अपने घर के पास बने कुएं के पास जाकर बैठ जाता है। सैवीर का दोस्त बलराम सुबह 5.30 बजे प्रतिदिन उस कुएं से पानी लेने आता है। बलराम पानी लेने आ ही रहा होता है कि दूर से सैवीर को देखकर आश्चर्यचकित हो जाता है और मन में सोचता है इतनी सुबह सैवीर यहां क्या कर रहा है?

बलराम-अरे भाई सैवीर आज तू इतनी सुबह - सुबह, यहां क्या कर रहे हो?

सैवीर- कुछ नहीं मेरे मुख्यमंत्री दसवंत।

बलराम - यह दसवंत कौन है और यह मुख्यमंत्री किसे कह रहे हो?

सैवीर - पानी भर के घर पर दे आओ फिर मेरे साथ चलो मैं तुम्हें एक चीज दिखाता हूं।

बलराम- ठीक है रुको मैं घर पर रख कर आता हूं।

                        सैवीर मन में सोच रहा है कल तक मेरी जिंदगी क्या थी और आज क्या हो गई? पता नहीं शिवांगी अब कभी मेरे पास आएगी कि नहीं। मुझे पंडित रवि शंकर शास्त्री के पास जाना चाहिए। तब तक बलराम आ जाता है।

बलराम - हां बताओ भाई क्या दिखा रहे हो और कहां चलना है?

       

        सैवीर, बलराम को उस तालाब के पास लेकर जाता है।

बलराम- यह तू मुझे कहां लेकर चल रहा है यहां तो कोई नहीं आता है। और घर वालों को पता चला तो मुझे मार डालेंगे। इस दरवाजे को मत खोलो घर चलो।

सैवीर - तुम्हारा नाम दसवंत है और तुम इतना डरते हो तुम्हें याद है तुम अकेले 5-5 योद्धाओं को हरा दिया करते थे।

    बलराम कहता है सैवीर तुम क्या बक रहे हो मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। मैंने किन 5-5 योद्धाओं को हराया है। सैवीर कहता है आओ तुम हमारे इष्ट देव की मूर्ति को जैसे ही छुओगे तुम्हें सब कुछ याद आ जाएगा। सैवीर दरवाजा खोल कर इष्ट देव की मूर्ति की ओर चल देता है। दसवंत भाई तू कहां चल रहा है यहां कोई नहीं आता है बल्कि यहां आत्माओं का साया है। हम दोनों लोग मार दिए जाएंगे। सैवीर तुम्हें मुझ पर विश्वास है ना तो बस तू मेरे साथ चल।

               सैवीर बलराम से कहता है, यहां हमारे इष्ट देव का मंदिर हुआ करता था। साधु के श्राप के बाद हमारा पूरा राज महल जमीन के अंदर जमींदोज हो गया। लेकिन हमारे इष्ट देव की मूर्ति आज भी जमीन के ऊपर विराजमान है। तुम्हें याद है हम दोनों किसी भी युद्ध के शुरू होने से पहले इनकी उपासना करते थे। बलराम भाई मुझे कुछ याद नहीं है और यह कहानियां कहां से बना रहा है यह कोई कहानी नहीं है तुम हमारे इष्ट देव को छोओ। तुम्हें सब पता चल जाएगा।

                 बलराम इष्ट देव को छूता है और बेहोश हो जाता है। सैवीर तालाब के जल को बलराम के मुंह पर मारता है बलराम को होश आ जाता है और बलराम खड़ा होकर सैवीर से कहता है हे महाराज आप क्या चाहते हैं बताएं? आपकी क्या आज्ञा है?

                सैवीर मुस्कुराने लगता है और कहता है बलराम तुझे सब याद आ गया है। हां भाई मुझे सब याद आ गया मुझे खुद पर विश्वास ही नहीं हो रहा है कि मैं फिर से पुनर्जन्म लेकर आया हूं। तब तक परी भी आ जाती है, और सैवीर परी से कहता हैं मैं आज शाम से पहले ही यहां आऊंगा। और इतना कहकर दोनों लोग दरवाजा बंद करके घर के पास बने कुए के पास पहुंच जाते हैं।

   

              बलराम कहता है भाई तू तो बहुत बड़ी समस्या में होगा। तुमने तो परी से वादा किया था। अगले जन्म में स्त्री प्रेम देने का। हां मेरे मित्र आज मैं बहुत बड़ी समस्या से जूझ रहा हूं एक तरफ मेरा प्रेम है और दूसरी तरफ पिछले जन्म में किया वादा।

       दोनों लोग पंडित रविशंकर शास्त्री के पास जाते हैं सैवीर और बलराम उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं और पंडित जी दीर्घायु का आशीर्वाद देते हैं। और पंडित जी कहते हैं इतनी सुबह -सुबह कौन सी समस्या आन पड़ी। सैवीर माफ करें पंडित जी आपके पिछले जन्म में दिए गए श्राप के कारण कि हम यहां आए हैं। पंडित जी कहते हैं हम समझ गए तुम्हें पिछले जन्म की हर बात याद आ गई है। पण्डित जी इसका कुछ निवाकरण बताए। बेटा तुम्हें परी को मुक्ति दिलानी होगी। मैं परी से मिलने गया था और वह इस धरती लोक पर बहुत व्याकुल और परेशान है। मैंने उसे बताया था कि तुम्हारा जन्म हो चुका है। सैवीर कहता है, मैं परी को मुक्ति दिलाने जाता हूं तो शिवांगी मुझसे दूर हो जाएगी। बेटा तुम्हें अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए।

  

       बलराम,सै वीर यह बात सुनकर घर की ओर लौट आते हैं। तभी बलराम कहता है तुमने पिछले जन्म में जो वादा किया है तुम्हें उसे निभाना चाहिए। क्योंकि वचन से बड़ा इस दुनिया में कुछ भी नहीं होता। सैवीर, सही कह रहे हो दोस्त। मैं आज ही परी के पास जाऊंगा और उसे मुक्ति दिलाऊंगा।

 

      सैवीर वहां से घर की ओर चला जाता है और बलराम अपने घर की ओर। सैवीर बेटा, सुबह सुबह कहां गया था। कहीं नहीं मां, मैं अपने दोस्त बलराम से मिलने गया था। राम किशोरी कहती है अब तुम्हारी घूमने की उम्र दोस्तों के साथ नहीं है। पिताजी ने एक लडकी देखी है और वह तुम्हारी शादी की बात करने वाले हैं। मैं अभी शादी नहीं करूंगा मां। तुम मेरे बारे में इतना मत सोचा करो अभी मुझे बहुत कुछ करना है और इतना कहकर सैवीर चुपके से दरवाजे की चाभी ले के तालाब की ओर चल देता है।

परी - तुम आ गए मेरे सैवीर।

सैवीर- हां मैं तुम्हारे मुक्ति का कारण हूं, तो मुझे आना ही था। तुम इतने सालों से अकेले इस तालाब में दर्द झेल रही हो। इसका सबसे बड़ा कारण मैं ही हूं।

परी - नहीं मैं तो तुम्हारी याद में जी रही हूं।

सैवीर - यह तो तुम्हारी उदारता है। जो तुम अपने गम को छुपाए इतने सालो से इस तालाब में रह रही हो। हो सके तो मुझे माफ कर देना।

परी - इसमें तुम्हारी क्या गलती है गलती तो मेरी है जो मैंने साधु का अपमान किया।

सैवीर- लो मैं तुम्हारे सामने खड़ा हूं तुम जो करना चाहो मेरे साथ कर सकती हो।

परी - क्या तुम मुझे प्रेम नहीं करते या मैं आपको अच्छी नहीं लगती।

सैवीर - सच कहूं तो मेरे मन मस्तिष्क में शिवांगी ही है और वह इस जन्म में तो मेरे मरने दम तक रहेगी। और रही तुम्हारी बात तो तुम बहुत ही सुंदर हो शायद तुम्हारे जैसा इस पृथ्वी पर कोई ना हो।

परी - मैं तो सपने देखती थी कि तुम आओगे और मुझे अपनी रानी बना कर ले जाओगे। और मैं इंसान की तरह जीवन जीऊंगी। और एक दिन मृत्यु को प्राप्त करके इस धरती लोक को छोड़ दूंगी। ठीक है कोई बात नहीं शायद ऊपर वाले ने मेरी किस्मत में ऐसा ही लिखा हो। तुम मेरे साथ स्त्री प्रेम कर मुझे मुक्ति दो।

सैवीर - मुझे माफ कर दो परी। मुझे नहीं पता था कि तुम मेरा इंतजार कर रही हो और मुझे पहले ही शिवांगी से प्रेम हो गया। शायद ईश्वर की भी यही लीला थी।

        और अब सैवीर ईश्वर को हाथ जोड़कर प्रार्थना करता है, हे ईश्वर! मैं जो भी करने जा रहा हूं वह सब आपका रचा हुआ है। और अगर मुझसे कोई गलती होती है, तो मुझे माफ कर देना प्रभु। और शिवांगी तुम भी मुझे माफ कर देना। इतना कहकर सैवीर तालाब में चला जाता है और परी के साथ स्त्री प्रेम में लीन हो जाता है भोग क्रिया करने के बाद सैवीर तालाब से बाहर निकलता है। तभी परी तालाब से बाहर निकलकर, सैवीर के पैर छूकर कहती है मुझे भी माफ कर देना जिसके कारणवश तुम शिवांगी से दूर हो गए। अब मैं जा रही हूं इस पृथ्वीलोक को छोड़कर। और परी ईश्वर में अंतरलीन हो जाती है।

        सैवीर आंखों में आंसू लिए हुए अपने घर की ओर चल देता है। शायद अब शिवांगी उससे बहुत दूर हो गई है।

                      सैवीर जैसे ही अपने घर की ओर पहुंचता है देखता है पूरे गांव के लोग रो रहे है.......

साधु का श्राप। (पार्ट -8)

    यह सब देखकर सैवीर बहुत व्याकुल हो उठता है और सोचता है यह लोग क्यों रो रहे हैं?

  

        सैवीर गांव के एक काका से पूछता है काका क्या हुआ? यह लोग सब क्यों रो रहे हैं? काका कहते हैं बेटा इस बार गांव में पानी नहीं गिरा और हम सभी लोगों की फसल बर्बाद हो गई है ना तो नई फसल बोई जा सकती है और ना ही पुरानी फसल को पानी मिल पा रहा है लगता है इस गांव पर किसी बुरी आत्मा का प्रकोप चल रहा है। इसीलिए सभी लोग रो रहे हैं क्योंकि किसी के घर में खाने को दाने नहीं है और सभी लोग गांव को छोड़कर दूसरे गांव में जाने की सोच रहे हैं।

सैवीर - मुखिया जी क्या कह रहे हैं काका?

काका - मुखिया जी क्या कहेंगे, वह खुद ही परेशान हैं।

सैवीर- मैं मुखिया जी का बेटा हूं आप सभी गांव वालों को एकत्रित कर लो। आज शाम को एक सभा लगेगी और आपकी परेशानियों का हल मैं करूंगा।

काका - ठीक है हम गांव के सभी बड़े बूढ़ों को बुलाकर आपके घर के बाहर जो मैदान है वही एकत्रित होंगे।

सैवीर - ठीक है काका। शाम को मिलते है और सबसे कह दो परेशान मत हो।

      इतना कहकर सैवीर घर चला जाता है

      

             सैवीर घर पहुंच कर पिताजी से बात करता है कि पिताजी इस बार गांव में पानी नहीं गिरा है। गांववाले बहुत परेशान हैं तो क्यों ना उस तालाब से एक रास्ता काट दी जाए, जिससे किसानों के खेत में पानी पहुंच जाएगा। रामचंद्र कहते हैं क्या तुम उस तालाब के पास गए थे। हां पिता जी मैं आपसे झूठ नहीं बोलूंगा मैं और बलराम उस तालाब के पास गए थे और वहां बहुत ही अच्छा नजारा है, और वह तालाब और आसपास का उपवन बहुत ही अच्छा बना हुआ है।

             राम किशोरी बेटा मैंने तुमसे मना किया था। उधर मत जाने तो फिर तुम कैसे वहां पहुंच गए?

         सैवीर कहता है मां वहां कुछ नहीं है आप लोग खामखा परेशान होते हो। मैं कह रहा हूं मेरी बात को आप मानो। उस तालाब के पानी से पूरे गांव के खेतों को पानी मिल जाएगा और मैंने आज शाम को सभा बुलाई है, जिसमें गांव के सभी लोग आएंगे। रामचंद्र कहता है देखा राम किशोरी मेरा बेटा आज मुखिया पद के लिए योग्य हो गया है।

                   और शाम को सभा लगती है रामचंद्र अपने बेटे के साथ कुर्सी पर बैठे होते हैं तभी सैवीर खड़ा होता है और कहता है मेरे गांव वालों अब आपकी पीड़ा के खत्म होने का समय आ गया है। अब यह गांव का नाम सुनहरे अक्षरों से लिखा जाएगा। और आसपास के सभी गांव में हमारे गांव का नाम लिया जाएगा। मुखिया जी ने तालाब को जाने वाली रास्ता पर पड़ने वाले दरवाजे को खोलने की स्वीकृति दे दी है। अब उस तालाब का पानी गांव के खेतों तक जाएगा। और मुझे एक लिस्ट चाहिए, जिसमें गांव के धनवान, मध्यम और गरीब वर्ग के नाम लिखे हो। अब कल प्रातकाल हम उस तालाब के पानी को गांव के खेतों की ओर मोड़ेंगे। इसके लिए हमें कुछ मजदूर चाहिए जिनका भुगतान मुखिया जी करेंगे। और आज जिन घरों में चूल्हा नहीं जला है उस घर के लोग मुखिया जी से धन या राशन ले जा सकते हैं। और कल सुबह अब आप लोगों से भेंट होगी।

                      मुखिया जी अपने बेटे सैवीर की ओर देखने लगते हैं। और सभा स्थगित कर दी जाती है।

                     मुखिया रामचंद्र, सैवीर से कहते हैं तुमने यह क्या कर दिया? हमारे पास इतना धन नहीं है और जो कुछ भी है वह आज राशन और धन के रूप में बंट जाएगा। हम कल क्या खाएंगे। तुम पागल हो गए हो जो तुमने इतना बड़ा ऐलान कर दिया। पिताजी आप मेरे ऊपर विश्वास रखें। कल का दिन गांव के लिए और हम लोगों के लिए भी खुशी का दिन होगा।

                          रामचंद्र घर के अंदर पहुंचकर रामकिशोरी से कहते हैं तुम्हारा बेटा पागल हो गया है, और जो कुछ भी हम लोगों के पास था। वह आज पूरे गांव में बंट जाएगा कल से हम भूखे मरेंगे। गांव के गरीब परिवार मुखिया के घर के बाहर लाइन लगाकर खड़े हो जाते हैं। राम किशोरी कहती है अब तो इन गरीबों को देना ही होगा वरना हम लोगों की इज्जत चली जाएगी। सैवीर कहता है आप लोग मुझ पर विश्वास रखो।

      तभी गांव के मुखिया घर से बाहर निकलते हैं और सभी गरीब लोगों को राशन और धन बांटते हैं। अब घर में कुछ नहीं रह गया है अगर रह गया है तो 2 दिन का राशन। रामचंद्र और राम किशोरी बहुत परेशान होते हैं और मन ही मन सोचते हैं कि मेरे बेटे ने यह क्या कर दिया। तभी बलराम का परिवार भी आ पहुंचता है और मुखिया रामचंद्र से कहता है मुखिया जी हम लोगों को भी कुछ दे दीजिए, आज 2 दिन से घर में चूल्हा नहीं जला है। मां की तबीयत खराब थी इसलिए मुझे देर हो गई। मुखिया जी कहते हैं बेटा तुमने बहुत देर कर दिया मेरे पास जो कुछ था वह सब बंट गया। तभी सैवीर कहता है रुको दोस्त ये लो 2 दिन का राशन और जाओ, अन्य ग्रहण करो जाकर।

     बलराम धन्यवाद करता है और लेकर चला जाता है। आज पूरे गांव में मुखिया जी और उनके बेटे की जय - जय कार हो रही है। दूसरे गांव में भी मुखिया जी और उनके बेटे की महानता के बारे में पता चलता है।

    इधर राम किशोरी अपने बेटे के मुख को देख कर रोते हुए कहती है बेटा अब हम क्या खाएंगे? तुमने सब कुछ तो दान कर दिया है।

                 मां आज का खाना तो रखा ही है वह खा लेंगे। और तू ही तो कहती थी कि हमें अपनी खुशी से ज्यादा दूसरों की खुशी का ख्याल रखना चाहिए। ईश्वर सबका ख्याल रखता है। मां तू परेशान मत हो कल की सुबह हम सभी की अच्छी होगी। सैवीर की बातें सुनकर रामचंद्र और राम किशोरी सभी लोग सो जाते हैं।

             सुबह हो गई आज तेज हवाएं चल रही हैं गांव के सभी लोग तालाब के पास बने दरवाजे पर खड़े हैं और मुखिया जी का इंतजार कर रहे हैं कब मुखिया जी आएंगे और दरवाजा खोलेंगे।

          तभी मुखिया जी अपने बेटे और पत्नी रामकिशोरी को लेकर दरवाजे के पास पहुंचते हैं। और ताला खोल कर, सभी लोग तालाब की ओर प्रवेश करते हैं। सबसे आगे मुखिया जी का बेटा उनके पीछे रामचंद्र और रामकिशोरी चल रहे होते है। और किसी की हिम्मत नहीं होती है उस तालाब के पास पहुंचने की। बाकी सब पीछे पीछे चलते है।

                         तालाब पर पहुंचकर सैवीर मजदूरों से कहता है कि यहां से एक रास्ता गांव के खेतों की ओर जाता है इसी रास्ते की खुदाई शुरू करो। और पूरा गांव उस जमीन को खोदकर तालाब के पानी को खेतों तक पहुंचा देते हैं।

           सभी लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं कि तालाब का पानी खेतों तक कैसे पहुंच रहा है, बिना तालाब के पानी में कोई कमी आए।

                 तभी सैवीर कहता है आप सभी लोग आश्चर्यचकित ना हो इस तालाब में दो नदियों का पानी आता है यहां पर पहले बहुत बड़ा राज महल हुआ करता था जिसके जमींदोज हो जाने से तालाब में आने वाली नदियों का पानी नहीं दिख रहा। जमीन के अंदर से दोनों नदियों का पानी इस तालाब में आता है।

      सभी लोग चकित हो जाते हैं कि सैवीर को कैसे इतना सब कुछ पता। गांव के सभी लोग सैवीर को पिछले जन्म का राजा समझने लगते है और जय - जयकार लगाने लगते हैं। आज गांव के सभी लोग बहुत खुश हैं।

      सैवीर काका से कहता है क्या आप लिस्ट लाए हैं? काका लिस्ट सैवीर को देते हैं। सैवीर सभी को इष्ट देव की मूर्ति के पास ले जाता है और कहता हैं, सभी लोग हमारे इष्ट देव के आगे हाथ जोड़ प्रार्थना करें। सभी लोग इष्ट देव की पूजा व उपासना करते हैं। उसके बाद सैवीर अपने हाथों से इष्ट देव की मूर्ति को उठाता है और मजदूरों से कहता है। इस जमीन पर खुदाई करो। सभी मजदूर उस स्थान पर 8,10 फड़वा मारते हैं। और उन्हें एक बहुत बड़ा बक्सा जमीन में दबा दिखता है। बक्सा बाहर निकालकर मुखिया जी को सौंप दिया जाता है।

          सैवीर मजदूरों से कहता है इस स्थान पर हमारे इष्ट देव का बहुत भव्य मंदिर बनाओ और गांव के अच्छे-अच्छे मिस्त्री व मजदूर उस मंदिर को बनाने के कार्य में लग जाते हैं।

          इधर मंदिर का कार्य चल रहा होता है। तभी सैवीर गांव के सभी लोगों से कहता है यहां सभी लोग एक सभा बना ले और मैं जिन जिन लोगों का नाम लेता जाऊंगा वह एक एक पंक्ति में खड़े हो जाएंगे। और इस तरह 3 पंक्तियां बनती हैं धनवानों की, मध्यम लोगों की और गरीबों की। सैवीर बक्से को खोलता है और उसमें हीरा, सोना- चांदी और जेवरात भरे होते हैं। गांव के लोग यह देखकर दंग रह जाते हैं। सैवीर अपने पिता के हाथों से गांव में हर वर्ग को एक अनुपात में सोने - चांदी वा आभूषण बांट देते हैं। और अब बक्से में केवल एक सोने का हार बचता है।

         गांव वालों को यकीन हो जाता है कि सैवीर पिछले जन्म में एक राजा था। जो इसी राजमहल में पहले राजा हुआ करता था।

                  तभी पंडित रवि शंकर शास्त्री आ जाते हैं। और सैवीर के इस कार्य को देखकर बहुत खुश होते हैं और सैवीर को खुश रहने का आशीर्वाद देते हैं। तभी गांव के मुखिया पंडित जी से कहते हैं हे पंडित जी! आपकी कहीं हर बात सत्य निकली मेरा लड़का किसी उद्देश्य के लिए ही पैदा हुआ था। तभी पंडित जी कहते हैं तुम्हारा लड़का पिछले जन्म में राजा था और जिस स्थान पर तुम खड़े हो यहां पर एक राज महल हुआ करता था और तुम्हारे पुत्र को पिछले जन्म की हर बात याद है।

            इतना सुनकर गांव के सभी लोग सैवीर को महाराज की जय हो....... महाराज की जय हो...... का नारा लगाने लगते हैं।

       तभी मुखिया जी बक्से में बचे अंतिम आभूषण को पंडित जी के चरणों में अर्पित करते हैं। और मुखिया जी के बहुत कहने पर , पंडित जी उसे रख लेते हैं।

  तभी सैवीर कहता है पिताजी आप परेशान मत हो, ईश्वर हमें बहुत कुछ देगा। और सैवीर गांव के सभी लोगों से अपने अपने घर जाने को कह देता है। और सभी लोग खुशी से झूमते हुए राजा की जय- जय कार करते हुए, अपने- अपने घर चले जाते हैं। इधर इष्ट देव का मंदिर बनकर तैयार हो जाता है। रामचंद्र, रामकिशोरी और उनका बेटा तीनों इष्ट देव के हाथ को जोड़कर घर की ओर चल देते हैं।

                                  

साधु का श्राप। (पार्ट - 9)

                 रास्ते में रामचंद्र, सैवीर से कहते हैं बेटा तुमने जो आज कार्य किया है वह कोई नहीं कर सकता था। तुम्हारी ईमानदारी और अपने गांव वालो से इतना प्रेम देख कर मैं तुम्हारे आगे नतमस्तक हो गया हूं। आज हमें अपने ऊपर गर्व है कि हमने तुम्हें ऐसी परवरिश दी। सैवीर कहता है पिता जी यह सब तो आपके प्रेम का असर है। मैं जो कुछ भी करता गया, आपने मुझ पर विश्वास बनाए रखा। राम किशोरी कहती है बेटा तुम्हें पाकर हमारा जीवन धन्य हो गया है हमें पैसा धन दौलत किसी का भी कोई लालच नहीं है। क्या तुम्हें यह बात बचपन से पता थी कि तुम पिछले जन्म में राजा थे। नहीं मां मुझे नहीं पता था मुझे अभी 2 दिनों पहले ही सब ज्ञात हुआ है।

          और रामचंद्र अपने घर पहुंच जाते है। दरवाजा खोलकर तीनो लोग अंदर जाते हैं सभी की आंखें यह दृश्य देखकर दंग रह जाती हैं। आंगन में हीरे जेवरात से भरे मटके ही मटके रखे होते हैं राम किशोरी किचन में जाकर देखती है तो राशन ही राशन बोरियों में भरे रखे रहते हैं। तभी सैवीर कहता है देखा मां मैंने कहा था आज का दिन हम सभी के लिए अच्छा होगा और पिताजी ने जिस तरह गरीबों की मदद की है यह कैसे हो सकता है कि ईश्वर हमें भूखा रखें। यह सब इष्ट देव की कृपा है। तभी रामचंद्र कहता है हां बेटा ईश्वर ने हमारे घर को भी हरा भरा कर दिया लेकिन तुम्हारे जैसे अनमोल रत्न के आगे यह सब बेकार है जाओ इन को अंदर रख दो। हम प्रतिदिन जो कमाएंगे हैं उसी से अपना घर चलाएंगे।

           अगले ही दिन गांव के कुछ लोग मुखिया जी के दरवाजे पर खड़े होते हैं उसमें से एक काका आवाज देते हैं मुखिया जी..... मुखिया जी.... दरवाजा खोलिए। रामचंद्र बाहर निकल कर आते हैं क्या हुआ? सब कुशल मंगल तो है। ईश्वर की और जिस पर आपकी कृपा हो वहां अमंगल कैसे हो सकता है मुखिया जी। मुखिया जी हम सब गांव वालों ने यह निश्चय किया है कि तालाब के पास जमींदोज हुए राज महल को फिर से बनवाया जाए और इस गांव का उद्धार किया जाए। मुखिया जी सैवीर को बुलाते हैं और गांव वालों से कहते हैं अब गांव का नया मुखिया सैवीर है। गांव वाले महाराज सैवीर की जय जय कार करने लगते हैं तभी सैवीर सबको रोकते हुए कहता है नहीं पिता जी आपका स्थान मै नहीं ले सकता, आप ही गांव के मुखिया बने रहिए। मुखिया का कार्य बहुत बड़ा होता है और मैं इसे अपने कंधों पर रखकर नहीं चल सकूंगा। मैं स्वतंत्र रहना चाहता हूं। रामचंद्र कहते हैं बेटा अब मेरी भी उम्र हो रही है अब मुझसे भी इतना कार्यभार नहीं संभाला जाता।

     अब आज से तुम ही गांव के मुखिया हो यह मेरा आदेश है। सैवीर अपने पिता के इस आदेश को मना नहीं कर सका और गांव के नए मुखिया के रूप में कार्यभार संभाल लेता है। और अगले दिन से तालाब के पास पड़ी जमीन पर पहले की तरह ही बना राज महल बनवाना शुरू करता है।

                  सैवीर के मन में कहीं ना कहीं प्रेम की लौ जल रही है और वह चाहकर भी शिवांगी को नहीं भुला सकता। मुखिया के रूप में उसके कार्य का दायित्व भी बढ़ गया है। जिसके कारण अब वह दिन रात गांव वालों की सेवा में ही लगा रहता है और जो कुछ समय बचता है वह राजमहल की देखरेख में ही बीत जाता है।

                     समय का चक्र आगे बढ़ता है और धीरे-धीरे 6 माह बीत चुके हैं सैवीर के पिता रामचंद्र कहते हैं बेटा अब तुम शादी कर लो और हमें भी पोता पोती खिलाने का सौभाग्य दो। सैवीर कहता है पिता जी यह आप कैसी बात कर रहे हैं यह तो मेरा सौभाग्य है कि मैं आपका पुत्र हूं और रही शादी की बात तो मैं शादी नहीं करूंगा। कृपया इस शादी की बात करके मुझे परेशान ना करें। इतना कहकर सैवीर घर से राजमहल की ओर चल देता है।

                   तभी रास्ते में उसे बलराम मिलता है और वह बलराम को लेकर अपने साथ राजमहल ले जाता है। सैवीर बलराम से कहता है और बता भाई तू कैसा है और घर में मम्मी पापा कैसे हैं बलराम कहता है भाई सब आप लोगों की कृपा है सब ठीक है।

              सैवीर बलराम से कहता है तुम तो मेरे पिछले जन्म के साथी हो। क्या तुम मेरे साथ काम करोगे? बलराम हंसने लगता है और कहता है ठीक है राजा जी। सैवीर अपने दिल की बात बलराम को बताता है और कहता है तुम्हें तो पता ही है इस राज महल की चारदीवारी पर मैं और रानी देवी माया बैठे रहते थे और एक दूसरे से घंटों बैठे बातें करते रहते थे।

              हां मुझे याद है जब मैं कोई संदेश लेकर आता था आप सेवक से कहकर मना करा दिया करते थे कि अभी राजा अंदर अपनी रानी से बात कर रहे हैं। सैवीर मुस्कुराते हुए कहता है हां मित्र तुम सही कह रहे हो। और सुनो तुम मुझे राजा या आप करके बात ना किया करो मैं तुम्हारा मित्र हूं। बलराम कहता है भाई मैं मजाक कर रहा था।

सैवीर - कहता है मित्र मैं आज बहुत परेशान हूं। शिवांगी मुझे गलत समझती है।

बलराम - तुम्हें एक बार जाकर उससे बात करनी चाहिए।

सैवीर - मैं किस मुंह से उसके पास जाऊं।

बलवान - जब तुमने चाहकर कुछ गलत किया ही नहीं है तो फिर इसमें दुखी होने की क्या बात है तुम तो एक सच्चे दिल के इंसान हो। 

          सैवीर कहता है अच्छा इसे हटाओ। अब समय ही जो चाहेगा वही होगा। इन बातों से मैं और परेशान होता हूं। अच्छा सुनो तुम्हें तो पता ही है राजमहल पूर्व जन्म में किस तरह का बना था। आज से तुम्हारा काम है इस राज महल की देखरेख करोगे और कारीगरों को बताते रहोगे कैसे क्या बनना है जब कोई बात ना समझ में आए तो तुम मुझसे मिलना। आज से तुम मेरे मुख्यमंत्री हो और दोनों लोग हंसने लगते हैं।

            एक दिन गांव के कुछ लोग सैवीर के पास आते हैं। सैवीर पूछता है क्या हुआ दादा। दादा और उनका परिवार उन्हें अपनी समस्या बताते हैं कि बगल वालेे गांव से अपने लड़के गोपाल की शादी करी थी। आज शादी को 3 माह बीत गए। गोपाल की पत्नी राधा को उसके घर वाले 1 माह पूर्व विदा कराकर ले गए थे। अब अपनी लड़की को यहां नहीं भेजना चाहते हैं। अगर बहू घर नहीं आई तो हम लोगों की गांव में बहुत बेइज्जती होगी और हम तो किसी को भी मुंह नहीं दिखा सकेंगे। सैवीर पूछता है ऐसा क्या हुआ जो लड़कीवाले अपनी लड़की को भेजना नहीं चाहते हैं गोपाल बताता है की शादी से पहले मेरी एक प्रेमिका पायल थी जिसने किसी और के साथ शादी कर ली। इधर मेरी शादी राधा से तय हो जाती है मैं यह बात राधा से नहीं बताता हूं। मैं सोचता हूं इन बातों का अब कोई लेना-देना भी नहीं है क्योंकि उसकी शादी किसी और से हो चुकी है। शादी के डेढ़ माह तक हम और राधा खुशी से जीवन जीते हैं। फिर एक दिन पायल मेरे घर आती है मैं दरवाजा खोलता हूं और पायल मेरे गले लग जाती है और रोने लगती है कहती है तुम बहुत अच्छे थे। मुझे माफ कर दो मेरे पति ने मुझे छोड़ दिया है। यह सब कुछ राधा देख लेती है। मैं पायल से कहता हूं कि मेरे घर मत आना मेरी शादी हो चुकी है किसी और से।

             इधर राधा मुझ से लड़ाई करती है। मैं उसे पूरी बात बताने की कोशिश करता हूं लेकिन वह मेरी कोई बात नहीं सुनती और मुझे छोड़ कर चली गई है।

          सैवीर कहता है कौन सा गांव है गोपाल बताता है उस गांव का नाम तिरस्कर है गांव का नाम सुनकर सैवीर भौचक हो जाता है।

         

साधु का श्राप। ( पार्ट -10)

    सैवीर कहता है आप लोग घर जाए। मै बात करता हूं राधा से।

        सैवीर बलराम को तिरस्कर गांव भेजता है और कहता है जाओ उस गांव के मुखिया सोनभद्र जी से पूरी घटना बता देना और कह देना अगर आप हमारे गांव आकर इस मामले का निपटारा करे तो हमें अच्छा लगेगा। और उनसे कहना राधा को भी संग लेते आयेंगे। दोनों पक्षों की बात सुनकर ही निर्णय उचित होगा।

            बलराम तिरस्कर गांव के लिए चल देता है वहां पहुंचकर सारी घटना सोनभद्र जी को बताता है सोनभद्र कहते हैं। आजकल मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो मुखिया की ओर से मेरी बेटी शिवांगी को ले जाओ। उसका निर्णय ही अंतिम निर्णय होगा। तभी सोनभद्र अपनी बेटी शिवांगी को बुलाते हैं और पूरी घटना बता कर चंदेरी गांव जाने को कहते हैं। और कहते हैं तुम एक बुद्धिमान लड़की हो। दोनों पक्षों की बात सुनकर जो सत्य हो उसी का साथ देना। चंदेरी गांव का नाम सुनकर शिवांगी दुःखी हो जाती है। शिवांगी कहती है ठीक है मैं साथ में कुछ लोगों को भी ले जाती हूं। सोनभद्र कहते हैं, तुम राधा को साथ में लेकर जाओ वहां तुम्हें किसी और को साथ ले जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। रामचंद्र मेरे बहुत अच्छे मित्र हैं तुम्हें कोई कष्ट नहीं होगा। और मुझे पता है वहां तुम्हारा निर्णय ही अंतिम निर्णय माना जाएगा।

   

             शिवांगी, राधा और उसके मां बाप को लेकर बलराम के साथ चंदेरी गांव पहुंचती है। सभी लोग चंदेरी गांव पहुंच जाते हैं लेकिन काफी रात हो चुकी है। शिवांगी, बलराम से कहती है अब तो कल ही सभा लगेगी। इसलिए कही लेटने का प्रबंध करो। बलराम कहता है मुखिया जी के घर पर पूरी व्यवस्था बनाई है शिवांगी मै मुखिया के घर नहीं रुकूंगी, कहीं दूसरी जगह रुकने का प्रबंध करो। बलराम कहता है जैसी आपकी आज्ञा।

              तालाब के पास राज महल में बलराम, मुखिया सैवीर को, सभी के पहुंचने की सूचना देता है। सैवीर बलराम से कहता है ठीक है मैं घर जा रहा हूं अभी थोड़ी देर में आऊंगा। तब तक तुम उनके लिए खाने पीने और लेटने का प्रबंध करो। और उन्हें कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। अब तो राजमहल के कई कमरे बनकर तैयार हो गए है, इसमें ही प्रबंध कर दो। जैसे ही इतना कहकर सैवीर राजमहल से बाहर निकलता है शिवांगी को देखता है और देखता ही रहता है तभी शिवांगी उसे देख कर मुंह मोड़ लेती है। तभी सैवीर अपने घर की ओर चल देता है। बलराम राजमहल के दो कमरों में सबके लेंटने और खाने की प्रबन्ध करता है।

                  शिवांगी राज महल से बाहर निकलती है और बलराम से कहती हैं यह राजमहल किसका है और कौन इसे बनवा रहा है। बलराम शिवांगी को बताता है, यह राजमहल मुखिया सैवीर बनवा रहे हैं। और यह राजमहल उनका ही है। शिवांगी कहती है यहां पर एक तालाब हुआ करता था बलराम कहता है हां वह तालाब इस राज महल के पीछे है। शिवांगी कहती है, मैं समझ गई तुम्हारे मुखिया के पास इतना धन कहां से आया। तुम्हारे मुखिया ने उस परी की इच्छा पूरी करी होगी। और उसने उसके बदले इनको धन दिया होगा। बुरा ना मानना लेकिन तुम्हारे मुखिया बहुत ही दुष्ट हैं। बलराम कहता है मुझे आपके बारे में मुखिया सैवीर जी ने सब बताया है। आपने यह बात तो मुझसे कह दी, अब किसी से यह बात मत कहना वरना आपको मार दिया जाएगा। शिवांगी कहती है लो मैंने क्या गलत बात बोली। बलराम कहता है आप क्या जानती हैं उनके बारे में भी वे बहुत ही नेक दिल के इंसान हैं। गांव में अकाल पड़ा था और सभी लोग भूखे मर रहे थे, तब उन्होंने ही अपने घर की सारी धन दौलत और राशन गांव वालो में बांट दिया और अपने लिए कुछ नहीं बचाया। और अगले दिन इस राजमहल की खुदाई में जो भी धन दौलत निकली वह भी गांव वालो में बांट दिया। और उनके ऊपर ईश्वर की ऐसी कृपा हुई कि उनके घर धन-धान्य से भर गया।

       आप क्या जानती हैं यही कि उन्होंने परी के साथ संभोग किया है हां उन्होंने किया है अपने पूर्व जन्म के वचन के कारण। अगर वह ऐसा ना करते तो वह परी कभी इस पृथ्वी लोक से मुक्ति नहीं पाती। अगर वह चाहते तो उस परी से शादी भी कर सकते थे लेकिन वह आपको चाहते हैं। उनके मन, मस्तिष्क में आप ही है। वह अपने कार्य में इसलिए इतना लीन रहते हैं ताकि वह आपको भूल जाएं लेकिन आज भी उनकी आंखों में आपके लिए प्रेम दिखाई देता है, लेकिन वे अपने मन की बात किसी को नहीं बताते। कृपया उस महान इंसान को कुछ मत कहें हम आपके हाथ जोड़ रहे हैं। इतना कहकर बलराम खाना लेने अंदर चला जाता है।

                 जब से राजमहल बन रहा है सैवीर राजमहल में ही रहने लगता है। और प्रतिदिन अपने मां बाप से आशिष लेने भी जाता है अपने मां-बाप से कहता है जब यह पूरा राज महल बन जाएगा तब आप लोग राजमहल में रहिएगा। मां बाप से आशीष लेने के बाद सैवीर राज महल चला आता है। राजमहल पहुंचकर बलराम से पूछता है क्या तुमने सभी को खाना खिला दिया। बलराम कहता है ,हां सभी ने खाना खा लिया है। सैवीर कहता है और तुमने खा लिया। बलराम आपके बिना कैसे खा लेे...... खा लो भाई मां ने मुझे खिला दिया। और सभी लोग अपने अपने कमरे में लेट जाते हैं। सैवीर राज महल के एक कमरे मे लेटा है और दूसरे कमरे में शिवांगी लेटी है। दोनों को आज नींद नहीं आ रही है और दोनों अपने बिस्तर पर इधर-उधर करवट बदलते रहते हैं। तभी सैवीर राज महल से बाहर निकलकर टहलने लगता है। शिवांगी भी बहुत व्याकुल होती है और वह राज महल की छत पर चली जाती है। देखती है सैवीर टहल रहा है। सैवीर को देखकर शिवांगी छत से नीचे उतर कर उसके पास चली जाती है। सैवीर अपने आंसू पोछते हुए कहता है क्या हुआ आपको नींद नहीं आ रही। शिवांगी कहती है तुम रो रहे हैं। सैवीर नहीं तो वो आंख दर्द हो रही है। शिवांगी कहती है झूठ मत बोलो, भले मैं तुमसे इतने समय से दूर हूं लेकिन मैं तुम्हें इतना तो जानती हूं। मुझे माफ कर दो, मैं तुम्हें समझ नहीं सकी। मैं खाना खाने के बाद तुम्हारे मां बाप से मिलने गई थी। सच में तुम एक महान इंसान हो, मैं तुम्हारे लायक भी नहीं हूं। मुझे माफ कर दो इतना कहकर शिवांगी, गले लग जाती है। सैवीर भी उसे अपने हाथो से पकड़ लेता है। शिवांगी कहती है तुमने मुझे माफ किया कि नहीं। मैं सच में बहुत बड़ी बेवकूफ हूं जो तुम पर विश्वास ना कर सकी मुझे तुमको समझना चाहिए था। सैवीर हंसते हुए कहता है हां यह बात तो सच है तुम बेवकूफ थी। अच्छा ये बताओ जब तुम मुझसे इतनी नफरत करने लगी थी तो तुमने किसी और से शादी क्यों नहीं की। शिवांगी हंसते हुए कहती है कोशिश तो बहुत की लेकिन कोई तुम्हारे जैसा नहीं मिला। और तुम बताओ तुमने क्यों नहीं की? सैवीर मां बाप ने तो बहुत कहा लेकिन मैंने कसम खाई थी अगर करूंगा तो तुम से ही वरना किसी से नहीं।

           और दोनों लोग तालाब के पास पूरी रात एक दूसरे की बाहों में बैठ कर बातें करते रहते हैं। सुबह होने को आ गई है सैवीर कहता है चलो थोड़ी देर के लिए सो लिया जाए। शिवांगी कहती है मैं तुम्हारे साथ सोऊंगी। सैवीर मुस्कुराते हुए कहता है कहीं कुछ हो गया तो। शिवांगी भी मुस्कुराते हुए कहती है वह तुम मुझ पर छोड़ दो।

    और दोनों को इतनी गहरी नींद आ रही होती है कि बिस्तर पर जाते ही दोनों सो जाते हैं।

      सुबह सभा लगती है।

साधु का श्राप। (पार्ट -11)

        सभा में सभी लोगो को बुलाया जाता है। मुखिया के लिए दो कुर्सियां पड़ती है। एक कुर्सी पर सैवीर और दूसरे पर शिवांगी बैठती है।

सैवीर- राधा तुम गोपाल से क्यों अलग होना चाहती हो।

राधा - मुखिया जी मेरे आदमी ने मुझे धोखा दिया है। शादी के बाद मैंने अपनी सारी बात बता दिया लेकिन इन्होंने पायल से अपने प्रेम को मुझसे छुपाए रखा। एक दिन तो हद हो गई जब मै खेतो में गई थी और लौटते समय मैंने एक लड़की को इनकी बाहों में लिपटे देखा। और मै समझ गई कि ये मुझे धोखा दे रहे है।

गोपाल - तुमने जैसा देखा वैसा कुछ नहीं था राधा। मेरा विश्वास करो।

राधा - मुझे तुम्हारी कोई बात नहीं सुननी। अगर आपका मन साफ होता तो आप पहले ही सब कुछ बता देते।

शिवांगी - हां राधा सही कह रही है।

सैवीर - अच्छा राधा क्या तुम अपने आदमी से प्रेम करती हो।

राधा - हां लेकिन अब नहीं ।

सैवीर - तुम प्रेम ही नहीं करती। अगर करती होती तो एक बार गोपाल से पूछती ये कौन है और वह उसके गलेे क्यों लगी थी। मान लो पायल इसकी बहन होती और तुम्हें न पता होता।

    राधा कभी कभी जो दिखता है वो सच्च नहीं होता। हां गोपाल की गलती है उसने तुम्हें शादी से पहले यह बात नहीं बताई की उसकी पहले एक प्रेमिका थी जिसकी किसी और से शादी हो गई। उसके लिए इतनी बड़ी सजा देना उचित नहीं है।

शिवांगी- मुखिया जी हमे आप पर विश्वास है लेकिन आप जो बात कह रहे हैं। वह गोपाल ही ने तो आपको बताया होगा इसलिए हम उसकी बात का कैसे यकीन कर ले। पायल ही सब कुछ बता सकती है।

सैवीर - हां लेकिन उसको यहां लाना उचित नहीं होगा। इसलिए तुम खुद जाकर उससे अकेले में बात कर लो। गोपाल तुम्हें घर दिखा देगा।

शिवांगी और राधा, गोपाल के साथ जाती है गोपाल उसे दूर से पायल का घर दिखा देता है राधा उससे बात करके सभी गलतफहमियां दूर कर लेती हैं।

      राधा, गोपाल से मांगी मांग लेती है और भोला भाला गोपाल कहता है कोई बात नहीं तुम लौट आईं। यही मेरे और मेरे परिवार के लिए बहुत अच्छा है। मै केवल तुमसे ही प्रेम करता हूं।

     इधर शिवांगी भी अपने गांव लौटने की तैयारी करती है सैवीर कहता है मत जाओ। शिवांगी कहती है मन तो मेरा भी नहीं है लेकिन मुझे जाना ही होगा। चलो मैं तुम्हारे मां बाप से आशीर्वाद लेकर निकलती हूं। शिवांगी, सैवीर के साथ उसके घर जाती है और रामचंद्र और राम किशोरी से आशीर्वाद लेकर अपने घर को चल देती है। सैवीर शिवांगी को जाता हुआ देखता रहता है।

     रामचंद्र कहते हैं बेटा तुम शिवांगी से क्यों नहीं शादी कर लेते हो। मुझे लगता है तुम दोनों एक दूसरे से प्रेम करते हो। सैवीर का कुछ ना बोलना, रामचंद्र को सब समझ आता हैं और रामचंद्र, शिवांगी के पिता से शादी के लिए बात करते हैं।

   और वह शुभ घड़ी आ जाती है जब दोनों की शादी की तारीख तय हो जाती है।

     

               इधर राजमहल भी बनकर तैयार हो गया है। और अनेकों गांव उस राज्य में अपनी सहमति से समाहित हो गए है। मुखिया सैवीर को अब राज्य वाले राजा कहकर संबोधित करते है। सैवीर का अब नया घर राजमहल हो गया है। सैवीर के माता-पिता भी यही रहते हैं। जिसमे बलराम को मुख्यमंत्री और पंडित रवि शंकर शास्त्री को राज्य का कुल पुरोहित बना दिया जाता है। और राज्य के ज्ञानी लोगों को राज्य का अन्य कार्यभार प्रदान किया जाता है। अब यह गांव चंदेरी राज्य के नाम से फिर मशहूर हो जाता है। और उन गांव को अपने राज्य में मिला लिया जाता है जहां के मुखिया या शासक बहुत क्रूर हैं। या फिर सभी लोग अपने मुखिया या शासक से परेशान हैं। यदि क्रूर शासक उस राज्य में नहीं आना चाहता और युद्ध करता है तो युद्ध द्वारा भी उसके राज्य को जीत लिया जाता है। राज महल की रक्षा के लिए सेना की बहुत बड़ी टुकड़ी तैयार की जाती है। और राज महल बिल्कुल सोने की तरह चमकता है और उस तालाब वा उपवन का भी जीवोद्धर कर दिया जाता है जो परी के जाने के बाद उजड़ सा गया था। और गांव के सभी लोग राजा सैवीर से बहुत प्रसन्न रहते हैं।

         आज वो समय आ गया है जिसका सैवीर और शिवांगी के साथ - साथ राज्य वालो को भी इंतजार था, इन दोनों कि शादी का। पंडित रवि शंकर शास्त्री और दो अन्य पंडित मिलकर पूजा वा उपासना करते हैं सैवीर और शिवांगी आज शादी के बन्धन में बंधकर एक हो जाते है। जिसकी साक्षी वह परी भी होती है जो इंद्रलोक से बैठी देख रही होती है। आज सैवीर और शिवांगी हंस ओर हंसनी के जोड़े से कम सुंदर नहीं लग रही हैं। और तभी इन दोनों पर फूलों की वर्षा होती है।

         शिवांगी अपने मां बाप से आशीर्वाद लेती है और सोनभद्र व उनकी पत्नी रूपादेवी, रामचंद्र वा रामकिशोरी के हाथ जोड़कर कहते है हमें चलने कि आज्ञा दीजिए। अगर कोई गलती हुई हो, तो हम क्षमा चाहेंगे। अब हमारी बेटी आपकी बहू है।    

         रामचंद्र कहते है आप कैसी बात कर रहे है। आप अपने घर का चिराग हमें दे रहे है। क्षमा की क्या आवश्यकता है। आपसे कोई गलती हो ऐसा होना असंभव है। और हम इसे बहू नहीं बेटी मानते हे। हम तो कहेंगे आप भी यही रहे। सोनभद्र कहते है बेटी के घर रहना पाप है। ऐसी कोई आज्ञा ना दे जिससे हमारी मान सम्मान में आंच आए। रामचंद्र हंसते हुए सोनभद्र को गले लगा लेते है और कहते है आपकी इज्जत हमारी इज्जत है। इतना कहकर सभी लोग हंसी खुशी अपने -अपने घर चले जाते है।

    आज शिवांगी और सैवीर के जीवन की पहली रात है वे लेटकर एक दूसरे की बाहों में अनेकों वादे करते हैं। और 9 माह बीत जाने के बाद उन्हें चांद सा जैसा बेटा होता है। इस दौरान सैवीर ने अनेकों युद्ध लड़े। और हर युद्ध में जीत प्राप्त की। राजमहल के पीछे शिवांगी और सैवीर प्रतिदिन तालाब के पास जाते है और चांदनी रात की किरण जब उस तालाब पर पड़ती है तो यह दृश्य बड़ा मनमोहक होता है और वे एक दूसरे की बाहों में बैठे रहते है। और समय के साथ शिवांगी को कुल तीन पुत्र होते है। तीनों पुत्र एक से बढ़कर एक बहादुर होते हैं।

  

        इस तरह इस कहानी के 1 अध्याय का अंत होता है। और साधु का दिया श्राप किस तरह पूर्ण होता है और उस श्राप को वरदान माना जाए या श्राप। कितने लोग उस तालाब में मर गए। और धन से गांव वालो को राहत मिली।

           ( दोस्तो अब यह अध्याय-1 पूर्ण हो चुका है और अगला अध्याय-2 "चंदेरी राज्य" के नाम से लिखा जाएगा। )

         

            अब यह देखना होगा कि सैवीर के बेटे कैसे यह राज्य संभालते है और क्या नए-नए मोड़ आते हैं। और किन-किन क्रूर शासकों से इनका सामना होता है। और अब किन-2 नई रानियों का आगमन होता है।

    


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