रुदृष्टि
रुदृष्टि
गज़ब की सुबह थी, जैसे प्रकृति ने सारा सौन्दर्य आकाश में उड़ेल दिया हो। लालिमा की चादर ओढ़ सूर्य बादलों की ओट से झाँक रहा था। सौंधी-सौंधी मिट्टी की महक सावन की पहली बारिश का एहसास करा रही थी। लुका-छुपी खेलती चिड़िया कभी पेड़ की गहरी टहनियों में खो जाती तो कभी फुर से उड़कर खिड़की पर बैठ जाती। और खिड़की पर एक टक नज़र लगाए बैठी थी सृष्टि।
आखिर इस सुबह का इंतज़ार वह न जाने कब से कर रही थी। बेचैनी के कारण वह रात भर सो भी न पाई। सुबह-सुबह नहा-धोकर वह मंदिर भी हो आई थी। शिवजी की भक्त जो ठहरी, अपने नए जीवन का आरंभ उनके आशीर्वाद से करना चाहती थी। आखिरकार, आज वह दिन आ ही गया जिसके लिए उसने दिन-रात मेहनत की थी। उसे अपने मनपसंद इंजीनियरिंग विश्वविद्यालय में दाखिला जो मिल गया था।
“माँ!! मुझे जल्दी नाश्ता दे दो, मुझे कॉलेज के लिए देर हो जाएगी।”
“ओ हो सृष्टि!! सुबह से तंग कर दिया है तुमने तो मुझे।” माँ ने कुछ चिड़कर कहा।
“ओ माँ!! आज तो गुस्सा मत करो। आज मेरे कॉलेज का पहला दिन है। मान जाओ ना माँ।”
“और भई माँ-बेटी में क्या बातें चल रही हैं कोई हमें भी तो बताए।”
“कुछ नहीं पापा माँ की थोड़ी मक्खन पॉलिश कर रही थी।”
“ हाँ भई वह तो बहुत ज़रूरी है।”
“नमस्ते अंकल जी!!
“नमस्ते बेटा।”
“लो आ गई लेट लतीफ़। आकृति तूने आज भी कितनी देर कर दी अब जल्दी चल !!” कहकर सृष्टि जल्दी-जल्दी में निकल गई।
“अरे!! नाश्ता तो करती जा।” माँ ज़ोर से बोली
“माँ!! कॉलेज में कुछ खा लूँगी, अभी बहुत देर हो रही है।”
“ये लड़की भी ना, कभी नहीं सुधरेगी।”
“वैसे एक बात कहूँ सृष्टि की माँ, हम बहुत भाग्यशाली हैं। कितनी संस्कारी, होशियार और गुणी है हमारी बेटी।”
“हाँ जी ये तो आपने बिल्कुल सही कहा। और हमारा भी कितना आदर करती है।”
सृष्टि और आकृति दोनों एक ही स्कूल से पढ़ीं थीं और अब तो दोनों का दाखिला भी एक ही कॉलेज में हो गया था। दोनों बहुत गहरी सहेलियाँ थीं पर एक-दूसरे से बिल्कुल विपरीत। सृष्टि जहाँ भारतीय संस्कृति को अपने अंदर समाए हुए थी वहीं आकृति पाश्चात्य संस्कृति से प्रेरित। परंतु इस बात का दोनों की दोस्ती पर कोई असर नहीं होता था।
दोनों सहेलियाँ बातें करतीं अपने कॉलेज पहुँचीं। कॉलेज का विशालकाय स्वरूप देखकर आकृति फूली न समाई और भागकर कॉलेज के अंदर दाखिल हो गई। दूसरी ओर सृष्टि कॉलेज देख स्तब्ध वहीं खड़ी रह गई।
“अरे सृष्टि वहाँ क्या खड़ी है, अंदर आ ना।”
आकृति की आवाज़ ने सृष्टि को उसके खयालों से बाहर निकाला। सृष्टि ने झुककर कॉलेज की भूमि को प्रणाम किया और फिर कॉलेज में दाखिल हुई। उसे ऐसा करते देख आस-पास खड़े विद्यार्थी उसका मज़ाक उड़ाने लगे।
“ये देखो!! साक्षात देवीजी पधारी हैं, लाओ भई कोई आरती का थाल तो लाओ इनका स्वागत किया जाए।” किसी सीनियर स्टूडेंट ने कहा।
ये सब देख सृष्टि थोड़ा घबरा गई। आकृति उसके बचाव में उतरी पर सीनिऑरस ने उसका भी मज़ाक उड़ाना चालू कर दिया।
“रुको, जाने दो इन्हें।”
“आप जा सकतीं हैं, और इन लोगों की ओर से मैं आपसे माफी माँगता हूँ, सॉरी।” रुद्र ने सृष्टि से कहा।
“क्या रुद्र तूने तो सारा मज़ा किरकिरा कर दिया।”
“अब बस भी करो, चलो क्लास का समय हो गया है।”
रुद्र सेकेंड इयर का स्टूडेंट था। वैसे तो वह भी मज़ाक मस्ती खूब करता था पर किसी का मज़ाक नहीं बनाता था। पढ़ाई में भी अव्वल और स्पोर्ट्स में भी। कॉलेज की अमूमन सभी लड़कियाँ मरती थीं उसपर। पर पता नहीं उसे किसकी तलाश थी।
कॉलेज के दिन बीतने लगे, खूब सारे नए दोस्त भी बने। पढ़ाई भी और मस्ती भी, दोनों के बीच समन्वय बनाती हुई सृष्टि और आकृति अपने कॉलेज लाइफ का आनंद लेने लगीं। कुछ समय और बीता और अब समय था कॉलेज फेस्ट का।
“सृष्टि देख कॉलेज फेस्ट में डांस कॉमपिटिशन है, तू हिस्सा क्यों नहीं लेती, तू तो कितना अच्छा डांस करती है।”
“हाँ आकृति पर ये कपल डांस है, मैं किसके साथ जोड़ी बनाऊँ।”
“अगर तुम्हें हर्ज़ न हो तो क्या मैं बन सकता हूँ तुम्हारा पार्टनर, मेरा मतलब है डांसिंग पार्टनर।”
सृष्टि ने पलटकर देखा तो रुद्र अपनी चिर-परिचित मुस्कान लिए सृष्टि के जवाब का इंतज़ार कर रहा था। अब तक सृष्टि और रुद्र में कुछ दोस्ती हो चुकी थी।
इससे पहले सृष्टि कुछ सोच-समझ पाती---
“अरे वाह!! बहुत ही नेक खयाल है। रुद्र और सृष्टि !! नहीं-नहीं “रुदृष्टि”, ये ही नाम ठीक रहेगा तुम दोनों की जोड़ी का।”
“अरे आकृति!! सुन तो......सुन तो ज़रा।”
“नहीं-नहीं मैं कुछ नहीं सुनने वाली हूँ, मैं अभी तुम दोनों का नाम लिखवाकर आती हूँ।”
रुद्र जो पूरे समय सृष्टि को देख रहा था उसकी असहजता को भाँप गया था।
“फिक्र मत करो सृष्टि, तुम मुझपर भरोसा कर सकती हो।”
अब सृष्टि के पास हाँ कहने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं बचा था। कॉलेज फेस्ट की तैयारियाँ शुरू हो गईं और अब रुद्र और सृष्टि क्लास के बाद रोज़ रीहरसल्स के लिए मिलने लगे। आकृति ने कोई पार्ट-टाइम जॉब जॉइन कर लिया था इसलिए आकृति क्लास खत्म होते ही कॉलेज से निकल जाया करती थी। कॉलेज फेस्ट भी निकल गया, पर अब रुद्र और सृष्टि रोज़ मिलने लगे थे। रुद्र हमेशा सृष्टि की पढ़ाई में मदद करता था और सृष्टि भी रुद्र जैसे सुलझा हुआ दोस्त पाकर बहुत खुश थी। यूँ ही देखते-देखते दो साल बीत गए।
एक दिन सुबह कॉलेज जाते समय आकृति सृष्टि को रुद्र का नाम लेकर चिढ़ाने लगी-
“हाँ भई अब मैं थोड़े ही याद आऊँगी तुझे, अब तो रुद्र ही रुद्र है हर जगह।”
“ये क्या बकवास कर रही है आकृति। तुझे पता है न वह मेरा एक अच्छा दोस्त है।”
“अरे तू तो गुस्सा हो गई। अच्छा बाबा सॉरी। तू मुझे तो चुप करा देगी पर पूरे कॉलेज को कैसे चुप कराएगी।”
“क्या मतलब” सृष्टि ने झुँझलाते हुए पूछा।
“मतलब ये कि तुम्हारे किस्से तो पूरे कॉलेज में मशहूर हैं। यहाँ तक की रुद्र ने भी अपने दोस्त से कहा है......”
“बस-बस मुझे कुछ नहीं सुनना, प्लीज चुप हो जा।”
ये सब सुनकर सृष्टि सन्न रह गई। आज क्लास में भी उसका ध्यान नहीं लग रहा था। उसने मन ही मन फैसला कर लिया था की वह अब रुद्र से कभी नहीं मिलेगी।
क्लास के तुरंत बाद वह कॉलेज से निकल जाती थी और दो दिन तक रुद्र से नहीं मिली। पर आज तो रुद्र ने भी फैसला कर लिया था कि माजरा क्या है वह आज पता लगाकर ही रहेगा। आज सृष्टि की क्लास खत्म होने से पहले ही रुद्र उसकी क्लास के सामने जाकर खड़ा हो गया। क्लास खत्म होने पर जैसे ही सृष्टि बाहर निकली....
“सृष्टि!! कहाँ हो यार, मिली क्यों नहीं दो दिन से?”
“कुछ नहीं रुद्र, मुझे जल्दी घर जाना है” सृष्टि ने रुद्र को टालते हुए कहा।
“जल्दी है तो मैं तुम्हें अपनी बाइक पर छोड़ देता हूँ।”
“नहीं रुद्र, बाइक की पीछे की सीट पर सिर्फ एक ही लड़की का अधिकार होता है और मैं वो नहीं हूँ।”
“पर क्यों सृष्टि, मैं तुम्हें बहुत चाहता हूँ, बेहद प्यार करता हूँ तुमसे”
“पर मैं ही क्यों रुद्र? मैं और सब के जैसी नहीं हूँ।”
“बस इसलिए ही मैं तुम्हें चाहने लगा हूँ। कितनी सादगी है तुम में, कितनी कोमलता, जो तुम्हें औरों से जुदा बनाती है।”
“देखो रुद्र!! मैंने कभी तुम्हें ऐसी नज़रों से नहीं देखा। तुम हमेशा से मेरे एक अच्छे दोस्त रहे हो। और फिर हमारे माँ-पापा ने हमें यहाँ पढ़ने भेजा है , अफेयर करने नहीं। मैं अपने पेरेंट्स की मर्ज़ी के खिलाफ नहीं जा सकती। सॉरी रुद्र, बेहतर यही होगा की अब हम एक दूसरे से नहीं मिलें ”ये कहकर सृष्टि वहाँ से चली गई और रुद्र जो सृष्टि से सच्चा प्यार करता था, टूट गया, बिखर गया।
उधर सृष्टि का हाल भी कुछ अच्छा नहीं था। वह समझ नहीं पा रही थी की उसे रुद्र की दोस्ती खोने का दुख था या फिर कुछ और। इम्तिहान सिर पर थे पर इस बार न तो रुद्र और न ही सृष्टि का मन पढ़ाई में लग रहा था। रुद्र ने एक दो बार सृष्टि से मिलने की कोशिश की पर सृष्टि ने उसे नज़रंदाज़ कर दिया। दोनों के हालात बहुत ही खराब थे।
सृष्टि ने अब कॉलेज जाना भी कम कर दिया था और घर पर ही पढ़ने लगी थी, वह रुद्र का सामना नहीं करना चाहती थी। आकृति ने सृष्टि को बहुत समझाया की वह एक बार रुद्र से बात कर ले, पर उसने तो जैसे ठान ली थी रुद्र से बात न करने की। सृष्टि के चेहरे की हँसी भी अब उड़ गई थी। माँ- पापा के पूछने पर पढ़ाई का बोझ है कहकर टाल देती थी पर वह तो हमेशा पढ़ाई खुशी-खुशी करती थी तो इस बार उसे पढ़ाई बोझ क्यों लग रही थी। उसने आकृति को भी कसम दी थी की माँ-पापा को कुछ नहीं बताएगी।
उधर रुद्र का हाल देखकर रुद्र के माता-पिता भी बहुत चिंतित थे। समझ ही नहीं आ रहा था की कौन सी बात रुद्र को अंदर ही अंदर खाए जा रही थी। पूछने पर रुद्र ठीक से जवाब ही नहीं देता था।
फिर एक दिन सृष्टि ऊपर अपने कमरे में बैठ कर पढ़ रही थी तभी आकृति भागते हुए उसके पास आई।
“सृष्टि तूने सुना क्या हुआ”
“क्या हुआ आकृति, साँस ले फिर बता क्या हुआ है”
“वो रुद्र..”
“तू फिर शुरू हो गई,”
“अरे सुन तो सही”
“कुछ नहीं सुनना मुझे रुद्र के बारे में”
“उसका एक्सीडेंट हो गया है सृष्टि, वह बहुत सीरीअस है, पता नहीं बचेगा या ......”
“या क्या आकृति, बोलती क्यों नहीं......”
ये सब सुनकर सृष्टि के पैरो के नीचे से धरती खिसक गई और वह बदहवास नंगे पैर दौड़ पड़ी रुद्र से मिलने। सीढ़ियाँ उतरते ही क्या देखती है कि रुद्र उसके सामने खड़ा है, एक दम सही सलामत। सृष्टि ने दौड़कर उसे गले लगा लिया।
“कोई ऐसा भी मज़ाक करता है क्या!! जान निकाल दी थी तुमने तो मेरी”
“पर क्यों सृष्टि, तुम्हें तो मेरे बारे में बात भी नहीं करनी तो तुम्हारी जान क्यों निकाल गई, बोलो सृष्टि!! बोलो!! कुछ कहती क्यों नहीं!! क्यों, आखिर क्यों”
“क्योंकि मैं तुमसे प्यार करती हूँ रुद्र” कहकर सृष्टि फूट-फूटकर रोने लगी।
ये क्या निकल गया उसके मुँह से। जिस बात को लेकर वह अंदर ही अंदर द्वन्द्व युद्ध लड़ रही थी, जो बात उसने किसीको नहीं बताई थी, जो बात उसने अभी तक खुद भी नहीं स्वीकारी थी वह बात उसने रुद्र को कैसे बोल दी।
“तुमने ये बात हमें क्यों नहीं बताई बेटा? अंदर ही अंदर घुटती रहीं।”
“मुझे माफ़ कर दीजिए पापा, मैंने आपका भरोसा तोड़ा है”
“नहीं बेटा, माफ़ी तो हमें माँगनी चाहिए तुमसे, की तुम खुलकर हमें अपने मन की बात भी नहीं कह पाई। हमें तुम पर नाज़ है बेटा।” माँ ने सृष्टि का सर सहलाते हुए कहा।
“और हमें भी रुद्र की पसंद पर नाज़ है।”
सृष्टि ने पलटकर देखा..
“तुम हमें नहीं जानती बेटा, हम रुद्र के माता-पिता हैं । जैसा रुद्र ने बताया था तुम बिल्कुल वैसी ही हो, सरल और साफ़ दिल की। रुद्र की हालत हमसे देखी नहीं जा रही थी। हमारे बहुत पूछने पर उसने हमें सब कुछ बताया और हम तुरंत तुम्हारे मम्मी-पापा से मिले और आकृति के साथ मिलकर हमने ये एक्सीडेंट वाली योजना बनाई, जिससे तुम अपने दिल की बात कह सको।”
“थैंक्स आकृति अगर तुम नहीं होतीं तो आज मैं सृष्टि को नहीं पा पाता।”
“सृष्टि!! रुद्र को अपना कमरा तो दिखाओ”
“हाँ-हाँ चलो मैं भी चलती हूँ।” आकृति ने रुद्र और सृष्टि को चिढ़ाते हुए कहा।
“ठीक है , ऐसे मत घूरो तुम दोनों मुझे, मज़ाक कर रही हूँ।”
(दोनों सृष्टि के कमरे में पहुँचते हैं)
“मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ सृष्टि”
“मैं भी”
इतना कहकर सृष्टि की नज़रें झुक गईं और रुद्र उसे चुप-चाप देखता रहा। दोनों के बीच की असहज चुप्पी तोड़ने आई वह नन्ही चिड़िया.. जैसे वह भी इन दोनों के अटूट प्रेम की साक्षी बनना चाहती हो।

