रस्म

रस्म

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भैया ने जी जिस लड़की को पसंद किया वो अम्माँ को बिल्कुल

पसंद नही थी। दोनो मे इस बात को लेकर तकरार होती थी। फिर अम्माँ रोती थी,खाना छोड़ देती थी। बाबूजी से कहती,ये दिन देखने के लिये,मंदिर मंदिर माथा टेका,मनौती मानी थी इस लड़के के लिये। बाबूजी रहे सन्त आदमी। अम्माँ को समझाते ,---"बड़ा हो गया है भला बुरा समझता है अपना। अगर उसे पांडे की लड़की पसंद है। तो मान जाओ। निभाना तुम्हे है कि उसे। "

अब तो अम्माँ और भुनभुना जाती-"सिर चढ़ा रखा है आपने बच्चो को। बेहाथ हुए जा रहे हैं। कहाँ आप अफसरी से रिटायर हुए कहाँ उसका बाप चपरासी। कोई मेल है हमारा उसका। और तो और तीन तीन लड़किया है पांडे की। अपना बबुआ ही पार लगायेगा उसकी नैय्या। तभी उसकी लड़की फंसायें बैठी है बबुआ। "

"हाँ जी,आपका बबुआ तो बहुत भोला है न जो कोई भी फंसा लेगा उसे। पांडे जी की बिटिया बहुत गुणी है। हिंदी साहित्य मे एम ए है। कॉलेज मे पढ़ा रही है। हमे तो बहू लानी है सुशील सी। मै तो उस लड़की मे कोई बुराई नहींदेखता "

"इस घर मे तो मेरी बात सबको बुरी लगती है। कितना भी अच्छा करुँ,सबको बुराई ही दिखती है। "

बस अम्माँ का रोना शुरू,फिर खाना खाने को मनाते रहो।

मै भईय्या से पांच साल छोटी,पर भईय्या की लाड़ली,मै भी चाहती थी भाई की शादी शामली से हो। वो मेरी सहेली थी। सुन्दर थी। हम दोनो एक ही कॉलेज मे थे। वो खुद टयूशन कर अपनी पढाई का खर्च पूरा करती थी। एम ए बी एड होने के बाद इंटर कॉलेज मे उसकी व्याख्याता की पोस्ट पर जॉब लग गई। मैं पी एच डी की तैयारी मे लग गई।

असल मे। अम्माँ को शामली से कोई शिकायत नही थी। शिकायत थी तो उसके पिता के चपरासी की नौकरी से। बारात एक चपरासी के दरवाजे जाय। अम्माँ के मायके वाले क्या बोलेंगे। जान पहचान मे क्या

इज्जत रहेगी।

एक दिन शामली के माता पिता हमारे घर आये। शायद भईय्या ने ही उनसे अनुरोध किया होगा। अम्माँ नेअपना मन मार लिया। जैसे तैसे तैयार हुईं,पर बात अटक गई देन लेन पर। उन लोगो ने कहा--नौकरी वाली बेटी है हमारी,टीका मे पन्द्रह सौ एक और लड़के के,और परिवार का मान सम्मान। बस इससे ज्यादा उम्मीद न करे "

भड़क गई अम्माँ। उस समय तो चुप्पी साध ली। कुछ न बोली। उनलोगो के जाते ही बाबूजी और भईय्या को सुनाते बोली--ऐसे भिखमंगो के दरवज्जे न जायेगी बबुआ की बारात। कान खोलकर सुन ले सब"तुनक कर अपने कमरे मे चली गई।

बात ये थी की उनके भाई ने(मेरे मामा)एक रिश्ता बताया था। धूमधाम से शादी,मोटा दहेज,लड़की भी ठीक रुप रंग की,पढ़ी लिखी। उन्होने लड़की का फोटो भेजा था।

बस एक तो भाई का बताया रिश्ता,ऊपर से सब मन माफिक। अम्माँ अड़ गई ज़िद पर। पूरे परिवार ने हार मान ली,भईय्या तक झुक गये।

अम्माँ खुश,बबुआ के विवाह की योजना मन ही मन बनाने लगी।

उस दिन अपने विषय के पेपर्स की तैयारी करने के बाद सर के यहाँ से घर लौटरही थी रास्ते मे ही थी शामली का फोन आया की मै अस्पताल पहुंच जाऊँ। उसने। अस्पताल का नाम बताया।

मै कई कुशन्काओ के साथ अस्पताल गई। अम्माँ एडमिट थी। सीढियों से गिर पड़ी थी। घर मे कोई नही था। शामली मुझसे मिलने वहाँ गाई थी। अम्माँ को वही अस्पताल लेकर गई। हम सबको खबर की। अम्माँ को अधिक चोट नही आई थी। चार दिन वो अस्पताल मे रही।

इस घटना ने अम्माँ पर शामली का जादू हो गया। उठते बैठते उसकी तारीफ करती। शामली ने भी उनकी बहुत सेवा की। अम्माँ सबसे यही कहती--शामली न होती तो जाने मेरा क्या होता। "

नतीजा ये हुआ कि शामली और भईय्या की शादी की मंजूरी पर अम्माँ की "हाँ "की मुहर लग गाई।

घर रिश्तेदारो से भर गया। मस्ती ही मस्ती,खुशियाँ ही खुशियाँ। ढोलक

पर थाप पड़ी,बन्ने गाये गये। भईय्या को हल्दी लगी। बारात चढ़ी।

अम्माँ ने कुएँ मे पैर लटका दिये। कारण?

"अब तो बेटा माँ की सेवा न करेगा,अपनी बीबी का गुलाम हो जाएगा।

ऐसे जीवन से तो माँ का कुएँ मे कूद कर मरना अच्छा"

भईय्या मना रहा है माँ को"माँ तेरी सेवा करूंग। बीबी का गुलाम बन कर नही रहूँगा। सच कहता हूँ। तेरी सेवा कर बेटा होने का फर्ज पूरा करूंगा। उठो,घर चलो। "

अम्माँ जोर से हँस कर बोली"मुझे कोई चिंता नहीं,तू मेरी सेवा करे न करे। पर मेरी शामली हमेशा मेरी सेवा करेगी। पूरा भरोसा है मुझे उस पर। "

"ये रस्म तो पूरी हुई ,अभी देवी भी पूजनी है ,कुएँ से उठो छोटी,किस्मत वाली हो। बेटा बहू दोनो ही तुम्हे प्यार करते है। वहां लड़की वाले बारात का रास्ता देख रहे होँगे। ताई जी की आवाज थी।


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