Pradeep Sahare

Tragedy

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Pradeep Sahare

Tragedy

रोशनी

रोशनी

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कल रात अचानक निंद खुली, बाथरुम जाकर, किचन से पानी पिया और फिर बिस्तर पर लेटकर सोने की कोशिश करने लगा, रात के दो बच चुके थे।

पड़ोसी हमारे श्री वेद मिश्राजी के घर से कुछ हल्की हल्की फुसफुसाने जैसी आवाज आ रही थी, थोड़ा अंदाजा लेने की कोशिश की लेकिन व्यर्थ।

मन में सोच रहा था क्या हो रहा हैं कुछ समझ नहीं पा रहा था, इतनी रात हुई मन भी आशंकित हो रहा था। फिर बिस्तर पर बैठ गया। तभी घर से थोड़ी थोड़ी रोने की आवाज आने लगी और फिर आवाज बढ़ी और कुछ क्रोधित शब्द भी सुनाई देने लगे और फिर रोने की आवाज बढ़ने लगी, मैं कुछ समझने की कोशिश करने लगा। सुबह के चार बज चुके थे, सुबह शिफ्ट पर जाने वालों के घर से कुछ हलचल दिखने लगी, मेरी भी हिम्मत बढ़ने लगी। धीरे से दरवाजा खोला और मिश्राजी के घर जाने लगा। मन में अनेक विचार एवं आशंका लेकर। बढ़ी हुई धड़कनों के साथ धीरे से दरवाजा खटखटाया, दो तीन बार

खटखटाने पर मिश्राजी के लड़के ने दरवाजा खोला देखते ही आँखें लाल और चेहरा क्रोधित लग रहा था। मैं अंदर गया, सोफे पर बैठा, मिश्राजी

सिसकी भरते हुए पास बैठे कुछ अस्पष्ट से शब्द बोले, गला रुंधा हुआ था।

"रोशनी को मार डाला, उन दरिंदों ने" और रोने की आवाज बढ़ गई। भाभी, लड़का, मिश्राजी धाय मोकल के रोने लगा, शायद मेरे जाने से रात भर का

दबा दुःख बाहर निकल रहा था। लड़का बार बार कह रहा था ,"पप्पा मैं किसी को छोडूंगा नहीं, उन्होंने मेरी दीदी को मारा मेरी प्यारी दीदी को।"

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या कहूं कैसे समझाऊँ, क्या समझाऊँ, शब्द ही नहीं थे, मेरी भी आँखें भर गई आँसुओं से, सब भूतकाल सामने नजर आ रहा था ।

मिश्राजी से पहली बार मुलाकात हुई एक बिल्डर के ऑफिस में। शहर के बाहर प्लॉट बेचने थे और हमें बिल्डर का आदमी प्लॉट दिखाने ले जाने वाला था।

गाड़ी आई हम बैठे, और दो आदमी और एक महिला थी, उनसे कोई ज्यादा बात नहीं हुई बस हलके से स्माईल तक। लेकिन मिश्राजी से चल रही थी, बंदा ही वैसा था, हँसमुख- हँसाने वाला। प्लॉट की जगह शहर से दूरी पर थी तो आधे घंटे के सफर में काफी घुल मिल गये।

प्लॉट की जगह पर गये, कोई डेव्लपमेंट नहीं था। ना रास्ता ना पानी, काली मिट्टी खाली जमीन, बस फायदा एक दिख रहा था की मुख्य रास्ते से थोड़ी अंदर थी १ कीमी. और बिल्डर कच्चा रास्ता बनाकर देने वाला था। हमारी हैसियत रेट था १० रु स्के.फुट। बातों बातों में पता  चला मिश्राजी बस ड्र्राइवर

हैं और मैं प्राइवेट कंपनी का कर्मचारी। प्लॉट में भविष्य दिख रहा था तो लेने का मन बना और दोनों ने अपने हिसाब से १०००-१००० स्के फुट बुक किए वह

भी १२ किस्तों पर। बाद उसके कोई मुलाकात नहीं। कुछ बरस ऐसे ही बीत गये, मेरे पास थोड़ा पैसा जमा हुआ तो सोचा कब तक किराये से रहेंगे, देखते दो रुम निकाल लेते प्लॉट पर और काम शुरू किया पुरी जगह पर मेरा ही पहला मकान बन रहा था, फिर एक दिन मिश्राजी भी आये उनकी भी इच्छा हुई और फिर धीरे धीरे एक नामांकित कॉलनी बन गयी। मेरे दो लड़के और मिश्राजी के लड़का, लड़की एक ही स्कूल में जाने लगे उनकी भी दोस्ती थी, और एक घर बाद ही उनका घर था तो हमारी भी.. लड़की "रोशनी" बचपन से ही हँसमुख, सुंदर नाक नक्श वाली थी जब भी  दिखती झुककर नमस्ते अंकल जरूर बोलती। मैं भी प्यार से सर पर टीचकी मारता वह भाग जाती । धीरे धीरे बड़ी हुई १२ वी पास की, सुंदर दिखती थी तो सबकी नज़रें पड़ने लगी, मैं भी मिश्राजी से मजाक कर लेता, अच्छा लड़का देख ब्याह करा दो, मिश्राजी सहम जाते और लंबी सांस लेकर बोलते ," हमारे समाज में अच्छे,लड़के मिलते कहाँ, मिलते भी तो ढेर सारा दहेज।" मैंने कहा " बिटीया सुंदर हैं पढ़ रही है, जरूरत नहीं पड़ेगी ।" उन्होंने कहा," ऐसा हो तो आपके मुंह में घी, शक्कर ।"

आज सुबह मिश्राजी घर आएं, खुश नज़र आ रहें थे। मैंने कहा," क्या बात हैं जी.." कहने लगे," कल अलाहाबाद से बहन का फोन आया , कह रही थी, उसकी ननद का लड़का कानपुर में नौकरी पर हैं और वह रोशनी का हाथ मांग रहा हैं। शायद बात बन जाएं ।" मैंने कहा," ईश्वर ने चाहा तो सब कुछ.."

अगले ही रविवार को देखने की विधी हुई लड़की पसंद आयी मिश्राजी के घर में खुशी की लहर एवं हँसी का वातावरण तैयार हुआ मैं भी उसमें सम्मिलित था।

अगले महीने शादी की तारीख निकली। मिश्राजी जी जान से तैयारी में लग गये। कुछ कमी ना रहें इसीलिए कुछ फंड से पैसे निकाले और गाँव में कुछ ज़मीन का टुकड़ा था उसे बेचकर पैसे जमा किए अकेली लड़की की शादी थी.. शादी की तैयारी पुरी हुई ,घर में रिश्तेदारों संग खुशी एवं हँसी का माहौल और बढ़ गया । मैं भी सब में शामिल रहा" वरदक्षिना" का शगुन मैंने ही सजाया था पूरे "दो लाख  एकावन्न हजार" नए कोरे हजार एवं पाँच सौ के नोट संग चाँदी का कलश। साथ फूलों की आकर्षक सजावट। " रोशनी की खुशी देखी नहीं जा रही थी, मन में कह रहा था, रोशनी सदा खुश रहें। रोशन करें दोनों कुल का नाम।" हँसी खुशी के माहौल में शादी हुई, बिदाई के वक्त सबकी आँखें नम हुई" मिश्राजी का घर का कोना कोना सुना..  लग रहा था।

बीच बीच में मिश्राजी घर आकर बिटीया के खुश और खुशी के समाचार सुनाने लगे, सब कुछ ठीक चल रहा था। शादी को ६ माह हो गये थे। मिश्राजी अचानक घर आये, कुछ परेशान नज़र आ रहें थे, पूछा तो कह रहें थे" रोशनी का फोन था, कुछ परेशान एवं दुखी लग रही थी, ज्यादा पूछने पर रोने लगी।

बहन को फोन किया हैं, पता लगाने, सुबह लड़के को भेजने वाली हैं।" मैंने कहा" चिंता ना करों, भगवान पर भरोसा रखो।"

मिश्राजी को बहन का फोन आया, मिश्राजी की धड़कने बढ़ने लगी, बहन कह गई," भैया मेरे से गलती हुई, रोशनी गलत हाथों गई, वह लोग कुछ पैसे माँग रहे हैं। कुछ दस लाख" मिश्राजी से सुनाई नहीं जा रहा था दिमाग सुन्न हो गया, फोन रखकर सोफे पर बैठ गये। दस लाख कहा से लाये, इसी चिंता में

यहाँ, वहाँ घूमने लगे इधर..उधर.. हताश हो गये, घर में बताया सब सन्नाटा छा गया। और फिर यह सन्नाटा दो दिन बाद ही क्रोध एवं रुंदन में बदल गया ।

मैं भी भारी मन से उठा एक सांत्वना देकर। बस, मुंह से निकला" रोशनी अंधेरे में खो गई सदा सदा के लिए।

ईश्वर मृतात्मा को शांति एवं परिवार को दुःख वहन करने की शक्ति प्रदान करें ।



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