Pradeep Sahare

Tragedy

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Pradeep Sahare

Tragedy

भूख

भूख

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201


आज से साठ साल पहले मैं उसे

दुल्हन के रुप में ब्याह कर लाया

उम्र यू कुछ सतरा अठरा बरस 

रही होगी।


तब से मेरे जीवन के हर एक सुख

दुख में मेरा साथ दिया। ऐसी कोई

भी बात नही होगी जीसे उसने कभी

ना कही होगी। जमिनदार की बेटी

होकर भी मेरे जैसे नौकरीवाले के

साथ खुश थी औरो से ज्यादा।


समय अपनी गति से चल रहा था,

समय के साथ दो बच्चो की परवशीर

के साथ उनको संस्कार देने में उसका

समय निकल जाता और अपने छोटेसे

दो रुम के फ्लॅट सजाने संवारने बाकी

समय निकल जाता।

बच्चे बड़े होकर नौकरी की जगह स्थाही हो गये  


कुछ दिन पूर्व हमारे जन्म गाव गये,

छोटे के लड़के की मन्नत पुरी करनी थी

बोल रही थी " मैने मांगी थी" खुश थी

वजन से ज्यादा गुळ को तौलकर मंदिर

के प्रांगन में।


घर की गाड़ी से गये थे तो उसी दिन

वापस लौट अाये। रात में चाय पीते

वक्त थोडी थकी सी लग रही थी आैर

चेहरे पर थोडी सुजन दिख रही थी

पूछा तो हंसकर टाल दी प्रवास का

बहाना बनाकर।


सुबह हल्का सा बुखार लग रहा था 

अौर चेहरे और पैर पर सूजन बढ़ 

गयी थी, मै ड़र गया,मन आशंकित हुवा।

जोर जबरदस्ती कर डॉक्टर के पास ले

गया। दोनो ही थे।


कुछ टेस्ट डॉक्टर ने बोली,थरथराते कांपते

हुए हाथो से ऐक हाथ चिठ्ठी लेकर

एक हाथ से उसे सम्हालते हुए लेब तक गया।

ब्लड देकर वही पर दोनो बैंठ गये एक

दूसरे को धीरज देते हुए। बीच बीच में

उसकी सांस फुल रही थी।


मैं डॉक्टर के पास गया,उसने तुरंत

एक बेड तयार किया एवं थोडा 

आराम करने बोला,सुबह थोडा

नास्ता किया था अब भूख लग रही

थी लेकिन निगाहे लेब के तरफ थी।

सोच रहा था, रिपोर्ट देखकर कुछ

हल्का खाना खाएंगे।


तीन बजे रिपोर्ट आयी, डॉक्टर बुलाया

ड़रते हुए दरवाजा खोला,डॉक्टर बैठने

का इशारा किया, पानी का ग्लास आगे

बढाया। थोडा पानी पिया और एकटक

डॉक्टर की ओर देखने लगा।


डॉक्टर बोला,

" दोनो किड़नी लास्ट स्टेज तक

खराब हुई हैं। कोई चांस नही "

एकदम झटका लगा,मन व्याकुल

भुख एकदम गायब। डाक्टर को

रोते हुए विनंती करने लगा,

क्या बोल रहा कुछ समझ नही रहा था,

लेकिन डॉक्टर हौसला रहा था

बस यही कुछ समझ रहा था।


उसे दूसरे वार्ड में शीप्ट किया 

बच्चो को फोन किया,छोटा नजदिक

था रात में ही पहुंच गया । परिवार

संग। नाती संग थोड़ा हौसला बढा।


दोपहर समाचार मिला,खत्म सब कुछ खत्म...

सन्नाटा एकदम जीवन में, घर में।

सब कुछ,अस्पताल की प्रक्रिया करते

रात हुई, अाठ बज चुके होंगे,अॅम्बुलन्स

सोसायटी के प्रांगन में अाकर खडी हुई

स्ट्रेचर बाहर निकाला,मैं निशब्द,

देखता रहा पुतले सा।


रात बङे,मुश्किल में कटी,आँखो से 

आँसू सुख गये थे और लाल हो गई थी।

रिश्तेदार कुछ आ चुके थे,

भाई उसका निकल चुका था,

शायद कुछ बारा बजे

पहुंचने वाला था।


फिर एक बार भूख ने दस्तक दी,

बार बार उसके चेहरे की तरफ

और जल रहें दिपक की तरफ देखता

और थरथराते हाथो से पानी पीता

किचन में जाकर।

दो तीन बार ऐसा किया।

शायद छोटी बहू,समझ गयी।

बाबा को भूख लगी।

धीरे से बोली, "बाबा भूख लगी !"


मैं कुछ,बोला नही,गर्दन अपने अाप

हिल गई।

उसने,अचार संग रोटी दी, शायद कल

की बची थी।

दो कौर खाया, ग्लास भर पानी पीया,

शर्ट को मुंह पोछते हुए देखने लगा

एक नज़र ऊसके चेहरे पर दूसरी

दीये की तरफ।


समझ नहीं पा रहा था कौनसा

जीवन सही,

भूख..दीपक.. या मृत्यु...


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