रोबो और टोटो
रोबो और टोटो
हां तो मेरे प्यारे–प्यारे
सोनू, मोनू, राजू, दक्षा,
जल्दी से कान लगाओ,
शुरू हुई कहानी की कक्षा.
कछुआ और खरगोश की कहानी तो तुम लोग जानते हो. याद है ना! वही भाई, जब दोनो में रेस लगती है, और कछुआ रेस जीत जाता है. खरगोश की हार और कछुए के जीत की वजह भी हम जानते हैं. ओवर कॉन्फिडेंस (अति आत्मविश्वास) के चलते खरगोश रास्ते में सो जाता है, और कछुआ उसे सोता देख चुपके से आगे बढ़ जाता है. कछुआ रेस जीत जाता है, और खरगोश हार जाता है. इस कथा का सार हम जानते हैं “स्लो एंड स्टेडी विन दि रेस.” (धीमा पर सातत्यवाला ही जीतता है).
तो मित्रों अपनी कहानी की अगली कड़ी यहीं से शुरू होती है. खरगोश जाति अपनी इस हार की पीड़ा को सदियों तक भुला नहीं पाती. सक्षम और सामर्थ्यवान होने के बावजूद वर्षों पहले उनका एक परदादा अपनी एक छोटी-सी गलती के चलते रेस हार गया, और यह बात इतिहास बन गई. सदियों के इस दर्द को खरगोशों की युवा पीढ़ी पचा नहीं पा रही थी. अत: युवा पीढ़ी मिलकर भगवान के दरबार में जाती है. पूजा, अर्चना, मन्नत करते हुए ईश्वर से आग्रह करती है कि 'हे प्रभु, अपने माथे के इस कलंक को मिटाने के लिए हमें रेस का एक और मौका दीजिए. ईश्वर ने उन्हें समझाया कि वह एक घटना मात्र थी, जो मानव जाति के प्रबोधन के लिए आवश्यक थी. तुम लोग अजेय हो यह हम सभी जानते हैं.'
“तथास्तु” कहकर ईश्वर लोप हो जाते हैं.
मगर इससे खरगोशों की संतुष्टि नहीं हुई. एक तेज तर्रार युवा खरगोश ‘रोबो’ तनतनाते हुए कछुओं के सरदार के पास गया, और पुन: रेस लगाने के लिए चुनौती देता है. समझाने की काफी कोशिशों के बावजूद भी जब वह युवा रोबो बात नहीं मानता है तो, सरदार अपनी टोली के युवा तुर्क कछुआ ‘टोटो’ को इस मिशन पर लगा देता है.
निश्चित समय पर एक सरपट मैदान पर रेस शुरू होती है, और इस बार रोबो रेस जीत जाता है. सारे खरगोश खुश हो जाते हैं, और अपनी खुशी का जश्न मनाते हैं. टोटो को अपनी इस हार पर बेहद दुख हो रहा था. आखिर इतने वर्षों बाद इतिहास जो बदल गया था. इस जश्न में टोटो भी शामिल होता है. रोबो को जीत की बधाई देते हुए वह खरगोश बिरादरी को पुन: एक बार रेस के लिए चैलेंज देता है. और रोबो उसका चैलेंज स्वीकार कर लेता है.
हां, तो मित्रों कहानी अब नया मोड़ ले रही है, अत: जागते रहो! नई ज़मीं पर नई जंग! होशियार!
रेस तय होती है. इस बार मार्ग बदल दिया जाता है. सीमा को पार करके दूसरे प्रदेश में जाने का लक्ष्य रखा जाता है. रेस प्रारंभ होती है. एक, दो, तीन, फायर...! रोबो लंबी-लंबी छलांगें भरता आगे बढ़ जाता है. बड़ी लंबी दूरी तय करते हुए रोबो एक विशाल समुंदर के पास आकर ठहर जाता है. अब समुद्री रास्ते को कैसे पार करे यह चिंता उसे सताने लगती है, क्योंकि वह तैरना नहीं जानता था. दूर-दूर तक सरपट रास्ता नज़र नहीं आ रहा था. आगे क्या करें इस सोच विचार में वह डूब जाता है. टोटो का दूर-दूर तक कहीं अता पता नहीं था. उसे बड़े जोर की भूख भी लगी थी, अत: आस-पास की झाड़ियों में घूम–घूमकर वह जमकर खाना खाता है. खाना अधिक खा लेने से अब उसे आलस सताने लगती है. “जो होगा, आगे देखा जाएगा” यह सोचकर वह पुन: ओवर कॉन्फिडेंस का शिकार हो जाता है और आराम करने के इरादे से समुंदर के किनारे ठंडी हवा में वह सो जाता है. टोटो जब वहां पहुंचता है तो रोबो को सोता देख सीधे समुंदर में तैरते हुए आगे बढ़ जाता है. गतिमान टोटो धीरे–धीरे सीमा पार करते हुए अपने लक्ष्य तक पहुंच जाता है और इस बार रेस जीत जाता है.
हां तो प्यारे मित्रों, कहानी यहां खत्म नहीं हुई, अब कहानी का क्लाइमेक्स शुरू होने जा रहा है. क्रिकेट में ट्वेंटी ट्वेंटी मैच को आप लोगो ने तो खूब देखा सुना है. अब रोबो और टोटो का मैच फिर शुरू होने जा रहा है. इस बार दुनिया की सारी प्राणी जाति की नज़रें उनकी रेस पर टिकी थी. अस्तित्व की रेस बन गई थी यह...फिक्सिंग...! हां–हां पूरी फिक्सिंग के साथ. तो सुनो, आँखों देखा हाल...
खरगोश प्रजाति पुन: अपनी हार पर क्षोभ व्यक्त करती है, और कछुआ प्रजाति खुशियां मनाती है. दोनो ओर के लोग एक दूसरे पर आरोप–प्रत्यारोप करते हुए भरी सभा में एक दूसरे से भिड़ जाते हैं. कोई समाधान न निकलता देख दोनों ओर की टीम अपने-अपने तरीके से ईश्वर को गुहार लगाती हैं. मगर इस बार भगवान प्रकट नहीं होते. अंतत: दोनों टीम आमने–सामने बैठकर पुन: चिंतन करती हैं- आखिर कब तक ये हार–जीत का सिलसिला चलेगा! कब तक हम शह और मात का खेल खेलेंगे! अब तो दौर बदल गया है. नए ज़माने के इस ग्लोबल युग में हमें एक नई सोच के साथ आगे बढ़ना होगा... इत्यादि... इत्यादि. मगर बैठक में कुछ ऐसे तत्व भी मौजूद थे जो पुन: रेस करवाना चाहते थे. “दूध का दूध और पानी का पानी होना चाहिए”. “हां, हां होना ही चाहिए...” पीछे से आवाज़ आती है.
मगर रोबो और टोटो सीमा पार की नई दुनिया से परिचित हो चुके थे. वे भी आगे बढ़ना चाहते थे, साथ ही अपनी बिरादरी का सम्मान भी रखना चाहते थे. पर इस तरह रेस लगाकर नहीं बल्कि किसी और माध्यम से. मगर रेस की बात ज़ोर पकड़ने लगी. आखिर रोबो और टोटो आपस में कानाफूसी करते हैं और वे सबके सामने एक दूसरे का चैलेंज स्वीकारते हुए रेस के लिए तैयार हो जाते हैं. पुन: रेस की शर्तें सीमा पार तक की तय की जाती है.
नियत समय पर रेस आरंभ होती है. लोग अपनी–अपनी बिरादरी की दुहाई देते हुए अपने–अपने खिलाड़ी का मनोबल बढ़ाते हैं, अपने-अपने झंडे लहराते हैं. रोबो और टोटो का तनाव बढ़ने लगता है. रेस शुरू हो इसके पहले वे एक दूसरे को गले लगाते हैं, और रेड़ी पोज़ीशन में खड़े हो जाते है. “एक, दो, तीन फायर...” दौड़ आरंभ होती है. जब तक दोनों खिलाड़ी दौड़ते हुए नज़र आते हैं, तब तक लोगों का शोरगुल चलता रहता है. आंखों से ओझल होते ही लोगों की भीड़ छँटने लगती है. लोग अपने–अपने घरों को लौट जाते हैं.
हमेशा की तरह रोबो तेज भागता है. प्रथम चरण में ही टोटो को पछाड़ते हुए वह आगे बढ़ जाता है. तीसरे चरण में वह जैसे ही प्रदेश के बाहर पहुंचता है, पुन: उसे उसी बड़े समुंदर का सामना करना पड़ता है. अब उसके सामने समुंदर पार करने की समस्या खड़ी हो जाती है. मगर इस बार वह बेफिक्री से सोता नहीं, न तो ओवर कॉन्फिडेंस में आराम करता है. बल्कि इस बार टोटो का इंतजार करता है. टोटो भी वहां पहुंचते ही उसकी खोज खबर लेता है. दोनों भरपेट खाना खाते हैं, बातें करते हैं और आगे के रास्ते के लिए एक्शन प्लान बनाते हैं. आखिर उनका सामना नए प्रदेश के लोगो के साथ जो होना था. अत: नए जमाने और बदलते समय की चुनौतियों को स्वीकार करते हुए हैं, टोटो अपने मित्र रोबो को पीठ पर बैठा जाता है और तैरते हुए आगे बढ़ने लगता है. पीठ पर बैठा रोबो रास्ते का मार्गदर्शन करता है. समुंदर पार हो जाता है और दोनों साथ-साथ लक्ष्य तक पहुंच जाते हैं.
परदेश में अपने वतन का झंडा फहराते हुए, वे दोनों गौरव समारोह में संदेश देते हैं– “नए दौर के इस रेस में न कोई जीत है, न कोई हार. लक्ष्य हासिल करने के लिए अब साथ–साथ चलने की ज़रूरत है.”