रिटायरमेन्ट
रिटायरमेन्ट
"बधाइयाँ तिवारी जी।"
"चलिए रोज़ाना की भागदौड़ तो खत्म हुई आपकी "शर्मा जी ने कहा।
"अजी अब करिए आराम से पूजा पाठ, दान-पुण्य, रामायण पढ़िए, गीता बाँचिए। समय ही समय....."
राधेश्याम बोले।
"हाँ जी! अब बैठ कर आराम से भगवान नाम की माला जपो। "गुप्ता सा. की टिप्पणी मिली।
और भी न जाने क्या क्या....
" अरे भाई ! आप यह कैसे मानते हो कि मैंने अभी तक भगवान का नाम नहीं लिया।" तिवारी जी को सब की सलाहें सुनकर हँसे बिना न रह सके।
" अरे वो प्रभु जो हमारी रग- रग में श्वास श्वास में समाहित है उसकी तो पूजा पाठ नियमित की है मैंने।"
" रही रामायण गीता पुराण पढ़ने की बात वो मैंने व मेरी पत्नी ने 30-35 की उम्र में ही पढ़ डाले। "
" ये सही कह रहे हैं भाई साहब।" तब तक तिवारी जी की धर्मपत्नी चाय की ट्रे ले कर आ गईं।
हम अब फुर्सत पा गये हैं और इस फुर्सत का सदुपयोग हम दोनों अपने अधूरे रह गये शौक पूरे करने में करेंगे। जैसे - मेरा पेंटिंग का और पत्नी का लेखन का शौक पूरा करेंगे।"
"साथ ही देशाटन जो बच्चों की पढ़ाई लिखाई के कारण न हो पाया।"
सारे मित्र तिवारी जी की ज़िन्दादिली की बातें सुनकर आश्चर्यचकित भी थे और प्रभावित भी।