रिश्ते वही सोच नयी

रिश्ते वही सोच नयी

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मुकुंद और उनकी पत्नी छाया अपने घर में बहुत उदास से बैठे हुए थे। उन्हें अपने लिए अब कोई काम ही नज़र नहीं आ रहा था। कहां तो इतने महीनों से उनकी बहू रीता डिलीवरी के लिए उनके पास आई हुई थी और घर में बच्चा हो जाने पर और चहल-पहल बढ़ गई थी। पर उनके बेटे मयंक को चेन्नई में अकेले रहते हुए बहुत दिक्कत हो रही थी इसलिए वह बच्चे के दो महीने का होने पर उन्हें लेकर चला गया था। अपनी उदासी को दूर करने के लिए छाया ने वहीं देहरादून में ही रहने वाली अपनी बेटी यामिनी के यहां जाने का मन बनाया पर फिर उनका मूड बदल गया। उसी दिन रात में मुकुंद को कुछ बेचैनी सी होने लगी और वह छाती में दर्द की शिकायत भी करने लगे। थोड़ी सी देर में ही वह पसीने में नहा गए। छाया तो एकदम घबरा ही गई रात का एक बज रहा था। क्या करे क्या ना करें, तभी उसने यामिनी को फोन करके सारी बात बताई। यामिनी अपने पति अंकुश के साथ थोड़ी सी देर में ही घर पहुंच गई। अंकुश, मुकुंद को देखते ही समझ गया कि हार्टअटैक पड़ा है। वो फौरन उन्हें लेकर अस्पताल के लिए रवाना हो गया। तुरंत इलाज मिलने से मुकुंद की जान खतरे से बाहर थी। अंकुश सारी रात उनके पास ही रहा और उनकी सेवा में ही लगा रहा। छाया तो मयंक को भी तुरंत ही सूचना देने को कह रही थी पर अंकुश ने उन्हें ढांढस बंधाया और बोला आपको मेरे रहते परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है। उन्हें एकाध दिन में सूचित कर देंगे अभी तो वह पहुंचे ही होंगे। दो दिन बाद मयंक भी आ गया और उसने अंकुश का बहुत आभार प्रकट किया। अंकुश बोला "भैया आभार प्रकट करके मुझे गैर मत करो।आखिर मैं भी घर का दामाद हूं। यह मेरे भी पापा हैं। और मेरा भी इनके प्रति कोई फर्ज़ बनता है।" अस्पताल में बैठी एक बूढ़ी औरत भी उनके वार्तालाप को सुन रही थी और वह उनसे बोली "अब ज़माने में कितना फर्क आ गया है। पहले तो दामाद अपने ससुराल में अकड़ के साथ ही रहता था सब उसकी आवभगत में ही लगे रहते थे। ससुराल में कोई काम करना तो उसकी शान के खिलाफ था और बस नखरे दिखाने में अपनी शान समझता था लेकिन अब दामाद बिल्कुल बेटों की तरह अपनी भूमिका अदा कर रहे हैं। अब वह नखरे दिखाने में अपनी शान नहीं समझता बल्कि अब वह उनके साथ सादे खाने-पीने में भी एंजॉय करता है। यह बहुत बड़ी बात है।"


बूढ़ी औरत की बात सुनकर छाया बोली "अब तो बेटियों के प्रति भी नज़रिया बहुत बदल गया है। नहीं तो पहले तो बेटियों को पराया धन ही समझते थे और उनकी शिक्षा वगैरह पर भी इतना खर्च नहीं करते थे। ना उन की पसंद नापसंद का ध्यान रखते थे। बस शादी लायक हुई नहीं कि उनका विवाह करके अपने कर्त्तव्य की इतिश्री समझ लेते थे। पर अब तो बेटियों को बेटे की तरह ही पाला जाता है। उन्हें उच्च शिक्षित करके पैरों पर खड़ा किया जाता है और शादी में भी उनकी पसंद को प्राथमिकता दी जाती है। और बेटी को शादी करके पराया नहीं कर दिया जाता है बल्कि उनका हर कदम पर साथ दिया जाता है। बेटी भी अब अपने परिवार के लिए हरदम तैयार रहती है वो अपने फर्ज़ से पीछे नहीं हटती है। मैंने देखा है जो इकलौती बेटी होती है तो वो बुढ़ापे में अपने माँ बाप को अकेला नहीं छोड़ती हैं बल्कि उन्हें अपने साथ ही रखती है।"


छाया उस बूढ़ी महिला से बोली "हमारी बेटी की तो सास भी बहुत अच्छी है। इसे बहुत प्यार से रखती है। यह कहीं आए, कहीं जाए, कुछ भी बनाए, कुछ भी खाए वह कुछ दखलंदाज़ी नहीं करती हैं। जैसे ही उन्हें पता चला कि इसके पापा की तबियत खराब है तुरंत ही इसे भेज दिया और यह भी कहा कि जब तक तुम्हारे पापा की तबियत संभल ना जाए तब तक उनकी अच्छी तरह से देखरेख करना, यहां की कोई चिंता मत करना । यहां मैं अपने आप संभाल लूंगी। सच में बहुत ही कोऑपरेटिव नेचर की हैं। वरना तो हमारे ज़माने में तो हमारी सास का हमारे ऊपर पूरा डंडा रहता था। उनकी मर्ज़ी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता था। मायके जाने के नाम से तो उनका पारा ही हाई हो जाता था। बड़ी मिन्नत करने के बाद मुश्किल से दो-चार दिन के लिए मायके भेजा करती थीं और अपने बेटे को तो बस ससुराल मुझे लेने ही भेजती थीं। ससुराल में उनका रहना उन्हें गवारा नहीं था। पर अब सास बहु के साथ बहुत एडजस्ट करके चलती है और उसे पूरा मान भी देती है।"


बूढ़ी औरत बोली अब तो "बहू, बेटी में कोई फर्क ही नहीं दिखता। पहले तो बहू घूंघट करे, मांग में सिंदूर, हाथों में भरी-भरी चूड़ियाँ, पैरों में पायल, बिछुवे पहन कर रखती थी पर अब तो ना तो कोई सुहाग चिह्न दिखाई देता है और ना ही घूंघट। बल्कि अब तो बहू भी बेटियों की तरह जींस शॉर्ट्स में नज़र आती है। पहले बहुएं ससुराल में दबी, सहमी, डरी डरी सी रहती थीं पर अब ऐसा नहीं है।अब वह अपनी बात रखना भी सीख गई है, और गलत बात बर्दाश्त भी नहीं करती हैं। अब वह स्वाभिमान के साथ जीना सीख गई है और घर और बाहर दोनों ही संभाल रही है।"


तभी डॉक्टर साहब विज़िट पर आ गए तो छाया मुकुंद के रूम पर चली गई। डाॅक्टर ने बताया कि अब चिंता की कोई बात नहीं है कल को रिलीव कर देंगे। अगले दिन सभी घर आ गए। रीता सबके लिए चाय नाश्ता बनाने चली गई। तभी उसका बच्चा रोने लगा तो रीता ने ज़ोर से बोला "मयंक ज़रा देखो तो सही बच्चा रो रहा है। वो उठा उसने देखा बच्चे का डाइपर गीला हो गया था। उसने डायपर बदला और उसकी दूध की बोतल में दूध भरकर ले आया और फिर उसे गोद में लेकर दूध पिलाने लगा।" जब छाया ने यह सब देखा तो वह बोली "सच में ही ज़माना तरक्की पर है। हमारे ज़माने में तो पति को परमेश्वर की संज्ञा दी जाती थी उनका नाम लेना तो बहुत दूर की बात थी। सबके सामने तो उनसे बात भी नहीं कर पाते थे शर्म के मारे। पर अब तो पति- पत्नी एक दोस्त की भांति ही रहते हैं। दोनों का ओहदा बराबर है जो अच्छी बात है। जैसे मयंक डायपर बदलकर गोदी में लेकर दूध पिला रहा है ऐसा तो इन्होंने कभी किया ही नहीं। यह तो इनकी शान के खिलाफ था। बच्चा रो रहा है, उसे देख लो, काम बाद में कर लेना, बस ऐसा कहकर चिल्लाते रहते थे पर क्या मजाल जो उसे गोद में उठा भी लें। डायपर बदलना तो बहुत दूर की बात थी। अब तो मैं देखती हूं कि पति बच्चों के पालने में बराबर की भूमिका निभा रहा है।"


पिता के रूप में तो ये एकदम कड़क ही रहे। इनके घर में घुसते ही एकदम शांति हो जाया करती थी पर अब मैं देखती हूं कि अब पिता अपने बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार रखते हैं। उनके साथ खेलते, कूदते भी हैं और लाड़ में उनसे मार भी खा लेते हैं। पर इनके सामने किसी की जुर्रत नहीं थी जो कोई इनसे बदतमीज़ी से बोल भी ले। लाड़ में मार खाना तो बहुत दूर की बात थी। छाया बोली कि "बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार रखने में कोई बुराई नहीं है पर मार खाने वाली बात मुझे समझ नहीं आती।"


अपनी मम्मी की बात सुनकर यामिनी बोली "हाँ मम्मी सभी रिश्तों में बहुत बदलाव आ गया है, और जो बदलाव सकारात्मक है उनका स्वागत भी करना चाहिए पर अभी भी सभी के साथ ऐसा नहीं है। अभी भी बहुत से लोगों में पुरानी सोच विद्यमान है। एक बात मैं भी बहुत शिद्दत से महसूस करती हूं की दोस्ती के रिश्ते में बहुत ही ज़्यादा बदलाव आ गया है। अब तो मतलब के लिए ही दोस्त बनाए जाते हैं ।अब पहले जैसी सच्ची दोस्ती तो दिखलाई ही नहीं देती, जहां दोस्त एक दूसरे के लिए अपनी जान भी कुर्बान करने को तैयार रहते थे। अब वह रूठना, मनाना भी नहीं रह गया जो दोस्ती को मज़बूत करते थे ।अब सभी की फ्रेंड लिस्ट में हजारों फ्रेंड्स होते हैं पर काम का शायद ही कोई हो। अब तो ज़रा सा मज़ाक में किसी दोस्त ने कुछ कहा नहीं कि लोग उसको ब्लॉक कर देते हैं। बस सब आभासी दुनिया है। अगर हमारे ऊपर कोई मुसीबत पड़ जाए तो हमारे साथ हमारा परिवार और गिने-चुने दोस्त ही खड़े दिखाई देंगे जिनके साथ हम वास्तव में मिलते हैं।" यामिनी की बात से सभी सहमत थे। यामिनी की बात खत्म होने के बाद अंकुर अपनी सास से बोला "मम्मी जी अब आप भी थोड़ा मॉडर्न बन जाओ। अब आप भी पापा का नाम लेना शुरू कर दो।" अंकुश की बात सुनकर मुकुंद बोले "मुझे सब सुनाई दे रहा है। तुम मेरी भोली भाली बीवी को चढ़ाओ मत।" उनकी ऐसी बात सुनकर सब खिलखिलाने लगे। इतने में रीता सबके लिए चाय नाश्ता भी ले आई और सब हँसी -खुशी खाने पीने में लग गए।


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