रिश्ता दो तरफा एहसास का

रिश्ता दो तरफा एहसास का

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रश्मि के मायके में आज बहुत चहल-पहल थी। पूरा घर और पड़ोसियों से भरा हुआ था। आज रश्मि की भाभी का कुआं पूजन था। जच्चा बच्चा की देखरेख के लिए रश्मि 15 दिन पहले ही अपने पीहर आ गई थी। रश्मि ने खूब मन लगाकर अपनी भाभी व भतीजे की देखभाल की। पड़ोस की महिलाएं जब भी आती तो हंसते हुए यही कहती "हां रश्मि खूब सेवा कर और फिर बड़ा सा नेग लेना अपने भाई भाभी से। यह दिन कब कब आता है।" रश्मि कुछ ना कहती बस मुस्कुरा भर देती। रश्मि के भाई भाभी ने भी एक दो बार उसे कहा था रश्मि नई चीज तो हम शायद ही बनवा पाए लेकिन तुझे अपनी भाभी के गहनों में से जो पसंद है ले जाना। उसकी भाभी ने भी हां में हां मिलाते हैं यही बात दोहरा दी थी।

कुआं पूजन के अगले दिन रश्मि भी विदा होने के लिए तैयार थी। इससे पहले उसकी भाभी के यहां से जो भी सामान आया था और रश्मि को जो विदाई में मिल रहा था। वह दिखाने के लिए उसे रखा गया। जो भी पड़ोसन देखने आती सब रश्मि से एक ही बात पूछती " रश्मि तुमने अपनी भाभी से क्या मांगा!" " मैंने अपनी भाभी से प्यार व आशीर्वाद मांगा और मांगा जब भी मैं मायके आऊं तो वह मुझे अपनी छोटी बहन की तरह प्यार करें।" " वह सब तो सही है हमारे कहने का मतलब है तुमने अपने भतीजे होने की खुशी में अपनी भाभी की कौन सी सोने की चीज ली है?" "अरे चाची सोने के गहने लेकर मैं क्या करूंगी। मुझसे तो जो है वही नहीं संभलते।" " पगली वह तेरा हक है बरसों से तो यही रिवाज चल रहा है कि बेटा होने पर ननदें अपनी भाभी से मुंह मांगी सोने चांदी की चीजें लेकर जाती है।" " अरे ताई समय के साथ-साथ रिवाज भी बदलने चाहिए ना! भाभी पहने या मैं पहनू ,एक ही बात है। मैं चीज ले जाऊं और मेरी भाभी का श्रृगार उसके बिना अधूरा रहे यह तो सही नहीं। मैं यह दकियानूसी रिवाज नहीं मानती।" यह सब सुन पड़ोस की औरतें बडबडाती हुई चली गई कि 'आजकल के बच्चे तो अपनी मनमानी करते हैं। छोड़ो हमें क्या है इनके घर की बातें।'

रश्मि के भाई ने उसके सिर पर हाथ रखते कहा "रश्मि तू उम्र में बेशक मुझसे छोटी है पर तेरी सोच कहीं बड़ी है। मेरे पास शब्द नहीं है। तेरा शुक्रिया करने के लिए। तुमने सबके सामने हमारा मान रख लिया।" "हां रश्मि तेरे भैया सही कह रहे हैं तू चाहती तो हमसे कुछ भी मांग सकती थी जैसे कि दूसरी लड़कियां करती है।" "भाई भाभी यह मेरा भी मायका है । एक बेटी होकर क्या मैं अपने घर के हालात नहीं जानती। अगर मै भाभी का एक भी गहना ले जाती हूं तो मुझे पता है कि कई सालों तक भी तुम वह चीज दोबारा नहीं बनवा पाओगी। मैं भी इस दौर से गुजरी हूं। रिश्ते लेनदेन से नहीं ,आपसी समझदारी व दो तरफा अहसास से निभते हैं। लोगों का क्या! आज कहेंगे कल भूल जाएंगे। मुझे अपना मायका प्यारा है, दूसरे लोग नहीं। क्योंकि मेरे सुख-दुख में मेरे भाई भाभी ही काम आएंगे दूसरे लोग नहीं।"रश्मि ने अपने भतीजे को प्यार करते हुए कहा।

"अगर ऐसी समझदार बहन हो तो कभी भी भाई बहन या भाभी ननद के रिश्ते में मनमुटाव हो ही नहीं सकता। तुम्हारी समझदारी की तो मैं हमेशा कायल थी लेकिन आज मुझे भी ये अहसास हो गया है कि तुम ननद के रूप में मेरी छोटी बहन ही हो। " रश्मि की भाभी ने उसे गले लगाते हुए प्यार से कहा।

उद्देश्य- मेरी कहानी का उदेश्य रिश्तों में आपसी समझ का महत्व बताना है।

दोस्तों, कैसी लगी आपको मेरी यह रचना। पढ़कर अपने अमूल्य विचार जरूर दें।


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