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Dr. Poonam Gujrani

Tragedy

3  

Dr. Poonam Gujrani

Tragedy

रिक्त स्थान

रिक्त स्थान

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"चाचाजी कहाँ जा रहे हैं?" अस्सी वर्षीय मोदी के पास कार रोककर गाङ़ी का दरवाजा खोलते हुए जसवंत भाई ने पूछा।


"बस यूँ ही निकल गया घर से....आप कहाँ जा रहे हो", मोदी जी धोती और छङ़ी को संभालते हुए कहा ।


"मैं विवेकानंद गार्डन जा रहा हूँ आप भी चलिए....।"


,आपको तकलीफ़ तो नहीं होगी? " पूछते हुए मोदी जी गाङ़ी में आ बैठे।


जसवंत भाई की गाङ़ी सङ़क पर दौड़ने लगी।वे इंतजार कर रहे थे कि अब कविता, कवि , कवि सम्मेलनों पर वही घिसी पिटी बातें शुरू होंगी जिन्हें वे अनेक बार सुन चुके थे ।


असल में चाचाजी भी कविहृदय हैं।अनेक कविताएं लिख चुके ।यहाँ तक कि उनकी कुछ पक्तियों को मंचों पर खूब पढ़ा गया , बिना उनका नाम लिए दर्जन भर कवि उन पक्तियों को सुनाकर वाह - वाही के साथ पैसा बटोरने में भी कामयाब रहे पर चाचाजी को न मंच मिला ,न पैसा....पर उनका कविता प्रेम हमेशा जिन्दा रहा ।शहर में होने वाले कविसम्मेलनों में उनकी उपस्थिति अनिवार्य रूप से होती है।जमकर तालियां बजाते , हर कवि की तारीफ करते ....ये अलग बात है कि उनकी तारीफ में कभी किसी ने दो बोल कहे हो ये याद नहीं जसंवत भाई को....।


पर ये क्या ....आज मोदी जी बिल्कुल मौन थे ।


"क्या हुआ चाचाजी ....आज ये खामोशी" जसवंत भाई ने कुरेदा ।


"अब मन नहीं है जीने का ...दो महीने पहले मुझे अकेला छोङ़कर घरवाली भगवान के पास चली गई ।"


"अरे कब, मुझे तो मालूम ही नहीं"...जसवंत भाई को झटका सा लगा। 


"कैसे पता होगा , घरवालों ने पेपर में नहीं दिया था" , कहते हुए उन्होंने अपनी गीली आँखें पोंछी।


अगले आधा धंटे तक दोनों गार्डन में बैठे थे ।मोदी जी अपनी घरवाली के विषय में बतियाते रहे और जसवंत भाई उनके जीवन के रिक्तस्थान को महसूस करते रहे , जिसे अब कोई कविता, कवि, कविसम्मेलन और मंच भरने में असमर्थ था। 



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