Akanksha Gupta

Drama Horror Thriller

2  

Akanksha Gupta

Drama Horror Thriller

रहस्यमयी दुल्हन-4

रहस्यमयी दुल्हन-4

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पिछले भाग में अब तक आपने पढ़ा- चंद्रिका पिछली रात की घटनाओं के बारे में सोचते हुए सो जाती है।अगली सुबह जब चंद्रिका अपने कमरे में अकेले ही तैयार हो रही होती हैं तो उसे दरवाज़े पर किसी परछाईं के होने का एहसास होता हैं। वह दरवाज़े पर देखने जाती हैं लेकिन उसे वहां कोई नहीं मिलता। दरवाज़ा बंद करने के बाद त्रिपाला को अपने साथ देख चंद्रिका को हैरानी होती हैं और त्रिपाला से इस बारे में पूछती है लेकिन त्रिपाला बहाना बना देती हैं और उसके दरवाज़े पर जाने को लेकर उसे ताना मारती है। साथ ही साथ चंद्रिका को घर के नियमों के बारे में बताते हुए उसे सिंदूर लगाने से रोक देती हैं और अपने साथ रसोई घर में चलने के लिए कहती हैं। जब चंद्रिका कमरे से बाहर निकल कर दीवारों को देखती हैं तो उसे दीवार पर कल रात की पूरी घटना दीवार पर चित्र के रूप में दिखाई देती हैं। इसे देखकर चंद्रिका सोच में पड़ जाती हैं। त्रिपाला उसे आवाज़ देती हैं जिससे उसकी सोच टूट जाती हैं।अब आगे-


अपनी सोच से बाहर निकलते ही चंद्रिका को याद आती है कि उसे त्रिपाला के साथ रसोई घर में पहुँचना था। इतना याद आते ही वो दीवार से दूर हट जाती है। उसके चेहरे पर हड़बड़ी साफ दिख रही थी। इससे पहले कि चंद्रिका त्रिपाला के सवाल का कोई जवाब दे पाती, त्रिपाला ने मज़ाक भरे शब्दों में कहा- "क्या हुआ बहुरानी जी? कहीं दीवार में हमारे छोटे मालिक तो नहीं छुपे हुए है।"

इतना सुनते ही चंद्रिका का चेहरा शर्म से लाल हो गया। उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आ गई। उसने धीरे से कहा- "काकी, आपको पता है कि इस कमरे की दीवार पर कितना सुंदर चित्र बनाया गया है।" चंद्रिका के मन में अभी भी उलझन बनी हुई थी कि क्या जो उसने देखा था वो सच था या सपना। अब उसे लगने लगा था कि यह सब उसका एक सपना ही रहा होगा। 

कुछ देर चुप रहने के बाद त्रिपाला धीरे से बोली- "सच कहें बहुरानी जी, हमें तो इस घूंघट की वजह से कभी कुछ दिखाई ही नहीं दिया। बस पूरी हवेली.... मेरा मतलब है कि पूरा घर कदमों में नाप लिया है हमने।" त्रिपाला कुछ हकलाते हुए बोली। 

हवेली शब्द सुनकर चंद्रिका के कान खड़े हो गए। उसने सोचा कि वह त्रिपाला से इस बारे में पूछे लेकिन फिर उसे लगा कि यह उसका वहम भी तो हो सकता है इसलिए वो इस बात को टाल गई। उसने आगे कहा- "अरे काकी जी, आप बस जरा सा झांक कर देख लीजिए यह चित्रकारी। उसके बाद तो आप बस इसे ही निहारती रहेंगी हाँ।" इतना कहते हुए जैसे ही चंद्रिका दीवार की ओर देखती है, उसके चेहरे से हँसी और मन की ख़ुशी दोनों ही काफूर हो गई। अब दीवार पर कोई चित्र था ही नही। उस दीवार को देखकर ऐसा लगता ही नहीं था कि उस पर किसी तरह का कोई चित्र या नक्काशी की जा सकती थीं क्योंकि वो दीवार उबड़ खाबड़ बनी हुई थी और उस पर जगह जगह पर गढ्ढे पड़े हुए थे।

चंद्रिका फिर से उलझन में पड़ गई कि यह कोई सपना हैं या इस दीवार पर सच में कल रात की पूरी घटना का चित्र बना हुआ था। चंद्रिका परेशान सी दीवार की ओर देखे जा रही थीं। कभी वो हाथ से दीवार को टटोलती यह समझने की कोशिश करती कि वहाँ बना चित्र था भी या नहीं। वह अभी इस सोच में खोई हुई थी कि पीछे से त्रिपाला की आवाज आई- "क्या हुआ बहुरानी जी? कही हमसे पहले आप ही तो नही खो गई चित्रकारी की सुंदरता में? 

इतना सुनते ही चंद्रिका चौक कर त्रिपाला की ओर देखती है। उसे एहसास होता हैं कि वह बहुत देर से ऐसे ही खड़ी थी। उसने बात पलटते हुए कहा-"चलिए काकी,माँजी इंतजार कर रही होंगी। हम इसे बाद में आकर देखेंगे।" इतना कहकर चंद्रिका आगे चल देती हैं। त्रिपाला भी उसके पीछे बिना कुछ पूछे उसके पीछे चल पड़ी। उन दोनों के चले जाने के बाद उस दीवार पर वह चित्र वापस बन जाता है और वहाँ पर एक परछाई यह कहते हुए उभरती है-"तुम्हारा स्वागत है चंद्रिका, एक बार फिर......."

उधर चंद्रिका अभी भी इसी उलझन में थी कि उसे इतना बड़ा धोखा कैसे हो सकता है? उसने दीवार पर वह चित्र अपनी आंखों से देखा था, फिर एक ही पल में चित्र कहाँ गया? 

चंद्रिका के दिमाग में अभी ये सवाल उथल पुथल मचा ही रहे थे कि उसे एक फुसफुसाती हुई सी धीमी आवाज सुनाई दी। उसे लगा कि जैसे कोई उसका नाम लेकर उसे बुला रहा हो। उसने इधर उधर देखा लेकिन वहाँ पर कोई नही था। उसने इस बारे मे त्रिपाला से पूछने के लिए पीछे मुड़कर देखा तो उसके मन का डर और बढ़ गया। त्रिपाला वहां दूर दूर तक आती हुई नही दिखाई दे रही थीं।

वह त्रिपाला के आने का इंतजार कर ही रही थी कि तभी "चंद्रिका.........।" इस बार यह नाम हवा में गूँज उठा। इस आवाज में एक ऐसा सम्मोहन था कि चंद्रिका अपनी सुध खो कर आवाज की ओर बढ़ने लगी। वह आवाज की दिशा में बहुत दूर तक चली आयी थी। चंद्रिका को यहां आने की कोई सुध नहीं थी। वह बस चली जा रही थी।

चंद्रिका बेसुध हो अपना अगला कदम आगे रखने जा रही थीं कि तभी किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया। ऐसा होते ही चंद्रिका अपने होश में आई। उसने आगे देखा तो वहां एक ज्वालामुखी था जिसमें से आग की लपटें निकल रही थीं। 

यह देख कर चंद्रिका का गला सूख गया। उसके शरीर में झुरझुरी सी दौड़ गई यह सोचकर कि अगर उसने आगे कदम रखा होता तो शायद.....। उसने सोचा कि उसकी जान बचाने के लिए उसे त्रिपाला का धन्यवाद देना चाहिए। ऐसा सोचकर जैसे ही उसने पीछे को ओर देखा तो उसके होश उड़ गए।

उसका हाथ पकड़कर उसकी जान बचाने वाली त्रिपाला नही बल्कि
उसी के जैसे कपड़े पहने कोई दूसरी औरत थी जिसके चेहरे पर घूंघट था। उस औरत ने चंद्रिका को पीछे खींच लिया और फिर उसका हाथ छोड़कर वहाँ से जाने लगी।

अब चंद्रिका से और नहीं रहा गया। वो आगे बढ़ी और चिल्लाते हुए उस औरत से पूछने लगी-"कौन हो तुम और क्यों मुझे परेशान कर रही हो? तुमने मेरा रूप क्यों ले रखा है? बताओ मुझे। तुम वहीं दुल्हन हो ना जो कल रात मेरे कमरे मे थीं है ना, बोलो। मैं कुछ पूछ रही हूँ तुमसे।" अब चंद्रिका थोड़ी और आगे आ गई थी। वह औरत अभी वहीं पर रुकी हुई थी।

चंद्रिका के सवालों को सुनकर वो रुकी हुई जरूर थी लेकिन सवालों का सिलसिला थमते ही वो बिना कोई जवाब दिए वहां से जाने लगी। अब चंद्रिका का सब्र जवाब दे चुका था। उसने भी तेजी से चलकर उस औरत का रास्ता रोक लिया।

."आज मैं तुम्हें बिना अपने सवालों का जवाब लिए नहीं जाने दूंगी। तुम्हें मेरे सारे सवालों का जवाब देना ही होगा। इस घर मे सबकुछ इतना अजीब क्यों है? जब से मैं इस घर में आई हूँ, मेरे साथ कुछ ना कुछ हो ही रहा है, जिसे मैं समझा भी नही सकती। देखो मैं तुमसे हाथ जोड़कर विनती करती हूँ, सच क्या है बताओ मुझे।" कहते हुए चंद्रिका ने हाथ जोड़ दिए। उसके चेहरे पर परेशानी साफ झलक रही थी।

इतना कुछ सुनने के बाद भी वो औरत कुछ नहीं बोली और बस चुपचाप खड़ी रही। उसे इस तरह चुप देखकर चंद्रिका को गुस्सा आ गया। चंद्रिका ने तेज आवाज में कहा-" देखो मैं यहां पर बिल्कुल अकेली हूँ। ऐसा कोई भी नहीं है जिससे मैं अपनी परेशानी कह सकूँ। तुम्हें मेरी मदद करनी ही होगी। 

चंद्रिका के इतना कहने पर भी वो औरत कुछ नहीं बोली। अब उसने ठान लिया था कि उसे सच पता चले या ना चले, उस औरत का चेहरा वो देख कर ही रहेगी।

"ठीक है, अगर तुम मुझे सच नहीं बताना चाहती हो तो कोई बात नहीं लेकिन आज मैं यह चेहरा देख कर ही रहूंगी।" इतना कहते हुए चंद्रिका उसकी ओर बढ़ने लगी। उसे यह देखकर हैरानी हुई कि वह औरत खुद को बचाने की कोशिश भी नही कर रही थीं। चंद्रिका ने जैसे ही उसका घूंघट उठाने की कोशिश की, वैसे ही किसी ने पीछे से उसके कंधे पर हाथ रखा।

उसने पलट कर पीछे देखा, वहां त्रिपाला खड़ी थी। उसको देखते ही चंद्रिका की जान में जान आई। वह आवेश में आकर बोली- "कितना समय लगा दिया आपने यहां तक आने में। देखिए ना यह वही दुल्हन है जो कल रात मेरे कमरे में आई थी और फिर भाग गई। आप ही इससे पूछिए कि इसने मेरा रूप क्यों लिया हुआ है और कल रात यह मेरे कमरे में क्या कर रही थीं।

"कौन बहुरानी? हम किससे क्या पूछे? क्या हुआ है आपको? हम कबसे आपको आवाजें दे रही हूँ लेकिन आप है कि अपनी ही दुनिया में खोई है। अब जल्दी चलिए, मालकिन आपका इंतजार कर रही होगी।" त्रिपाला की आवाज से लग रहा था कि उसे चंद्रिका की बातें सुनकर हैरानी हुई थी।

"आप भी क्या बात करती हैं त्रिपाला काकी? यह देखिए यह रही वो औरत.......।" इतना कहते हुए जब चंद्रिका आगे की ओर देखती हैं तो उसके होश उड़ जाते हैं। वहां कोई औरत नही थी। उसने अपने आस पास देखा तो उसे यकीन नहीं हुआ कि वो अभी भी अपने कमरे के बाहर ही खड़ी थी। 

"अभी तो मैं आपसे बात कर रही थी दीवार की नक्काशी के बारे मे।" चंद्रिका ने यह जानने के लिए कि उसने त्रिपाला से बात की भी थीं या नहीं, पूछा।

"कौन सी नक्काशी और कौन सी बात? जब से आप कमरे से बाहर निकली है, तब से आप मूर्ति बन कर खड़ी है और हम चिल्ला चिल्ला कर आपको जगाने की कोशिश कर रही थी। हमारा तो गला ही दर्द करने लगा है अब।" त्रिपाला ने जवाब दिया।

"तो हमारी आपकी कोई बात नहीं हुई?" चंद्रिका ने हैरानी जताई।
"नही, कोई बात नहीं हुई। अब हमें चलना चाहिए।" त्रिपाला की आवाज में आदेश था।

अब चंद्रिका के पास कहने को कुछ बचा नही था। उसने जैसे ही अपना पैर आगे बढ़ाया, उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया।
वो बेहोश होकर नीचे गिरने लगी तो त्रिपाला ने उसे संभाल लिया।
चंद्रिका बेहोश थी। 

त्रिपाला उसे थामे खड़ी थी कि वहाँ पर दर्शना देवी आई। उन्होंने चंद्रिका की ओर देखा और फिर त्रिपाला से पूछा- "क्या लगता हैं तुम्हें, इस बार काम होगा या नही?

"काम शुरू तो कर दिया है उम्मीद है कि इस बार हमें सफलता मिलेगी दर्शना।" त्रिपाला ने कहा। इतना सुनकर दर्शना देवी के चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गई। (जारी.......)



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