रेल के दरवाजे पर मत बैठना
रेल के दरवाजे पर मत बैठना
शाम होने वाली थी, स्टेशन से गाड़ी वस चली ही थी।
मंद हवा मेरे सिर के बालों को हल्के- हल्के सहला रही थी। माना रेलगाड़ियों के दरवाजे पर बैठना खतरनाक है फिर भी इसका अपना एक अलग मज़ा है। रेल, यात्रियों से खचाखच भरी हुई थी, मैंने दरवाजे पर अपनी जगह बना ली थी। अंधेरा गहरा रहा था कि तभी मुझे ऐसा लगा कि जैसा कोई चलती रेल के पास से मुझे छूता हुआ गुज़र गया, मैंने सोचा होगा कोई नालायक। धीरे - धीरे रेल, छुक - छुक की आवाज के साथ आगे बढ़ती गई।
लोग कह रहे थे कि दरवाजा बंद करो रात हो रही है पर हम कहां किसी कि सुनने वाले थे, इयरफोन कानों में लगा कर बैठ गए। पता ही नहीं च
ला नींद कब आ गई। अचानक से मैं भड़भड़ा के उठा क्यूंकि मुझे लगा जैसे किसी ने मुझे रेल से नीचे धक्का देने की कोशिश की हो। हैरानी की बात तो ये थी कि वहां कोई था ही नहीं। मैंने फिर से इयरफोन लगा लिए और तुरंत ही मेरे पीछे से एक लड़की भागती हुई आई और उसने मुझे नीचे धकेलने की कोशिश की लेकिन मै उठ खड़ा हुआ और वो नीचे जा गिरी।
मैं डरा हुआ था कि किसी कि जान चली गई मैंने चुपचाप अंदर जाने लगा कि की वहीं लड़की फिर से मेरी ओर भागती हुई आई। मैंने खुद को बचाने की कोशिश की और किसी ने मुझे हिलाया। मैंने आंखें खोल के देखा तो मै दरवाजे पर ही बैठा रेल के चलने का इंतजार कर रहा था।