R Rajat Verma

Drama Tragedy Inspirational

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R Rajat Verma

Drama Tragedy Inspirational

रेल यात्रा भाग १

रेल यात्रा भाग १

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गहन चिंतन ने डूबा मैं चुपचाप बैठे स्वयं से सवाल कर रहा था कि आखिर जो चल रहा है उसमें कौन गलत है और कौन सही? क्या वाकई में मुझे कोई अधिकार नहीं है किसी से कुछ भी कहने का? क्या हकीक़त में मैं इतना गलत हूं कि मेरे घर में होने वाले प्रत्येक कलेश की वज़ह मैं हूं? क्या यही कारण है जो मेरे ही माता पिता ने मेरा बहिष्कार कर दिया था? लेकिन एक ख़्याल जहन से निकलता ही नहीं की जब मैं मासूम सा बच्चा था तब भी मैं ही गलत था और आज की तो बात रहने ही दो। क्या मेरा जन्म लेना ही एक गुनाह था? खैर छोड़ो अब किसी को मुझसे मतलब नहीं रहा मैं जियुं या मर जाऊं। रेलगाड़ी ने हॉर्न बजाया और मैं अपने ख्यालों से बाहर आया। देखा तो पता चला कि गाड़ी चल दी है। अपना सामान उठा कर मैं गाड़ी को पकड़ने के लिए भागा।

जैसे तैसे मैंने अपना सामान गाड़ी में फेंका और चढ़ गया। मेरी सांसे थमने का नाम नहीं ले रहीं थीं। लोगों की नज़रे मुझपर ऐसे टिकी हुई थी कि जैसे भारत में, मैं पहला शक्स ऐसा हूं जो चलती गाड़ी में चढ़ा। एक गहरी सांस ले अपने बैग को कंधे पर टांग कर मैं बैठने के लिए जगह ढूंढने लगा, थोड़ा आगे बढ़ने पर एक जगह मुझे जगह दिखी पर वहां बैठी एक औरत थोड़ी सी भी जगह देने को तैयार नहीं थी। मैंने उसे समझाने का प्रयास किया तो वो कहने लगी तुम्हे महिला से बात करना नहीं आता, अगर महिला कह रही है वो तुम्हे नहीं बिठाएगी तो तुम्हे वहस नहीं करनी चाहिए और चुपचाप चले जाना चाहिए। क्या करता मैं? मैं आगे बढ़ ही रहा था कि एक लड़की ने मुझे भैया कह कर रोका। मैं रुक गया वो बोली आप रुको मैं जगह करवाती हूं। उसने उस महिला से पहले उसका टिकट मांगा तो महिला ने दिखाने से इंकार कर दिया। इस पर उस लड़की ने उस महिला को लताड़ना शुरू किया। उसने कहा एक तो आप बिना टिकट के सफर कर रही हो, ऊपर से किसी को बैठने की जगह नहीं दे रही हो, रुको मैं अभी फोन कर आपकी शिकायत दर्ज करवाती हूं। अगले ही स्टेशन पर आपकी अक्ल ठिकाने लगा दी जाएगी।

आप जैसी महिलाओं की वजह से हर महिला को शक की नजर से देखा जाता है। लोग डरते है अपनी बात कहने में भी, मैं भी इन भैया को सुन रही थी इन्होंने तो कुछ गलत नहीं बोला था और आपने इनपर सवार हो रही थीं, शर्म आनी चाहिए आपको। अभी इनको बैठने दो वर्ना अगले स्टेशन पर आपकी खैर नहीं। अपनी गलती समझकर उस महिला ने मुझे बैठने के लिए जगह दी। उस लड़की का मैंने शुक्रिया अदा किया। रेल अपनी रफ़्तार से चल रही थी। एक स्टेशन बीता कुछ लोग उतरे कुछ चढ़े। मैं फिर अपने ख्यालों में खो गया। 

मुझे बचपन को वो दिन याद आ गया जब मै ५ या ६ वर्ष का रहा होऊंगा और मेरे पिता ने मुझे उठाकर पटकने का प्रयत्न किया जिस पर मां ने उन्हें रोका और मैंने कहा आपने क्यूं रोका? आप भी तो यही चाहती हो। पता नहीं क्यूं बोला मैंने ऐसे ? मुझे बचपन की ५ वर्ष से पहले की कोई याद नहीं है क्योंकि मेरे सिर पर गहरी चोट लगी थी जिससे मैं अपनी पुरानी यादों को खो चुका था। फिर अगले स्टेशन पर रेल रुकी, मैंने पानी एक बोतल खरीदी और वापिस आया तो पता चला वो औरत मेरा बैग लेकर भाग गई है, जो मुझे बैठाने के लिए तैयार नहीं थी। मैंने इधर उधर सब तरफ़ देखा और वो मुझे बैग को घसीटते हुई दिखाई दी, मैं उसकी ओर भागा और मुझे अपनी ओर आते देख उसने बैग को वहीं छोड़ना उचित समझा और वह वहां से भाग गई। अपना बैग उठा मैं जल्दी से रेल में वापिस चढ़ गया पर मुझे कहीं कोई जगह न मिली बैठने को। रेल के दरवाजे के पास अपने बैग की तनी को कंधे पर टांग मैं वहीं बैठ गया। 

अपने विचारों में एक बार फिर से मैं लौटने लगा और बचपन को वो दिन याद आया जब पिताजी ने मुझे चप्पलों से मारा था। फिर यादों का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ कि हर एक याद मेरी आंख से बहने लगी। याद आया जब कहा जाता था मुझसे काश तू न होता तो कलेश न होता, तू ही कलेश की जड़ है। घर पर मेरी कभी कोई सुनता ही नहीं था सब सिर्फ मेरे बड़े भाई की ही परवाह करते थे। मैं मार खा कर एक कोने में पड़ा रहता था, रोता रहता था कोई नहीं आता था मुझे मनाने। कभी कभी भाई और मुझे, दोनों को ही पिताजी पीटते थे लेकिन मनाया सिर्फ उस है जाता था। हर सुबह पिताजी उसके सिर पर प्यार से हाथ फेर कर उठाते थे, उसे विद्यालय जाने के लिए। मैंने सोचा कल से मैं भी देर तक सोने का नाटक करुगा हो सकता है पिताजी मुझे भी उठाए। अगली सुबह वो आए भाई को प्यार से जगाया और चले गए, ऐसा हर रोज़ होता रहा महीनों बीतते गए मैं इसी उम्मीद में था कि कभी तो वो मुझे प्यार से जगाएंगे लेकिन मेरा दुर्भाग्य ऐसा कभी हुआ ही नहीं। हर सुबह मेरी आंखें उस प्यार को देखती थी और तरसती थी क्यूंकि ये प्यार उनके नसीब में नहीं था।

अरे भाई थोड़ी जगह दोगे, निकालना है हमें कहकर किसी ने मुझे हिलाया और मैं अपने ख्यालों से निकाल वापिस रेल में आ गया।


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