रात्रि की दीवार पर
रात्रि की दीवार पर
रात्रिकालीन अंतर्राष्ट्रीय उडान पर हमने हवाई जहाज की खिडकी से नभ की ओर देखा तो हमको अपने चारों ओर रात्रि रूपी दीवार दौडती नजर आई । हमें ऐसा भी लगा कि हमारे यान की अपनी अग्रणी नोक और तीव्रतम गति उडान से इसकी नीली चादर को भेदती जा रही हो,पर इस दीवार का कोई ओर छोर नहीं।ऐसा लगा कि उडान का वेग और निशा के फैलाव में होड लगी है, पर इस द्वन्द्व में हार मानने को कोई तैयार नहीं । इस विचार से हटने के लिए हमने सीट के सामने लगी टी0वी0 स्क्रीन पर उडान की स्थिति जाना तो हमें पता लगा कि हमारा प्लेन एक पीले रंग की निर्धारित काल्पनिक पगडंडी पर किस रफ्तार और कितनी ऊँचाई पर किन किन देशों के ऊपर से सफर कर रहें हैं । कौतूहलवश हमने पुनः खिडकी से बाहर के वातावरण का जायजा लिया,अब हमने दृष्टिकोण बदल लिया। हमें अब रात के सौन्दर्य का रसपान करना था। हमने महसूस किया कि यह रात्रिकालीन दीवार नीरस नहीं है,बल्कि इस पर अनेक प्रकार की हीरों की चमक लिए हुए तारें स्थिर नहीं है वरन हममें आनन्द और रोमांच बढाने के लिए अपनी स्थिति भी बदल रहे है शीतल एवं सफेद चंद्र भी एकटक होकर हमसे खिडकी के रास्ते हमसे बात करने हेतु आतुर है। एक ओर शुक्र और दूसरी तरफ मंगल अपनी पीली और लाल रोशनी में यह बताने का प्रयास रहे हैं कि हम हरी चादर ओढे नीले ग्रह की धरा से किसी प्रकार से कम नहीं है, बस प्यार से सहेजने क जरूरत है। भोर की झुटपुटाहट में कुछ उडते या बिछे बादल रूई के सफेद फाहे भी वायुयान की इतनी तीव्र गति का तनिक आभास नहीं कराते और ऐसा महसूस होने लगा है कि मेरा प्रशांत मन भी अतिरेक भरे नैसर्गिक आनन्द डूबता जा रहा है I
मन की अविगत गति के बारे में क्या कहें ? वह तो बाहर निकल कर चाँदनी और लालिमा में नहाई रात की रफ्तार के साथ काल्पनिक सफेद कुशन पर अंगडाई का स्वाद चखना चाहता है Iवायुमंडल के तापमान (-40 डिग्री) और ऊँचाई की हकीकत सोचकर सिहरता भी है ,सोचता भी है कि इस आनन्द को संसार की श्रेष्ठ पक्षी गोल्डन हाँक ही ले सकता है जिसको किसी पर्वत की शिखर पर बैठने की तनिक दरकार नहीं होती,वह तो अपने पंखो की मजबूती,ताकत और गति पर ही मग्न रहता है I सच में यह दुनियाँ ताकतवर लोगों की ही पूजा करती है और अपने में निहित सभी प्रकार के आनन्द को उसके वर्चस्व के आगे सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार रहती है I

