रात अधुरी रह जाती है
रात अधुरी रह जाती है
कहने को श्यामें गुज़र जाती हैं तेरे साथ
एक तेरे साथ गुज़ारने को रात अधुरी रह जाती हैं
मेरे जज़्बातों को लफ़्ज़ नहीं मिलते और
होंठों पर आते आते बात अधुरी रह जाती हैं
दूर चलते चलते राहों में न हो तू अगर
साथ मेरे मंज़िल अधूरी रह जाती हैं
कभी लिख़ दिया करता था मेरे ख़्यालों को पन्नों पर
अब क़लम में मेरी स्याही अधूरी रह जाती हैं
टूटे तारें भी मुझसे अब तो पुछने लगे हैं
तेरी कितनी ही ख़्वाहिशें अधूरी रह जाती हैं
ज़िक्र तेरा हर बात में किया करता था में
अब हर बात में तेरी याद अधूरी रह जाती हैं।

