राजा निद्रि की छठी रानी
राजा निद्रि की छठी रानी
दक्षिणी तट ----
त्रिपि राज्य
आज राजा निद्रि अपनी नई रानी के साथ लौट रहे थे’ युद्ध खत्म हुए 2 सप्ताह बीत चुके थे’
लेकिन राजा की कोई खबर नही थी’कल शाम ही महल में सभी को सूचित किया गया था कि राजा नई रानी के साथ लौट रहे है’
ये विवाह केवल युद्ध को टालने हेतु था’ परन्तु सच किस से छुप सकता है’ वे पहले ही उस औरत को चाहने लगे थे और युद्ध तो एक बहाना था उस खूबसूरत मलिका को अपना बनाने का।"
महल में सजावट साफ दिख रही थी’ सभी रानियां थाल ले कर दरवाजे पर खड़ी थी’ कोई लाल तो कोई पीला जोड़ा पहने थी
राजा निद्रि की 5 पत्नियों थी’ पहली थी देश के सबसे बड़े पुरोहित की बेटी शिजा जिनकी सुंदरता का कोई मुकाबला नही था’ लेकिन राजा ने उन्हें विवाह कर ही छोड़ दिया था और उनका किसी से मिलना निषेद था।"
दूसरी , तीसरी, चौथी, पाँचवी सभी एक दूसरे की दुश्मन थी हमेशा राजा को वश में करने का प्रयत्न करती थी।"
रानी - दिशा दूसरी रानी
रानी - मिशा तीसरी
रानी - सिना चौथी
रानी - गरिमा पांचवीं
और छटी के बारे में किसी को ज्यादा नही पता था।"
" साबधान , राजा निद्रि रानी खुशी संग पधार रहे है’ " एक सिपाही ने सबको सूचित किया’
सभी रानियाँ आगे आयी’ सब के चेहरे देख कर प्रतीत हो रहा था कि उनके दिल ने कितना रोष है लेकिन वह खामोश रही’ राजा का क्रूर व्यहार किसे नही पता था’
राजा माता आगे आते हुए बोली " हमें लगता नही आपको याद दिलाने की जरूरत है कि किस तरह से परेशाना है’ किसी ने जुबान खोलने की हिम्मत की तो वो जमीन के 6 फ़ीट नीच दफ़न मिलेगा’ आज मुस्कान ओढ़ ली जिये ये रानियों का गहना है और अपनी सौतन का स्वागत की जिये"
राजा माता शकुंतला केवल अपने बेटे से प्रेम करती थी’ उन के लिए उन की बहुओं का कोई महत्व नही था’ उन के लिए वह सब बेकार थी’ क्योंकि वो एक बच्चा पैदा करने में सक्षम नही थी’
" कोई अपनी सौतन का स्वागत कैसे कर सकता है’ राज माता " रानी गरिमा ने अपने सर पर रखी ओढ़नी को संभालते हुए कहा।"
राज माता’ उस के निकट आ कर बोली ’ " उसी तरह जैसा आपका किया गया था बाकी रानियों द्वारा" और वो बिना रानी गरिमा के भाव देखे द्वार की ओर चली गयी’ जहाँ पर राजा आ चुके थे’
राज माता को देख राजा निद्रि उन के पैर छूते है " आशीर्वाद दे, राज माता आपका बेटा युद्ध जीत के आया है"
राज माता के चेहरे पर एक मुस्कान तैर गयी’ उन्होंने राजा निद्रि के सर पर हाथ रखते हुए कहा " चिरंजीवी भवः "
उन्हें अपने पुत्र पर गर्व था’ वे पुत्र मोह में इतनी अंधी हो चुकी थी कि उन्हें अब किसी अफवाह पर भरोसा नही था’
राजा निद्रि सीधे खड़े हुए’ राज माता रानी के पैर छूने का इंतेज़ार करने लगी लेकिन वो तो अकड़ कर खड़ी थी’ जैसे उनका कोई इरादा नही था उन के पैर छूने का।"
राज माता के चेहरे पर छाई मुस्कान फीकी होने लगी क्योंकि सब लोग उन की ओर देखने लगे थे ’ और सभी रानियों आ पस में बात करने लगी थी।"
राज माता राजा निद्रि की ओर रुक करती है’ राजा अपनी नई रानी की ओर देखते है लेकिन वह अपने पेट पर हाथ रख लेती है’ तो राजा उन की बात समझ राज माता से कहते है’
"माफ की जियेगा राज माता रानी खुशी गर्भवती है’ उन्हें राज वैध ने झुकने वह किसी प्रकार का भार उठाने से मना किया है"राजा ने सफाई दी’ वह अपनी सब से प्रिय रानी की गलत छवि नही बनने दे सकते थे।"
राजा माता की खोई मुस्कान जैसे दुगनी हो गयी थी’ वह जल्दी से अपने पास खड़ी दासी से बोली
"माला’जल्दी करो’ सारे राज्य में सूचना भिजवावो कि राज वंश का कुलदीपक आने वाला है’ सभी को मिठाई बतवाओ’ पंडितों को दान दो’ महल नगाड़े बजवाओ और एक जश्न ऐलान करो" वो बिना रूखे बोलती गयी।"
उनकी खुशी’ देख राजा निद्रि जल्दी से उन की ओर आते हुए बोले "राज माता, हमें यही उम्मीद थी आप की खुशी संभाले नहीं सम्भलेगी।"
वो बस हल्का सा मुस्कुरा दी’ और बाकी रानी की ओर देखते हुए बोली " आप थाल ले कर नई रानी की आरती की जिये’ हमें और भी कार्य देखने है" कहते हुए वो तेज़ कदमो से महल के भीतर जाने लगी।"
लेकिन अब उन के चेहरे के भाव बिल्कुल अलग थे।’
क्या वास्तव में उन्हें अपने पुत्र से मोह था या दफन थे’ उन बूढ़ी आँखो में अलग ही राज
जानेंगे जल्द ही।"
जब तक के लिए
श्री राधे