प्यार की डोर
प्यार की डोर


हर बार की तरह इस बार भी निशा रक्षाबंधन को लेकर काफी उत्साहित थी…. कौन से कपड़े पहनने हैं, कौन -कौन सी मिठाइयां बनानी हैं , और राखी तो हर बार की तरह वह खुद ही बनाएगी…. सबसे कहती थी कि भाई के कलाई पर प्यार की डोर बांधनी है तो राखी मैं खुद ही बनाउंगी।
सभी जानते थे कि जिस भाई के लिए वह इतनी तैयारी कर रही है वह तो कई महीनों पहले ही आ चुके थे, तिरंगे में लिपटे हुए। एलओसी पर देश के लिए सर्वोच्च बलिदान करके। निशा सबकुछ जानते हुए भी अपनी तैयारियों में मशगूल थी।
राखी के दिन उसने वही नीला सूट पहना जो उसके भाई कैप्टन अमित ने उसे पिछली राखी पर दिया था । पूजा की थाली हाथ में लेकर निशा ने एकबारगी उपर देखा, कैप्टन अमित तस्वीर में मुस्कुरा रहे थे, तभी डोरबेल बजी, दरवाजे पर अमित के दोस्त कैप्टन विक्रम खड़े थे। निशा को देखते ही बोलें – चल बहना जल्दी राखी बांध मुझे... मिठाइयां खानी है। निशा स्तब्ध थी, इसी अंदाज में उसके भैया अमित भी कहते थे। निशा ने विक्रम को राखी बांधी और अनायास ही बोल पड़ी” चलो भैया मेरा तोहफा दो” , कैप्टन विक्रम ने तोहफा दिया, दोनों की आंखें नम थी और कैप्टन अमित वो तो अभी भी मुस्करा रहे थे।
( नमन है ऐसे वीरों का जिन्होंने देश के नाम अपना सर्वोच्च बलिदान दिया और नमन है उनके परिजनों का जिन्होंने बाकियों को भी जीना सिखा दिया....)