कैप्टन शालिनी
कैप्टन शालिनी
यह कहानी है संकल्प, अनुशासन, प्रतिबद्धता, लोहे सा फौलादी इरादा रखने वाली कैप्टन शालिनी की, एक आम महिला जो अनेकों के लिए मिसाल बन गई।
वो सुबह शालिनी के जीवन में एक खौफ़नाक मंज़र ले आया। नजरों के सामने तिरंगे में लिपटा शहीद पति का शव और दिल में उबरता जज्बातों का सैलाब, शालिनी कुछ समझ ही नहीं पा रही थी। मेज़र अविनाश ने कश्मीर में आतंकियों से वतन की हिफाज़त करते हुए देश के नाम अपना सर्वोच्च बलिदान दिया।
अभी तीन साल पहले ही तो मेज़र अविनाश सिंह भदौरिया से शालिनी की शादी हुई थी। अभी तो वह जिम्मेदारियां संभालना सीख ही रही थी कि नियति ने उसके साथ इतना क्रूर बर्ताव कर दिया। शालिनी के सामने उसका दो साल का मासूम बेटा भी था, जिसकी जिम्मेदारी अब उसे अकेले उठानी थी। शालिनी को अपनी जिंदगी वीरान सी लगने लगी थी, उसे ऐसा लगने लगा था कि जैसे अब उसकी जिंदगी में कुछ बचा ही नहीं है, लोगों की हमदर्दी उसे और कमजोर बना रही थी। उसे मेज़र भदौरिया की बातें याद आ रही थी जब वो कहते थे कि “मेरी जिंदगी मेरे परिवार से पहले मेरे देश के लिए है”। शालिनी ने खुद से वादा किया कि अपने पति की शहादत पर वह कमजोर नहीं पड़ेगी और कुछ ऐसा करेगी कि मेज़र अविनाश भी उसपर गर्व करें।
शालिनी ने आर्मी में शामिल होने का फैसला किया और सिर्फ तीन महीने में ही आर्मी के लिए परीक्षा भी पास कर ली फिर ट्रेनिंग के लिए आफीसर्स ट्रेनिंग एकेडमी, चेन्नई गई। शालिनी के लिए यह सब आसान नहीं था, कभी- कभी वह अपने बीते दिनों को याद कर भावुक हो जाती पर हर सुबह एक नए जज्बे के साथ फिर तैयार हो जाती थी। सेना की कड़ी ट्रेनिंग ने शालिनी के दिलो-दिमाग को फौलाद सा बना दिया और अपने पति की पहली बरसी के २०(बीस) दिन पहले ही शालिनी भारतीय सेना की हिस्सा थीं। यही नहीं शालिनी ने खुद सेना की वर्दी पहनकर राष्ट्रपति श्री ए.पी. जे. कलाम से अपने पति मेज़र अविनाश का मरणोपरांत “कीर्ति चक्र” सम्मान भी प्राप्त किया। इसी जुनून ने शालिनी को “कैप्टन शालिनी” बना दिया।
सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन नियति को कैप्टन शालिनी की और परीक्षाएं लेनी थी। ६(छह) साल की देश सेवा के बाद ही कैप्टन शालिनी एक सड़क दुर्घटना में बुरी तरह घायल हो गई, उन्हें वापस खड़ी होने में एक साल से ज्यादा वक्त लग गया। लेकिन जिसमें आसमां छूने का जुनून हो उसके इरादों को कठिन परिस्थितियां भला कैसे रोक सकती हैं। शालिनी ने रैंप पर चलने का फैसला किया और अपने कभी न हार मानने वाले हौसले के दम पर “मिसेज इंडिया” चुनीं गई। एक साधारण सी शालिनी जो अपने बुलंद हौसले, और फौलादी इरादों से "कैप्टन शालिनी” और फिर “मिसेज़ इंडिया” तक का असाधारण सफ़र तय कर गई।