प्यार का सफर -1
प्यार का सफर -1
रात के करीब 11 बजे थे और गाँव का एक सीधा सादा लड़का पुराने जमाने वाले कपड़ो के अंदाज में अपने पिताजीको साथ में लेकर अहमदाबाद मेरे घर आया। मैं और मेरे परिवारवाले आने वाले महमान का कबसे इंतजार कर रहे थे। मैं तो बहुत ही व्याकुल हो रही थी अपने जीवनसाथी को देखने के लिए। जब मैंने करण को गाँव के लड़कों की तरह देखा तो मेरे मनमें अनेकों सवाल खड़े हो गए। वैसे तो करण गाँव में ही रहनेवाला लड़का जरूर था, पर वो एक प्राथमिक शाला में अध्यापक था। मेरे घरवालों ने करण को यहाँ मुजे देखने के लिए इसीलिए बुलाया था क्योंकि वो एक अध्यापक था। मेरा भी सपना था अध्यापिका बनने का, इसीलिए मेरी भी इच्छा थी कि मुजे मेरे सपने से जुड़ा कोई हमसफर मिले। करण दिखने में अच्छा था, उसकी लंबाई भी मध्यम थी। इसलिए घरवालों को भी वो पसंद आ गया था। करण और उसके पिताजीने खाना किया। खाना करने के बाद करण के पिताजी और मेरे परिवारवाले बातचीत करने बैठे और मेरी मौसी मुजे और करण को छत पर बातचीत करने ले गई। तब करीब 12 बजे थे। मौसी खुले अंधेरे आसमान के नीचे हम दोनों को अकेला छोड़ कर नीचे चली गई। अंधेरे में हमदोनों को एकदूसरे के चहरे भी ठीक से दिखाई नही देते थे। फिर भी हमदोनों ने एक दूसरे के बारे में सब कुछ पूछ लिया, आधे घंटे तक हम दोनों ने बातें की, फिर मौसी आई और मुजे और करण को नीचे लेकर गई। ये थी मेरी और करण की पहली मुलाकात।