प्यार इकतरफा
प्यार इकतरफा
प्यार कहें या इश्क, या फिर मोहब्बत नाम कोई भी हो लेकिन इस जज़्बात की खूबसूरती तब ही समझ में आती है जब ये हो जाता है और जिनको ये होता है उनकी दुनिया ही अलग होती है। मुस्कुराने के लिए किसी चुटकुले की ज़रूरत नही होती और खुश होने के लिए किसी रेस्टोरेंट या मूवी थिएटर की आवश्यकता नहीं होती। टाईमपास का तो नाम ही जैसे पता नहीं होता क्योंकि अपने विचारों के सागर में गोते मारते मारते समय कैसे गुज़र जाता है? पता ही नहीं चलता!
ये रेस्टोरेंट जाना, मूवी देखने के लिए या तो टिकट लाईन में लगना या फिर ऑनलाइन टिकट बुक करा लेना, पार्टी करने के बहाने बनाना और टाईमपास करने जैसे उथले काम तो वो लोग करते हैं जिनकी ज़िंदगी में प्यार नहीं हैं। जो लोग प्यार में पड़े होते हैं उन्हें ये सब करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। उन लोगों को तो बस उसे (अपनी मोहब्बत को) याद करने भर से ही सबकुछ मिल जाता है।
लेकिन ये दुनिया कहां समझती है इस प्यार की ख़ूबसूरती को? इसे तो बस ये लगता है की वो इंसान पागल हो गया है जो इन सब चक्करों में है। अगर गलती से भी घर में किसी को पता चल जाए की हमारा बच्चा किसी को प्यार करने लगा है तो बवाल काट देते हैं! एकदम से घर के अंदर ही एक बड़ी सभा का आयोजन हो जाता है और फिर सब के सब बस एक ही बात बोलने लगते हैं,"बेटा पहले अपनी पढ़ाई लिखाई पर ध्यान दो! कुछ बन जाओ! ये सब तो ज़िंदगी में चलता रहेगा!"
लेकिन इन सब समझदारी की बातों को सुनने के बाद भी दिल तो आखिर दिल ही है मानता नहीं। प्यार में पड़ा इंसान उस कठपुतली की तरह होता है जिसकी डोर किसी और के हाथ में होती है। जैसे कठपुतली का खेल दिखानेवाला जब चाहें जैसे चाहें कठपुतली को नचा सकता है वैसे ही प्यार में पड़े इंसान की हालत होती है, प्यार ही उससे सबकुछ करवाता है। ख़ुद पर बस नहीं होता और न होती है किसी की परवाह। आस पास क्या हो रहा है? कौन क्या कह रहा है? क्या कर रहा है? कोई मतलब नहीं रहता।
आज खाने में क्या बनेगा? ज़िंदगी में क्या अहम फैसले लेने हैं? भविष्य में क्या करना है जैसे सवालों से तो दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं होता। ये सारी बातें तो दिमाग़ में आती ही नहीं है। इस दुनिया में अपनी ही एक अलग दुनिया जीता है वो इंसान जो प्यार में होता है। मैंने कई लोगों के मुंह से सुना है की ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शरीर में कोई केमिकल वेमिकल बढ़ जाता है पर ये केमिकल का बढ़ना या घटना भी तो तभी होता होगा जब प्यार की भावना आती होगी? लेकिन ये केमिकल वाली बातें भी वो ही लोग करते हैं जिन्हें प्यार से कोई सरोकार नहीं है। प्यार में पड़ा इंसान कहां ये सोचेगा? वो तो इस वक्त भी खोया होगा अपने सपनों की दुनिया में।
90 के दौर की बात है। विनय की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी। जनाब प्यार में पड़ गए थे। लोग कहते थे की प्यार में पड़े आदमी की हालत धोबी के कुत्ते जैसी होती है, न घर का न घाट का और ये बात विनय के ऊपर बिलकुल सही थी। 11वीं क्लास से 12वीं में अभी अभी पास होकर आए थे और बोले की प्यार हो गया है। मैंने बहुत आश्चर्य से पूछा,"कैसे?" और ये सवाल बिलकुल वाजिब भी था क्योंकि हम पढ़ रहे थे ब्वॉयज कॉलेज में जहां लड़कियों का नामोनिशान नहीं था और जिस तरह से उसने शर्माते और गाल गुलाबी करते हुए ये बात बोली थी ज़ाहिर था किसी बिल्ली या बंदर से तो हुआ नहीं होगा।
और फिर शुरू हुआ मोहब्बतों का दौर जिसमें बिना बात के मैं बीच में फंस गया। प्यार तो हुआ था इन जनाब को लेकिन ये महाशय कॉलेज की छुट्टी होने के बाद मुझे अपनी साईकिल पर पीछे बैठाकर 5 किलोमीटर दूर के एक चाय के ठेले पर चाय पिलाने ले जाते थे, साथ में एक मठरी भी खिलाते थे! पहले दिन तो मुझे समझ नहीं आया की इतनी मेहरबानी क्यों कर रहा है ये? लेकिन थोड़ी देर बाद मैं अपने आप ही सारा माजरा समझ गया। ये जनाब एक लड़की को ताड़ने आए थे जिसका घर वहीं कहीं आसपास ही था। उनका नाम अवंतिका था और वो शायद उस वक्त 10वीं क्लास में थी, जैसा की इन महाशय ने मुझे बताया था। अब ये जानकारी इनको कैसे मिली तो इसका जवाब है मशहूर शर्मा कोचिंग क्लासेज जिसमें शाम 4 से 5 वाले बैच में ये भाईसाहब पढ़ते थे और 5 से 6 वाले बैच में पड़ती थी हमारी अवंतिका भाभी!
लड़कों में ऐसा ही होता है, जब अपने जिगरी यार को कोई पसंद आ जाए तो वो तो है अपना भाई और जिसे वो पसंद करे वो है अपनी भाभी। अब मुझे ये तो नहीं पता की लड़कियों में क्या होता है? क्या वो भी ऐसा ही कोई रूल फॉलो करती हैं? कि तू मेरी बहन और जिसे तू पसंद करे वो मेरे जीजाजी। खैर जो भी हो, मेरा भाई विनय तो अवंतिका भाभी को रोज़ देखने आता था। मुझे भी चाय और मठरी खाने को मिलती थी तो मैं भी उसकी साईकिल पर पीछे लटक लेता था। भाभी अपने कॉलेज से छुट्टी के बाद उस सड़क से जाती थी और विनय इस तरह से उनको देखता था जिससे उनको पता भी न चले और वो उन्हें देख भी ले।
आजकल का तो पता नहीं लेकिन उस दौर में एक शर्म और लिहाज़ था। आज के युवा तो कबीर सिंह जैसी फिल्मों से ज़्यादा प्रेरित रहते हैं। चिल्लाना, बदतमीजी करना और तोड़ा फोड़ी करना बहुत कूल लगता है आज की युवा पीढ़ी को। मैं ये नहीं कहता की सारे युवा ऐसे हैं लेकिन ज़्यादातर।
लगभग 20 से 25 दिन उस चाय के ठेले पर जाते जाते मैं उकता गया था तो मैंने विनय से पूछ ही लिया कि भाई कब तक ऐसे ही चलता रहेगा? भाभी को तो पता भी नहीं है की तू उन्हें देखता है प्यार तो दूर की बात है। वो बोला की भाई प्यार मैं करता हूं उससे बस इसलिए उसे देखने आता हूं। मुझे समझ नहीं आया की ये 5 किलोमीटर की दूरी से मुझे पीछे बैठाकर बस अवंतिका को देखने आता है? मुझसे रहा नहीं गया तो एक सवाल मैंने और पूछ डाला,"तो मेरे भाई इस तरह समय बरबाद करने का क्या फायदा?" वो बोला,"रहने दे तू नहीं समझेगा अभी! जब तुझे प्यार होगा न तो तेरा यही भाई होगा जो तेरा साथ देगा।" इतना कहकर वो फिर से गली के उस मोड़ पर टकटकी लगाए चाय के ठेले के पास पड़ी बेंच पर बैठ गया, अवंतिका भाभी का इंतजार करते हुए।