Hemant Kulshrestha

Romance Fantasy

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Hemant Kulshrestha

Romance Fantasy

पुरानी डायरी

पुरानी डायरी

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कभी कभी आ जाती हो तुम ख्यालों में, बैठे बैठे यूं ही किसी कोने में...आज फिर तुम्हारी कुछ यादें मेरे सामने थीं, ठीक वैसे ही जैसे तुम होती हो मेरे सामने, आँखें बंद करने पर। तभी याद आई वो पुरानी डायरी, जो तुमने किसी रोज दी थी मुझे और कहा था, इस पर सिर्फ और सिर्फ मुझे लिखना। 

एक अजब सी बेचैनी के साथ उठा मैं और ढूंढने लगा वो पुरानी डायरी, जो मेरी टेबल के पास रखे किताबों के ढेर में से बाहर झाँक रही थी। 

मानो तुमने उसे काम दिया हो चुपचाप मेरी रैकी करने का, किताबों के ढेर के बीच में से अरसे बाद मैंने वो डायरी बाहर निकाली

और उसकी जिल्द की मजबूती और बाहरी हिस्से पर बनी उस तस्वीर को देखने लगा। डायरी की जिल्द आज भी उसी तरह मजबूत थी जैसा कभी हमारा रिश्ता हुआ करता था।  

डायरी के बाहर के पेज की तस्वीर पर गहरे लाल रंग के दिल थे जो सफेद बादलों के बीच में से उपर की ओर जा रहे थे। उन्हीं छोटे छोटे दिलों पर तुमने मेरे नाम के नीचे अपना नाम लिख रखा था। मैं दोबारा तुम्हारे पास था ठीक उतना ही जब तुम्हारे बदन की खुशबू मुझे भी खुद में समेट लेती थी। 

कुछ उसी तरह आज तुम्हारी इस डायरी की खुशबू मेरे हाथों पर जम रही थी, याद है तुम्हें किस तरह तुम मेरे सीने से पीठ टीका कर मेरी गोद में बैठ जाती थी और फिर पढ़ना शुरू कर देती थीं मेरी उन्हीं पढ़ी हुई कविताओं को जो कभी तुम्हारे लिये लिखी थी मैंने, ज्यादा कुछ लिखा नहीं था उस डायरी में कुछ गजलें तुम्हारी खूबसूरती पर, कुछ नज्‍में तुम्हारी आंखों की गहराई को बयां करने के लिये, कुछ शेर तुम्हें चिढ़ाने के लिये और कुछ जज्‍बात अपना प्यार जताने के लिये। शुरू के उन कुछ पन्नों के बाद कोरी ही थी वो डायरी ठीक वैसे ही जैसे तुम्‍हारे जाने के बाद मेरी जिंदगी,

ज्यादातर पन्ने पीले पड़ गये हैं अब, ठीक वैसे ही जैसे आंधी आने के बाद चारों ओर कोई धूल का गुबार हो। डायरी का हर पन्ना तुम्‍हारे और मेरे प्‍यार के एहसास को दोबारा जिंदा कर रहा था, जैसे हम आज भी एक हों और तुम यहीं कहीं हो आस पास मेरे।


बीच के उन कोरे पन्नों के बाद डायरी के पीछे के कुछ पन्ने अलग ही लिखावट और अलग ही कहानी बयां कर रहे थे,

जिनमें थी कुछ अधूरी नज्‍में, कुछ अधूरी गजलें जो तुमसे बिछड़ते वक्‍त लिखे थे,

उन्हें पूरा लिखता भी कैसे, तुमसे अलग होने के जज़्बात को शब्दों में पिरोने की ताकत नहीं थी मुझमें।

याद है तुम्हें डायरी के आखरी पन्ने के हर कोने पर तुमने मेरे और तुम्हारे नाम के बीच में एक तीर बनाकर उन्हें एक दिल में कैद किया था। 

अब वो तीर मुझे अपनी तकदीर जैसा लग रहा जिसने हमें अलग कर दिया। 


डायरी के आखिर में मैंने एक लाइन लिखी थी दुनिया से अंजान एक आवारा शायर...

इसी लाइन को तुमने काटते हुए उसके नीचे लिख रखा था दुनिया के लिये अंजान सिर्फ मेरा शायर

और इसी के साथ डायरी खत्म हो गई, 

तुम्‍हारी यादों के झुरमुट से बाहर आते हुए मेरी आंख की कोर से आंसू की एक बूंद ने डायरी के उस आखरी पन्ने पर पूर्ण विराम लगा दिया। 

और मैंने तुम्हारी यादों पर .........

 


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