Nisha Nandini Bhartiya

Drama

5.0  

Nisha Nandini Bhartiya

Drama

पुनर्विवाह

पुनर्विवाह

7 mins
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स्थान - मध्यम श्रेणी परिवार का ड्राइंग रूम 

( पात्र परिचय )    

( मध्यमवर्गीय परिवार ) रामोतार शर्मा- पिता आयु 60 वर्ष रामपुर शहर में कपड़े के व्यापारी हैं।   

कमला - माँ ( साधारण धार्मिक घरेलू महिला आयु 55 वर्ष ) 

गौरव - बेटा (आयु 30 वर्ष बैंक कर्मचारी )

शीला - गौरव की छोटी बहन (बी.ए पास कर चुकी है। (अविवाहित) 

स्नेहा- शीला की सहेली विधवा,एक साल के बच्चे की माँ (आयु सत्ताइस साल) 

मीना -घनश्याम पंडित की बीस वर्षीय बेटी, पिता की मृत्यु हो चुकी है। 

कलावती- पंडिताइन, मीना की माँ 

रामभरोसे-मीना का चाचा (आयु पैंतालीस साल) 


नेपथ्य से- (गौरव का विवाह दो वर्ष पूर्व हो चुका था। लेकिन एक वर्ष पूर्व गौरव की पत्नी गरिमा का एक दुर्घटना में देहांत हो चुका है। माता पिता गौरव से पुनर्विवाह करने का आग्रह कर रहे हैं। पहले तो गौरव पुनर्विवाह के लिए तैयार ही नहीं था परंतु माता-पिता के बार-बार आग्रह करने पर वह तैयार हो जाता है। विवाह संबंधित परिचर्चा को ही इस लघु नाटिका में चित्रित किया गया है। 

पर्दा उठते ही पिता (रामोतार शर्मा जी) का बाहर से ड्राइंगरूम में प्रवेश होता है। 


रामोतार - अजी, सुनती हो। सब लोग कहाँ है। 

कमला- जी अभी आती हूँ कपड़े धो रही हूँ। 

(साड़ी के पल्लू से हाथ तथा पसीना पोंछते हुए कमला का प्रवेश होता है। 

कमला- जी ! आज आप जल्दी आ गए, रूकिए अभी चाय बनाकर लाती हूँ । 

रामोतार - अरे भाग्यवान बैठो, कुछ जरूरी बात करनी है। 

कमला- अरे ,मैं ठहरी अनपढ़ गँवार। मुझसे क्या जरूरी बात करनी है। 

रामोतार- अरे, सुनोगी तो बाँछे खिल उठेंगी। अपने गौरव के लिए लड़की देख कर आ रहा हूँ ।

कमला- अच्छा, अब यह तो बताओ लड़की किसकी है ? कैसी है ?

रामोतार - (कुर्सी पर ठीक से बैठते हुए) धैर्य रखो बताता हूँ। तुमने घनश्याम पंडित का नाम तो सुना है न ?

कमला- जी..... जिनका पिछले साल देहांत हो गया था। 

रामोतार - हाँ... हाँ वही, उनकी ही बात कर रहा हूँ। उनकी बेटी मीना बीस वर्ष की है। बी. ए पास कर लिया है। अपनी शीला भी उसको जानती है। 

कमला- हाँ हाँ! उसे तो मैं अच्छी तरह जानती हूँ जी, बहुत ही सुंदर और सुशील लड़की है। (उत्साहित होते हुए) क्या वो हमारे गौरव से विवाह करने को तैयार है। 

रामोतार - मैंने पंडित जी के छोटे भाई से रामभरोसे बात की थी। वह तो खुशी से तैयार है। मैंने उससे कह दिया कि दहेज़ की मांग न होगी। जो दे देंगे वो सिर माथे से होगा पर आप लड़की को खाली हाथ तो विदा करेंगें नहीं। जेवर कपड़ा तो देंगे ही ।

कमला- सुनो जी..., क्या मीना और उसकी माँ एक विधुर लड़के से विवाह के लिए तैयार हो जाएंगी ।

रामोतार -अरे भाग्यवान तू भी कैसी बातें करती है। लड़के कभी विधुर नहीं होते वह तो हमेशा कुँवारे ही रहते हैं। केवल औरतें ही विधवा होती हैं और विधवा औरत का विवाह होना मुश्किल होता है। उनसे कोई विवाह नहीं करता है। हम तो एक ग़रीब लड़की का घर बसा रहे हैं। 

कमला- अरे, मैं तो भूल ही गई ।आँगन में गेहूँ सुखा रखे थे। जी अभी आती हूँ। (कह कर निकल जाती है।) 

( रविवार का दिन था इसलिए गौरव घर पर ही अपने कमरे में बैठा एक पत्रिका पढ़ रहा था। उसे अपने कमरे में माँ और पिता जी की सब बात सुनाई दे रही थी। शीला भी रसोई में खाना बनाते हुए सब बातें सुन रही थी। पिता का अंतिम वाक्य सुन कर गौरव बाहर बैठक में आता है।) 

रामोतार - अरे ! गौरव बेटा इधर आओ तुम्हें कुछ बताना है। तुम्हारे लिए एक बहुत ही अच्छी लड़की देखी है। 

गौरव - जी पिताजी, मैंने आपकी सब बातें सुन ली हैं। मैं बीस साल की कुँवारी लड़की से कतई विवाह नहीं करूँगा। जब मैं कुंँवारा नहीं हूँ तो किसी कुंँवारी लड़की से कैसे विवाह कर सकता हूँ। मैं शीला की सहेली स्नेहा से विवाह करूँगा। उसका एक साल बेटा है। बेटे के पिता नहीं रहे तो क्या मैं उसे पिता का नाम दूँगा।

रामोतार - अरे! तू यह क्या बोल रहा है ? तेरी बुद्धि भ्रष्ट हो चुकी है। हम किसी विधवा को अपने घर की बहु बनाएँगे और वो भी एक बच्चे की माँ को... राम राम। ऐसा कभी नहीं हो सकता। तुम्हें पंडित जी की बेटी से विवाह करना ही होगा। 

गौरव - नहीं पिताजी, मैं ऐसा अनर्थ नहीं कर सकता। यह अन्याय है, पाप है। 

रामोतार - बेटा ...तुमने चार अक्षर क्या पढ़ लिए पाप- पुण्य की बात करने लगे तुम्हें क्या मालूम तुम एक ग़रीब लड़की के साथ विवाह करके उस पर कितना बड़ा एहसान करोगे ।उसका जीवन सुधर जाएगा, हो सकता है वह कुँवारी ही रह जाए।

गौरव- पर पिताजी एक विधवा भी तो ग़रीब ही है। अकेले जीवन-यापन कर रही है वह भी एक साल के बच्चे के साथ... । उसके साथ तो कोई विवाह भी नहीं करेगा क्योंकि विधवा के विवाह पर तो समाज के ठेकेदारों ने निषेध कर रखा है। उसके बच्चे का क्या होगा।

रामोतार - देख रहा हूँ आजकल तुम्हारी ज़ुबान कुछ ज्यादा ही लम्बी हो गई है। तुमने सारी दुनिया के बच्चों को पालने का ठेका ले रखा है। 

गौरव- नहीं पिताजी, मैं तो समाज की स्थिति से आपको अवगत करा रहा हूँ। आज समाज में न जाने कितनी विधवाएं कष्टपूर्ण जीवन व्यतीत कर रही हैं। हम जैसे लोग उनका सहारा बनकर उद्धार कर सकते हैं। वह अपनी खुशी से तो विधवा नहीं हुईं। विधवा होना उनकी नियति था।

रामोतार - तो बेटा ! मेरा भी निर्णय सुन लो, मैं तुम्हारा बाप हूँ। यह बाल मैंने धूप में सफेद नहीं किये हैंही विधवा होती हैं और विधवा औरत का विवाह होना मुश्किल होता है। उनसे कोई विवाह नहीं करता है। हम तो एक गरीब लड़की का घर बसा रहे हैं। अगर तुम्हारी शादी होगी तो सिर्फ पंडित जी की बेटी मीना से या फिर कोई कुंँवारी लड़की से। मैं किसी विधवा को और एक बच्चे की माँ को, अपने घर की बहु बनाना हरगिज़ बर्दाश्त नहीं कर सकता। तुम्हें इस घर में रहना है तो मेरे अनुसार चलना पड़ेगा। 

गौरव - तो पिता जी आप भी कान खोल कर सुन लीजिए... मैं एक कुँवारी और अपने से दस साल छोटी लड़की का जीवन हरगिज़ बर्बाद नहीं करूंँगा। मुझे दूसरा विवाह नहीं करना है। मैं जैसा हूँ वैसा ही ठीक हूँ । 

रामोतार - बेटा, विवाह तो तुम्हें करना ही पड़ेगा और वह भी मेरी पसंद की लड़की से। इस घर में मेरा शासन चलता है। तुम्हारी मनमानी नहीं चलेगी।

रामोतार- अरे सुनती हो तुम्हारा बेटा अब बड़ा और समझदार हो गया है। 

कमला - जी... अभी आई ।

(पंखे से हवा करती हुई कमरे में प्रवेश करती है।) जी आज गर्मी कुछ ज्यादा ही है। क्या बहस हो रही है बाप बेटे के बीच ?

रामोतार- तुम्हारा बेटा ..शीला की सहेली स्नेहा है न.., एक बच्चे की माँ ...उससे शादी करके समाज का उद्धार करेगा। पूरे समाज का ठेकेदार जो बन गया।

कमला- अरे ! गौरव बेटा, यह मैं क्या सुन रही हूँ। तुम स्नेहा से शादी करोगे। एक बच्चे की माँ से..? यह तुम्हें क्या हो गया है। हमारी तो समाज में नाक कट जाएगी हम तो किसी को मुँह दिखाने लायक न रहेंगे बेटा।   

रामोतार- और सिर चढ़ाओ अपने लाडले को.. मैं न कहता था कि एक दिन यह ज़रूर गुल खिलाएगा।

कमला- ( गौरव के पास जाकर सिर पर हाथ फेरते हुए) बेटा ! क्या अपनी मांँ की बात भी न मानेगा। सुन, तेरे पिता हम सबकी भलाई के लिए ही ऐसा कह रहे हैं। तू उनकी बात मान ले।


गौरव- पर माँ इससे किसी का कुछ हित न होगा बल्कि अहित ही होगा। पिताजी बात को समझने की कोशिश ही नहीं कर रहे हैं। 

रामोतार -(गुस्से में हाथ उठते हुए) 

तू ऐसे न मानेगा। लातों के भूत बातों से नहीं मानते ।

(कमला बीच में आकर हाथ रोक लेती है।) 

कमला- यह आपको क्या हो गया है

जी ? इतने बड़े लड़के पर आप हाथ उठने जा रहे थे। 

( रामोतार कुर्सी पर सिर पकड़ कर बैठ जाते हैं ।) 

(शीला रसोई में खाना बनाते हुए बहुत देर से पिता की बातें सुन रही थी। उससे रहा न गया, पिता के सामने कभी मुँह न खोलने वाली शीला गुस्से में रसोई से बाहर निकल आई ।)

शीला - पिताजी मैं मीना को अपनी भाभी बनाने के लिए तैयार हूंँ ।  

गौरव - (अचंभित होता हुआ) शीला ! तुम यह क्या कह रही हो ?

शीला- मैं ठीक कह रही हूँ भैया ! (पिताजी की ओर देखकर) 

पिताजी आप मेरे लिए भी कोई ऐसा लड़का देखिए जिसकी पहली पत्नी का देहांत हो गया हो 

रोमातार-( गुस्से में चीखते हुए) 

शीला.... यह तुम क्या बक रही हो ? 

तुम्हारी बुद्धि तो नहीं फिर गई।

शीला - नहीं पिताजी, मैं बिल्कुल ठीक हूँ। सोच रही हूँ, जब मेरी सहेली मीना की शादी ऐसे व्यक्ति से हो सकती है। तो मेरी क्यों नहीं 

गौरव - (खुशी से शीला की तरफ देखते हुए) मुझे अपनी बहन पर गर्व है। शीला तुम बिल्कुल ठीक कह रही हो।

रामोतार - (क्रोध में कांँपते हुए) देख रहा हूंँ, तुम पर भी भाई का रंग चढ़ने लगा है। दोनों एक ही थैली के चट्टे बट्टे हो। अब तुम्हारे मुंह में भी ज़ुबान निकल आई है। ( गौरव और शीला दोनों एक साथ बोल पड़ते हैं।) 

पिताजी,आखिर हैं तो आपके ही बच्चे ! (रामोतार को अपनी ग़लती का अहसास हो जाता है। वह आगे बढ़कर दोनों बच्चों को गले से लगाते हुए कहते हैं।) 

रामोतार - आज मेरे बच्चों ने मेरी आँखें खोल दी। सच में, मैं एक बड़ा पाप करने जा रहा था। अब तुम दोनों का विवाह वहीं होगा जहाँ तुम चाहोगे ।


( यह बोलते हुए पिता की आँखें छलछला आईं । )

कमला भी उठकर अपने दोनों बच्चों को चूम लेती है। चारों मुस्कुरा उठते हैं इसके साथ ही पर्दा गिर जाता है। 



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