पत्थर
पत्थर
एक मछुआरा था। उस दिन वह सुबह से शाम तक नदी में जाल डालकर मछलियां पकड़ने की कोशिश करता रहा, लेकिन एक भी मछली जाल में ने फंसी। जैसे-जैसे सूरज डूबने लगा उसकी निराशा गहरी होती गई। भगवान का नाम लेकर उसने एक बार और एक जाल डाला। पर मछलियां इस बार भी नया आई हां एक वजनी पोटली उसके पांव से अटकी मछुआरे ने पोटली उठा ली।
हां यह भी पत्थर है बोला तूने लाया मन मारे नाव में चढ़ा ठंडी ठंडी हवा में जियो जियो नाव बढ़ रही थी वह मन में नई योजना का संचार करता जा रहा था। सोचने लगा कल दूसरे किनारे पर डाल डाल लूंगा सब से छिपकर उधर कोई नहीं जाता वहां बहुत सारी मछलियां पकड़ी जा सकती हैं। मन्यु चंचल था तो हाथ से कैसे निश्चय बहते हाथ से वह उस पोटली के पत्थर एक-एक करके नदी में डालता जा रहा था।
पोटली खाली हो गई सिर्फ एक पत्थर बचा जो उसके हाथ में था इत्तेफाक से उसकी नजर उस पर गई और देखा फिर गौर से देखो उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ उसने जोर से मुट्ठी बांध ली यह तो नीलमथा मछुआरे के पास अब पछतावे के अलावा कुछ नहीं बचा था। नदी के बीचों-बीच अपनी नाव में बैठा वह अपने आपको कोस रहा था।
