राजकुमार कांदु

Tragedy Inspirational

4  

राजकुमार कांदु

Tragedy Inspirational

पत्थर का शेर

पत्थर का शेर

2 mins
294


पंडित लीलाधर मिश्र अपने पांच वर्षीय बेटे ओंकार के साथ मंदिर गए। एक विशाल प्रांगण के बीचोबीच भव्य मंदिर बना हुआ था।

सीढियाँ चढ़कर मंदिर के दालान में एक शेर की पाषाण प्रतिमा दृष्टिगोचर हुयी। प्रतिमा बहुत ही सुन्दर और जीवंत शेर सा प्रतीत हो रही थी।

पंडित लीलाधर ने आगे बढ़कर उस शेर की प्रतिमा के आगे शीश नवाया और ओंकार की तरफ देखा।

ओंकार डरा सहमा सा उस शेर की प्रतिमा की तरफ देख रहा था। उसके मासूम चहरे पर डर का भाव देखकर पंडित लीलाधर सारा माजरा समझ गए।

उसे समझाते हुए बोले ” बेटा ! तू इतना डर क्यों रहा है ? वह असली शेर थोड़े न है। वह तो एक शेर की मूर्ति ही है। उससे कैसा डर ? ”

ओंकार पंडित लीलाधर के पीछे पीछे मंदिर में प्रवेश कर गया। माताजी की प्रतिमा के आगे शीश झुका कर पंडित लीलाधर ने ओंकार की तरफ देखा।

ओंकार माताजी के सामने निर्विकार सा खड़ा था। पंडितजी ने उसे समझाया ” बेटा ! यह जगत्जननी माता जी हैं। इन्हें हाथ जोड़कर नमस्कार करो। ”

ओंकार ने अनमने मन से माताजी की प्रतिमा को नमस्कार किया और मंदिर से बाहर आया।

घर की तरफ बढ़ते हुए ओंकार के नन्हे से दिमाग में कुछ घुमड़ रहा था। आखिर पुछ ही बैठा ” पिताजी ! पत्थर के शेर से नहीं डरना चाहिए ये बात तो मैं समझ गया की वह नकली शेर था फिर पत्थर की देवी जिसे आपने हाथ जोड़ा वह असली कैसे ? ”


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy