पटाखे

पटाखे

1 min
435


जीवन में कई बार ऐसे अवसर आते हैं जब बच्चों के सामने माता-पिता को अपना कद छोटा लगने लगता है, परंतु इससे उन्हें गर्व की भी अनुभूति होती है। 

ऐसा ही कुछ इस दीपावली हमारे साथ भी हुआ। दीपावली की लगभग पूरी खरीददारी के बाद हम सपरिवार पटाखा मार्केट गए। 

बेटी तो खैर अभी दो ही साल की है, सो हमने अपने बारह वर्षीय बेटे से कहा कि, "दोनों भाई-बहन के लिए पटाखे छाँट लो।"

बेटा बोला, "जरुरत नहीं है पापा, परी अभी छोटी है। वह डरती भी है। मुझे नहीं फोड़ने हैं पटाखे।"

हमने समझाने-मनाने की पूरी कोशिश की, पर उसने साफ मना कर दिया। 

श्रीमती जी ने शगुन के तौर पर एक पैकेट सुरसुरी और एक पैकेट बम के ले लिए। 

पूजा के बाद श्रीमती जी ने बेटे को फ्लैट के नीचे गार्डन में जाकर पटाखे फोड़ने के लिए भेजा। 

बेटे ने साफ मना कर दिया। "आपको फोड़ना है तो फोड लीजिए। मैं शगुन के रूप में भी पटाखे नहीं फोडूँगा। आपको पता है प्रदूषण की वजह से आज कितने लोगों को साँस लेने में परेशानी होगी। सैकड़ों पक्षियों की तो मौत हो जाएगी। इस पाप का भागीदार मैं नहीं बनना चाहता।"

पति-पत्नी बेटे का मुँह ताकते रह गए। पटाखे के पैकेट अभी भी मुँह चिढ़ा रहे हैं। 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama